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Updated: 29 दिसम्बर, 2015 06:26 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
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पश्चिम बंगाल से वामपंथी दलों का सफाया अगर ममता बनर्जी की टीएमसी ने कर दिखाया तो क्या अब बारी खुद ममता बनर्जी के सफाए की है? कम से कम केन्द्र में सत्तारूढ़ बीजेपी का तो यही मंसूबा है. राज्य में ममता सरकार का पांच साल पूरा होने जा रहा है और अब से कुछ महीनों में चुनावी बिगुल बजने को तैयार है. ममता की कोशिश हर हालत में बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेरने की होगी और इसके लिए अगर अनहोनी से समझौता भी करना पड़े तो शायद वो करने को तैयार हो जाएं.

ऐसा इसलिए नहीं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी किसी तरह की सेंधमारी कर चुकी है बल्कि इसलिए कि अब ममता बनर्जी को शारदा घोटाले में चल रही जांच सीबीआई जांच में आई तेजी ने डरा दिया है. ममता को लगने लगा है कि चुनाव से पहले शारदा घोटाले के कुछ और बड़े खुलासे न सिर्फ उनके पैरों तले जमीन खींच लेंगे बल्कि राज्य में भगवा लहराने का रास्ता भी साफ कर देंगे.

शारदा घोटाले में सीबीआई जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रही है लिहाजा मामले में राजनीति की गुंजाइश को काफी कम किया जा सकता है. फिर भी राजनीति की गुंजाइश को नकारा भी नहीं जा सकता क्योंकि सुप्रीम कोर्ट खुद सीबीआई को केन्द्र सरकार का तोता कह चुकी है. हाल में सीबीआई ने शारदा घोटाले की जांच में जिस तरह की फुर्ती दिखाई है उससे टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को परेशान होना लाजमी है.

सीबीआई ने कुछ दिनों पहले ही टीएमसी के दिग्गज नेता और जनरल सेक्रेटरी शंकूदेव पांडा से पूछताछ की और उसके फौरन बाद ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए पार्टी को सख्त निर्देश जारी कर दिया कि पांड़ा से किसी तरह का संपर्क न रखा जाए. इस पूछताछ के बाद से ही कोलकाता के लोकल अखबारों में कयास लगाया जा रहा है कि पांडा ने सीबीआई के सामने मुंह खोल दिया है और पार्टी के कई आला नेताओं का नाम अपनी सफाई में पेश कर दिया है.

गौरतलब है कि इससे पहले टीएमसी के दिग्गजों में मदन मित्रा, श्रिंजॉए बोस और कुनाल घोष पहले ही सीबीआई के हत्थे चढ़ चुके हैं. इन सभी के बयान सीबीआई के पास दर्ज हैं. मीडिया में लीक हुई खबरों के मुताबिक कुनाल घोष ने तो सीबीआई के सामने यहां तक दावा किया है कि शारदा घोटाले में पार्टी सुप्रीमों ममता बनर्जी को भी फायदा पहुंचा है. वहीं शारदा घोटाले की इस जांच के दौरान ममता के कई करीबियों ने पार्टी से दूरी भी बना ली है. इसमें खासतौर पर कभी ममता के बेहद करीबी रहे मुकुल रॉय भी थे जो पिछले 10 महीनों से पार्टी से बाहर थे और माना जा रहा था कि वह टीएमसी के जवाब में नई पार्टी बनाने की जुगत में लगे हैं. बहरहाल चुनावों के मद्देनजर ही कह लें ममता ने कुछ डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया है और मुकुल रॉय को वापस पार्टी में शामिल करने का संकेत देना शुरू कर दिया है.

बहरहाल, एक घोटाला जिसे देश का अबतक का सबसे बड़ा पोलिटिकल स्कैंडल माना जा रहा है और अगर उसका पूरा ताना बाना ममता बनर्जी की टीएमसी के इर्द-गिर्द ही बुना गया है तो यह एक गंभीर मुद्दा है. इस मामले में अगर दूध का दूध और पानी का पानी होने की नौबत चुनावी बिगुल बजने से पहले आती है तो जाहिर है पश्चिम बंगाल एक बड़े राजनीतिक फेरबदल के लिए तैयार है. ऐसे में अगर केन्द्र की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी भी इस कोशिश में रहे कि किसी संभावित उठापटक का फायदा उसे मिले और वह वामपंथ के इस पूर्व गढ़ में अपना भगवा फहरा दे, तो इसमें हर्ज ही क्या है.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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