CAA और NRC तो सबकी सियासत के लिए संजीवनी साबित हो रहे हैं
नागरिकता संशोधन कानून और NRC (CAA protest and NRC issue) को लेकर जारी विरोध प्रदर्शन (Protest and Violence) का फायदा राजनीतिक दल और छात्र संगठन (Student Politics) पूरा उठा रहे हैं. मोदी सरकार तो अपना चुनावी वादा पूरा कर रही रही है, विपक्ष को भी पका-पकाया मुद्दा मिल गया है.
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नागरिकता संशोधन कानून और NRC (CAA and NRC) पर पूरे देश में बवाल मचा है. विरोध प्रदर्शन, तोड़-फोड़ और हिंसा (Protest and Violence) में लोग जख्मी हो रहे हैं और सरकारी संपत्तियों का काफी नुकसान हो रहा है, लेकिन एक पक्ष ऐसा भी जो फायदे में है. Citizenship Amendment Act लाने वाली बीजेपी जहां अपना चुनावी वादे पूरे कर रही है, वहीं अभिव्यक्ति पर पहरे की बात करने वाले विपक्षी दलों को इससे नयी आवाज मिल गयी है. सिर्फ बयानबाजी ही नहीं, धरना-प्रदर्शन के लिए भी इसमें पूरा मौका मिल रहा है. साथ ही, छात्र राजनीति (Student Politics) को इसमें फलने फूलने का खूब मौका मिल रहा है - छात्रों को खुद कुछ सूझे या नहीं कैंपस पॉलिटिक्स को संरक्षण देकर फायदा उठाने वाली पार्टियां बहती गंगा में हाथ धोने का कोई भी मौका नहीं चूक रही हैं.
1. BJP की तो बल्ले बल्ले हो गयी
बीजेपी को रक्षात्मक रवैया अख्तियार करना पड़ता था कि वो मंदिर मुद्दा सिर्फ चुनावों के दौरान उठाती है - राम उसे सिर्फ चुनाव के वक्त याद आते हैं. विपक्ष यही बोल कर बीजेपी को निशाना बनाता रहा है. आगे कुछ और हो न हो, तीन तलाक कानून और धारा 370 के बाद नागरिकता संशोधन कानून लाकर ही बीजेपी ने इतना इंतजाम कर ही लिया है कि आने वाले दिनों में पार्टी को बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
आने वाले चुनावों में बीजेपी डंके की चोट पर कह सकती है कि जो भी चुनावी वादे किये थे, पूरे कर दिये. नागरिकता संशोधन कानून तो उसके लिए ऐसी उपलब्धि बन चुकी है कि वो अदालत के जरिये आने वाले NRC और राम मंदिर निर्माण जैसे फैसलों की भी आसानी से क्रेडिट ले रही है. भला अब क्या चाहिये. दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, लिहाजा सारी दावेदार पार्टियां अपने अपने तरीके से तैयारी में जुटी हैं. एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई भी मौका कोई चूक नहीं रहा है. हाल की ही बात है, अनाज मंडी इलाके में एक फैक्ट्री में आग लगी और 43 लोगों की जान ले ली - एक तरफ लोगों को एंबुलेंस से अस्पताल पहुंचाया जा रहा था, दूसरी तरफ सत्ता पक्ष और विपक्ष अपने अपने तर्कों के साथ दूसरे को जिम्मेदार ठहराने में कोई कसर बाकी नहीं रखा.
NRC लागू करने और नागरिकता संशोधन कानून पर भी तकरीबन वही हाल है, या कह सके हैं उससे बढ़ कर ही है. केंद्र में सत्ताधारी लेकिन दिल्ली में चार विधायकों के साथ विपक्षी बीजेपी ने हिंसा भड़काने के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूछते हैं, 'हिंसा में आम आदमी पार्टी का नाम लाने की कोशिश की गई थी, लेकिन AAP ऐसा क्यों करेगी? हमारी पार्टी को किस तरह फायदा होगा?'
आप और कांग्रेस नेता BJP पर सांप्रदायिकता फैला कर वोट हासिल करने का आरोप लगा रहे हैं. केजरीवाल के साथियों का कहना है कि चूंकि आप की सरकार का काम अच्छा है, इसलिए बीजेपी हिंसा को हिंदू-मुस्लिम का रंग देकर चुनावों में फायदा उठाने की कोशिश कर रही है.
