बुलंदशहर में तैयार था एक 'चुनावी-दंगे' का बड़ा डिजाइन
बुलंदशहर में हुई हिंसा में एक पुलिस इंस्पेक्टर सहित दो लोगों की मौत हुई है, लेकिन इसे कई कारणों से गनीमत ही मान लेना चाहिए. ऐसा इसलिए, क्योंकि आम चुनाव से पांच महीने पहले हुआ ये बवाल मुजफ्फरनगर दंगों की याद दिलाता है.
-
Total Shares
जरा एक बार याद कीजिए मुजफ्फरनगर दंगा कब हुआ था? चलिए हम आपको बताते हैं कि वो वक्त था अगस्त-सितंबर 2013 का. 2014 के आम चुनाव से आठ महीने पहले. बवाल की वजह जो भी हो, लेकिन उसने देश में हिंदू और मुसलमानों के बीच के रिश्ते को बहस में ला दिया था. अब उस दंगे का मिलान कीजिए बुलंदशहर में हुए उपद्रव से. पांच महीने बाद अप्रैल-मई में 17वीं लोक सभा के चुनाव होने हैं. राजस्थान में तो चार दिन बाद ही वोट डाले जाने हैं. ऐसे में एक बड़ा दंगा काफी है चुनावों के मद्देनजर सियासी उबाल लाने के लिए. राजनीतिक दलों को एक अजमाया हुआ नुस्खा.
लोग सभा चुनाव से ठीक पहले बुलंदशहर की वारदात को अंजाम दिया गया है
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में गोकशी के नाम पर जिस तरह बलवा हुआ. आगजनी को अंजाम देकर एसएचओ और एक आम आदमी को भीड़ द्वारा बेरहमी से क़त्ल किया गया. कहना गलत नहीं है कि, दंगे के लिए जमीन को पहले ही पूरी तरह से तैयार कर लिया गया था, बस उस पर मौत की खेती करनी थी. मगर इस बार दाव थोड़ा उल्टा पड़ा और पुलिस अधिकारी की मौत हो गई और बात सूबे की कानून व्यवस्था और सुशासन का दावा करने वाले योगी आदित्यनाथ के शासन पर आ गई.
अब कुछ बातों पर गौर कीजिए...
1. बुलंदशहर में जिस जगह ये दिल दहला देने वाली घटना घटी उससे कुछ किलोमीटर दूर दरियापुर में एक इज्तेमा चल रहा था. इस इज्तेमा में देश भर से 10 लाख से ऊपर मुसलमान जुटे थे. बवाल से एक दिन पहले इस इलाके से सांप्रदायिक सौहार्द्र की खबर आ रही थी, जहां मुसलमानों को नमाज पढ़ने के लिए एक मंदिर के दरवाजे खोले गए थे. ऐसे में इस ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने वाले सक्रिय हुए.
2. उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर आनंद कुमार ने साफ कह दिया है कि इस दंगे का इज्तेमा से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन, ये कैेसे कहा जा सकता है कि बुलंदशहर के किसी हिस्से में गौकशी के नाम पर दंगा भड़कता तो उसकी आग इज्तेमा में शामिल होने आए मुसलमानों तक नहीं पहुंचती.
BJP MP from #Bulandshahr Bhola Singh: Law and order is usually good here but the police were kept in dark about this Ijtema (Islamic congregation) that happened here, it caused chaos. This is the cause of this violence. pic.twitter.com/PQDbBlGH27
— ANI UP (@ANINewsUP) December 4, 2018
3. मुजफ्फरनगर दंगे में भी बात तो मामूली झगड़े से ही शुरू हुई थी, जिसने आसपास के चार जिलों को चपेट में ले लिया था. ऐसे में यदि बुलंदशहर के स्याना थाना क्षेत्र के चिंगरावठी इलाके में जिस वारदात को अंजाम दिया गया, उससे साफ पता चल रहा है कि निशाने पर इज्तेमा में शामिल लोग थे.
