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Updated: 24 फरवरी, 2017 05:18 PM
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बनारस में इन दिनों बीजेपी नेताओं से बात करें तो वे बड़े इत्मीनान से समझाएंगे कि पूर्वांचल में क्लीन स्वीप करने जा रहे हैं. सहज सुलभ तर्क भी होता है - बनारस बीजेपी का गढ़ रहा है और अब तो मोदी वहां से सांसद हैं - और गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ को कौन टक्कर देने वाला है. सही बात है.

ये दावा कागज पर तो बिलकुल दुरूस्त है, लेकिन जमीनी हकीकत तो पूरी तरह हवा में है. लेकिन बीजेपी अपने ही बागियों की फौज से कैसे निबटेगी? इसका जवाब किसी के पास नहीं है - और इसीलिए आलाकमान से लेकर पूरा अमला बनारस में डटा हुआ है.

काशी में जमावड़ा

काशी में महाशिवरात्रि सबसे बड़ा उत्सव होता है और उससे पहले से ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लखनऊ से चुनाव कंट्रोल रुम शहर में शिफ्ट कर चुके हैं. लिहाजा स्मृति ईरानी, मनोज तिवारी और नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेता भी पहुंच रहे हैं. जेपी नड्डा वाराणसी तो राधामोहन सिंह बलिया में डेरा जमाये हुए हैं. बड़ा दारोमदार तो केशव मौर्या पर ही है इसलिए उनका भी मुख्य ठिकाना ज्यादातर बनारस ही बना हुआ है. मनोज सिन्हा और महेंद्र नाथ पांडेय तो पूरे पूर्वांचल में एक्टिव नजर आ रहे हैं.

27 फरवरी को राहुल गांधी और अखिलेश यादव का रोड शो हो जाने के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के कार्यक्रम रखे गये हैं. 3 मार्च को मोदी की रैली है तो 6 मार्च को अमित शाह भी रोड शो करने वाले हैं. पूर्वांचल में आखिरी दो चरणों में मतदान 4 और 8 मार्च को होने हैं. बनारस में वोटिंग 8 मार्च को होगी. बनारस के अलावा मोदी जौनपुर और मिर्जापुर में भी रैलियां करने वाले हैं.

modi-bro-neelkanth_6_022417033938.jpgवाराणसी में शहर दक्षिणी उम्मीदवार नीलकंठ तिवारी के साथ प्रधानमंंत्री मोदी के भाई

19 फरवरी को प्रधानमंत्री मोदी के बड़े भाई सोमभाई दामोदरदास मोदी भी बनारस पहुंचे. गुजराती समाज के लोगों के साथ मुलाकात के बाद वो कई मोहल्लों में घूमे और बीजेपी को सहयोग करने की अपील की.

ये सब तो ठीक है, पर बागियों की चुनौती से भी तो दो चार होना है. ये हाल बनारस में भी है और पूर्वांचल के कई जिलों में भी.

बनारस की मुश्किलें

जिले में तो कुल आठ विधानसभा सीटें हैं लेकिन वाराणसी लोक सभा क्षेत्र में सिर्फ पांच सीटें आती हैं. पांच में से तीन सीटों पर तो बागी उम्मीदवार मैदान में उतर आये हैं, चौथी सीट पर भी कार्यकर्ताओं की नाराजगी सामने आ चुकी है.

बनारस में सबसे ज्यादा बवाल हुआ शहर दक्षिणी सीट को लेकर. सात बार से विधायक रहे श्यामदेव रॉय चौधरी का टिकट काट कर नये नवेले नीलकंठ तिवारी को दे दिया गया. टिकट बंटने के बाद जब केशव मौर्या बनारस पहुंचे तो दादा के समर्थकों ने उन्हें रास्ते में ही रोक लिया - जैसे तैसे उन्हें अंदर ले जाया गया.

varanasi-bjp_650_022417034033.jpgअपने ही गढ़ में संघर्ष...

वैसे दादा के सवाल - 'बगैर मुझे बताये ऐसा क्यों किया गया?' का जवाब तो उन्हें नहीं मिल पाया लेकिन मान मनौव्वल के बाद किसी तरह वो नीलकंठ तिवारी के चुनाव कार्यालय के उद्घाटन के मौके पर पहुंचे मगर बगैर कुछ बोले निकल लिये. कहा जा रहा है कि केशव मौर्या ने उन्हें एमएलसी बनाये जाने का आश्वासन दिया हुआ है.

शहर उत्तरी सीट पर तो बीजेपी उम्मीदवार को चौतरफा चुनौती फेस करनी पड़ रही है. बीजेपी ने मौजूदा विधायक रवींद्र जायसवाल को फिर से मैदान में उतारा है. वैसे तो जायसवाल का मुकाबला कांग्रेस के अब्दुल समद अंसारी और बीएसपी के सुजीत कुमार मौर्या से है लेकिन साथ ही साथ उन्हें बीजेपी के ही दो बागियों से भी संघर्ष करना पड़ रहा है. बागियों में एक तो किसान मोर्चा के प्रदेश महासचिव सुजीत सिंह टीका हैं और दूसरे डॉ. अशोक कुमार जिन्हें न तो उनके होम टाउन गाजीपुर से टिकट मिला न वाराणसी उत्तरी जहां उनका नर्सिंग होम चलता है.

