यूपी में भाजपा की 'श्मशान-कब्रिस्तान 2.0' की तैयारी!
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में बीजेपी की नजर खास तौर पर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण (Muslim Vote Polarisation) पर होगी क्योंकि नेतृत्व को पश्चिम बंगाल की हार में सबसे बड़ी वजह यही लगती है - जो हालात बने हैं उसमें योगी आदित्यनाथ (Yogi adityanath) के लिए ये एक सुरक्षा कवच ही है.
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योगी आदित्यनाथ (Yogi adityanath) के कारण उत्तर प्रदेश (UP Election 2022) ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है. कुछ सुर्खियां बीजेपी के संगठन महासचिव बीएल संतोष के लखनऊ दौरे से भी बनी हैं, जो संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के बाद लखनऊ पहुंचे थे - और सुर्खियों की तासीर भी तभी बदली जब बीएल संतोष ने ट्विटर पर बताया कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं. करीब करीब वैसे ही जैसे दिल्ली में बीजेपी के तमाम नेता कोविड 19 के मुश्किल दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते नहीं थकते.
लखनऊ की ही तरह बीएल संतोष हफ्ते भर उत्तराखंड के दौरे पर भी थे - और बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं को जमीन पर काम करने की वैसे ही सलाह दी, जैसी अपेक्षा G-23 नेताओं की नये और स्थायी कांग्रेस अध्यक्ष से हैं - जो भी हो लेकिन वो काम करते हुए दिखे भी. हो सकता है ये राहुल गांधी को लेकर बागी कांग्रेसियों की व्यक्तिगत आलोचना हो.
पश्चिम बंगाल सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी नेतृत्व अब आने वाले चुनावों की तैयारी में जुट चुका है. उत्तर प्रदेश के साथ ही अगले साल के पहले हिस्से में उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में भी चुनाव होने हैं - और आखिर में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में.
बीएल संतोष पांचों राज्यों में जमीनी हालात का जायजा और स्थानीय नेताओं से फीडबैक ले रहे हैं ताकि जरूरत के हिसाब से विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी अपनी रणनीति तैयार कर सके. कोई भी कदम आगे बढ़ाने से पहले बीजेपी के लिए बाकी राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन तो नहीं लेकिन बंगाल की हार की समीक्षा जरूरी हो जाती है.
5 जून को दिल्ली में जेपी नड्डा की अध्यक्षता में बीजेपी महासचिवों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई जिसमें पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और असम चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा हुई - और ये निष्कर्ष भी निकाल लिया गया कि बीजेपी को तृणमूल कांग्रेस के हाथों क्यों शिकस्त हुई? बीजेपी ने ये भी मालूम कर लिया कि कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के वोटों के साथ क्या हुआ?
बंगाल चुनाव को लेकर बीजेपी अब इस नतीजे पर पहुंची है कि वोटो का ध्रुवीकरण ही बीजेपी की हार का सबसे बड़ा कारण है - और कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन का सारा वोट आपस में एक दूसरे के बीच ट्रांसफर होने के ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के खाते में चला गया.
अब तक तो बीजेपी पर ही उसके राजनीतिक विरोधी वोटों ध्रुवीकरण के आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन इस बार तो बीजेपी को भी ये महसूस होने लगा है - हालांकि, एक बड़ा फर्क है, बीजेपी की नजर में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण (Muslim Vote Polarisation) हुआ है. ठीक उसके उलट जो राजनीतिक विरोधी बीजेपी पर सीधा इल्जाम जड़ दिया करते हैं.
जाहिर है, आने वाले चुनावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी की रणनीति भी बंगाल के नतीजों पर ही आधारित होगी और उसे न्यूट्रलाइज करने के लिए बीजेपी नेतृत्व फिर से अपना डबल बैरल हथियार का इस्तेमाल करने की सोच रहा होगा - श्मशान और कब्रिस्तान विमर्श!
UP में वोटों के ध्रुवीकरण की कितनी संभावना
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में हार को लेकर बीजेपी नेतृत्व जिस नतीजे पर पहुंचा है, अंदाजा तो उसे पहले से ही रहा होगा. बंगाल की चुनावी राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले भी AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी के शुरुआती दौर में खासा एक्विट होने को उसी नजरिये से देख भी रहे थे.
बिहार चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद असदुद्दीन ओवैसी के पांव धरती पर तो पड़ ही नहीं रहे थे. पश्चिम बंगाल के साथ साथ असदुद्दीन ओवैसी को यूपी में भी सक्रिय देखा गया. बिहार चुनाव में बीएसपी नेता मायावती के साथ गठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ने वाले ओवैसी लखनऊ पहुंच कर कई नेताओं से मिले और ये जताने की कोशिश कर रहे थे कि बिहार जैसा प्रदर्शन उनकी पार्टी पश्चिम बंगाल में तो दोहराएगी ही, यूपी को लेकर भी उनकी जोरदार तैयारी है.
पांच साल बाद यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए एक ही फर्क होगा - मुख्यमंत्री का एक चेहरा भी होगा!
पश्चिम बंगाल चुनाव की तारीखें आने से काफी पहले ही ओवैसी ने फुरफुरा शरीफ वाले पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से मीटिंग के बाद चुनावी गठबंधन का ऐलान भी कर दिया था. हालांकि, पीरजादा के बयानों से ही ओवैसी के दावों पर सवाल उठने लगे थे. बाद में पीरजादा अब्बास सिद्धीकी ने कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के साथ सीटों का समझौता हो जाने का दावा किया, लेकिन कुछ ही दिन बाद दोनों दलों के रवैये से खासे नाराज भी देखे गये.
