कश्मीर पर इंदिरा गांधी के रास्ते पर मोदी, फिर क्यों रुदाली बुला बैठी है कांग्रेस ?
धारा 370 हटाए जाने पर छाती पीटने वाले कांग्रेसियों से पूछो कि धारा 370 का हत्यारा कौन है. क्या यह सच्चाई नहीं है कि कांग्रेस ने 1965 में ही धारा 370 का गला घोट दिया था.
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कांग्रेस करे तो जय और बीजेपी करे तो भय. भारतीय जनता पार्टी में जब से मोदी युग की शुरुआत हुई है, कांग्रेस लगातार लोगों में भय पैदा करने की कोशिश कर रही है कि बस अब लोकतंत्र खत्म होने वाला है. मगर कांग्रेस को यह सोचना चाहिए कि हर बात पर लोकतंत्र खत्म हो जाने की दुहाई देने वाली उनकी दलील जनता के दिल में क्यों नहीं उतर रही है. क्या इस देश की जनता नासमझ है, निमूढ है, जो पढ़े-लिखे विद्वान कांग्रेसियों की बात समझ नहीं पा रही है या भारतीय जनता पार्टी ने सचमुच का ऐसा डर का माहौल पैदा कर दिया है कि कोई विरोध के लिए सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास को देखें तो इनमें से दोनों ही बातें सच नहीं है. सच तो यह है कि भारत की जनता का कांग्रेस से भरोसा उठ गया है. जनता के मन में यह बात घर कर गई है कि ऐसा कौन सा काम बीजेपी कर रही है जो नई है और कांग्रेस ने कभी न किया हो. अगर कांग्रेस की शक्ल में बीजेपी जनता को बेहतर पैकेज दे रही है तो फिर जनता वही खरीदेगी. कांग्रेस को अपने अतीत में झांकना चाहिए. धारा 370 हटाए जाने पर छाती पीटने वाले कांग्रेसियों से पूछो कि धारा 370 का हत्यारा कौन है. क्या यह सच्चाई नहीं है कि कांग्रेस ने 1965 में ही धारा 370 का गला घोट दिया था.
जैसे हालात इस समय कश्मीर के हैं, कुछ वैसे ही हालत इंदिरा गांधी के समय में भी बनाए जा चुके हैं.
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार यह मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि जम्मू कश्मीर के जम्हूरियत के नेताओं को जबरन जेल के अंदर डाल दिया गया है, लेकिन सच तो यह है कि दुनिया में सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक और समाजवादी छवि के नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी उस वक्त के सबसे लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला को जेल में डाल दिया था. कांग्रेस आरोप लगाती है कि क्षेत्रीय पार्टियों को तोड़कर बीजेपी राज्यों में अपनी सरकार बना रही है. कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में यही तो किया था. जवाहरलाल नेहरू ने फरवरी 1964 में शेख अब्दुल्लाह की गुलाम मोहम्मद बख्शी की अगुवाई वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस को तोड़कर डेमोक्रेटिक नेशनल कॉन्फ्रेंस बनाया गया और जीएम सादिक को जम्मू कश्मीर का वजीर-ए-आजम यानी प्रधानमंत्री बना दिया. जिस तरह के हालात अभी देश में हैं ठीक उसी तरह से कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस से अलग हुए जीएम सादिक की पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया और फिर मार्च 1965 में धारा 370 की आत्मा को मार दिया गया. यह वक्त पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का था.
