ये क्या हो गया है बिहार को?
अभी मुजफ्फरपुर के उस गांव की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि विस्फोट की यह खबर आ गई.
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आरा के सिविल कोर्ट में विस्फोट . एक कांस्टेबल और एक महिला की मौत. अभी मुजफ्फरपुर के उस गांव की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि विस्फोट की यह खबर आ गई. यह है बिहार का ताजा हाल. क्या ऐसे ही हालात के लिए लोगों ने बिहार में वोट दिया था? अगर नहीं तो फिर ऐसी स्थिति क्यों?
पिछले कुछ समय से बिहार में ऐसी घटनाएं होने लगी हैं जो पहले तक नहीं हुआ करती थीं. यह सब लोकसभा चुनाव के ठीक पहले शुरू हुआ और यह अब बिहार की नियति बनते जा रही है. लोकसभा चुनाव से पहले वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधी मैदान में जनसभा करने गए थे और उसी दौरान उनकी सभा में बम विस्फोट हुआ. फिर विजयदशमी के दिन गांधी मैदान में भगदड़ मची और कई सारे लोग मारे गए. कुछ दिन पहले मुजफ्फरपुर में एक गांव में हिंसक घटना हुई और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा. इन सब घटनाओं का जिक्र इसलिए कि ये सारी घटनाएं प्रशासनिक अक्षमता को दर्शाती हैं.
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में एक उम्मीद की तरह आए थे. उनका आने से लोगों में विश्वास पैदा हुआ था, लेकिन उनके सत्ता से जाने के बाद लोगों का भरोसा प्रशासन पर कम हुआ है. अपराधी बेखौफ हुए हैं. घटनाएं बढ़ रही हैं. कार्रवाई और जांच का भरोसा देकर भी प्रशासन लोगों का विश्वास नहीं जीत पा रही है.
मोदी की सभा में विस्फोट के पीछे आतंकी गुट का हाथ था लेकिन प्रशासन उसे क्यों नहीं भांप पाई? विजयदशमी के समय जब गांधी मैदान में भगदड़ मची थी उस समय भी प्रशासनिक लापरवाही सामने आई थी. मुजफ्फरपुर के जिस गांव को घेर कर जला दिया गया वह भी अचानक नहीं था. हजारों लोगों का हथियार समेत एक जगह पर बिना किसी संवाद के जमा हो जाना संभव नहीं था. क्या कर रहा था स्थानीय प्रशासन? क्या कर रहे थे वहां के मुखिया, सरपंच, विधायक? क्या जांच में विधायक समेत सभी स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों की मोबाइल पर हुई बातचीत को शामिल की जाएगी? उम्मीद तो नहीं है और यही कारण है कि लोगों का विश्वास प्रशासन और शासन दोनों पर कम होते जा रहा है.
हालांकि इन सभी घटनाओं के लिए सिर्फ प्रशासन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. प्रशासन के लचर होने का अर्थ होता है शासक का कमजोर होना और बिहार में यह साफ दिख रहा है. रोज-रोज के राजनीतिक बयान, किसी के मुख्यमंत्री बने रहने और हटाये जाने की अनिश्चितता प्रशासन को कमजोर कर रही है. अपराधी इसी का लाभ उठा रहे हैं और राज्य में आतंक का माहौल बना रहे हैं.
जनता ने नीतीश कुमार को अपने राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर देखा था इसलिए उन्हें वोट दिया था. जनता को केंद्र की राजनीति के लिए नीतीश पर भरोसा नहीं था और चुनाव में यह साफ हो गया. फिर नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद से पलायन क्यों? सिर्फ अपनी अहम की संतुष्टि के लिए? नीतीश कुमार ने बिहार का मुख्यमंत्री किसी और को बना दिया जिसे जनता ने नहीं नीतीश कुमार ने चुना था. लोगों का भरोसा नीतीश कुमार पर था और उन्होंने इसे तोड़ दिया. आज राज्य में जो कुछ भी हो रहा है उसके लिए क्या नीतीश कुमार अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं? जिस प्रशासन पर से लोगों का भरोसा उठ रहा है, अपराधियों में खौफ कम हो रहा है, घटनाएं बढ़ रही हैं, उन सभी बातों के लिए निश्चित तौर पर नीतीश कुमार भी जिम्मेदार ठहराए जाएंगे. विचारधारा की बात कह कर नीतीश राज्य की जनता को धोखा नहीं दे सकते.
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