सुजीत सिंह टीका का दावा है कि 2017 में टिकट के आश्वासन पर उन्हें बतौर निर्दलीय उम्मीदवारी वापस लेने के लिए तैयार कर लिया गया, लेकिन जब मौका आया तो पार्टी मुकर गयी.

बगावत की बयार तो सेवापुरी में भी तेज हो चुकी है जहां से बीजेपी छोड़ कर विभूति नारायण सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं. खास बात ये है कि ये सीट बीजेपी ने सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) को दे रखा है. अपना दल की अनुप्रिया पटेल मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं और उनके उम्मीदवार को भी बीजेपी के ही बागी नेता से जूझना पड़ रहा है. विभूति नारायण का मजबूत पक्ष ये है कि उन्हें अनुप्रिया के विरोधी गुट की नेता उनकी मां कृष्णा पटेल का समर्थन मिल रहा है, जो बीजेपी के लिए बड़ी चिंता है.

कैंट विधानसभा में भी मौजूदा विधायक ज्योस्तना श्रीवास्तव के बेटे को टिकट दिये जाने से घोर नाराजगी है. सौरभ श्रीवास्तव को टिकट दिये जाने के बाद गुलाब बाग में पार्टी दफ्तर के पास एक होर्डिंग भी लगा था. सवाल था - इन्हें कब तक झेलना पड़ेगा. ज्योत्सना श्रीवास्तव के पति हरीश्चंद्र श्रीवास्तव भी वहां से विधायक और मंत्री रह चुके हैं.

आमतौर पर बीजेपी को हर जगह संत समाज का समर्थन यूं ही मिलता रहता है, लेकिन बनारस में एक नाराज गुट अलग अलग जगाये हुए है. इस गुट का नेतृत्व शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद कर रहे हैं जिनका सपोर्ट निर्दलीय उम्मीदवारों को मिल रहा है. दरअसल, अक्टूबर 2015 में प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुए पुलिस एक्शन से ये लोग यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी खफा हैं.

पूर्वांचल की मुश्किलें

पहले बीजेपी के गढ़ और अब मोदी का संसदीय क्षेत्र हो चुके वाराणसी से इतर देखें तो पूर्वांचल के कई जिलों में पार्टी की मजबूत पकड़ है. ये बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ की वजह से भी है जिनका गोरखपुर, मऊ, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीर नगर और सिद्धार्थनगर जैसे जिलों में काफी असर है. 2002 में योगी ने अपना एक संगठन हिंदू युवा वाहिनी बनाया और जिसके कर्मठ कार्यकर्ताओं की लोगों में खासी पैठ है. ताजा मुश्किल ये है कि ये दो गुटों में बंट गया है.

संगठन के राज्य प्रभारी राघवेंद्र सिंह बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं, जबकि दूसरा गुट सुनील सिंह की अगुवाई में बागी हो चला है. सुनील और उनके साथियों को लगता है कि 15 साल से दिन रात लगे होने के बावजूद उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ. असल में ये लोग चाहते थे कि योगी को बीजेपी यूपी का सीएम कैंडिडेट घोषित करे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्हें उम्मीद रही होगी कि योगी अगर मुख्यमंत्री उम्मीदवार होते तो उन्हें भी ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलता. अब सुनील सिंह का गुट बीजेपी के साथ मिल कर अलग ताल ठोक रहा है. इससे बीजेपी को सीधे सीधे नुकसान तो नहीं होने वाला हां जहां हार जीत का फासला कम हो वहां कोई बड़ी उलटफेर हुई तो हैरानी की बात नहीं होनी चाहिये.

दादा की ही तरह बीजेपी अगर बाकियों को भी मना पाने में कामयाब हो जाती है तो सेहत के लिए ठीक रहेगा. वैसे मायावती ने पूर्वांचल में बीजेपी को टक्कर देने के लिए ही अंसारी बंधुओं को साथ लिया है. मायावती ने 2009 में मुख्तार अंसारी को वाराणसी लोक सभा सीट से टिकट दिया था. बीजेपी उम्मीदवार मुरली मनोहर जोशी जीते तो बड़े मार्जिन से लेकिन उन्हें नाकों चने चबाने पड़े थे. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने से बीजेपी को मुस्लिम वोटों के बंटने की काफी उम्मीद है.

कब्रिस्तान से कसाब तक पहुंच चुकी बीजेपी की चुनावी मुहिम अभी और नये रंग दिखा सकती है, ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं. राजनाथ ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट न दिये जाने पर अफसोस जरूर जताया है कि लेकिन वो भी मोदी और शाह की तरह आक्रामक नजर आ रहे हैं. ये बात अलग है कि मोदी और शाह इलाके में श्मशान और होली पर बिजली की बात करते हैं तो राजनाथ पाकिस्तान का नाम लेना नहीं भूलते. बहाने से ही सही कहीं ऐसा न हो नोटबंदी के चक्कर में लोग सर्जिकल स्ट्राइक भी भूल जाएं.

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