उस वक्त के तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के समय 1965 में कांग्रेस के अंदर इंदिरा गांधी के समर्थकों और विरोधियों के बीच सत्ता संघर्ष शुरू हो गया था. 1965 की लड़ाई का फायदा उठाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तमाम चेतावनियों के बावजूद श्रीनगर में भारत-पाकिस्तान लड़ाई के वक्त सीमा के करीब सेना के साथ मौजूद रही. भारत-पाकिस्तान युद्ध के हालातों के बीच कांग्रेस ने अपनी पार्टी के वजीरे आजम जीएम सादिक के जरिए धारा 370 में कई बदलाव करते हुए धारा 356 को जम्मू कश्मीर में के ऊपर लागू करवा दिया. धारा 356 केंद्र सरकार के हाथ में मौजूद वह खिलौना है जिसके जरिए जब चाहे केंद्र सरकार अपनी मर्जी की सरकार राज्यों पर थोप सकती है यानी राज्य सरकार को बर्खास्त कर राज्यपाल की नियुक्ति कर सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जम्मू कश्मीर में यह करने का हथियार कांग्रेस ही तो देकर गई है.
धारा 370 का गला कांग्रेस ने इतना ही नहीं घोटा था. जम्मू कश्मीर रियासत को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति यानी वजीरे-आजम और सदर-ए-रियासत का भी पद मिला हुआ था. तब सदरे रियासत कर्ण सिंह हुआ करते थे. कांग्रेस पार्टी ने अपनी पार्टी के डमी मुख्यमंत्री जी एम सादिक के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर के विशेष संविधान में कई तरह के बदलाव किए. सदर-ए-रियासत की जगह गवर्नर को नियुक्त कर दिया. मोहम्मद सादिक के इस एहसान के बदले में 1967 के चुनाव में कांग्रेस ने ऐसी धांधली मचाई कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के जीएम सादिक भारी बहुमत के साथ दोबारा मुख्यमंत्री बन गए और जम्मू कश्मीर के सबसे लोकप्रिय चेहरा शेख अब्दुल्ला जेल में कैद में पड़े रह गए. गुलाम मोहम्मद बख्शी की अगुआई वाली उनकी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस को महज 8 सीटें मिलीं. उसी दौरान यह प्रावधान कर दिया गया कि जम्मू कश्मीर के झंडे के साथ भारत का झंडा भी लगेगा. जब कांग्रेस ने इतना कर ही दिया था तो बचा क्या रह गया था. धारा 370 पहले से ही कोमा में थी, मोदी सरकार ने तो बस रहम करके युथनेशिया दिया है, यानी वेंटिलेटर पर पड़े हुए 370 का ऑक्सीजन हटाकर मुक्ति दी है. कांग्रेस ने राज्यपाल शासन लागू करने का प्रावधान करके धारा 370 के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी थी. राज्यपाल के जरिए जब चाहे जितनी जमीन वहां भारत सरकार ले सकती थी या किसी को भी ले कर दे सकती थी. इतना सब करने के बाद भी कॉन्ग्रेस जब कहती है कि मोदी सरकार जम्मू कश्मीर में जम्हूरियत का गला घोट रही है तो देश में तो छोड़िए जम्मू कश्मीर में भी किसी के गले नहीं उतरती है. कांग्रेस को अभी समझना होगा कि सौ चूहे खा कर बिल्ली हज पर नहीं जा सकती है. मोदी सरकार को बार-बार कोसने वाली कांग्रेस अगर अपनी गिरेबान में झांक कर देखेगी तो उसे समझ में आ जाएगा कि जो लकीरें इंदिरा गांधी खींचकर गई हैं उसे ही मोदी लंबी करने में लगे हुए हैं.
