राहुल गांधी की दुविधा: अमेठी की सीट बचाएं या देश में कांग्रेस की जमीन
अमेठी का मिजाज देश के बाकी हिस्सों से अलग रहा है. लेकिन 2014 के मुकाबले देखें तो 2019 की परिस्थितियां भी अलग है. पिछले पांच साल में स्मृति ईरानी ने कांग्रेस की इस परंपरागत सीट में अपने लिए अच्छी खासी जगह बना ली है.
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सुप्रीम कोर्ट से मुंह की खाने के बाद राहुल गांधी का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'राफेल-हमला' अब कागज के हवाई-जहाज की तरह बचकाना साबित हो रहा है. मोदी सरकार की ओर से अरुण जेटली और निर्मला सीतारमन राहुल के हमलों को नाकाम कर रहे हैं, तो उधर स्मृति ईरानी ने राहुल के गढ़ अमेठी पर चढ़ाई कर दी है. दो हफ्ते के भीतर स्मृति ईरानी ने अमेठी पर दूसरी बार धावा बोला है.
राहुल की गैरमौजूदगी में स्मृति ईरानी का अमेठी पर धावा
2014 के बाद पहली बार राहुल गांधी और स्मृति ईरानी एक ही वक्त अमेठी में मौजूद रहने वाले थे. स्मृति ईरानी तो तय कार्यक्रम के मुताबिक अमेठी पहुंच भी गयीं.
पहले तो राहुल गांधी ने अपने कार्यक्रम में तब्दीली की लेकिन बाद में अमेठी से ही खबर आई कि राहुल गांधी का दो दिन का दौरा रद्द हो गया है - और नयी तारीख बाद में बतायी जाएगी. राहुल गांधी ने संसद में चल रही राफेल पर बहस के चलते शाम को अमेठी जाने का फैसला किया था. जब ये खबर पहुंची तो तंज कसते हुए स्मृति ईरानी ने कहा कि अंधेरे में आ रहे, आप ही निष्कर्ष निकालिए.
राहुल गांधी का दो दिन का कार्यक्रम था जिसमें पहले दिन गौरीगंज के कलेक्ट्रेट में अधिवक्ता सभागार का उद्घाटन करने के साथ ही बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को शपथ भी दिलानी थी. तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद राहुल गांधी पहली बार अमेठी पहुंचने वाले थे. जोश से भरपूर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी राहुल गांधी के स्वागत की खास तैयारियां की थी. जाहिर है दौरा रद्द होने से कार्यकर्ता निराश हुए होंगे.
राफेल में उलझे राहुल के पास फिलहाल अमेठी के लिए वक्त नहीं.
राहुल गांधी को टारगेट करते हुए स्मृति ईरानी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के बयान पर भी जोरदार हमला बोला. स्मृति ने कहा, "राहुल गांधी तब चुप क्यों थे जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री यूपी और बिहार के लोगों के खिलाफ बयान दे रहे थे. अमेठी के लोगों से वो कैसे आंख मिला पाएंगे?"
2019 का अमेठी चैलेंज मुश्किल है राहुल के लिए
स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को पोस्टर का प्रधानमंत्री बताया. स्मृति ईरानी ने इसके लिए दलील दी कि राहुल गांधी को महागठबंधन में न तो मायावती, न अखिलेश यादव और न ही ममता बनर्जी का सपोर्ट हासिल है. स्मृति बोलीं, "अगर खुद ख्वाब देखना चाहें तो मुंगेरी लाल के सपने देखने से किसने मना किया है?"
स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे और उनके जनेऊधारी होने को लेकर भी घेरा. स्मृति ईरानी ने कहा कि राहुल गांधी के लिए धर्म तब एजेंडा बनता है, जब उनके सिर पर चुनाव हावी होता है.
राहुल गांधी के अमेठी आने-जाने को लेकर भी स्मृति ईरानी ने कमेंट किया - '2014 में हमने अमेठी की जनता को आश्वस्त किया था कि राहुल गांधी ईद का चांद हैं. पांच साल में एक बार अमेठी आते हैं... हमने जनता के सम्मुख प्रतिज्ञा की थी कि बार-बार राहुल गांधी के दर्शन कराएंगे... मुझे खुशी है कि 2019 के आगाज में दर्शन देने पर विवश हुए हैं अमेठी की जनता को.'
पांच साल बाद वो बात नहीं रही...
बीजेपी अमेठी को लेकर जो भी रणनीति अपनाये, लेकिन 2014 और 2019 की स्थिति में बहुत ज्यादा फर्क है. पिछली बार एन वक्त पर राहुल के खिलाफ अमेठी में उतारी गईं स्मृति ईरानी ने कांग्रेस की जीत को एक लाख से कम वोटों के अंतर पर ला दिया था. हालांकि, इसमें एक बड़ा योगदान कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर ने भी निभाया था. जब यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार को लेकर लोगों में काफी ज्यादा गुस्सा रहा.
