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Updated: 27 जून, 2016 07:42 PM
रीमा पाराशर
रीमा पाराशर
  @reema.parashar.315
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आजकल बीजेपी दफ्तर हो या सत्ता के गलियारे, नेताओं और अधिकारीयों के बीच चर्चा का मुद्दा है कि क्या पार्टी के वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली सरकार और पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं? राज्यसभा सांसद और जेटली विरोधी सुब्रमणियन स्वामी ने अपने बयानों से इस चर्चा को और हवा दी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जैसे ही खुलकर जेटली के समर्थन में आवाज बुलंद की और स्वामी का नाम लिए बिना कहा कि "कोई भी व्यवस्था से बड़ा नहीं और पब्लिसिटी के लिए ऐसा करने वाले देश का भला नहीं करते", बीजेपी नेताओ को अपनी ही पार्टी के बचाव का मौका मिल गया.

इस पूरे घटनाक्रम ने एक नया सवाल उठाया है कि आखिर क्यों स्वामी मामले में खुद प्रधानमंत्री को जेटली के बचाव में उतरना पड़ा? आखिर क्यों पार्टी अध्यक्ष अमित शाह या पार्टी पदाधिकारियों ने स्वामी के बयानों पर चुप्पी साधे रखी? क्या वाकई स्वामी को पार्टी में शीर्ष नेताओ का सहारा है जिनके इशारे पर वो सीधे जेटली पर निशाना साध रहे हैं?

इन सवालो के जवाब न तो पार्टी देना चाहती है और न ही खुद जेटली. लेकिन स्वामी के कारनामे पर जेटली की नाराजगी इस कदर बढ़ चुकी है कि अपने चीन दौरे से खुद जेटली ने शीर्ष नेतृत्व को फ़ोन पर अपना गुस्सा जता दिया. शायद गुस्से का असर भी हुआ क्योंकि उसके बाद पार्टी ने मुम्बई में आपातकाल पर होने वाले उस कार्यक्रम को रद्द कर दिया जिसमे सुब्रमण्यम स्वामी खास स्पीकर थे.

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अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी

दरअसल अरुण जेटली की नाराज़गी इस बात को लेकर है कि क्यों पार्टी ने अब तक आधिकारिक तौर पर स्वामी के बयानों पर कोई कार्रवाई नहीं की है. खासकर पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और संघ नेता कृष्ण गोपाल से मुलाक़ात के फौरन बाद स्वामी का जेटली विरोधी ट्वीट्स करना क्या ये संकेत देने की कोशिश है कि पार्टी जेटली के नहीं बल्कि स्वामी के साथ खड़ी है.

इस पूरे मामले पर मंगलवार को जेटली प्रधानमंत्री से भी मुलाकात करेंगे. लेकिन उस बैठक से पहले मोदी ने स्वामी पर कठोर बयान देकर जेटली के गुस्से को तो शांत करने का काम किया है लेकिन ये चर्चा अभी भी जारी है कि पार्टी में स्वामी के नाम पर शुरू हुई खेमेबाजी आखिर किस दिशा में जायेगी.

बीजेपी के एक वरिष्ठ केंद्रीय पदाधिकारी ने पूरे मामले पर सफाई कुछ इस अंदाज़ में दी है “पार्टी में ऐसे संवेदनशील मामले पर जिसमें एक नेता किसी बड़े नेता पर बयानबाज़ी करे, बयान देने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष को होता है. अगर वो चुप हैं तो किसी प्रवक्ता का बोलना या ना बोलना मायने नहीं रखता ."

पार्टी में जेटली के करीबी भी यही सवाल उठा रहे हैं की आखिर अनुशासन और संयम की दुहाई देने वाली पार्टी के अध्यक्ष इस मामले पर चुप क्यों हैं. इतना ही नहीं संघ और दो वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों ने भी स्वामी से मुलाकात तो की लेकिन चुप रहने की नसीहत क्यों नहीं दी. सूत्रों की माने तो इन्हीं बातो ने जेटली को सबसे ज़्यादा चोट पहुंचाई और आखिरकार मरहम लगाने के लिए मोदी को खुद सामने आना पड़ा.

लेकिन इस सबके बाद भी बीजेपी का इतिहास ये गवाही देने के लिए काफी है कि पार्टी में स्वामी बनाम जेटली का जो अध्याय शुरू हुआ है उसका क्लाइमेक्स लिखा जाना अभी बाकी है.

लेखक

रीमा पाराशर रीमा पाराशर @reema.parashar.315

लेखिका आज तक में पत्रकार हैं.

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