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Updated: 15 मार्च, 2023 08:08 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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2023 में होने वाले चुनाव 2024 से पहले सेमीफाइनल की तरह हैं. सभी पार्टियां विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना चाहेंगी. भाजपा की कोशिश होगी कि वह 'मोदी लहर बरकरार' का संदेश देने में कामयाब रहे. अगर ऐसा होता है प्रधानमंत्री मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के रेकॉर्ड की बराबरी कर लेंगे.

कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों की कोशिश होगी कि वे 2024 से पहले भाजपा को हराने का संदेश दे सकें. आज के समय में विपक्ष में एकजुटता की कमी दिखने के बावजूद भाजपा के लिए उत्साहजनक वातावरण नहीं बना हैं. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक, तीन राज्य जहां चुनाव करीब हैं और भाजपा अपने लिए मुश्किलें देख रही है.

यहां सरकार बन ही जाएगी, पार्टी इसका दावा नहीं कर पा रही. वजह भी दिख रही है, लेकिन लीडरशिप के पास कोई उपाय नहीं. मध्यप्रदेश में पार्टी के सर्वे से पता चला है कि सीटें 80 से कम ही रहेंगी. और इतने में सरकार नहीं बन सकती. छत्तीसगढ़ में पार्टी के पास कोई मुख्यमंत्री फेस ही नहीं है. कर्नाटक में एंटी इनकम्बेंसी का तोड़ नहीं मिल रहा.

बात करें मध्यप्रदेश की तो यहां 2003 से लगातार भाजपा की सरकार है. बीच में 2018 में 15 महीने के लिए कांग्रेस को सत्ता मिली थी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने लेकिन जल्द ही 'सियासी खेल' हो गया. करीब 17 साल से शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. राज्य के सियासी हालात के बारे में बताया जाता है कि हाल में भाजपा का इंटरनल सर्वे हुआ है.

Assembly ELection 2023,  Bjp in  Assembly ELection 20232018 में काफी जद्दोजहद के बाद भाजपा सत्ता में आई थी

इसमें पता चला है कि 30 फीसदी सीटों पर भाजपा का कोई मुकाबला नहीं है जबकि 30 फीसदी विधानसभा सीटों पर कांग्रेस मजबूत दिख रही है. बाकी 49 फीसदी सीटों पर कांटे की टक्कर दिख सकती है. ऐसे में भाजपा के लिए मध्य प्रदेश में कमल खिलाना पहले जैसा आसान नहीं है. भाजपा के सामने बड़ा एंटी इनकंबेंसी फैक्टर है. बताया जाता है कि भाजपा के अंदरखाने यह चर्चा चल रही है कि राज्य में पार्टी का नया चेहरा कौन होगा? बताया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से पहले या बाद में भाजपा मुख्यमंत्री का अपना फेस बदल सकती है.

दिलचस्प यह है कि जिस नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है, उस पर पार्टी के भीतर ही आम सहमति नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया 2 साल पहले कांग्रेस से भाजपा में आए. केंद्र उन्हें काफी तवज्जो मिली. मंत्री पद मिला और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकी भी बढ़ी. हालांकि मध्य प्रदेश में शिवराज के उत्तराधिकारी के तौर पर उनके नाम पर आमराय नहीं है. भाजपा मध्यप्रदेश में भी भाजपा गुजरात फार्म्युला लागू करने की प्लानिंग कर रही है. यहां भी 35-40 फीसदी विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं. नेताओं को शायद पहले ही एहसास हो गया है और इसलिए बहुत से नेता अभी से पैंतरे अपना रहे हैं.

भाजपा के सामने एक डर ये भी है कि टिकट कटने से पार्टी को नुकसान न हो, कहीं हिमाचल वाली स्थिति मध्यप्रदेश में न हो? कांग्रेस की बात करें तो सिंधिया के जाने के बाद पार्टी थोड़ी कमजोर हुई है. हालांकि गुटबाजी में कमी आई है. हां, कमलनाथ और दिग्विजय के बीच में थोड़ा मतभेद जरूर हो सकता है. ऐसे माहौल में कांग्रेस को सहारा सत्ता विरोधी लहर का है. अब देखना यह होगा कि जनता को यह कितना समझ में आता है. बताया जाता है कि मध्यप्रदेश में करीब दो दशक से शिवराज सिंह चौहान सरकार को देख नई पीढ़ी यानी नए वोटरों को लग सकता है कि इस बार बदल के देखो.

ज्ञात रहे कि शिवराज सिंह चौहान 23 मार्च 2020 को चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. 30 नवंबर 2005 से 17 दिसंबर 2018 तक लगातार 13 साल 17 दिन तक वे मुख्यमंत्री रहे. फिर करीब डेढ़ साल कांग्रेस की सरकार रही और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने. 23 मार्च 2020 से एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी शिवराज के पास आ गई. उन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए करीब 16 साल हो चुके हैं. अब तक प्रदेश में कोई भी इतने समय तक मुख्यमंत्री नहीं रहा है.

