उत्तर प्रदेश में भगवा सुनामी, ब्रैंड मोदी का बोलबाला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए समर्थन में यूपी में सुनामी आती दिखाई दे रही है. और पर्दे के पीछे से इस जीत की रणनीति बनाई है अमित शाह ने.
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इंडिया टुडे ग्रुप के लिए एक्सिस-माय-इंडिया के चुनाव उपरांत विश्लेषण के मुताबिक बीजेपी उत्तर प्रदेश में विस्मयकारी ढंग से 251-279 सीट पर जीत हासिल करने जा रही है. एक्सिस के अनुमान के मुताबिक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को महज 88-112 सीट पर जीत हासिल होगी. जहां तक बीएसपी का सवाल है तो उसके लिए अनुमान बहुत निराशाजनक हैं. बीएसपी को सिर्फ 28-42 सीट पर ही जीत मिलती दिख रही है.
बीजेपी के लिए उत्तराखंड से भी अच्छी खबर आती दिख रही है. यहां 70 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी को 46 से 53 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिलने का अनुमान है. बीजेपी गोवा में भी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभर कर आती दिख रही है लेकिन बहुमत से दूर रह सकती है. एक्सिस के अनुमान के मुताबिक 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा में बीजेपी को 18-22 सीट पर जीत मिल सकती है.
कांग्रेस के लिए पंजाब और मणिपुर से राहत की खबर है. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के सरकार बनाने का अनुमान है. एक्सिस-माय-इंडिया के अनुमान के मुताबिक पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी से मिली कड़ी चुनौती से पार पाने में सफल होती दिख रही है. 117 सदस्यीय पंजाब विधानसभा में कांग्रेस को 62 से 71 सीट मिलने का अनुमान है. पहली बार पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए उतरी आम आदमी पार्टी भी शानदार दमखम दिखाते हुए 42 से 51 सीट हासिल करती दिख रही है. सत्तारूढ़ अकाली दल-बीजेपी गठबंधन का प्रदेश से लगभग सफाया होता दिख रहा है. गठबंधन को सिर्फ 4 से 7 सीट मिलने का अनुमान है.
एक्सिस-माय-इंडिया के चुनाव उपरांत निष्कर्षों का गहराई से अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि बीजेपी यूपी में कगार पर पहुंचने के बाद जीत को छीनती दिखाई दे रही है. यूपी में पहले चरण के मतदान से पहले एक्सिस ने जो आखिरी ओपिनियन पोल किया था उसके मुताबिक बीजेपी के प्रदर्शन का ग्राफ गिरता और एसपी-कांग्रेस गठबंधन का उठता दिखाई दे रहा था.
यूपी में पहले चरण के चुनाव से पहले हवा का रुख अखिलेश के समर्थन में बहता दिख रहा था. लेकिन युवा मुख्यमंत्री को लगता है दोहरी बाधा ने नुकसान पहुंचाया. अखिलेश ने समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न साइकिल की लड़ाई जीतने के बाद भी शिवपाल यादव और मुलायम सिंह यादव से खुद को अलग नहीं किया. साथ ही उन्होंने कांग्रेस से हाथ मिला लिया. ये दोनों बातें ही मुख्यमंत्री के लिए पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसी दिख रही हैं.
एक्सिस पोल संकेत देता है कि अगर समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से हाथ नहीं मिलाया होता और अखिलेश की सकारात्मक छवि के सहारे अकेले ही चुनावी मैदान में ताल ठोकती तो बेहतर कारगुजारी दिखाती. एक्सिस के अनुमान के मुताबिक कांग्रेस ने जिन 114 सीट पर चुनाव लड़ा उनमें से सिर्फ 10-15 पर ही जीत हासिल करने जा रही है. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी को खुद 78-97 सीट पर जीत मिलने का अनुमान है.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में जिस तरह टिकटों का बंटवारा किया था उस पर उन्हें स्थानीय नेताओं से आलोचना सुननी पड़ी थी. लेकिन एक्सिस-माय-इंडिया के अनुमान के मुताबिक बीजेपी के मास्टर रणनीतिकार के लिए उत्तर प्रदेश फिर भाग्यशाली रणक्षेत्र साबित होने जा रहा है.