माना जा रहा है कि हिंसा का उद्देश्य इज्तेमा के माहौल को खराब करना था
4. चूंकि मामले ने तेजी से आग पकड़ी इसलिए पुलिस विभाग ने भी आनन फानन में कार्रवाई की. लेकिन, जिस तरह बवाल के मास्टरमाइंड के रूप में बजरंग दल के जिला अध्यक्ष योगेश राज का नाम सामने आया है. पुलिस ने अपनी FIR में जिन 28 लोगों के नाम दर्ज किए हैं, उनमें बजरंग दल का जिला अध्यक्ष योगेश राज का नंबर सबसे ऊपर है. कहा जा रहा है कि उसी ने सबसे पहले गायों के कंकाल मिलने की खबर फैलाई और लोगों को हंगामे के लिए जुटाया.
Anand Kumar, ADG(L&O): Four people have been arrested. I don't know about the organizations yet, but the main accused in the violence is Yogesh Raj who has not been arrested till now #Bulandshahr pic.twitter.com/NsQlDyWZxe
— ANI UP (@ANINewsUP) December 4, 2018
मामले में बजरंग दल के जिला अध्यक्ष योगेश राज के अलावा 27 अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. साथ ही दो अभियुक्तों की गिरफ़्तारी हुई है. जबकि 4 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिसमें योगेश राज भी शामिल है. पुलिस उनसे पूछताछ कर रही है. पुलिस के अनुसार योगेश राज दंगे का मास्टर माइंड है और उसपर दंगा भड़काने, हत्या और हत्या की कोशिश करने के कानूनी धाराओं में केस दर्ज हुआ है. योगेश राज के अलावा इस मामले में बीजेपी यूथ विंग के सदस्य शिखर अग्रवाल का नाम भी एफआईआर में दर्ज है. इसके साथ ही विश्व हिंदू परिषद के सदस्य उपेन्द्र राघव का नाम भी पुलिस ने अपनी एफआईआर में लिखा है. यानी एक ही विचारधारा से जुड़े इन युवकों का एकसाथ होकर किसी बवाल को अंजाम देना संयोग नहीं हो सकता.
पुलिस ने जिस योगेश राज को मुख्य अभियुक्त बनाया है वो बजरंग दल का जिला अध्यक्ष है
5. राइट विंग के इतने लोगों का वारदात में शामिल होना इस बात की तस्दीक कर देता है कि इस दंगे का असल उद्देश्य क्या था. वो तो गनीमत है कि वक़्त रहते हालात पर काबू कर लिया गया वरना इस दंगे की आग देशभर में फैलती और हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता और हम वो देखते जो इतना विभत्स है कि जिसे सोचने में भी डर की अनुभूति होती है.
दंगाइयों के हाथों मारे गए पुलिस इंस्पेक्टर
6. दंगाइयों के हाथों मारे गए इंस्पेक्टर सुबोध कुमार, अखलाक की मौत की जांच कर रहे थे. ऐसे में उनकी निर्मम हत्या भी अपने आप में कई सवालों को जन्म दे रही है. कई लोग इंस्पेक्टर की मौत को अखलाक की मौत से जोड़कर देख रहे हैं, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अखलाक हत्याकांड का बुलंदशहर में दंगा करने वालों से क्या ताल्लुक था.
बहरहाल, चूंकि बुलंदशहर की हिंसा चुनावों से चार या पांच महीना पहले हुई है. ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति न होगा कि इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए भाजपा के अलावा अन्य दलों के पास अच्छा खासा समय है. चूंकि सभी मुख्य अभियुक्त राइट विंग से जुड़े हैं, स्वाभाविक है कि राइट विंग के बड़े वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति के तहत इनकी पैरवी करेंगे. हो सकता है ये हिंसा भी इस देश का एक मामला बनकर फाइलों में बंद हो जाएगी. लेकिन, तब तक के लिए इस पर होने वाली बहस कुछ नेताओं का फायदा-नुकसान तो कराती ही रहेगी.
ये भी पढ़ें -
'मॉब लिंचिंग' की शिकार भैंस बोली होगी- 'अगले जनम मोहे गइया ही कीजो' !
4,120 गाय खतरे में पड़ीं तो कहां छुप गए गौरक्षक?
आपकी राय