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Updated: 24 सितम्बर, 2021 11:31 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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उत्तर प्रदेश में तीन दशक से ज्यादा समय से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के चेहरे के सहारे सूबे में वापसी का सपना संजो रही है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP assembly elections 2022) के मद्देनजर किये जा रहे चुनावी दावों से इतर जमीनी हकीकत की बात करें, तो कांग्रेस  को भाजपा के साथ ही सपा और बसपा भी कड़ी टक्कर दे रहे हैं. मजबूत संगठन का दावा कर रही कांग्रेस से बड़े चेहरों का जाना भी लगातार जारी है. जितिन प्रसाद के बाद कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी ने भी पार्टी को अलविदा कह दिया है. कांग्रेस (Congress) के मजबूत किले एक के बाद ढह रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अमेठी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली चार में से तीन विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर 2019 के लिए राह बना दी थी. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले अमेठी में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को बड़ी शिकस्त दी थी.

वैसे, भाजपा (BJP) ने 2019 में अमेठी जीतने के बाद से ही गांधी परिवार के आखिरी गढ़ रायबरेली (Rae Bareli) पर नजरें गढ़ा दी थीं. राहुल गांधी को मात देने के बाद केंद्रीय मंत्री बनीं स्मृति ईरानी अमेठी में अपना आशियाना बनवा रही हैं. साथ ही स्मृति ईरानी अमेठी के दौरे पर आने के दौरान रायबरेली का हाल-चाल लेने भी पहुंचती रहती हैं. उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को रायबरेली जिले को संभालने का अतिरिक्त प्रभार मिला हुआ है. संगठन के कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के नाम के सहारे लोगों के बीच सरकार की उपलब्धियों को पहुंचाने में जुटे हैं. इसी साल हुए यूपी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पहली बार भाजपा के प्रत्याशियों ने अमेठी (Amethi) और रायबरेली से जीत दर्ज की है. कहना गलत नहीं होगा कि उत्तर प्रदेश में सात विधानसभा सीटों पर सिमट चुकी कांग्रेस के सामने अब अपना आखिरी गढ़ बचाने की चुनौती नजर आने लगी है.

sonia gandhi rae bareliयूपी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में पहली बार भाजपा के प्रत्याशियों ने अमेठी और रायबरेली से जीत दर्ज की है.

क्या है रायबरेली का गणित?

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट से जीत जरूर हासिल की थीं. लेकिन, लंबे समय से सेहत की समस्या से जूझ रहीं सोनिया गांधी की उपस्थिति इस क्षेत्र में न के बराबर है. गांधी परिवार के आखिरी सियासी गढ़ रायबरेली का दौरा प्रियंका गांधी करती रहती हैं. लेकिन, उनके सामने पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी है, जो इस गढ़ को कहीं न कहीं कमजोर कर रही है. रायबरेली लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 6 विधानसभा सीटों में से तीन पर भाजपा ने 2017 के यूपी चुनाव में जीत हासिल की थी. वहीं, बीते 5 सालों में बछरावां, हरचंदपुर, रायबरेली सदर, सरेनी, ऊंचाहार और सलोन विधानसभा सीटों का गुणा-गणित बहुत तेजी से बदला है. हरचंदपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीते विधायक राकेश सिंह अब योगी आदित्यनाथ की तारीफ करते नहीं थकते हैं. आम आदमी पार्टी के विधायक सोमनाथ भारती पर स्याही फेंकने वाले हिंदू युवा वाहिनी के नेता को 51 हजार का पुरस्कार भी दे चुके हैं. दरअसल, 2018 में भाजपा अध्यक्ष रहते हुए अमित शाह ने कांग्रेस एमएलसी दिनेश सिंह (राकेश सिंह के भाई) को भाजपा में शामिल किया था.

रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह भी बीते लंबे समय से बागी की भूमिका निभा रही हैं. भाजपा के साथ उनकी करीबी बढ़ी है और संभावना जताई जा रही है कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में अदिति सिंह खुलकर भाजपा के समर्थन में आ सकती हैं. हालांकि, ये भी माना जा रहा है कि वो भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए चुनावी मैदान में आ सकती हैं. वहीं, ऊंचाहर विधानसभा सीट की बात करें, तो पिछले दो चुनावों में इस सीट से लगातार सपा जीत रही है. लेकिन, ऊंचाहार सीट पर जीत-हार का अंतर बहुत मामूली रहा है. काफी हद तक संभावना है कि भाजपा इस विधानसभा सीट पर कोई बड़ा उलटफेर कर यहां भी पहली बार कमल खिला सकती है. बछरावां, सरेनी और सलोन पर पहले से ही भाजपा का कब्जा है, तो यहां पर कम से कम कांग्रेस के लिए कोई जगह नजर नहीं आती है. वहीं, अगर ऐसा हो जाता है, तो कांग्रेस के आखिरी गढ़ रायबरेली में पार्टी के पास हथियार डालने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. क्योंकि, प्रियंका गांधी विधानसभा चुनाव लड़ेंगी नहीं.

प्रियंका गांधी चुनाव न लड़ी, तो कांग्रेस हो जाएगी 'निल बटे सन्नाटा'

राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में हार के बाद अमेठी से मुंह मोड़ लिया और इसका फायदा भाजपा को मिला भी. पहली बार अमेठी में भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की. वहीं, ऐसा लगता है कि राहुल गांधी का अमेठी से दोबारा चुनाव लड़ने का कोई मन भी नहीं है. क्योंकि, अपने कई बयानों में वह उत्तर भारत के मतदाताओं के बौद्धिक स्तर पर सवाल खड़े कर चुके हैं. खैर, 2019 के लोकसभा चुनाव में केवल रायबरेली सीट जीतने वाली कांग्रेस के पास यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (Assembly Elections) के तौर पर उत्तर प्रदेश में पार्टी के रिवाइवल का आखिरी मौका है. लेकिन, प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) इस मौके को भुनाने में सफल होती नहीं दिख रही हैं. दरअसल, प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन की कोशिशों में लगी हुई हैं. लेकिन, अखिलेश यादव  (Akhilesh Yadav) पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जाने का अंजाम देख चुके हैं, तो उन्होंने इस गठबंधन से इनकार कर दिया है.

priyanka gandhi up assembly elections 2022कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लगातार प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने का संकेत दे रहे हैं.

वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लगातार प्रियंका गांधी के चुनावी मैदान में उतरने का संकेत दे रहे हैं. लेकिन, प्रियंका गांधी हर बार इसे कांग्रेस नेतृत्व का फैसला की बात कह कर टाल रही हैं. चुनावी परिप्रेक्ष्य से इतर देखा जाए, तो देश के सबसे बड़े सूबे में एक पार्टी के तौर पर बचे रहने के लिए प्रियंका गांधी का यूपी चुनाव में बतौर प्रत्याशी उतरना बहुत जरूरी नजर आता है. क्योंकि, 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन ही 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को भी तय करेगा. अगर कांग्रेस यूपी विधानसभा चुनाव में अपना पिछला प्रदर्शन दोहराएगी, तो सूबे में मृतप्राय हो चुकी पार्टी पूरी तरह से खात्मे की ओर बढ़ जाएगी. अगर प्रियंका गांधी चुनाव मैदान में आती हैं, तो संगठन को मजबूती मिलेगी. वहीं, इस बात की भी पूरी संभावना है कि अभी तक गठबंधन से दूरी बनाकर रखने वाले अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ आने को तैयार हो जाएं. अगर ऐसा नहीं होता है, तो कांग्रेस के रिवाइवल की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो जाएगी.

सोनिया गांधी बीमार होने की वजह से अपने लोकसभा क्षेत्र पर कोई खास ध्यान नहीं दे पा रही हैं. इस स्थिति में यूपी चुनाव लड़कर प्रियंका गांधी अगले लोकसभा चुनाव से पहले सूबे में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाब हो सकती हैं. अगर सूबे की सत्ता में कोई परिवर्तन होता है, तो इससे कांग्रेस को ही मदद मिलेगी. प्रियंका गांधी चाहें, तो विधायक रहते हुए भी 2024 में रायबरेली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर सकती हैं. अगर प्रियंका गांधी यूपी चुनाव नहीं लड़ती हैं या सपा के साथ गठबंधन करने में कामयाब नहीं हो पाती हैं, तो सूबे में कांग्रेस को 'निल बटे सन्नाटा' होने में समय नहीं लगेगा. और, भाजपा यूपी को 'कांग्रेस मुक्त' बनाने में कोई कोर-कसर वैसे भी नहीं छोड़ रही है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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