‘चुनाव में 8 महीने ही बचे हैं, इसलिए अब मुख्यमंत्री भी बदला नहीं जा सकता. पहले भी पार्टी को ऐसा कोई चेहरा नहीं मिला, जो शिवराज की जगह ले सके. भाजपा मुफ्त की रेवड़ी बांटने के खिलाफ है, लेकिन मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले ‘लाडली बहना’ स्कीम लॉन्च कर दी गई. इसमें महिलाओं के खाते में 1 हजार रुपए डाले जाएंगे. इस तरह की स्कीम्स से पता चल रहा है कि पार्टी हड़बड़ाहट में है.'हालांकि, पार्टी प्रवक्ता हितेश वाजपेयी का कहना है कि ‘2018 में पार्टी कुछ सीटों से भले ही हार गई थी, लेकिन हमारा वोट पर्सेंट कांग्रेस से ज्यादा था.'

भाजपा के लिए मध्यप्रदेश से ज्यादा मुश्किल वाला राज्य छत्तीसगढ़ है. यहां वह सत्ता में नहीं, बल्कि विपक्ष में है. राज्य में वापसी के लिए भाजपा ने संगठन में बड़े बदलाव किए हैं. तीन बार के विधायक नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष और बिलासपुर से सांसद अरुण साव को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है. कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई पर भी पार्टी की नजर है, लेकिन भाजपा अब तक कांग्रेस के खिलाफ कोई मूवमेंट खड़ा नहीं कर पाई है.मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगभग हर वर्ग के लिए स्कीम अनाउंस कर चुके हैं, इन्हें लागू भी कर दिया गया है. कर्ज माफी से लेकर बेरोजगारी भत्ता तक इसमें शामिल है.

यहां भाजपा के लिए चुनौती मुख्यमंत्री फेस की भी है. कोई नहीं जानता कि भाजपा जीती, तो मुख्यमंत्री कौन होगा.प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की राजनीति का बड़ा समीकरण है, इसलिए भाजपा किसी पिछड़ा वर्ग के नेता पर दांव खेल सकती है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इसी वर्ग से आते हैं. कांग्रेस भूपेश बघेल के जरिए बैकवर्ड क्लास कार्ड खेल रही है. 90 विधानसभा सीटों में से अभी कांग्रेस के पास 71 और भाजपा के पास 14 सीटें हैं. हाल में हुए लोकल बॉडीज इलेक्शन में कांग्रेस जीती है.

प्रदेश के सभी 14 नगर निगम पर कांग्रेस का कंट्रोल है.सोर्सेज के मुताबिक, भाजपा ने यहां अब तक कोई सर्वे नहीं करवाया है. पार्टी ने ओम माथुर को जब से प्रभारी बनाकर भेजा है, तब से वे संगठन के साथ बूथ लेवल तक काम कर रहे हैं, लेकिन आज की स्थिति में चुनाव होते हैं तो कांग्रेस ज्यादा मजबूत दिख रही है. अगले चुनाव तक में राज्य में क्या स्थिति बनेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

कर्णाटक की बात करें तो कर्नाटक में भाजपा 20 जुलाई 2019 से सत्ता में है. इन 4 साल में उसे एक बार मुख्यमंत्री बदलना पड़ा. 28 जुलाई 2021 से यहां बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री हैं. कर्नाटक में फरवरी में आर एस एस ने एक सर्वे रिपोर्ट भाजपा को सौंपी है. इसमें उसे 70 से 75 सीटें जीतते बताया गया.

बहुमत के लिए 113 सीटें जरूरी चाहिए.भाजपा की हालत ऐसी है कि जिन बीएस येदियुरप्पा को पार्टी ने मुख्यमंत्री पद से हटाया था और जो रिटायरमेंट का ऐलान कर चुके हैं, अब उनके भरोसे ही इलेक्शन कैंपेन आगे बढ़ाया जा रहा है. इसकी वजह सर्वे रिपोर्ट हैं, जिनसे पता चला कि मौजूदा मुख्यमंत्री और पार्टी प्रेसिडेंट नलिन कुमार कटील लोगों का सरकार के प्रति नजरिया बदलने में नाकाम रहे हैं.

समाचारों के अनुसार , 'भाजपा के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकम्बेंसी बनी हुई है. करप्शन यहां बड़ा मुद्दा है. 3 मार्च को भाजपा विधायक मदल विरुपक्षप्पा के ठिकानों से 8 करोड़ रुपए कैश मिले हैं. उनके बेटे को लोकायुक्त ने 40 लाख रुपए रिश्वत लेते गिरफ्तार किया. इससे पार्टी और ज्यादा मुश्किल में फंस गई है. प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की लगातार रैलियां हो रही हैं, लेकिन पार्टी एंटी इनकम्बेंसी का माहौल नहीं बदल पा रही है.'