2. Congress के लिए तो मौका ही मौका है
तीन तलाक और धारा 370 से लेकर नागरिकता संशोधन विधेयक तक, कांग्रेस को कदम कदम पर मुंह की खानी पड़ी है. लोक सभा में तो बीजेपी और उसके साथियों के पास बहुमत है, लेकिन राज्य सभा में? फिर भी राज्य सभा में ऐसा लगने लगा है कि लोक सभा से भी आसानी से सब कुछ हो जा रहा है - ऐसे में कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष के पास सरकार को घेरने का मौका ही नहीं मिल रहा था.
कांग्रेस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ की, लेकिन राहुल गांधी ने वीर सावरकर पर बयान देकर सब चौपट कर लिया. रेप के मामलों को लेकर बचाव की मुद्रा में आ चुकी बीजेपी ने संसद सत्र के आखिरी दिन राहुल गांधी को तो घेरा ही, अगले दिन से ही शिवसेना भी सावरकर के बहाने नसीहत देने लगी.
नागरिकता कानून के विरोध में उपजे हालात के मद्देनजर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कमान संभाली. सोनिया गांधी ने कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद के अलावा समाजवादी पार्टी नेता राम गोपाल यादव, लेफ्ट नेताओं सीताराम येचुरी और डी. राजा के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात कर मोदी सरकार के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी है.
CAA के कारण विपक्ष को एकजुट होने का मौका भी मिल गया...
राष्ट्रपति से मिलने के सोनिया गांधी ने कहा कि नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों और दिल्ली में हालात तनावपूर्ण हैं और हमने राष्ट्रपति से मामले में दखल देने को कहा है. सोनिया गांधी ने मोदी सरकार पर जनता की आवाज दबाने का भी आरोप लगाया.
ममता बनर्जी के साथी नेता टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने बताया कि राष्ट्रपति से अनुरोध किया गया है कि वो सरकार को फौरन नागरिकता संशोधिन कानून वापस लेने की सलाह दें.
सोनिया गांधी को फिर से ये मौका मिल गया कि वो विपक्ष के नेताओं एक साथ खड़ा कर सकें. ये NRC और CAA के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन ही हैं कि कांग्रेस को बोलने का मौका मिल गया है - मोदी सरकार ने पहले कश्मीर, फिर नॉर्थ ईस्ट और अब पूरे देश को मुश्किल में डाल दिया है.
3. Shiv Sena को तो शुद्ध लाभ हो रहा है
शिवसेना ने अब तक कभी भी नागरिकता कानून का विरोध नहीं किया है. लोक सभा में तो सपोर्ट ही किया था, राज्य सभा में बहिष्कार कर समर्थन दे दिया. कांग्रेस को खामोश कराने के लिए तो राहुल गांधी सावरकर पर बयान दे ही दिया था - बाकी तो बयानबाजी और सामना में संपादकीय से ही शिवसेना का पूरा काम चल जाता है.
बीजेपी के खिलाफ बोलने के लिए शिवसेना को कुछ मसाला चाहिये होता है, जामिया हिंसा ने दे दिया. उद्धव ठाकरे को बयान देने के लिए मुद्दा सही लगा, 'जामिया में जो हुआ, वो जलियांवाला बाग जैसा है... '
लगे हाथ एक-दो तीर और छोड़ दिये. उद्धव ठाकरे ने आरोप लगाया, 'देश में अराजकता पैदा करने की कोशिश की जा रही है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि वो दिल्ली में क्या करना चाहते हैं. देश के लोगों को तनाव और भय के माहौल में डाला जा रहा है.'
महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस को भी एक मौका मिल गया, 'मुख्यमंत्री उद्धव जी ठाकरे द्वारा जामिया विश्वविद्यालय की घटना को जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसा बताना उन सभी शहीदों का अपमान है, जिन्होंने देश के लिए जीवन बलिदान कर दिये.'
Equating Jamia University incident with Jallianwala bagh massacre by CM Uddhav ji Thackeray is big big insult to all the martyrs who have sacrificed their life for our Nation.
Entire Nation & Maharashtra wants to know if Uddhav ji agrees with these slogans? pic.twitter.com/qFZ823AGLC
— Devendra Fadnavis (@Dev_Fadnavis) December 17, 2019
4. नीतीश कुमार नयी जमीन तैयार करने में जुटे हैं
प्रशांत किशोर ने तो बताया ही था कि नीतीश कुमार ने बिहार में NRC लागू नहीं करने का भरोसा दिलाया है. ये उसी मुलाकात के बाद की बात है जब चर्चा रही कि प्रशांत किशोर ने जेडीयू नेता के सामने इस्तीफे की पेशकश की थी.
