महाराष्ट्र में बीजेपी को शिवसेना से गठबंधन की कीमत चुकानी पड़ी है!
चुनाव नतीजों के रुझाने देखते ही शिवसेना के तेवर बदल गये हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी से सरकार में बराबरी की हिस्सेदारी की मांग होने लगी है. शिवसेना के 50-50 फॉर्मूले में डिप्टी सीएम नहीं बारी बारी दोनों दलों के मुख्यमंत्री होना है.
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महाराष्ट्र में बीजेपी बेशक सत्ता में वापसी कर रही है. देवेंद्र फडणवीस की कुर्सी पर चुनाव बाद भी बरकरार है और उस पर कोई आंच नहीं आई है. वो अपने मनमाफिक शुभ मुहूर्त में दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ भी लेंगे - लेकिन एक बात तो तय है सरकार पर फडणवीस की पकड़ पहले जैसी फिलहाल तो नहीं होने वाली. बाद में होने वाले राजनीतिक खेल की बात और है.
शिवसेना को तो जैसे नतीजों का ही इंतजार रहा. जैसे जैसे रुझानों से तस्वीर साफ होती गयी, शिवसेना ने रंग दिखाने शुरू कर दिये. जो बातें शिवसेना दबी जबान में कहती आ रही थी - अब खुल्लम खुल्ला कहने लगी है.
ये तो पहले से ही मान कर चला जा रहा था कि बीजेपी ने शिवसेना के लिए डिप्टी सीएम की कुर्सी रिजर्व कर दी है, लेकिन अब शिवसेना ने सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावेदारी बढ़ा दी है - पूरा का पूरा न सही, शिवसेना का दबाव है कि 50-50 तो करना ही होगा.
महाराष्ट्र में शिवसेना को गठबंधन का फायदा
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में भी बीजेपी ने पूरी मनमानी की और बेबस शिवसेना खामोश बनी रही. यहां तक कि शिवसेना से इतर गठबंधन के साथियों को भी बीजेपी ने कमल निशान पर ही चुनाव लड़ाया था.
2014 में बीजेपी और शिवसेना अलग अलग विधानसभा चुनाव में उतरे थे. बीजपी अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे को जल्दी ही समझ आ गया कि अलग होने से काफी नुकसान हो रहा है. 2019 के आम चुनाव से पहले तो शिवसेना की ओर से मैदान में अलग उतरने की ही घोषणा कर दी गयी थी. फिर भी जब चुनाव नजदीक आये तो दोनों साथ हो गये और मिल कर चुनाव लड़े. मोदी सरकार 2.0 के कैबिनेट गठन में भी शिवसेना को खामोश होकर सब सहन करना पड़ा क्योंकि बीजेपी ने सहयोगियों के लिए कैबिनेट में एक से ज्यादा जगह न देने का फैसला सुना दिया था. शिवसेना ने तो चुपचाप मान भी लिया, लेकिन नीतीश कुमार ने तो मना ही कर दिया.
शिवसेना को मालूम था कि अकेले बूते लड़ाई उसके लिए मुश्किल है. संभव है शिवसेना ने आम चुनाव में भी महसूस किया हो कि बीजेपी के बगैर गाड़ी पार लगायी तो जा सकती है लेकिन सीटों का नुकसान हो सकता है. विधानसभा चुनाव में भी हाल वही होता.
ऐसा लगता है सीटों के बंटवारे के बाद उद्धव ठाकरे का पूरा जोर ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने पर हो गया. मातोश्री से निकल कर आदित्य ठाकरे के चुनाव मैदान में आ जाने से शिवसैनिकों का हौसला भी सातवें आसमान पर होगा ही. आदित्य ठाकरे के वर्ली से चुनाव लड़ने के फैसले के बाद से ही शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाये जाने का मैसज दिया जाने लगा.
शिवसैनिकों ने आदित्य ठाकरे को CM की कुर्सी के करीब तो ला दिया है - आगे क्या होगा?
एक तरफ बीजेपी एनसीपी के उभार से जूझ रही थी और दूसरी तरह शिवसैनिक जी जान से आदित्य ठाकरे की राह आसान बनाने में लगे हुए थे. बीजेपी के संघर्ष को परली में पंकजा मुंडे के प्रदर्शन के जरिये भी समझा जा सकता है.
