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Updated: 19 दिसम्बर, 2019 07:48 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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CAA protest news update ये है कि देशभर में नागरिकता संशोधन एक्ट (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन जारी है. आक्रोश से उपजी आग ने दिल्ली और संभल (CAA Protest in Delhi Lucknow Sambhal) को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. उपद्रव सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में है जहां प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई (CAA protest Lucknow violence) और आगजनी-पत्थरबाजी की घटनाओं को अंजाम दिया गया. बद से बदतर हालात को काबू करने के लिए पुलिस ने भी आंसू गैस के गोले चलाए और लाठीचार्ज किया. वहीं बात अगर संभल की हो तो संभल में भड़की हिंसा के चलते प्रदर्शन में शामिल अराजक तत्वों ने यूपी रोडवेज की 4 बसों को आग के हवाले कर दिया है. ध्यान रहे कि लेफ्ट पार्टियों ने भारत बंद का आह्वान किया था. प्रदर्शन उग्र रूप न ले इसके लिए देश के कई हिस्सों में धारा 144 लगाई गई है. बात उत्तर प्रदेश की हो तो यहां डीजीपी पहले ही इस बात को कह चुके थे कि लोग शांति बनाए रखें और किसी भी तरह की अफवाह से सावधान रहें.

नागरिकता संशोधन कानून, विरोध, लखनऊ, हिंसा, संभाल, CAA     नागरिकता संशोधन के विरोध में विध्वसं अब अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गया है

क्या लखनऊ क्या संभल. नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में पूरा उत्तर प्रदेश जल रहा है. तो आइये कुछ बिन्दुओं के जरिये ये समझने का प्रयास करें कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो विरोध उस स्तर पर पहुंच गया जहां प्रदर्शन के नाम पर उपद्रव मचाते लोगों ने नियमों को ताख पर रखकर विध्वंस को अंजाम दिया.

समस्‍या कहां है?

चाहे लखनऊ क्या संभल और दिल्ली नागरिकता संशोधन एक्ट के नाम पर जहां कहीं भी प्रदर्शन हो रहा है अगर इस पर गौर किया जाए तो जो सबसे पहली बात निकल कर सामने आ रही है वो ये कि प्रदर्शन में शामिल लोगों की एक बड़ी संख्या को ये तक नहीं पता है जिस मुद्दे के लिए ये प्रदर्शन कर रहे हैं वो मुद्दा असल में है क्या? वो मुद्दा है भी या बस ये सब यूं ही देश का महौल ख़राब करने और अराजकता फैलाने के लिए हो रहा है.

इसके बाद बात है हिंसा की. जामिया, अलीगढ़, सीलमपुर, संभल और अब लखनऊ नागरिकता संशोधन एक्ट के विरोध में जहां जहां प्रदर्शन ने उग्र रूप लिया और नौबत हिंसा पर आई.

अगर हम हिंसा का जायजा लें तो इन गतिविधियों के बारे में जानकारी न तो सुरक्षा तंत्र के पास है और न ही प्रदर्शनकारी इस बात से वाकिफ हैं कि उनके बीच में वो लोग कौन है जो अराजकता पर उतर रहे हैं और हालात को उस जगह लाकर छोड़ रहे हैं जहां हमारे सामने केवल और केवल विध्वसं की तस्वीरें हैं.

विरोधी दो हिस्‍सा में:

बात अगर नागरिकता संशोधन एक्ट के नाम पर विरोध की चल रही है तो इस प्रदर्शन में जो सबसे बड़ी कमी है वो ये कि इसकी एक बड़ी वजह अफवाह है. मामले को लेकर अफवाह फैलाई जा रही है जो भीड़ को अराजक कर दे रही है. बात अगर इस विरोध की हो तो ये विरोध दो हिस्सों में विभाजित है. प्रदर्शन के इस एक हिस्से में बुद्धिजीवी, नेता, सांस्कृतिक कर्मी हैं तो वहीं दूसरे हिस्से में हुड़दंगी हैं जो अपनी गतिविधियों से लगातार हालात ख़राब कर रहे हैं.

छात्र, बुद्धिजीवी और नेता- बात अगर इन लोगों की हो तो देश में दिल्ली से लेकर लखनऊ तक कोई भी हिस्सा हो इन लोगों की एक बड़ी भूमिका है. ये लोग आम लोगों को लगातार इस बात का एहसास करा रहे हैं कि इस कानून के बाद मुल्क को खतरा है. अफवाह फैलाने में इन लोगों की एक बड़ी भूमिका है. ये लोग अपनी बातों से या फिर अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल के जरिये उन लोगों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं जिन्हें मुद्दे से नहीं बल्कि विरोध से मतलब है.