दिल्ली और बिहार में बड़ी हार झेलने के बाद यूपी में शानदार जीत ये साबित करने के लिए काफी होगी कि क्यों अमित शाह को बीजेपी का नंबर वन चुनाव रणनीतिकार माना जाता है.
पोल आंकड़ों के मुताबिक यूपी में बीजेपी की संभावित शानदार जीत के सबसे बड़े कारणों में से एक गैर यादव ओबीसी वोटों को चट्टान की तरह बीजेपी के साथ जोड़ना रहा है. जो नजर आता है वो ये है कि गैर यादव ओबीसी मतदाताओं ने खुद को समाजवादी पार्टी के शासन में उपेक्षित महसूस किया. ऐसे में इन मतदाताओं का एकजुट होकर बीजेपी के पाले में जाना बीजेपी के शानदार प्रदर्शन के कारणों में से एक हो सकता है.
एक्सिस के अनुमान के मुताबिक बीजेपी 57 फीसदी कुर्मी वोट, 63 फीसदी लोधी वोट और बाकी गैर यादव ओबीसी वोटों में से 60 फीसदी हासिल करने जा रही है. इनमें से अधिकतर जातियों ने पिछले चुनावों में बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी का समर्थन किया था. यही वजह थी कि समाजवादी पार्टी ने 2012 विधानसभा चुनाव में अपने बूते बहुमत हासिल किया था.
अमित शाह का एक ये भी मास्टरस्ट्रोक रहा कि उन्होंने केशव प्रसाद मौर्य को यूपी में बीजेपी के प्रदेश प्रमुख के तौर पर प्रोजेक्ट किया. मौर्य की इस प्रोन्नति से पार्टी गैर यादव ओबीसी मतदाताओं को ये संदेश देने में सफल रही कि अगर बीजेपी यूपी में जीतती है तो उन्हें भी सत्ता में बड़े पैमाने पर भागीदारी मिलेगी. साथ ही बीजेपी इस छवि को तोड़ने में भी सफल रही कि वो सवर्णों या बनियों के प्रभुत्व वाली पार्टी है.
अगर एग्जिट पोल के अनुमान सही साबित होते हैं तो केशव प्रसाद मौर्य यूपी के अगले मुख्यमंत्री पद के लिए अग्रणी दावेदार होंगे. पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभर समुदाय को लुभाने के लिए जी-तोड़ प्रयास और कुर्मियों के प्रभुत्व वाले अपना दल से गठबंधन करना बीजेपी के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता नजर आ रहा है. इससे बीजेपी ने सवर्णों और गैर यादव ओबीसी का जो इंद्रधनुषी गठजोड़ तैयार किया वो यूपी में बड़ी जीत का आधार बनता नजर आ रहा है.
एक्सिस-माय-इंडिया के अनुमान दिखाते हैं कि कांग्रेस से गठबंधन करना समाजवादी पार्टी के लिए किसी भी लिहाज से सही साबित नहीं हुआ. एसपी-कांग्रेस गठबंधन के खाते में मुस्लिमों के 70 फीसदी वोट जाते दिख रहे हैं. लेकिन समाजवादी पार्टी को कांग्रेस से गठबंधन किए बिना भी मुस्लिमों के इतने ही वोट मिलते रहे हैं.
एसपी-कांग्रेस गठबंधन को यादवों के 80 फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं. ये उससे थोड़ा ज्यादा है जो एक्सिस ओपिनियन पोल ने दिसंबर 2016 में दिखाया था. यद्यपि ये दिखता है कि अखिलेश विकास के क्षेत्र में अपने कार्यों को वोटों में तब्दील करने में सफल नहीं हो पाए. ना ही वो अपनी युवा अपील को अन्य समुदायों में वोटों की शक्ल में भुना पाए. युवाओं को लुभाने में एसपी-कांग्रेस गठबंधन ने कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन सभी आयु-वर्गों में वो बीजेपी से पिछड़ता नजर आ रहा है. युवा वोटरों का 34 फीसदी हिस्सा बीजेपी के खाते में जाता दिख रहा है. वहीं गठबंधन 31 फीसदी युवा वोटरों का समर्थन ही पाता नजर आ रहा है.