पीरजादा सिद्दीकी की मुश्किल ये भी रही कि फुरफुरा शरीफ के प्रभाव वाले कुछ ही लोग उनकी राजनीतिक गतिविधियों के समर्थन में खड़े दिखे, जबकि ज्यादातर उनके चाचा के साथ खड़े नजर आये जो उनके कदमों से शुरू से ही इत्तेफाक नहीं रख रहे थे. फुरफुरा शरीफ के सपोर्ट की बदौलत ही ममता बनर्जी पहली बार सत्ता में पहुंचीं और अब तो बीजेपी का आकलन भी बता रहा है कि ममता बनर्जी को ही उनका सपोर्ट हासिल है.
तभी तो बिहार में विधानसभा की 5 सीटें झटकने में कामयाब रहे असदुद्दीन ओवैसी अंत में सिर्फ 7 सीटों पर चुनाव लड़े और नतीजे आने पर मालूम हुआ कि AIMIM के सभी सातों उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गयी.
पश्चिम बंगाल की तरह तो नहीं, लेकिन यूपी में भी मुस्लिम आबादी का ठीक ठाक वोट बैंक है. पश्चिम बंगाल में मुस्लिम समुदाय जहां कुल आबादी का 30 फीसदी है, वहीं उत्तर प्रदेश में ये नंबर 20 फीसदी है.
जब तक समाजवादी पार्टी और बीएसपी का प्रभाव नहीं शुरू हुआ था यूपी में पूरा मुस्लिम वोट कांग्रेस के खाते में जाता रहा. मुस्लिम वोटों पर ज्यादा प्रभाव समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव का देखा गया और यही वजह रही कि एक अरसे तक वो 'मुल्ला मुलायम' के रूप में विख्यात रहे.
चुनावी माहौल बन जाने के बाद मुलायम सिंह किसी न किसी बहाने मौका खोज कर अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाने का क्रेडिट भी मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने के लिए ही बयान देते हैं. यहां तक कि रेप जैसे घृणित अपराध को लेकर भी उनका वो विवादित बयान मुस्लिम समुदाय की सहानुभूति बटोरने के लिए ही रहा - "...लड़के हैं गलती हो जाती है... तो क्या फांसी पर चढ़ा दोगे?" 2017 के यूपी चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का श्मशान और कब्रिस्तान वाले बयान का मकसद भी मिलता ही जुलता रहा. कोविड 19 के प्रकोप से नदी में उतराते शवों और बालू में दफनायी गयी लाशों की खबर आने के बाद सोशल मीडिया पर लोग श्मशान और कब्रिस्तान वाली बातों के नये अर्थ पेश करने लगे थे.
फरवरी, 2017 में फतेहपुर की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तब की अखिलेश यादव सरकार पर सूबे में लोगों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया और कहा था, 'सरकार कब्रिस्तान बनाती है तो श्मशान का भी ध्यान रखे... यदि रमजान में बिजली दी जाती है तो दिवाली में भी बिजली दी जानी चाहिये...'
प्रधानमंत्री के इस बयान पर काफी कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली थी. विपक्ष तो आक्रामक हो ही गया था, सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपने अपने तरीके से खूब रिएक्ट किया था.
बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का इल्जाम लगाया, लेकिन वैसा नहीं जैसा बीजेपी पश्चिम बंगाल में अपनी हार का कारण मानती है, बल्कि उसका उलटा.
आरोप लगाने की बात और है, लेकिन अपने अपने फायदे के हिसाब से वोटों का ध्रुवीकरण चाहते तो सभी राजनीतक दल हैं. बीजेपी के राम मंदिर के एजेंडे का भी मकसद वही है जो मुलायम सिंह यादव के कारसेवकों पर फायरिंग की याद दिलाने का - वोटों का वैसा ध्रुवीकरण जो जिसे जैसे सूट करता हो.
बेशक बीजेपी भी वोटों का ध्रुवीकरण कराना चाहेगी ही, लेकिन वैसा ध्रुवीकरण जो उसके फायदे में हो, वैसा तो बिलकुल नहीं जैसा पश्चिम बंगाल में बीजेपी के अनुसार हुआ है.
हर चुनाव में पाकिस्तान का डर और चुनावों के दौरान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय का ये कहना कि महागठबंधन सत्ता में आया तो बिहार का हाल जम्मू-कश्मीर जैसा हो जाएगा. हालांकि, नित्यानंद राय ने ये नहीं समझाया था कि वो 5 अगस्त, 2019 से पहले वाले जम्मू-कश्मीर की बात कर रहे थे या बाद के हालात की?
योगी आदित्यनाथ की तो पॉलिटिकल लाइन ही यही होती है - चाहे वो दिल्ली में बीजेपी के लिए वोट मांग रहे हों, या केरल या फिर पश्चिम बंगाल में. पश्चिम बंगाल में भी योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी के सत्ता में आने पर लव-जिहाद पर कानून बनाने की बात की थी. यूपी में तो ऐसी पहल वो पहले ही कर चुके हैं.
विधानसभा चुनाव की ही बात कौन कहे, 2019 के आम चुनाव में भी तो विपक्ष, खासकर कांग्रेस को पाकिस्तान परस्त पार्टी के तौर पर बीजेपी ने पेश किया ही. बहाना पुलवामा आतंकी अटैक रहा, जिसके बाद संघ और बीजेपी ने चुनावों तक राम मंदिर का मुद्दा होल्ड कर लेने का फैसला किया था.
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