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Updated: 31 जनवरी, 2021 09:39 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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किसान आंदोलन (Farmers Protest) की वापसी के साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से भी ऑल पार्टी मीट से होती हुई अच्छी खबर आयी है - किसानों और सरकार के बीच होने वाली बातचीत बस एक फोन कॉल दूर है.

किसानों के साथ बातचीत को लेकर सरकार का रुख तो केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की प्रेस कांफ्रेंस में ही साफ हो गया था. प्रकाश जावड़ेकर से जब 26 जनवरी की हिंसा के बाद की परिस्थितियों में किसानों के साथ सरकार की बातचीत को लेकर पूछा गया तो, उलटे केंद्रीय मंत्री ने ही सवाल दाग दिये, 'आपने कभी सुना बातचीत के दरवाजे बंद हो गए हैं? जब भी कुछ होगा आपको बताएंगे.'

सर्व दलीय बैठक में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ ही कर दिया कि सरकार कृषि मंत्री की बातों पर पहले की तरह ही कायम है. दरअसल, 11वें दौर की बातचीत में भी जब कोई नतीजा नहीं निकला तो कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने साफ साफ बोल दिया था कि सरकार के पास उससे बेहतर कोई प्रस्ताव नहीं है, लेकिन जब भी बातचीत का मन बने, बस एक फोन कॉल की दूरी रहेगी. नरेंद्र सिंह तोमर ने तब ये भी कहा था कि अगली बातचीत कब होगी, ऐसी कोई संभावना नहीं बतायी जा सकती. दरअसल, 10वें दौर की बातचीत में सरकार की तरफ से तीनों कृषि कानूनों को 18 महीने तक होल्ड करने और उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करने को कहा गया था, लेकिन किसानों ने विचार-विमर्श के बाद सरकार का प्रस्ताव खारिज कर दिया था.

26 जनवरी की दिल्ली हिंसा के बाद किसान आंदोलन लुढ़कते लुढ़कते राकेश टिकैत के आंसू गिरने के साथ ही फिर से उठ कर खड़ा हो गया है - और अब आम बजट (Budget 2021) के बाद फिर से नये सिरे से बातचीत की उम्मीद जतायी जा रही है, लेकिन सवाल है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) की लाल गठरी में किसानों के लिए भी कोई गुड न्यूज है क्या?

आय दोगुनी होनी तो है, लेकिन कब से?

2019 के आम चुनाव मैनिफेस्टो में बीजेपी ने 75 वादे किये थे - और विशेष बात ये रही कि आधे से कुछ ही कम वादे किसानों और गांव के लोगों के विकास से जुड़े हुए थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोबारा कुर्सी संभाली तो तब के बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को कैबिनेट साथी भी बना लिया - और मोदी सरकार का प्रत्यक्ष हिस्सा बनते ही अमित शाह एक एक करके चुनावी वादों को पूरा करने में जुट गये. संसद में प्रस्ताव लाकर जम्मू-कश्मीर में लागू धारा 370 खत्म किये, तीन तलाक कानून बनाये और फिर नागरिकता संशोधन कानून भी बना और देश भर में भारी विरोध के बावजूद लागू भी हो गया.

किसानों को लेकर जो सबसे खास बात थी, वो रही - '2022 तक किसानों की आय दोगुना करना'.

बीजेपी के संकल्प पत्र में एक शीर्षक रहा, 'किसानों की आय दोगुनी' और उसके शुरू में ही साफ साफ लिखा गया, 'भाजपा सरकार के वर्तमान कार्यकाल के प्रारंभ में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को हासिल करने को मिशन के रूप में लिया है. हम इस लक्ष्य को 2022 तक पूरा करने के लिए सभी प्रयास करेंगे.'

nirmala sitharaman, rakesh tikait, narendra modiनिर्मला सीतारमण के बजट में किसानों के लिए भी कोई सौगात है क्या?

क्या '2022 तक पूरा करने के लिए सभी प्रयास...' से आशय ये तीनों कृषि कानून ही रहे? मैनिफेस्टो में सारी बातें साफ साफ लिखी थीं, पूरे विस्तार के साथ. बस यही एक बात गोल मोल लगी - और उसी का नतीजा है कि CAA से भी कहीं ज्यादा तीनों कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है. दिल्ली की सीमा पर किसानों के प्रदर्शन करते दो महीन से ज्यादा हो चुके हैं - और 26 जनवरी में दिल्ली के अलावा सिंघु बॉर्डर पर भी हिंसा का नंगा नाच देखा जा चुका है.

हो सकता है, अभी के जैसे नाजुक हालात नहीं होते तो 2022 के बजट को ही किसानों का बजट बनाया जाता. ऐसा किये जाने की एक बड़ी वजह अगले साल यूपी और पंजाब सहित कई राज्यों में होने वाले चुनाव भी हो सकते थे, लेकिन बदले हालात में मान कर चलना चाहिये कि सरकार निश्चित तौर पर आंदोलनकारी किसानों को शांत करने के मकसद से किसी न किसी तोहफे की तैयारी जरूर की होगी.

आम चुनाव से पहले भी मोदी सरकार किसानों के मामले में काफी दबाव महसूस कर रही थी. एक तो कांग्रेस ने 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनावों को लेकर कर्जमाफी की घोषणा कर सरकार बना ली थी, दूसरे 2019 में NYAY योजना लेकर आ गयी.