बीएसपी को इस चुनाव में सबसे करारा झटका लगता दिख रहा है. ये स्थिति तब है जब पार्टी ने सबसे पहले टिकटों का बंटवारा किया था. मायावती अपनी पार्टी बीएसपी की गाड़ी पर अन्य समुदायों के वोटरों को चढ़ाने में पूरी तरह नाकाम होती नजर आ रही हैं. मायावती सिर्फ जाटव समुदाय में ही अपनी मजबूत पैठ बरकरार रखने में सफल रहीं.
एक्सिस के अनुमान के मुताबिक बीएसपी को 77 फीसदी जाटवों का समर्थन मिलता दिख रहा है. लेकिन गैर जाटवों पर बीजेपी की पकड़ तेजी से फिसलती जा रही है. एक्सिस पोल से संकेत मिलता है कि सिर्फ 43 फीसदी गैट जाटव ही बीएसपी का साथ देते दिख रहे है. वहीं बीजेपी को गैर जाटवों का बड़ा हिस्सा यानि 32 फीसदी मिलता दिख रहा है.
बीएसपी की तालिका गिरकर 28-42 रह जाती है तो इस दलित पार्टी का अस्तित्व बने रहने पर ही कई सवालिया निशान लग सकते हैं. लगातार दो चुनावों में सत्ता से बाहर रहने से मायावती को अपने वोट बैंक को साथ जोड़े रखना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है.
एक्सिस-माय-इंडिया के आंकड़ों का जातिगत विश्लेषण किया जाए तो लगता है नोटबंदी के मुद्दे की वजह से बीजेपी से उसके पारंपरिक वोटर कोई खास विमुख नहीं हुए. बीजेपी को बनिया वोट का 64 फीसदी हिस्सा मिलता नजर आ रहा है. सवर्णों में भी बीजेपी की पकड़ बरकरार दिखती है.
एक्सिस के अनुमान के मुताबिक बीजेपी को कायस्थ वोटों का 55 फीसदी, ब्राह्मण वोटों का 62 फीसदी और ठाकुर वोटों का भी 62 फीसदी हिस्सा मिलता दिख रहा है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो नोटबंदी का बम फूटने से पहले भी इन समुदायों का इतना ही समर्थन बीजेपी को मिल रहा था. ऐसा लगता है कि नोटबंदी का जो नकारात्मक असर था भी उसे यूपी में समाजवादी पार्टी के शासन में कानून और व्यवस्था की बदहाली को लेकर नकारात्मक अवधारणा ने कहीं पीछे छोड़ दिया.
अतीत में एग्जिट पोल्स गलत साबित होते रहे हैं. ऐसे में संभावना है कि एक्सिस-माय-इंडिया का एग्जिट पोल पूरी तरह सटीक साबित ना हो. लेकिन अगर ये अनुमान सही साबित होते हैं तो 1985 के बाद ये पहली बार होगा कि देश में राजनीतिक दृष्टि से सबसे अहम राज्य में कोई पार्टी 250 सीटों का आंकड़ा पार करेगी. 1985 में उत्तर प्रदेश में, जब उत्तराखंड अलग नहीं हुआ था, एनडी तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस ने 425 सदस्यीय विधानसभा में 269 सीट जीतने में कामयाबी पाई थी.
नवंबर 2000 में उत्तराखंड के यूपी से अलग होने के बाद कोई भी पार्टी प्रदेश में अधिकतम 224 के आंकड़े को ही छू पाई. 2012 विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 224 सीट जीतने में ही कामयाबी पाई थी. एक्सिस-माय-इंडिया के अनुमान के मुताबिक ही यूपी विधानसभा चुनाव की मतगणना के नतीजे आते हैं तो ये शानदार जीत मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में भी धार देती नजर आएगी. पोल सर्वेक्षकों ने अपनी बात कह दी है, अब इंतजार कीजिए भाग्य की देवी के पिटारे से क्या निकलता है.
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