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Updated: 27 जनवरी, 2019 03:48 PM
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कोशिश तो हर राजनीतिक दल की यही होती है कि एक तीर से कई निशाने लगा ले, लेकिन कामयाबी मिले भी जरूरी तो नहीं. चुनावों से पहले सभी सियासी पार्टियां विरोधी दलों के असंतुष्टों पर डोरे डालती रहती हैं - कभी लट्ठमार अंदाज में तो कभी बड़े ही सोफियाने ढंग से.

बीजेपी तो वैसे भी पार्टी विद डिफरेंस रही है, इसीलिए ऐसे मामलों में अक्सर दूसरों के कंधे ही नहीं, बल्कि दूसरे के मोहरों की भी उसे तलाश रहती है. एक से काम न चले तो दूसरा, तीसरा, चौथा मोहरा... बीजेपी आखिर तक आजमाती रहती है. असम से लेकर उत्तराखंड और यूपी चुनाव को याद करें तो नेताओं की सूरत तो नहीं बदली, बस गले में किसी और रंग की जगह भगवा पहन लिया.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर भी बीजेपी की अरसे से नजर रही है. मगर, प्रणब मुखर्जी भी ठहरे अनुभवी राजनेता वो बगैर किसी परवाह के मन की बात करते हैं. संघ ने बुलाया तो नागपुर भी घूम आये तो आते आते कुछ नसीहत भी दे आये. अब प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देकर बीजेपी ने चुनावी दांव चला है - निशाने पर है पश्चिम बंगाल.

भारत रत्न और पद्म पुरस्कारों के पीछे बीजेपी सरकार के राजनीतिक इरादों पर पानी फेर दिया है ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बहन गीता मेहता ने - पुरस्कार को चुनावी बताते हुए लेने से इंकार करके.

कितने अचूक होंगे बीजेपी सरकार के निशाने?

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की गयी है. मोदी सरकार में जो तीन भारत रत्न दिये हैं उससे बीजेपी नेतृत्व पश्चिम बंगाल में पांव जमाने और असम में नागरिकता संशोधन बिल को लेकर नाराजगी खत्म करने के साथ ही संघ के साथ तल्खियों को दूर करने में मदद की उम्मीद होगी.

संघ परिवार के नानाजी देशमुख और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को एक साथ भारत रत्न देकर बीजेपी की मोदी सरकार ने बड़ा मैसेज देने की कोशिश की है. कुछ ऐसे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिल भी विशालकाय है, सिर्फ सीना ही 56 इंच का नहीं है. 'सबका साथ, सबका विकास' नारा देने वाली मोदी सरकार सभी को बराबर सम्मान देती है. दूसरे शब्दों में विरोधियों के असहिष्णुता के आरोपों पर करारा जवाब बताने की भी कोशिश है.

हाल फिलहाल बीजेपी नेतृत्व और संघ के बीच राम मंदिर सहित कई मुद्दों पर मतभेदों की ओर इशारा करती खबरे आयी हैं. मोदी सरकार के ही मंत्री नितिन गडकरी के बयान और उसके बाद बीजेपी नेतृत्व के विशेष दूत की मुलाकात भी ऐसे ही वाकयों का हिस्सा है. नानाजी देशमुख को दिया जा रहा भारत रत्न संघ नेतृत्व से लेकर कार्यकर्ताओं तक को खुश करने की कोशिश लगती है.

भूपेन हजारिका के जरिये असम के असंतोष को साधने की कोशिश लगती है. नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर असम में खूब बवाल हुआ है. असम की बातों का पश्चिम बंगाल पर भी असर पड़ता है. तभी तो एनआरसी को लेकर भी अमित शाह पश्चिम बंगाल पहुंच कर ममता सरकार पर हमले बोलते रहते हैं.

गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार 90 साल से ज्यादा उम्र के आजाद हिंद फौज के सैनिक शामिल किये गये हैं. ये हैं - 99 साल के परमानंद, 98 साल के लालतीराम, 97 साल के हीरा सिंह और 95 साल के भागमल. नेताजी के प्रति ये हमदर्दी जताने के लिए भी चुनावी साल का मौका चुना गया है.

modi, pranab mukherjeeबड़ी दूर की सोच लगती है...

पश्चिम बंगाल में पांव जमाने और ममता बनर्जी को घेरने के लिए बीजेपी अरसे से प्रयासरत है. बीजेपी की रथयात्रा को अनुमति नहीं मिलने अमित शाह ने तीखे हमले किये हैं. ममता बनर्जी की यूनाइटेड इंडिया रैली के बाद बीजेपी ज्यादा सतर्क हो चली है.

वैसे ये सब तो वोटों को साधने के उपाय हैं - लेकिन क्या वास्तव में इतने कारगर भी होंगे?

इस बीच बीजेपी के मिशन ओडिशा को बड़े जोर का झटका भी लगा है. भारत रत्न के साथ ही पद्म पुरस्कारों की भी घोषणा हुई है और इनमें एक नाम है - गीता मेहता. गीता मेहता को साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए पद्मश्री देने की घोषणा की गयी है. गीता मेहता ने 1979 में कर्मा कोला, 1989 में राज, 1993 में ए रिवर सूत्र, 1997 में स्नेक्स एंड लैडर्सः ग्लिम्स ऑफ मॉडर्न इंडिया और साल 2006 में ईस्टर्न गनेशाः फ्रॉम बर्थ टू रिबर्थ पुस्तकें लिखी हैं, साथ ही, 14 डॉक्यूमेंट्री का निर्देशन भी किया है.