2019 के अंतरिम बजट में ही वित्त मंत्री को किसान सम्मान निधि की घोषणा करनी पड़ी - और जल्दी जल्दी किसानों के खाते में पहली किस्त भी पहुंच जाये ऐसा सुनिश्चित किया गया. बाद में जब सामान्य बजट आया तो उसमें स्कीम को विस्तार और मंजूरी देकर आगे बढ़ाया गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से बार बार किसानों या उनसे जुड़ी चीजों का जिक्र भी यही संकेत दे रहा है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में किसानों के लिए कुछ न कुछ खास तो होना ही चाहिये. मौका चाहे वो ऑल पार्टी मीट का हो या फिर मन की बात का.

जिस तरीके से किसानों के साथ बातचीत को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से जोर देकर 'बस एक फोन कॉल' का जिक्र किया गया है, दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों को ऐसी अपेक्षा रखनी चाहिये कि मजबूरी में ही सही मोदी सरकार कुछ न कुछ अच्छा करने की कोशिश जरूर करेगी.

किसानों के ऐसा उम्मीद करने की एक वजह ये भी है कि राकेश टिकैत की सिसकियों से उपजी सहानुभूति ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव से पहले ही माहौल बीजेपी के खिलाफ कर दिया है. भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नरेश टिकैत 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अजीत सिंह का साथ छोड़ कर बीजेपी का साथ देने को लेकर अफसोस भी जताने लगे हैं. महापंचायतों में बीजेपी को आने वाले चुनावों में सबक सिखाने जैसे सख्त लहजे में बातें होने लगी हैं.

बीजेपी के खिलाफ किसानों को सपोर्ट करने के मामले में भले ही अजीत सिंह और जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी आगे हो, लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के इंतजार में बैठी सभी पार्टियां किसानों को अपने पक्ष में करने के लिए हर संभव कोशिश में अभी से जुट गयी हैं.

एक फोन कॉल कितना दूर होता है?

वैसे तो किसान नेता अब भी कृषि कानूनों को 18 महीने तक होल्ड करने के प्रस्ताव को खारिज करते आ रहे हैं, लेकिन 'बस एक फोन कॉल...' बोल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों में भरोसा जगाने की जो कोशिश की है, उससे किसानों के बीच एक सकारात्मक खबर आने की उम्मीद तो जग ही गयी है. हालांकि, सरकार और किसानों के बीच कृषि कानूनों को लेकर बातचीत फिर से शुरू करने पर किसान नेता राकेश टिकैत ने कह दिया है कि बंदूक की नोक पर बातचीत नहीं होगी.

कई मीडिया रिपोर्ट ऐसे संकेत दे रही हैं कि किसान नेता आने वाले पांच दिनों को बड़े ही सकारात्मक नजरिये से देखने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे ही एक नेता का कहना रहा, हमें भरोसा है कि सरकार से बातचीत में कोई सकारात्मक परिणाम सामने आएगा.

किसान नेता राकेश टिकैत ने ये भी कहा है कि किसान ऐसा भी कुछ नहीं चाहते कि उनकी वजह से सरकार की कहीं फजीहत हो. राकेश टिकैत ने ये भी पूछा, 'सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि वो नये कृषि कानूनों को निरस्त नहीं करने पर अड़ी हुई है?'

राकेश टिकैत का एक और बयान है जिसमें वो कहते हैं, 'सरकार किसानों को अपनी बात बता सकती है. हम ऐसे लोग हैं जो पंचायती राज में विश्वास करते हैं. हम कभी भी दुनिया के सामने सरकार का सिर शर्म से नहीं झुकने देंगे.'

कई किसान नेताओं का आरोप है कि सरकार किसान आंदोलन को फेल करने के लिए प्रोपेगैंडा करती आ रही है - अगर सरकार किसानों की मांगें मान ले तो वे खुद ही अपने अपने घर लौट जाएंगे. ऐसे नेताओं की सरकार को सलाह है कि आंदोलन को नाकाम करने की कोशिश के बजाये अच्छा होता कि सरकार किसानों की परेशानी समझती और उसे लेकर कोई हल ढूंढ़ती.

अब तो बस ये समझना बाकी रह गया है कि एक फोन कॉल की दूरी कितनी होती है?

ये दूरी उतनी ही लंबी होती होगी जितना उम्मीदों भरी किसी फोन कॉल का इंतजार - जो लोग कभी न कभी फोन कॉल का इंतजार किये होंगे, वे इसे निश्चित तौर पर महसूस कर सकते हैं.

मध्य प्रदेश के एक नेता के साथ तो फोन कॉल के इंतजार का वाकया ऐसा रहा कि ताउम्र वो नहीं भुला पाये. किस्सा तो ये है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से वो बस एक कॉल की ही दूरी पर थे. हेलीकॉप्टर भी तैयार था - लेकिन कुछ विरोधी पार्टी नेताओं ने आखिरी वक्त में ऐसी साजिश रची कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई और बैठ गया.

अब जब तक किसानों और सरकार के बीच बातचीत का अगला दौर शुरू नहीं हो जाता या कम से कम तारीख पक्की नहीं हो जाता - वे एक फोन कॉल की दूरी को लेकर कयास लगाते रहें.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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