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Updated: 16 अगस्त, 2021 04:52 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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2021 में होने वाली जनगणना में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आबादी की जाति जनगणना (Caste Census) की मांग को लेकर पूरा विपक्ष एकजुट नजर आ रहा है. कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी समेत भाजपानीत एनडीए में शामिल जेडीयू और अपना दल जैसी सियासी पार्टियां भी जाति जनगणना करने का दबाव मोदी सरकार (Modi Government) पर बनाने की कोशिश कर रहे हैं. बिना किसी विरोध के पास हुए 127वें संविधान संशोधन कानून में राज्यों को ओबीसी लिस्ट बनाने का अधिकार देने के बाद जाति जनगणना की मांग में तेजी आई है. उत्तर प्रदेश और बिहार के क्षत्रपों द्वारा जाति जनगणना की मांग प्रमुख रूप से की जा रही है. आसान शब्दों में कहें, तो जो क्षेत्रीय पार्टियां 90 के दशक में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने के बाद तेजी से बढ़ी उन दलों की ओर से ही जाति जनगणना पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है. इन दलों की मांग में ये साफ नजर आ जाता है कि जाति जनगणना की मांग के सहारे ये तमाम सियासी दल केवल भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, इसे लागू कराने को लेकर गंभीर नजर नहीं आते हैं.

जातिगत जनगणना की मांग के सहारे ये तमाम सियासी दल केवल भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.जातिगत जनगणना की मांग के सहारे ये तमाम सियासी दल केवल भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

समाजवादी पार्टी की बढ़ेंगी मुश्किलें

उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और बिहार की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जाति जनगणना को लेकर मोदी सरकार पर दबाव बनाने में सबसे आगे नजर आ रहे हैं. अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly elections 2022) में 45 फीसदी ओबीसी आबादी की महत्वपूर्ण भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. उत्तर प्रदेश में एमवाई समीकरण के सहारे सत्ता पाने वाली समाजवादी पार्टी कहने को तो पूरे ओबीसी समाज की राजनीति करती है. लेकिन, सपा के कार्यकाल में नौकरियों से लेकर संगठन के बड़े पदों तक पर यादवों का बोलबाला ही रहता है. हाल ही में हुए पंचायत चुनाव में भी सपा की ओर से जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए यादव जाति के ही उम्मीदवार थे. जाति जनगणना पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने लोकसभा में कहा था कि भाजपा केवल ओबीसी जातियों का वोट लेना चाहती है. अगर ऐसा नहीं है, तो जाति जनगणना कराने में समस्या क्या है? अखिलेश यादव ने मोदी सरकार की सेंट्रल विस्टा योजना का उदाहरण देते 50 फीसदी के आरक्षण कैप को बढ़ाने की मांग भी की.

अगर जाति जनगणना के आंकड़े सामने आते हैं, तो इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के हाथ में केवल यादवों का वोट बैंक ही रह जाएगा. हर ओबीसी जाति की आबादी के अनुसार छोटे-बड़े सियासी दल खड़े हो जाएंगे. इन दलों का राजनीतिक झुकाव किस ओर होगा, ये अखिलेश यादव भी तय नहीं कर पाएंगे. दलितों की राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती भी जाति जनगणना का समर्थन कर रही हैं. दरअसल, ओबीसी वोट बैंक को कोई भी दल छोड़ना नहीं चाहता है. सभी दल चाहते हैं कि ओबीसी मतदाता उनके साथ बना रहे. लेकिन, इसे भाजपा के नजरिये से देखेंगे, तो सामने आता है कि भगवा दल ने हिंदुत्व के नाम पर सपा और बसपा के ओबीसी व दलित वोट बैंक पर बड़ी संख्या में हाथ साफ किया है. 2014 से ही गैर-यादव और गैर-जाटव वोट बैंक भाजपा के पाले में खड़ा नजर आया है.

बीते कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने खुद को 'पिछड़ों की सरकार' घोषित करने के लिए भरपूर मेहनत की है.बीते कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने खुद को 'पिछड़ों की सरकार' घोषित करने के लिए भरपूर मेहनत की है.

बीते कुछ वर्षों में मोदी सरकार ने खुद को 'पिछड़ों की सरकार' घोषित करने के लिए भरपूर मेहनत की है. हाल ही में हुए मोदी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में ओबीसी मंत्रियों की संख्या और मेडिकल शिक्षा में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उम्मीदवारों के लिए केंद्रीय कोटे से आरक्षण (Reservation) की व्यवस्था से भाजपा ने ओबीसी आबादी पर अपनी पकड़ को मजबूत किया है. भाजपा के इस वर्चस्व को ही समाजवादी पार्टी तोड़ने की कोशिश में है. लेकिन, जाति जनगणना की मांग को लेकर सपा की ओर से कोई जमीनी विरोध-प्रदर्शन भी नहीं दिखता है. यहां तक की अखिलेश यादव ने आरजेडी की तरह केवल प्रदेश में ही पिछड़ों की गिनती करने की मांग तक नहीं की है.

