नवजोत सिद्धू की माफी पर अड़े कैप्टन के पास यही आखिरी विकल्प है भी
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व को पंजाब कांग्रेस में जिस 'यस मैन' की जरूरत थी, नवजोत सिंह सिद्धू के रूप में वो उसे मिल चुका है. दरअसल, अमरिंदर सिंह कई मामलो में पार्टी लाइन से अलग जाकर बयान देते रहे हैं. धारा 370 से लेकर वैक्सीनेशन तक कैप्टन का रुख कांग्रेस हित में नहीं रहा है. जिसे ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने अमरिंदर सिंह के पर कतरने का मन बना लिया था.
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पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के बीच लंबे समय से चल रही तकरार खत्म होती नहीं दिख रही है. बैठकों और मुलाकातों की एक लंबी प्रक्रिया के बाद सीएम अमरिंदर सिंह कहते नजर आए कि कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का हर फैसला मंजूर होगा. इसके बाद से ही कयास लगाए जाने लगे थे कि कैप्टन और सिद्धू के बीच कलह खात्मे की ओर बढ़ गई है.
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 से पहले शीर्ष नेतृत्व ने नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब का 'कैप्टन' बनाए जाने का फैसला कर दिया है. लेकिन, अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच अभी तक सुलह कराने में कामयाब नहीं हो सकी है. वहीं, अमरिंदर सिंह के मीडिया सलाहकार ने कैप्टन की मंशा को आधिकारिक तौर पर जाहिर करते हुए कहा है कि जब तक सिद्धू सार्वजनिक रूप से माफी नही मांगेंगे, तब तक पंजाब के मुख्यमंत्री का उनसे मिलना मुश्किल है. कहा जा रहा था कि अमरिंदर सिंह ने पंजाब प्रभारी हरीश रावत के सामने भी सिद्धू के सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने की शर्त रखी थी. अमरिंदर सिंह फिलहाल नवजोत सिंह सिद्धू की माफी पर अड़े हुए हैं. ऐसा लगता है कि कैप्टन के पास सिद्धू की माफी ही आखिरी विकल्प बचा हुआ है.
अमरिंदर सिंह की चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए कांग्रेस आलाकमान ने सि्दधू की ताजपोशी तय कर दी.
कांग्रेस आलाकमान का सिद्धू को खुला समर्थन
प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद नवजोत सिंह सिद्धू का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था. जिसे भांपते हुए सीएम अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर बाकायदा चेतावनी देते हुए कहा कि पंजाब के मामले में आलाकमान के दखल से पार्टी को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ सकता है. दरअसल, कैप्टन को मालूम था कि राहुल और प्रियंका के करीबी सिद्धू को किसी भी हाल में शीर्ष नेतृत्व का साथ मिलेगा ही. इसे देखते हुए उन्होंने अपना दांव चला था, लेकिन इसका आलाकमान पर कोई असर नहीं दिखा. अमरिंदर सिंह अपनी नाराजगी जताते रह गए और शीर्ष नेतृत्व ने फैसला सिद्धू के हक में कर दिया. इस पूरे मामले में कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी आलाकमान से विरोध जताना महंगा पड़ गया.
कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व को पंजाब कांग्रेस में जिस 'यस मैन' की जरूरत थी, नवजोत सिंह सिद्धू के रूप में वो उसे मिल चुका है. दरअसल, अमरिंदर सिंह कई मामलो में पार्टी लाइन से अलग जाकर बयान देते रहे हैं. धारा 370 से लेकर वैक्सीनेशन तक कैप्टन का रुख कांग्रेस हित में नहीं रहा है. जिसे ध्यान में रखते हुए कांग्रेस आलाकमान ने अमरिंदर सिंह के पर कतरने का मन बना लिया था. मल्लिकार्जुन खडगे के नेतृत्व वाली समिति ने भी कैप्टन को उनको इस अड़ियल रवैये के खिलाफ आलाकमान की नाराजगी से अवगत करा दिया था. लेकिन, इसके बाद भी अमरिंदर सिंह खुद को पंजाब कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता मानने के मुगालते में रहे. उनको लग रहा था कि कांग्रेस आलाकमान इस दबाव के आगे झुक जाएगा.
कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तीर से दो शिकार किए. शीर्ष नेतृत्व के इस फैसले से पंजाब कांग्रेस में कैप्टन की पकड़ तो कमजोर हुई ही है. साथ ही एक संदेश ये भी दे दिया कि अमरिंदर सिंह कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की सहमति की वजह से ही मुख्यमंत्री पद पर हैं. और, आगे भी प्रदेश को लेकर किए गए फैसलों में कैप्टन की मंजूरी जरूरी नहीं रहेगी. दरअसल, अमरिंदर सिंह लगातार कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के फैसले को मानने की बात कर रहे थे. लेकिन, पिछले दरवाजे से कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोशिश करते रहे.
कांग्रेस आलाकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक तीर से दो शिकार किए हैं.
सिद्धू के शक्ति प्रदर्शन से कैप्टन हुए फुस्स
कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस आलाकमान के सामने दावा कर रहे थे कि कुछ विधायकों को छोड़कर नवजोत सिंह सिद्धू के पास समर्थन का कोई खास आदार नहीं है. लेकिन, अमृतसर में सिद्धू की कोठी पर 21 जुलाई को कांग्रेस के करीब 62 विधायकों ने हाजिरी लगाई. इन नेताओं और विधायकों के साथ नवजोत सिंह सिद्धू श्री दरबार साहिब में माथा टेकने भी पहुंचे. सिद्धू ने अपने शक्ति प्रदर्शन से अमरिंदर सिंह के तमाम दावों की हवा निकाल दी. पंजाब कांग्रेस के 83 विधायकों में से 62 का सिद्धू के पक्ष में आ खड़ा होना, अमरिंदर सिंह के दावों से ठीक उलट तस्वीर ही दिखा रहा है. इस स्थिति को देखते हुए आसानी से कहा जा सकता है कि अमरिंदर सिंह के खेमे में नजर आ रहे पार्टी के कई विधायकों को सिर्फ कांग्रेस आलाकमान के फैसले का ही इंतजार था. फैसला आते ही कैप्टन की दबाव की राजनीति हवा में धुएं की तरह उड़ गई और विधायकों की बड़ी संख्या सिद्धू के पक्ष में आ खड़ी हुई.
माफी पर भी ज्यादा जोर न दें कैप्टन
अमरिंदर सिंह की ओर से कहा गया है कि जब तक सिद्धू अपने बयानों के लिए माफी नहीं मांगेंगे, कैप्टन उनसे नही मिलेंगे. लेकिन, जैसी स्थितियां बन रही हैं, उस हिसाब से ऐसा लग रहा है कि कैप्टन को सिद्धू से माफी मांगने पर भी ज्यादा जोर नहीं देना चाहिए. इसकी एक वजह ये है कि अगर सार्वजनिक रूप से माफी मांगने का कोई मौका बनना होता, तो पंजाब प्रभारी हरीश रावत के कान में बात डालते ही हो गया होता लेकिन, अब तक नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से इस बारे में कोई भी बयान नहीं आया है. वहीं, सिद्धू के शक्ति प्रदर्शन में आए विधायक कहते नजर आ रहे हैं कि अगर माफी ही मंगवानी थी, तो कांग्रेस आलाकमान के फैसले से पहले इस विषय पर सोचना चाहिए था.
वैसे, 79 साल के कैप्टन अमरिंदर सिंह अब इस उम्र में नई पार्टी बनाने का जोखिम तो उठाएंगे नहीं. अगर वो ऐसा कोई आत्मघाती कदम उठाते हैं, तो भी कैप्टन कांग्रेस को जो नुकसान पहुंचाने वाले हैं, आलाकमान उसके लिए तैयार दिख रहा है. ऐसा न होता, तो सिद्धू की ताजपोशी का सवाल ही नहीं उठना था. वहीं, कैप्टन के साथ नजर आ रहे बाकी के 21 विधायक भी सत्ता के मोह और शीर्ष नेतृत्व के दबाव में कब पाला बदल लेंगे, इसका भरोसा नहीं है. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास सिद्धू की माफी ही आखिरी विकल्प है. लेकिन, इस माफी मांगने वाले मामले पर भी कैप्टन को अपना रुख नरम ही करना पड़ेगा.
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