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Updated: 23 अक्टूबर, 2016 07:06 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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करन जौहर की फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ को रिलीज न होने देने की धमकी देने वाले मनसे सुप्रीमो राज ठाकरे ने अब एक नई पलटी ली है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से करन जौहर और राज ठाकरे आदि के मुलाक़ात के बाद सामने आया है कि कुछ शर्तों के साथ राज ठाकरे ने फिल्म को रिलीज होने देने पर सहमति जता दी है. इन शर्तों में प्रमुख ये है कि करन जौहर को सेना के वेलफेयर फंड में पांच करोड़ रूपए जमा कराने की बात कही है और करण जौहर इसके लिए राजी भी हो गए हैं. ये बात किसीको हज़म नहीं हो रही. उन्हें भी नहीं जिन्होंने अब तक राज ठाकरे के स्टैंड का समर्थन किया था. लोग समझ नहीं पा रहे कि ये क्या डील हुई है ?

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लोग समझना यह भी चाहते हैं कि ये पैसे किस प्रक्रिया के तहत सेना को जाएंगे और क्यों ? कहीं ऐसा तो नहीं कि सेना के नाम पर राज ठाकरे ने अपनी उस देशभक्ति जिसकी ललकार लगाते हुए वे पाकिस्तानी कलाकारों की फिल्म को रोकने की गर्जना कर रहे थे, को गिरवी रख दिया है ? यह हरकत तो एक तरह से देशभक्ति की  आड़ हप्ता वसूली वाली हो गई. बहरहाल, अनेकों लोग ये मानने वाले मिल जाएंगे कि राज ठाकरे ने तेवर तो बाला साहेब वाले ही पाए हैं, पर क्या सिर्फ तेवर भर से बाल ठाकरे हुआ जा सकता है ?

बाल ठाकरे होने का मतलब

मशहूर कार्टूनिस्ट आर. के. लक्ष्मण के साथ एक अंग्रेजी दैनिक में बतौर कार्टूनिस्ट काम करने वाले बाल ठाकरे ने सन 1960 में स्वयं का एक साप्ताहिक कार्टून पत्र ‘मार्मिक’ निकाला, जिसने महाराष्ट्र के जनमानस के बीच उनकी पैठ को मजबूत करने का काम किया. फिर 1966 में उन्होंने शिवसेना की स्थापना की और शुरूआती दौर में अनेक असफलताओं के बावजूद अपनी स्थापित विचारधारा के प्रति पूरी निष्ठा से बढ़ते रहे. बाल ठाकरे के लिए सत्ता का कोई महत्व नहीं था, लेकिन बिना सत्ता के ही वे महाराष्ट्र पर शासन करते थे.

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 उद्धव ठाकरे, बाल ठाकरे और राज ठाकरे: फाइल फोटो

सन 95 में जब भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनी तो भी उन्होंने सीएम की कुर्सी नहीं ली. बल्कि कहते थे कि मै रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाता हूँ. ये सही भी है. क्योंकि, उनका एक इशारा मायानगरी की ज़िन्दगी को थामने के लिए काफी था. सत्ता के लिए किसी तरह का समझौता भी उन्हें कत्तई स्वीकार नहीं था. हालांकि सरकार में कोई भी दल हो, महाराष्ट्र में हुकूमत बाला साहेब की चलती थी. आज उन्हीके अंदाज में चिंग्घाड़ने वाले राज ठाकरे में क्या इनमें से एक भी विशेषता दिखती है ? क्या राज ठाकरे भी समझौता न करने के कारण सत्ता का त्याग कर सकते हैं?   

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बाला साहेब के अपने कुछ सिद्धांत थे, जिनके प्रति वे घोर निष्ठावान रहते थे. वे बिहारियों का विरोध करते थे और इसके लिए आलोचना भी झेलते थे, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ़ करने में उन्हें कभी कोई झिझक नहीं हुई. ऐसे ही, एकबार वैलेंटाइन पर कुछ शिवसैनिकों ने एक महिला पर हाथ उठा दिया था, तो इसके लिए बाला साहेब ने खुद माफ़ी मांगीं थी. क्या महाराष्ट्र में आए दिन गरीब-कमजोर, महिला-बच्चे-बूढ़े बिना किसीको भी देख मारपीट मचाने वाले मनसे कार्यकर्ताओं के अपराध के लिए राज ठाकरे को भी कभी माफ़ी मांगते किसी ने देखा है ?

दरअसल राज ठाकरे ने तल्खी और तेवर तो जरूर अपने चाचा बाल ठाकरे से सीखे, लेकिन शायद और अधिक कुछ सीखने से पहले ही ये भतीजा अपनी निरंकुश महत्वाकांक्षाओं के कारण चाचा बाला साहेब की छत्रछाया से बाहर निकल गया.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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