हुड़दंगी, ये इलाके वार फैले हुए हैं - इंटेलेक्‍चुअल, वकील, नेता द्वारा कही बातों का असर जिनपर हो रहा है वो ऐसे हुड़दंगी लोग हैं जो हिंसा में शामिल हैं और जिन्हें केवल विध्वसं और माहौल ख़राब करने से मतलब है. ऐसे लोगों की खासियत ये है कि ये इलाके वार फैले हुए हैं.

बुद्धिजीवियों की बातों का सीधा असर इनपर हो रहा है. साथ ही ये लोग भी पूरी तरह इस बात को मान चुके हैं कि नागरिकता संशोधन एक्ट का सीधा खतरा इन लोगों को है और इन्हें किसी भी क्षण देश से निकाला जा सकता है. डिटेंशन सेंटर्स में डाला जा सकता है.

कोई लीडरशिप नहीं

नागरिकता संशोधन एक्ट के नाम पर जहां जहां भी आंदोलन हुआ या फिर वो शहर जो आंदोलन की इस आग में जल रहे हैं अगर उनका अवलोकन किया जाए तो जो सबसे दिलचस्प चीज निकल कर सामने आ रही है वो ये है कि इस पूरे आंदोलन में कहीं भी कोई लीडरशिप नहीं है.

चाहे जामिया मिलिया इस्लामिया का आंदोलन रहा हो या फिर सीलमपुर, संभल और लखनऊ का आंदोलन हो पूरा विध्वसं और कानून का मखौल साफ़ तौर से इस बात की पुष्टि कर रहा है कि बिना लीडरशिप के ये पूरा आंदोलन उग्र भीड़ से ज्यादा कुछ नहीं है.

आंदोलन के नाम पर फैली इस अराजकता को देखकर हमारे लिए ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि ये आंदोलन तब तक उपद्रव कहलाएगा जब तक इसे नेता नहीं मिल जाते. नेता ही वो लोग हैं जो इसे पटरी पर ला सकते हैं.

किससे बात करें

इस पूरे आंदोलन में ये भी एक दिलचस्प पक्ष है कि अगर इसे लेकर कोई बात करी जाए तो वो किस्से हो? मामले की सही जानकारी न तो पुलिस-प्रशासन के पास है और न ही वो लोग इस बारे में कुछ बता पा रहे हैं जो इस आंदोलन में शामिल हैं. मामले को लेकर तब तक कोई समाधान नहीं निकल सकता जब तक बात करने वाले लोग सामने न आ जाएं.

कोई इंटेलिजेंस काम कर ही नहीं सकता

बात सिर्फ लखनऊ की नहीं है मुद्दा आंदोलन की आग में जलता हुआ पूरा देश है. आज हुई हिंसा को लेकर भले ही देश के अलग अलग हिस्सों में धारा 144 लगाई गई हो मगर जब हम बवाल पर नजर डालें तो मिलता है कि नागरिकता संशोधन एक्ट के नाम पर वर्तमान में जो कुछ भी हुआ उसमें इंटेलिजेंस से एक बड़ी चूक हुई है.

चूंकि घटना को अंजाम देने के लिए छोटे छोटे समूह में आकर लोग भीड़ में तब्दील हो रहे हैं. इसलिए सूचना तंत्र के लिए भी मुखबिरी एक टेढ़ी खीर साबित हो रही है. विरोध के नाम पर देशभर में जो तांडव हुआ है उसके बाद ये कहना कहीं से भी गलत नहीं है कि जब हालात ऐसे हों कोई इंटेलिजेंस काम कर ही नहीं सकता.

गनीमत है कि यह मामला फिलहाल हुड़दंगियों और पुलिस के बीच है

बहरहाल अराजकता का सबसे घिनौना रूप हम नागरिकता संशोधन एक्ट के नाम पर हम सड़कों पर देख चुके हैं. साथ ही हमने ये भी देखा है कि कैसे हालात लगातार बेकाबू हो रहे हैं. हमें इस बात का शुक्र मानना चाहिए कि फिलहाल ये संघर्ष हुड़दंगियों और पुलिस के बीच है. जैसे हालत हैं और जैसा तांडव नागरिकता संशोधन एक्ट के नाम पर एक वर्ग विशेष द्वारा मचाया जा रहा है खुद इस बात की पुष्टि हो जाती है कि वो दिन दूर नहीं है जब ये संघर्ष धार्मिक रूप ले ले और बात धर्म आधारित दंगों पर आ जाए. स्थिति तब क्या होगी पुलिस प्रशासन के अलावा आम लोगों तक को किन किन चुनौतियों का सामना कर पड़ सकता है एक बात के लिए खुद कल्पना करके देखिये.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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