सदैव अटल बोल पड़ा 'बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं'!
एक ही समय में एक शख्सियत को जमकर कोसा जाना और ठीक उसी समय उनकी समाधि पर नमन करना साथ साथ गले उतर सकता है? घाव पलक झपकते ही कब से भरने लगे? अब वो व्यक्तिगत बयान वाला लॉजिक तो मत ही दीजिये, ट्वीट आने के बाद हर कांग्रेसी नेता गौरव पांधी से इत्तेफाक रख रहा था और आज जब ट्वीट नहीं भी हैं तो जो कहा जा रहा है कई कांग्रेसियों द्वारा लब्बोलुआब वही है.
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'उनका' 'सदैव अटल' पहुंचकर नमन करने का एजेंडा तो शनिवार से ही तय था. 'वे' अपने इस अंदाज से यह संदेश देना चाहते थे कि वह राजनीतिक फायदों से अलहदा भारत को जोड़ रहे हैं. वह यह बताना चाहते थे कि पीएम मोदी और सरकार सिर्फ अपने नेताओं को याद करती है. पीएम मोदी नेहरू और इंदिरा गांधी की समाधि पर नहीं जाते क्योंकि उनकी ध्रुवीय राजनीति है. वहीं गांधी हर नेता की समाधि जा रहे हैं, वो भी राजनीतिक फायदों से काफी उठकर.एकबारगी बीजेपी हतप्रभ सी हो गई थी. लेकिन फिर हमेशा की तरह एक बार फिर एक कांग्रेसी ही तारणहार बना. इस बार बीजेपी के लिए 'मणिशंकर' बने कांग्रेस के अध्यक्ष खड़गे जी के कोऑर्डिनेटर और वरिष्ठ नेता गौरव पांधी जिन्होंने 'उनके' इस नमन कार्यक्रम के मध्य पड़ने वाली अटल जी की जयंती के दिन ही दिवंगत आत्मा को जी भर कोस डाला. गौरव पांधी ने ट्वीट कर कहा कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अन्य सदस्यों की ही तरह वाजपेयी ने भी बहिष्कार किया था और एक ब्रिटिश मुखबिर की तरह आंदोलन में शामिल लोगों के खिलाफ काम किया था. वे यहीं नहीं रुके और थ्रेडिंग कर डाली ये कहते हुए कि नेली हत्याकांड हो या बाबरी विध्वंस की घटना, अटल बिहारी वाजपेयी ने भीड़ को भड़काने में अहम भूमिका निभाई. सवाल है उन्होंने ऐसा क्यों किया? उनका थ्रेड ख़त्म हुआ विश्लेषण के साथ कि बीजेपी के आज के नेता सच्चाई जानते हैं और इसीलिए वे नरेंद्र मोदी की तुलना गांधी, पटेल और कांग्रेस के अन्य नेताओं से करते हैं ना कि सावरकर, वाजपेयी या गोलवलकर से.
राहुल गांधी को समझना चाहिए कि उनके अपने ही उनकी राह में कांटे बिछा रहे हैं
दरअसल इसी विश्लेषण में इस आत्मघाती थ्रेड की सच्चाई छुपी है. आखिर विश्लेषण करने की फ्रीडम तो हमें भी है ना ! शायद गौरव जी से बीजेपी के मोदी जी की तुलना पटेल, गांधी से किये जाने के प्रयासों कीधज्जियां उड़ाने के लिए कहा गया था और वे अतिरेक में अपनी ही पार्टी की किरकिरी करा बैठे, भूल गए कि राहुल गांधी जी 'सदैव अटल' पहुंच कर 'अटल' नमन करेंगे. हालांकि थ्रेड उन्होंने डिलीट किये लेकिन कितना भी कांग्रेस जन लार्जर पॉइंट सिद्ध करने की कोशिश करें और कहें 'जो हुआ सो हुआ', हुआ वही कि स्मार्ट पॉलिटिक्स के लिए चौबे गए छब्बे बनने दुबे बनके लौटे!
सीधी सी बात है क्या एक ही समय में एक शख्सियत को जमकर कोसा जाना और ठीक उसी समय उनकी समाधि पर नमन करना साथ साथ गले उतर सकता है? घाव पलक झपकते ही कब से भरने लगे? अब वो व्यक्तिगत बयान वाला लॉजिक तो मत ही दीजिये, ट्वीट आने के बाद हर कांग्रेसी नेता गौरव पांधी से इत्तेफाक रख रहा था और आज जब ट्वीट नहीं भी हैं तो जो कहा जा रहा है कई कांग्रेसियों द्वारा लब्बोलुआब वही है मसलन पवन खेड़ा कह वही रहे हैं सिर्फ वाजपेयी का नाम हटा लिया है.
'यह गर्व का विषय है कि मोदी जी को जब किसी महान नायक की प्रतिमा लगानी होती है तो उन्हें भी कांग्रेस पार्टी के ही नायकों में से चुनना पड़ता है, वे सावरकर अथवा गोलवलकर (पांधी ने लिखा था 'सावरकर , वाजपेयी या गोवलकर...') की नहीं बल्कि सरदार पटेल या नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाने पर मजबूर हो जाते है।" पता नहीं सौ से अधिक साल पुरानी पार्टी क्यों नहीं समझती कि 'जो हुआ सो हुआ' को भाजपाई जनता के बीच किस प्रकार स्टेज करेंगे और शुरू हो भी चुका है. फिर ट्विटर की जनता तो वो है जो आपके लिखे का मर्म भांप लेती हैं कि दिल में क्या छुपा है !