मगर, गीता मेहता पुरस्कार लेने से इंकार कर बीजेपी के राजनीतिक इरादों पर पानी फेर दिया है. दरअसल, गीता मेहता ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बहन हैं. गीता मेहता रहती तो अमेरिका में हैं, लेकिन पद्म पुरस्कार के पीछे उन्हें सत्ताधारी बीजेपी के राजनीतिक मंसूबे नजर आ रहे हैं. बड़ी संजीदगी के साथ सरकार के प्रति आभार जताते हुए गीता मेहता ने चुनावी साल में इसे स्वीकार करना ठीक नहीं माना है.

ओडिशा में लोक सभा की 21 सीटें हैं और बीजेपी उन पर नजर लगाये हुए है. वाराणसी से तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव लड़ना पक्का हो चला है, दूसरी सीट के रूप में पुरी को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं. राज्य सभा उपसभापति के चुनाव में नवीन पटनायक ने एनडीए के कैंडिडेट को सपोर्ट किया था. हालांकि, नीतीश कुमार के पुराने एहसान का बदला चुकाया था. बीजेपी की कोशिश नवीन पटनायक को एनडीए में लेने की भी है - लेकिन वो बीजेपी ही नहीं कांग्रेस से भी दूरी बनाकर चलते हैं और अब तक विपक्षी खेमे या तीसरे मोर्चे की कोशिशों से भी खासी दूरी बनाये रखा है.

बीजेपी की चाल से ज्यादा नुकसान किसे - ममता बनर्जी या कांग्रेस को?

भारत रत्न दिये जाने की घोषणा पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक ट्वीट में अपनी प्रतिक्रिया जतायी है - 'मैं भारतवासियों के प्रति पूरी विनम्रता और कृतज्ञता की भावना के साथ इस महान सम्मान भारत रत्न को स्वीकार करता हूं. मैंने हमेशा कहा है और दोहराता भी हूं कि मुझे अपने महान देश के लोगों से उससे कही अधिक मिला है जितना मैंने उन्हें दिया है.’

राहुल गांधी ने इसे कांग्रेस विचारधारा को मिले सम्मान जैसा बताया है. प्रणब मुखर्जी के साथ साथ राहुल गांधी ने भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को भी भारत रत्न दिये जाने पर बधाई दी है.

ममता बनर्जी के खिलाफ अमित शाह ने बड़ी चाल चली थी मुकुल रॉय को भगवा पहना कर. ममता बनर्जी के लिए ये बड़ा नुकसान था, लेकिन बीजेपी को कोई खास फायदा नहीं हुआ.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रति भावनात्मक लगाव को भी बीजेपी ने भुनाने की पूरी कोशिश की है. बीच बीच में बीजेपी श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जरिये बंगाल से कनेक्ट करने की कोशिश करती रही है - और अब प्रणब मुखर्जी को सबसे बड़ा सम्मान देने का क्रेडिट ले रही है.

अब बीजेपी की कोशिश पश्चिम बंगाल के लोगों को ये समझाने की होगी कि 'मां, माटी और मानुष' का ख्याल वास्तव में वो रखती है, न कि ममता बनर्जी या कांग्रेस. बीजेपी ये भी समझाएगी कि मोदी सरकार ने बंगाल के उस सपूत का सम्मान किया जिसका कांग्रेस ने हक मार लिया. कहते हैं कि प्रणब मुखर्जी के पास प्रधानमंत्री बनने के दो मौके आये लेकिन कांग्रेस ने खारिज कर दिया. आम चुनाव में बीजेपी के सामने ममता बनर्जी की टीएमसी और कांग्रेस दोनों हो सकते हैं. वैसे तो कोशिश गठबंधन की है लेकिन पश्चिम बंगाल कांग्रेस को भरोसा है कि अकेले ही वो बेहतर प्रदर्शन करेगी. ममता की रैली में राहुल गांधी के प्रतिनिधि भेजने की वजह भी यही रही.

गौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी नयी चाल से ममता बनर्जी को भी कोई नुकसान पहुंचा पाती है या फिर सिर्फ कांग्रेस को ही डैमेज करने पर फोकस है. ये भी तो संभव है कि बीजेपी अब प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी और बेटी शर्मिष्ठा पर डोरे डालने शुरू करे. अभिजीत कांग्रेस सांसद हैं, जबकि शर्मिष्ठा दिल्ली कांग्रेस की प्रवक्ता हैं.

सरकारी सम्मानों की राजनीति को लेकर बीजेपी की दूरगामी सोच जो भी हो, एक बात तो साफ तौर समझ में आ रही है - बीजेपी हमेशा दूसरों के मोहरों और दूसरों के ही कंधे से खेलती है. कुछ तो साफ देखे जा सकते हैं - और कुछ तात्कालिक तौर पर अदृश्य होते हैं.

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प्रणब दा, मोदी सरकार और कांग्रेस

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