अमित शाह ने शुरू से ही परली को चुनाव प्रचार के फोकस पर रखा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी परली पहुंच कर पंकजा मुंडे के लिए वोट मांगे. कहते हैं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने एक करीबी को परली की चीजें दुरूस्त रखने का टास्क सौंपा हुआ था.
तमाम इंतजाम के बावजूद पंकजा मुंडे की सीट फंस गयी - और उनके लिए उनके चचेरे भाई धनंजय मुंडे ने ही सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी. धनंजय मुंडे एनसीपी से टिकट लेकर बहन के खिलाफ ही मैदान में कूद गये.
धारा 370 से लेकर पाकिस्तान को औकात में रखने के बीजेपी नेतृत्व के वादे और सारी नाकामियों के लिए कांग्रेस को कोसने के बावजूद पंकजा मुंडे के खिलाफ लोगों का गुस्सा कम नहीं हो पाया.
चुनाव से पहले बीजेपी को इस बात का पूरा विश्वास हो चुका था कि वो अकेले दम पर महाराष्ट्र का चुनाव जीत कर सत्ता में आसानी से वापसी कर सकती है - लेकिन अमित शाह और मोदी ने तय कर रखा था कि सहयोगी दलों को वो हर हाल में साथ लेकर ही चलेंगे.
चुनाव नतीजे के रूझानों से तो फिलहाल यही कहा जा सकता है कि बीजेपी को शिवसेना से गठबंधन का हद से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है.
ऊपर से शिवसेना की ओर से सरकार में बराबरी की हिस्सेदारी का दबाव बनाया जाने लगा है. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने तो साफ साफ कह दिया है कि सरकार में हिस्सेदारी बराबरी पर ही होगी.
संजय राउत के बयान का इशारा है कि अब शिवसेना डिप्टी सीएम की कुर्सी नहीं फिफ्टी-फिफ्टी फॉर्मूले पर ही बात बनेगी. ये मांग शिवसेना की शुरू से ही रही है, फिर भी देवेंद्र फडणवीस के साथ मीडिया के सामने आने पर उद्धव ठाकरे संयम बरतते रहे. सीटों के बंटवारे की प्रेस कांफ्रेंस के बाद जब उद्धव ठाकरे शिवसैनिकों के बीच पहुंचे तो वे मानने को तैयार ही नहीं थे. अब उसी वाकये की याद दिलायी जा रही है. तब शिवसैनिकों को शांत कराने के लिए उद्धव ठाकरे को कहना पड़ा था कि वे निश्चिंत रहें और जमीन पर काम करें. उद्धव ठाकरे ने शिवसैनिकों को भरोसा दिलाया कि वो बीजेपी से बारी बारी ढाई-ढाई साल सरकार चलाने की डील करेंगे.
शिवसैनिकों ने अपना काम कर दिया है. बीजेपी का काम हो गया है. अब शिवसेना ने दबाव बनाना शुरू कर दिया है - सौदा भले 50-50 पर जाकर तय हो लेकिन इसमें शिवसेना का सीधा फायदा और बीजेपी का पूरा नुकसान है.
इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल फिर सही साबित
हरियाणा की ही तरह इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया एग्जिट पोल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव को लेकर भी सही साबित हो रहा है. एग्जिट पोल में सत्ताधारी बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को 166 से 194 सीटों की उम्मीद जतायी गयी थी जबकि दूसरे पोल इसे 200 के पार मान कर चल रहे थे. रुझानों को देखें तो बीजेपी और शिवसेना की मिल कर सीटें इसी के इर्द गिर्द नजर आ रही हैं.
इसी एग्जिट पोल में में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को 72 से 90 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया और रुझान भी इसे सही ठहराते दिख रहे हैं. 2018 के छत्तीसगढ़ चुनाव को लेकर भी इंडिया टुडे एक्सिस माय इंडिया पोल में बाकियों से अलग कांग्रेस के जीत की भविष्यवाणी सच साबित हुई थी. हरियाणा में भी सिर्फ इसी एग्जिट पोल में बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर बताया गया था.
2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी दोनों अलग अलग चुनाव लड़े थे. तब बीजेपी ने 122 सीटें जीती थी और शिवसेना को 63 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. इस बार दोनों मिल कर चुनाव लड़े और शिवसेना फायदे में रही.
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