दो जेडीयू विधायकों - नौशाद आलम और मुजाहिद आलम ने धमकी दी थी कि अगर बिहार में NRC लागू होता है तो वे पार्टी और विधानसभा दोनों से इस्तीफा दे देंगे - अब ये दोनों विधायक दावा कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें आश्वासन दिया है कि राज्य में किसी भी कीमत पर एनआरसी को लागू नहीं होन दिया जाएगा.
नीतीश कुमार को बाद में भले ही फायदा हो न हो, अभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर हमले का मौका मिल ही रहा है. ये भी कम है क्या?
5. ममता बनर्जी के लिए इससे अच्छा क्या होता
ममता बनर्जी तो वैसे भी मोदी-शाह पर हमले का मौका खोज ही लेती हैं. NRC नहीं लागू करने की घोषणा तो ममता बनर्जी ने पहले से ही कर रखी है, अब नागरिकता संशोधन कानून भी विरोध की उसी मुहिम का हिस्सा बन गया है. NRC के बाद CAA को लेकर भी वो मोदी सरकार को चैलेंज कर रही हैं, वो पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देंगी भले ही उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया जाये.
एक रैली में ममता कह रही थीं, "अगर वो इसे लागू करेंगे तो ये सब मेरी लाश पर होगा...'
ममता बनर्जी का दावा है कि पश्चिम बंगाल में 30 लोगों ने NRC के डर से आत्महत्या कर ली है. पूछती हैं, 'इसकी जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा?'
6. असम के छात्रनेताओं के लिए तो भाग्य से छींका टूटने जैसा
NRC की तरह ही नागरिकता संशोधन कानून के सड़क पर विरोध की आवाज भी असम से ही उठी थी - और धीरे धीरे ये असमिया अस्मिता की लड़ाई बनने लगा है.
असम की राजनीति में छात्रनेताओं का पहले से ही दबदबा रहा है. मौजूदा मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनवाल भी छात्र राजनीति से ही मुख्यधारा की राजनीति में आये हैं. असम की राजनीति में पहले भी ऐसे कई मौके आये हैं जब छात्रों के संगठन सूबे के लोगों की अगुवाई करते देखे गये हैं. छात्र आगे आगे और जनता पीछे पीछे 'जय अखोम' के नारे लगाती फिर रही है.
7. कन्हैया कुमार भी मैदान में उतर आये हैं
कन्हैया कुमार कह रहे हैं कि छात्र भी देश के जिम्मेदार नागरिक हैं और वे आगे भी जिम्मेदार नागरिक बनना चाहते हैं. जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार आम चुनाव में बेगूसराय से CPI के उम्मीदवार थे.
कन्हैया कुमार कहते हैं, 'जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य होता है कि जब देश के संविधान पर हमला हो रहा हो. देश को तोड़ने वाले कानून बनाए जा रहे हों तो ना सिर्फ छात्रों बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य होना चाहिए कि वो इसको लेकर प्रदर्शन करे - हर किसी को इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन करना चाहिये.'
जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों पर हुई पुलिस कार्रवाई के विरोध में गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के छात्रों भी प्रदर्शन कर चुके हैं. 'एनआरसी रोल बैक' के नारे लगाते हुए ये छात्र संविधान पढ़कर विरोध जता रहे थे.
दिल्ली की ही तरह इलाहाबाद में भी यूनिवर्सिटी के छात्रों ने सड़कों पर प्रदर्शन कर NRC और नागरिकता कानून के प्रति विरोध प्रकट किया. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के छात्र भी नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के खिलाफ विरोध जता चुके हैं. मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने पर हुए आंदोलन में देश भर में छात्र ही आगे नजर आये थे. असम की बात अलग है, लेकिन पूरे देश में ऐसा कम ही होता है.
असम और जामिया से AMU और देश के दूसरे हिस्सों में फैलता ये आंदोलन छात्र राजनीति को आगे बढ़ने के लिए मददगार तो बन रहा है - लेकिन सवाल ये भी है कि नागरिकता जैसे मसले को लेकर छात्र क्यों आंदोलन कर रहे हैं - अव्वल तो ये होना चाहिये कि छात्र फीस को लेकर चाहे जितना भी आंदोलन करते लेकिन बाकी वक्त पढ़ाई पर ध्यान देते - ये सब करने के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है
मुश्किल ये है कि जो इन छात्रों को समझा सकता है - उसे भी तो अपनी राजनीति चमकाने के लिए ये रास्ता आसान लग रहा है.
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