अब सवाल ये है कि क्या 2019 में स्मृति ईरानी अमेठी में राहुल को 2014 जैसी चुनौती दे पाएंगी?
When PM @narendramodi ji recognises efforts and hard work of foot soldiers from Amethi.
अमेठी है तैयार, फिर एक बार मोदी सरकार#ModiOnceMore. pic.twitter.com/xfnaZ7e3qL
— Smriti Z Irani (@smritiirani) January 4, 2019
क्या अब भी अमेठी के लोग कांग्रेस के नाम पर वोट देंगे?
राहुल गांधी के चाचा संजय गांधी अमेठी से 1980 में चुनाव जीते थे. उसके बाद राजीव गांधी, सोनिया गांधी और 2004 से लगातार राहुल गांधी इस सीट की नुमाइंदगी करते आ रहे हैं. 1998 में बीजेपी के टिकट पर संजय सिंह जरूर चुनाव जीते थे जिसे छोड़ दें तो अमेठी के लोग कांग्रेस के साथ खड़े रहे हैं. लेकिन, 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद सीन काफी बदला है:
1. अब तक अमेठी के लोग जिस कांग्रेसी सांसद को चुनकर भेजते थे, वह या तो प्रधानमंत्री होता था या फिर सत्ता का सबसे विश्वस्त. 2014 के चुनाव में अमेठी ने परंपरागत रूप से कांग्रेस को वोट देकर राहुल गांधी को चुना. लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस अपनी ऐतिहासिक दुर्गति को प्राप्त हुई.
2. 2014 के बाद अलग-अलग विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार होती चली गई, और पार्टी नेतृत्व के रूप में राहुल गांधी पनौती साबित होने लगे. हर हार के बाद स्मृति ईरानी ने अमेठी जाकर राहुल को कोसा, और मतदाताओं के बीच भाजपा का भरोसा बढ़ाया.
3. लगातार चुनावी विफलताओं के चलते अवसाद में रहे राहुल गांधी ने अमेठी का दौरा कम ही किया. जबकि अमेठी से चुनाव हार जाने के बावजूद केंद्र में मंत्री रहीं स्मृिति ईरानी ने यहां संपर्क बनाए रखा.
4. 2014 में सूबे में सरकार अखिलेश यादव की थी, जबकि इस बार बीजेपी की है. राहुल गांधी को सिर्फ स्मृति ईरानी और बीजेपी से नहीं, योगी आदित्यनाथ से भी निपटना होगा.
5. कांग्रेस की परंपरागत सीट रही अमेठी तीन चुनाव में राहुल गांधी के लिए आसान ही रही. लेकिन, पिछले पांच साल में कांग्रेस के संगठन को बाकी जगहों की तरह अमेठी में भी नुकसान हुआ है. ऐसे में राहुल गांधी के सामने दुविधा ये होगी कि वे अपनी अमेठी की सीट बचाएं या देश में मोदी के खिलाफ प्रचार करें.
6. 2014 में कांग्रेस निश्चिंत होकर अपने दम पर चुनाव लड़ी थी. जबकि 2019 में वह सपा-बसपा के साथ गठबंधन के लिए एक पैर पर खड़ी होकर इंतजार कर रही है. जबकि दूसरी ओर मध्यप्रदेश चुनाव में गठबंधन को लेकर कांग्रेस से टका सा जवाब पाने वाली सपा-बसपा अब यूपी में कांग्रेस को कोई सीट देने के लिए तैयार नहीं है.
7. यदि कांग्रेस को यूपी में महा-गठबंधन में जगह मिलती है, तो राहुल गांधी को थोड़ा फायदा जरूर होगा. लेकिन इस बार उनका मुकाबला उस बीजेपी और स्मृति ईरानी से होगा, जिसने यहां जड़ें जमाने के लिए पांच साल में जमीन-अासमान एक कर दिए हैं.
8. 2014 तक जिस अमेठी में सिवाए कांग्रेस के किसी पार्टी की गंभीर सियासत नहीं होती थी, उसे बीजेपी ने इस बार प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. और पिछले चुनाव की हार के बाद से ही स्मृिति ईरानी को 2019 चुनाव का उम्मीदवार घोषित कर दिया था.
बनारस की तरह अमेठी भी बन सकती है भाजपा की लाड़ली सीट
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायबरेली में एक पब्लिक मीटिंग को संबोधित कर रहे थे. रेल कारखाने बनाने का वादा किया. हो सकता है जल्द ही रायबरेली की तरह मोदी एक बार अमेठी के दौरे पर भी जायें - और वैसे ही लंबे चौड़े लोक लुभावन वादों का पिटारा खोल दें. 175 किमी दूर वाराणसी में हो रहे विकास की कुछ खबरें तो बीजेपी अमेठी में भी पहुंचाती ही होगी. तो इन बातों को लेकर क्या अमेठी के लोगों पर भाजपा का जादू नहीं चलेगा?
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