और देखिये कांग्रेस ने साथ साथ दीगर मुद्दे भी दे दिए बीजेपी को, एक तो 'हिंदी नहीं अंग्रेजी चलेगी' क्यों बोल दिया और वो भी 'हिंदी' में? यदि बीजेपी सरकारें हिंदी का प्रमोशन कर रही है तो गलत क्या है ? कहां अंग्रेजी बंद की है या हिंदी को अनिवार्य किया है ? क्या कमल हासन कांग्रेस की नैया पार लगाएंगे ? पता नहीं है शायद कांग्रेस को तमिलनाडु में सबसे ज्यादा हिंदी सीखने की ललक है. यदि कांग्रेसी नेता हिंदी ना बोलें तो क्या यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झाड़खंड, पंजाब, दिल्ली आदि में कनेक्ट कर पाएंगे ?
फिर आज कम्युनिकेशन के इतने उपकरण आ गए हैं कि कहना ही बेमानी है कि अंग्रेजी नहीं आती तो ग्लोबली कनेक्ट नहीं कर पाएंगे हमारे लोग! एक तथ्य है कि दुनिया भर का प्रवासी भारतीय जहां भी है, वहां की भाषा बोलता है लेकिन हिंदी पढ़ना खूब पसंद करता है, तमाम विदेशी मीडिया हिंदी वर्जन भी खूब चला रहे हैं. आश्चर्य होगा जानकर गीतांजलि श्री के बारे में जिन्हें अपनी हिंदी रचना 'रेत समाधि' के लिए लिटरेचर का ऑस्कर समझा जाने वाला बूकर प्राइज़ मिला कि वे स्वयं अंग्रेजी में पढ़ी लिखी है श्रीराम कॉलेज और जेएनयू में लेकिन विधा चुनी हिंदी. यदि अंग्रेजी ही वजह होती विकास की तो चीन, जापान, जर्मनी सरीखे देश सबसे पिछड़े होने चाहिए थे दुनिया में!
दूसरे जिस वक्त गौरव पांधी वाजपेयी जी का अनादर कर रहे थे, कतिपय कांग्रेसी नेता मसलन पवन खेड़ा, जयराम रमेश जिन्ना की प्रशंसा कर रहे थे. फिर कांग्रेस पार्टी का तो अपने ही नेताओं का अनादर करने का इतिहास रहा है, पटेल, कामराज, अंबेडकर, सुभाष,जैसा बीजेपी कहती है ना भी मानें तो, पीवी नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी, शरद पवार, जैसे अपने नेताओं का अतीत में जो अनादर किया है, कौन नकार सकता है ? दरअसल कांग्रेस वाजपेयी को सम्मान देकर एक नैरेटिव खड़ा करना चाहती है जो ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाएगा. सोनिया गांधी ने कई मौकों पर वाजपेयी का अपमान किया था. यह सिर्फ सोशल मीडिया पर कुछ समय के लिए प्लॉट जरूर बनेगा इसके आगे कुछ नहीं.
और कांग्रेस पार्टी के नीतिकार पता नहीं कैसे स्ट्रेटेजी बनाते है? राहुल गांधी का सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों की समाधियों का दौरा उनके बदलाव की कवायद का हिस्सा है, अगर वे इसके प्रति गंभीर होते तो उन्हें हैदराबाद में नरसिम्हा राव की समाधि पर भी तो जाना चाहिए था. 'भारत जोड़ो यात्रा' नवंबर की शुरुआत में तेलंगाना से होकर गुजरी भी थी, उन्होंने नेकलेस रोड पर लगी इंदिरा जी की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन भी अर्पित किये थे लेकिन याद दिलाये जाने के बावजूद वे पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की प्रतिमा पर नहीं गए थे. तो किस भारतीय संस्कृति और संस्कार की दुहाई देती है पार्टी ? कहावत है हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और !
हां, जब आपने फारेस्टगंप को अडॉप्ट किया तो सौ फीसदी अपनाना चाहिए था ना! फारेस्ट गंप खूब गप्पी था लेकिन जब उसने दौड़ की यात्रा शुरू की, चुप्पी साध ली थी. नतीजन कारवां जेनुइनेली जुड़ता चला गया! और राहुल गांधी तो विपश्वी हैं, मौन रहने की शक्ति और प्रभाव को जानते हैं. यदि वे अपनी यात्रा के दौरान मौन भी रहते तो यकीन मानिये यात्रा का मकसद पूरा होता! खैर ! अंत करें 'जो हुआ सो हुआ' कहकर और भविष्य के लिए कामना करते हुए कि अच्छी समझ प्रबल हो!
हां, एक बात और, थोड़ा लाइटर नोट पर, सोशल मीडिया पर 'आपको ठंड क्यों नहीं लगती ? कहलवाकर 'टी शर्ट' ने गर्दा उड़ा दिया है. तो भई, समझिये, राजनीति परसेप्शन का खेल है; खेलने की सब कोशिश करते हैं. 'आप थकते क्यों नहीं' की अपार सफलता की काट के रूप में शायद यही जमा कांग्रेस के महान 'नीतिकारों' को.
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