'अब येदियुरप्पा और प्रधानमंत्री मोदी की जोड़ी बनाकर कैंपेन किया जा रहा है. येदियुरप्पा लिंगायत वोटों को एकजुट कर सकते हैं, लेकिन अकेले पूरे राज्य में भाजपा को नहीं जिता सकते. मुख्यमंत्री की रैलियों में लोग नहीं पहुंच रहे. प्रदेश में कांग्रेस का प्रचार अभियान बहुत आक्रामक है. वह करप्शन के मुद्दे पर भाजपा को घेर रही है.'

ज्ञात रहे कि 2018 में काफी जद्दोजहद के बाद भाजपा सत्ता में आई थी. कांग्रेस लगातार अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है. बढ़ती महंगाई, पेट्रोल-डीजल के रेट, रोजगार, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कांग्रेस भाजपा सरकार को घेर रही है. कुछ दिन पहले कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी बेंगलुरु में थीं.

उन्होंने एक रैली में कहा था, 'मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहती हूं, भाजपा सरकार आने के बाद आपका जीवन बेहतर हुआ? क्या कोई बदलाव आया है? वोट देने से पहले पिछले कुछ सालों को देखिए और इसका मूल्यांकन कीजिए.' सीधे तौर पर प्रियंका इस बात को उभारना चाहती हैं कि लोग महसूस करें कि मौजूदा सरकार में उनके जीवन में क्या बदला है. प्रियंका गांधी ने यहां तक कहा कि मुझे पता चला है कि कर्नाटक में स्थिति बहुत खराब है, भ्रष्टाचार से 1.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.

PSI घोटाला शर्मनाक है, आप अपने बच्चों को शिक्षित करते हैं और आपको सत्ता में बैठे नेताओं से यह मिलता है.इस माहौल में कर्नाटक में भाजपा सरकार के लिए सत्ता में वापसी आसान नहीं होगी. 2018 के चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा बनी थी. बीएस येदियुरप्पा फिर मुख्यमंत्री बने. 2021 में भाजपा ने चेहरा बदल दिया और बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री बने. सत्ता विरोधी लहर का सामना करते हुए सत्ता बचाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा.

हाल ही में फरवरी में नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों नगालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव हुए. 2 मार्च को आए नतीजों में त्रिपुरा-नगालैंड में भाजपा गठबंधन को बहुमत मिला. मेघालय में उसने सबसे बड़ी पार्टी NPP के साथ गठबंधन कर लिया. यानी तीनों राज्यों में पार्टी सरकार में है. इसके बावजूद पार्टी की ग्रोथ रुकी हुई है.अगर 2013 से देखें, जब केंद्र में UPA की सरकार थी और भाजपा विपक्ष में थी. नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में भाजपा का वोट शेयर 2% से भी कम था. 2018 में मेघालय में पार्टी का वोट शेयर 10%, नगालैंड में 15% और त्रिपुरा में 44% पर पहुंच गया. तब तक भाजपा केंद्र सरकार में 4 साल पूरे कर चुकी थी.

5 साल बाद यानी 2023 में भाजपा मेघालय की 60 सीटों पर चुनाव लड़ी और 2 सीटें जीती. 2018 में पार्टी 47 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, तब भी उसे 2 सीटें मिली थीं. तब वोट शेयर 9.6% था और अब 9.33% है.इन आंकड़ों से पता चलता है कि मेघालय में भाजपा खुद को आगे नहीं बढ़ा सकी. ये हालत तब है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने राज्य में बड़ी रैलियां की थीं, केंद्रीय मंत्रियों को प्रचार में उतारा था. एक्सपर्ट्स कहते हैं इसके पीछे बड़ी वजह भाजपा की एंटी क्रिश्चियन इमेज होना है.

अब बात नगालैंड की करें तो यहां भाजपा नेशनल डेमोक्रेटिव प्रोग्रेसिव पार्टी (NDPP) के साथ मिलकर चुनाव लड़ी और 60 में से 37 सीटें जीतीं. NDPP ने 40 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इसमें से 25 जीत गए. भाजपा ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, उसे 12 सीटों पर जीत मिली.2018 में भी भाजपा ने 12 सीटें ही जीती थीं और तब उसका वोट शेयर 15.31% रहा था. इस बार वोट शेयर 18.81% पर पहुंचा है. यानी सीटों की संख्या पिछली बार के बराबर ही है, लेकिन करीब 3% वोट शेयर बढ़ा है.

त्रिपुरा में भाजपा ने 2018 की तरह इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. पिछली बार भाजपा ने 36 सीटें जीती थीं, इस बार 32 पर आ गई. उसकी गठबंधन पार्टी महज एक सीट जीत सकी. त्रिपुरा में सीटें घटने के साथ भाजपा के वोट शेयर में भी कमी आई है. 2018 में 44% पर था, इस बार 39% रह गया.ये आंकडे बताते है कि भाजपा को आगामी विधान सभा चुनाओं में और मेहनत करनी पड़ेगी तभी उसका 2024 लोकसभा चुनाव का रास्ता आसान हो सकता है.

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लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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