फारूक अब्दुल्ला पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए
फारूक अब्दुल्ला तो बोलते ही चले जा रहे हैं. आखिर देश अभिव्यक्ति की आजादी तो सबको देता ही है. लेकिन, देश के खिलाफ बकवास की इजाजत तो नहीं देता !
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फारूक अब्दुल्ला अब तोल मोल कर नहीं बोलते. देश के किसी भी नेता से यह उम्मीद रहती है कि वह सोच-समझकर बयान देगा. लेकिन लगता है, फारूक अब्दुल्ला इस नियम को भूल से गए हैं. या फिर जानबूझकर सुनियोजित ढंग से उलटबयानी कर रहे हैं. कुछ दिन पहले फारुक अब्दुल्ला ने चेनाब घाटी में एक कार्यक्रम के दौरान घोर भारत विरोधी बातें कहीं.
फारूक अब्दुल्ला ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर भारत के दावे को लेकर कहा: “क्या यह तुम्हारे बाप का है”? उन्होंने आगे कहा- “पीओके भारत की बपौती नहीं है जिसे वह हासिल कर ले”. उन्होंने पाकिस्तान के पक्ष में बोलते हुए कहा- “नरेंद्र मोदी सरकार पाकिस्तान के कब्जे से पीओके को लेकर तो दिखाए.” फारूक अब्दुल्ला के मुताबिक पीओके हासिल करना भारत के लिए आसान नहीं है.
याद करो संसद के प्रस्ताव को
सच में कभी किसी ने नहीं सोचा होगा किसी राज्य का मुख्यमंत्री से लेकर केन्द्र में कैबिनेट मंत्री रहा एक जिम्मेदार समझा जानेवाला नेता, पीओके पर भारत के दावे को इतने हिकारत के भाव से खारिज कर दे. अब वे श्रीनगर से फिर से लोकसभा के लिए चुन लिए गए हैं. यानी वे जल्दी ही लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ लेंगे. क्या फारूक अब्दुल्ला को मालूम नहीं है कि 22 फरवरी,1994 को भारत ने पीओके पर एक एतिहासिक फैसला लिया था?
मैं फारूक अब्दुल्ला साहब को बताना चाहता हूं कि 22 फरवरी,1994 को भारत की संसद ने एक प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करके पाकिस्तान पीओके पर अपना हक जताते हुए कहा था कि पीओके सहित सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग है. “पाकिस्तान को उस भाग को छोड़ना होगा जिस पर उसने कब्जा जमाया हुआ है.” उस प्रस्ताव में कहा गया था कि “ये सदन पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकियों के शिविरों को दी जा रही ट्रेनिंग पर गंभीर चिंता जताता है कि उसकी तरफ से आतंकियों को हथियारों और धन की सप्लाई के साथ-साथ प्रशिक्षित आतंकियों को घुसपैठ करने में मदद दी जा रही है. उस महान प्रस्ताव में कहा गया था कि यह सदन भारत की जनता की ओर से घोषणा करता है-
(क) जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा. भारत के इस भाग को देश से अलग करने का हर संभव तरीके से जवाब दिया जाएगा.
(ख) भारत में इस बात की क्षमता और संकल्प है कि वह उन नापाक इरादों का मुंहतोड़ जवाब दे जो देश की एकता, प्रभुसत्ता और क्षेत्रिय अंखडता के खिलाफ हो; और मांग करता है-
(ग) पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के उन इलाकों को खाली करे जिसे उसने कब्जाया हुआ है.
(घ) भारत के आतंरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप का कठोर जवाब दिया जाएगा.”
फारूक साहब, अब आप उसी संसद के लिए फिर से निर्वाचित हुए हैं, जिसने उपर्युक्त प्रस्ताव को पारित किया था. आप पूर्व में भी इसी सदन के सदस्य भी रह चुके हैं. क्या आप उसी सदन के सदस्य के रूप में उस 22 फरवरी, 1994 को पारित प्रस्ताव को खारिज करते हैं? क्या जम्मू-कश्मीर के मसले पर जो देश की नीति है, उससे इतर आपकी कोई नीति या सोच होगी? किस मुंह से शपथ ग्रहण करेंगे आप लोकसभा में?
फिर बोलें मर्यादित भाषा
फारूख साहब, आपका यह कहना अशोभनीय और निंदनीय है कि पीओके भारत के बाप का है. मैं पूछता हूं कि क्या कश्मीर का भारत में बाकायदा विलय हुआ है. यदि यह भारत का अभिन्न अंग नहीं है तो आपके बाप का है क्या? आप से सड़क छाप भाषा के बोलने की देश ने कभी उम्मीद नहीं की थी. यह आपको क्या हो गया? जब संसद ने पीओके के देश से विलय संबंधी फैसला ले लिया तो उसके बाद बचता क्या है. सिर्फ फारूक अब्दुल्ला ने पीओके पर ही विवादित बयान नहीं दिया. वे यह भी बोल रहे हैं कि, अलगाववादियों से वार्ता नहीं करना जम्मू-कश्मीर के लिए 'घातक' है. पिछली 29 अप्रैल को नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादियों से वार्ता नहीं करने के केंद्र के निर्णय पर चिंता जताई और कहा कि राज्य के भविष्य के लिए यह नीति ‘विनाशकारी’ हो सकती है.
पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अब्दुल्ला ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय में केंद्र का यह हलफनामा कि वह अलगाववादियों से वार्ता नहीं करेगा, जम्मू-कश्मीर के भविष्य के लिए विनाशकारी है. हम इस रुख पर चिंता और दुख जताते हैं’. क्या मतलब है फारूक अब्दुल्ला के इस तरह के बयान का? वे देश विरोधी और अलगावादियों से बातचीत के पक्ष में क्यों हैं? जो तत्व कश्मीर घाटी में भारत से आजादी के नारे लगाते हैं, जो पाकिस्तान के झंडे फहराते हैं, जो सेना के जवानों पर पथराव करते हैं उनसे देश क्यों बात करे? फारूक साहब मत भूलिए कि पूर्व में भी भारत में अलगाववादियों तत्वों से बात की गई है. हां, पर इससे पहले उन्होंने देश के संविधान में अपनी आस्था जता दी है. क्या देश पाकिस्तान परस्त हुर्रियत के नेताओं से बात करे? यह तो बता दीजिये कि आप अलगावादियों की पैरवी क्यों कर रहे हैं? आप भी पाकिस्तान से मिले हुए हैं क्या? यदि हां, तो आप “राष्ट्रद्रोही” हैं और आपकी जगह संसद में नहीं अंडमान के सेलुलर जेल जैसे कारगर में सलिखों के पीछे है.
शहीदों पर सियासत
फारूक अब्दुल्ला को शायद खुद नहीं मालूम कि वे चाहते क्या हैं? उन्हें अनाप-शनाप बोलने की आदत पड़ गई है. फारूख अब्दुल्ला ने सुकमा के नक्सली हमले की तुलना कुपवाड़ा के आतंकी हमले से करते हुए ऐसा बयान दिया है, जो घोर निंदनीय और राष्ट्रद्रोही बयान है. उन्होंने कहा कि कुपवाड़ा के शहीदों की शहादत को काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है जबकि सुकमा के शहीदों की कोई बात ही नहीं की जा रही है. सबको पता है कि जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा के पंजगाम सेक्टर में आर्मी कैंप बीती 27 अप्रैल को आतंकी हमला हुआ था. आत्मघाती आतंकी हमले में एक कैप्टन, एक जेसीओ और एक जवान शहीद हो गए थे. सुरक्षाबलों के ऑपरेशन में दो आतंकी भी मारे गए. चाहें सुकमा हो या कुपवाडा, सारा देश शहीदों का कृतज्ञ भाव से स्मरण कर रहा है. देश इन शहीदों के बलिदान को सदैव याद रखेगा. देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों को लेकर भेदभाव करने का कोई सपने में भी नहीं सोच सकता. पर फारूक अब्दुल्ला तो बोलते ही चले जा रहे हैं. आखिर देश अभिव्यक्ति की आजादी तो सबको देता ही है. लेकिन, बकवास की इजाजत तो नहीं देता ! उन्हें तो आकाशवाणी हुई है कि कुपवाड़ा तथा सुकमा के शहीदों में फर्क किया जा रहा है. हालांकि भेदभाव किस तरह से हो रहा है, वे इसका खुलासा नहीं करते.
किसके साथ फारूक?
और फारूक अब्दुल्ला ने हद तो बीती 14 अप्रैल को ही पार कर दी कर दी जब वे सैनिकों पर पत्थर फेंकने वालों के समर्थन में खुलकर सामने आ गए थे. उन्होंने ना सिर्फ पत्थरबाजों का समर्थन किया बल्कि सरकार पर भी गंभीर आरोप लगा दिए.
फारूक अब्दुल्ला मानते हैं कि अगर कुछ सीआरपीएफ के जवानों पर पत्थर मार रहे हैं तो कुछ सरकार द्वारा प्रायोजित भी हैं. यानी वे एक के बाद एक विवादास्पद बयान देते चले जा रहे हैं. फारूक अब्दुल्ला को खुद समझ नहीं है कि उनकी अनर्गल बयानबाजी देश हित में नहीं है. क्या कोई उन्हें समझाएगा कि बयानों से भारत के दुश्मनों को खाद-पानी मिलता है? इस तरह के गलतबयानी करनेवाले फारूख साहब की सार्वजानिक रूप से भर्त्सना की जानी चाहिए और उनकी लोकसभा की सदस्यता रद्द कर उनपर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
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