चाहे तीन तलाक का मामला हो या फिर जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने का हो, आम कांग्रेस जन में या फिर कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं में बीजेपी के कदम को लेकर निराशा नहीं, बल्कि उत्साह नजर आ रहा था. तब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस अपने ही कार्यकर्ताओं की भावनाओं को नहीं समझ पाती है या फिर कॉन्ग्रेस पुरातन रुदाली परंपरा के अनुसार अभी भी राज चला रही है जहां पर राजा के मरने के बाद राजमहल में कोई नहीं रोता था मगर रोने के लिए गरीब औरतें बुलाई जाती थीं. क्योंकि रोने का रिवाज था, इसलिए रिवाज निभाना जरूरी था. राजा की मौत के बाद नए राजा की राज गद्दी की शुरुआत होती थी ऐसे माहौल में भला राजमहल में कोई कैसे रोए, लिहाजा रुदालियां यह परंपरा निभा लेती थीं. कांग्रेस की तरफ से इन दोनों पर जिस तरीके से विरोध किया गया, उससे साफ लग रहा था कि कांग्रेस बस रुदाली परंपरा निभा रही है. अगर कांग्रेस धारा 370 हटाए जाने या फिर हटाए जाने के तरीकों के खिलाफ थी तो क्या आपको कहीं भी कांग्रेस सड़कों पर उतरकर संघर्ष करती दिखी? अगर देश को इतना ही खतरा था तो क्या आपने कहीं भी किसी बड़े कांग्रेस नेता को कहीं भी जनता को किसी सभा में यह समझाते हुए देखा कि जम्मू कश्मीर के लिए धारा 370 क्यों जरूरी है. बस राजमहल का उत्सव खतरे में ना पड़े इसलिए रुदाली बुलाकर रो लिए कि संसद में सही प्रक्रिया नहीं अपनाई गई.
कांग्रेस को अभी तक यह बात समझ में नहीं आई है कि जिन जिन मुद्दों पर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध कर रही है वह सभी के सभी तौर तरीके इंदिरा गांधी के जमाने में हिट फॉर्मूला थे. और ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी इंदिरा गांधी के 1966 से 1975 के सफल 10 साल के कार्यकाल की सफलता के गेस पेपर लेकर बैठ गए हैं.
कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नोटबंदी के दौरान के लिए अचानक टीवी पर आकर घोषणा करने के मामले को जनता के बीच मजाक उड़ाती है कि ना जाने अब आकर क्या बोल जाएं. लेकिन कांग्रेस भूल जाती है कि इंदिरा गांधी ने इसी तरह से जुलाई 1969 में बैंकों के राष्ट्रीकरण की घोषणा अचानक से की थी तब किसी को पता नहीं था और देशभर में अफरा-तफरी का माहौल बन गया था. यह तरीका भी नरेंद्र मोदी ने इंदिरा गांधी से ही सीखा है. बालाकोट एयर स्ट्राइक के मसले पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव जीत कर आते हैं तो कॉन्ग्रेस आरोप लगाती है कि सेना के नाम पर राजनीति करके सत्ता में मोदी लौटे हैं मगर क्या यह सच नहीं है कि इंदिरा गांधी को इस काम में महारत हासिल थी. जब पाकिस्तान के साथ 1965 का युद्ध हुआ तो देश में अपना कद बढ़ाने में लगी में इंदिरा गांधी मना करने के बावजूद जम्मू तक नहीं गईं, बल्कि श्रीनगर में सीमा के पास डटी रहीं.
1971 के युद्ध में पाकिस्तान पर महा विजय के बाद कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को आयरन लेडी से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हवाला देते हुए साक्षात दुर्गा तक प्रचारित करना शुरू कर दिया था. देश में एक ही व्यक्ति के शासन करने के सवाल पर मोदी पर हमला बोलने वाले कांग्रेसियों ने तो इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा तक कह डाला था. अब भला बीजेपी के लोग मोदी को भगवान बता रहे हैं तो इसमें नया क्या है. अब कांग्रेस के खेल में मोदी कांग्रेस को ही मात दे रहे हैं तो कांग्रेस को पेट में दर्द हो रहा है. इंदिरा गांधी करे तो मजेदार और मोदी करें तो अत्याचार. इसे इतिहास इतनी आसानी से होने नहीं देगा. इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 में अचानक से रेडियो पर आकर एक बार फिर देश को चौंकाया था. तब देश में आपातकाल लागू हो गया था. बस उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसा नहीं होगा, क्योंकि मोदी ने इंदिरा गांधी के सफलता की किताब पढ़ी होगी, असफलता की किताब से दूरी बनाए रखेंगे.
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