बुलडोजर के सामने लेटने वाले को 20% वोट, सपा, बसपा और कांग्रेस के लिए खुला ऑफर!
तमाम ख़ास और आम मुसलमानों से बात करने पर एक कॉमन राय सामने आ रही है. लोग कह रहे हैं कि कुछ मुसलमानों पर ज़ुल्म कर पूरी क़ौम को डराया जा रहा है. इस ज़ुल्म के खिलाफ जो विपक्षी दल के शीर्ष नेता जमीन पर विरोध करते नजर आएंगे, जेल जाने से नहीं डरेंगे, उन्हें ही अल्पसंख्यक वर्ग बिना बंटे, बिना बिखरे एक मुश्त वोट देगा.
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सियासत आसान नहीं है, वोटर आपसे अपने वोट की भारी क़ीमत लेना चाहता है. सियासी संघर्ष कुएं की तरह हैं, जितनी ज़मीन खोदी जाएगी उतना मीठा पानी निकलेगा. ज़मीनी संघर्ष और जेल की सलाखों के पीछे रहने की ताब वाली और ट्वीटर वाली सियासत में ज़मीन आसमान का फर्क़ है. बरसों के संघर्षों के बाद दशमलय 20 फीसद वोट हासिल करना ही मुश्किल होता है ऐसे में मौजूदा वक्त में यूपी के विपक्षी दलों को एकमुश्त बीस प्रतिशत वोट हासिल करने का सुनहरा ऑफर है. शर्त इतनी है कि जब बुलडोजर चले तो विपक्षी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा बुलडोजर के सामने लेट जाए. तेजी से चलते बुलडोजर से निकलती गर्द सियासी रुख की दिशा बता रही हैं. पिछले विधानसभा चुनाव की तरह अल्पसंख्यक वर्ग अब एकतरफा-एकमुशत वोट किसी को ऐसे ही नहीं देगा. जो बड़ा दल उसकी अपेक्षा में खरा उतरेगा उसे ही एकमुश्त समर्थन दिया जाएगा.
तमाम मुसलमानों से बात करने पर ये निचोड़ निकला है कि मुसलमान चाहता है कि बड़े विपक्षी दलों के बड़े नेता बुलडोजर के सामने लेट कर बुलडोजर नीति का शिद्दत के साथ ज़मीनी विरोध करें. अगर अखिलेश यादव चाहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव की तरह आगामी लोकसभा चुनाव में भी मुस्लिम बिना बंटे, बिना बिखरे एकमुश्त-एकतरफा वोट दें तो अखिलेश को बुलडोजर के सामने लेटना पड़ेगा.
प्रयागराज में दंगाई के घर बुलडोजर चलाना भर था, राजनीति तेज हो गयी है
कांग्रेस यूपी में मुस्लिम वोट चाहती है तो यूपी कांग्रेस प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा को बुलडोजर की राह में लेटना होगा. और बसपा सुप्रीमों मुस्लिम वोटों की अपेक्षा करती हैं तो उन्हें भी यही करना होगा, नहीं तो नमस्ते. खाली जबानी खर्च, बयानबाजी या ट्वीटबाजी से हमदर्दी या तरफदारी दिखाने से मुसलमान इस बार इन कथित मुस्लिम हमदर्द दलों को वोट न देने पर विचार कर रहा है.
तलाक, हिजाब, लाउडस्पीकर, नमाज,गाय, सीएए-एनआरसी हलाल, मदरसा, मुग़ल, मंदिर-मस्जिद, विवादित धार्मिक बयान और फिर पत्थरबाजी. लगातार इस क़िस्म के एपीसोड चले और इस दौरान बुलडोजर की बढ़ती रफ्तार मुस्लिम समुदाय को एक बार फिर कोई नया सियासी फैसला लेने के लिए बेचैन कर रही है. बुलडोजर नीति के खिलाफ अखिलेश यादव और मायावती के बयान आने लगे हैं. लेकिन इन बयानों को ढोंग माना जा रहा है.
सियासी जानकार मान रहे हैं कि बुलडोजर सियासत के नए ख़ाके की तस्वीरें तय करेगा. उत्तर प्रदेश में दंगों के आरोपियों के घरों पर चल रहे बुलडोजर से कहीं ख़ुशी कहीं ग़म नज़र आ रहा है. अवैध निर्माणों और दंगाइयों के घर जमींदोज होने से भाजपा समर्थक ख़ुश हैं, वो इसे यूपी को दंगा मुक्त-अपराध मुक्त करने के सराहनीय प्रयास मान रहे हैं.
मुसलमानो का बड़ा तबका इसे ज़ुल्म और अन्याय मान रहा है. इसे गैर कानूनी, अलोकतांत्रिक और तानाशाही का सुबूत कहा जा रहा है. अल्पसंख्यक वर्ग विपक्षी दलों से भी नाराज़ हैं. ख़ासकर सपा से, जिसको झोली भर-भर के वोट दिया लेकिन पार्टी मुखिया अखिलेश यादव अक़लियत की इतनी तरफदारी नहीं कर पा रहे जितनी अपेक्षा थी. क़ौम इस बार विपक्षी दलों पर निगाहें बनाए हुई है.
तमाम ख़ास और आम मुसलमानों से बात करने पर एक कॉमन राय सामने आ रही है. लोग कह रहे हैं कि कुछ मुसलमानों पर ज़ुल्म कर पूरी क़ौम को डराया जा रहा है. इस ज़ुल्म के खिलाफ जो विपक्षी दल के शीर्ष नेता जमीन पर विरोध करते नजर आएंगे, जेल जाने से नहीं डरेंगे, उन्हें ही अल्पसंख्यक वर्ग बिना बंटे, बिना बिखरे एक मुश्त वोट देगा.
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