आरजेडी के सामने प्रतिद्वंदी बनेगी जेडीयू

बिहार में आरजेडी और एनडीए में शामिल जेडीयू नेता व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जाति जनगणना के समर्थन में खड़े हुए हैं. बिहार में भी ओबीसी आबादी का चुनावी राजनीति में मजबूत दबदबा है. जेडीयू से करीब दोगुनी विधानसभा सीट जितने वाली आरजेडी भी बिहार में यादव वोट बैंक सहारे आगे बढ़ी है. लंबे समय तक लालू प्रसाद यादव को सभी पिछड़ी जातियों का समर्थन मिला और वो मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे. आरजेडी ने अपने ट्विटर हैंडल से जाति जनगणना को लेकर लिखा कि जब इस देश में पेड़ों, पशुओं, गाड़ियों और सभी अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की गिनती हो सकती है, तो भाजपा को ओबीसी वर्ग के लोगों से क्यों इतनी घृणा है कि जनगणना में उनकी गिनती से कन्नी काटा जा रहा है? लालू प्रसाद यादव भी जाति जनगणना को लेकर काफी एक्टिव नजर आ रहे हैं. उन्होंने हाल ही में इस विषय को लेकर शरद पवार और मुलायम सिंह यादव से भी मुलाकात की थी.

लेकिन, बिहार में आरजेडी के वर्चस्व को तोड़ने वाले जेडीयू नेता नीतीश कुमार भी पिछड़ी जाति से आते हैं. गैर-यादव जाति से आने वाले नेता नीतीश कुमार अन्य पिछड़ा वर्ग की उस आबादी के मुखिया हैं, जो किसी समय आरजेडी का वोट बैंक था. इसे इस तरीके से समझा जा सकता है कि नीतीश कुमार ने जातीय राजनीति को मजबूत करने के लिए कुछ महीने पहले ही उपेंद्र कुशवाहा को साथ लाकर 'लवकुश समीकरण' को साधने का दांव चला है. हालांकि, सत्ता का सुख केवल अन्य पिछड़ी जातियों के वोट बैंक से नहीं मिल सकता है, तो नीतीश कुमार अगड़ी जातियों को भी नही भूले हैं. इसी कारण से उन्होंने राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को जेडीयू का नया अध्यक्ष घोषित कर दिया है.

क्षत्रपों के अस्तित्व पर मंडराएगा खतरा

मोदी सरकार ने संसद में लिखित जवाब के जरिये साफ कर दिया है कि सरकार जाति जनगणना के पक्ष में नहीं है. सपा, आरजेडी और जेडीयू जैसे क्षत्रप केवल दबाव बनाकर ओबीसी जातियों के बीच ये संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा ने साल दर साल ओबीसी आबादी को केवल अपना वोट बैंक बनाया है. ओबीसी आबादी का समर्थन न मिलने की स्थिति में भाजपा के लिए अपने प्रदर्शन को दोहराना असंभव है. यह कहना गलत नहीं होगा कि जाति जनगणना की मांग पूरी तरह से राजनीतिक है. 2011 में हुई जनगणना के दौरान भी लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव ने जाति जनगणना के लिए यूपीए सरकार पर दबाव बनाया था. लेकिन, उसके आंकड़े सामने नहीं आ सके. ना ही इसे सार्वजनिक करने के लिए इन नेताओं ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेने की बात कहकर कोई दबाव बनाया था. अखिलेश यादव द्वारा जाति मतगणना की मांग का कारण तो फिलहाल सत्ता में वापसी ही नजर आता है.

वहीं, जेडीयू अगर जाति जनगणना को लेकर इतनी ही गंभीर है, तो भाजपा के साथ गठबंधन की सरकार को छोड़कर ओबीसी समुदाय के सामने एक उदाहरण पेश क्यों नहीं कर रही है? दरअसल, जाति जनगणना होने पर क्षत्रपों का हर बड़ा नेता एक जाति विशेष का नेता हो जाएगा. हर जाति के अंदर से एक नया नेता निकल कर सामने आ जाएगा. इससे सीधे तौर पर क्षत्रपों की राजनीति को झटका लगेगा. अभी तक जो क्षत्रप पूरे ओबीसी समुदाय की राजनीति का दावा करते हुए दिखाई पड़ते हैं, जाति जनगणना के बाद अपने आप ही जाति विशेष के नेता बनकर रह जाएंगे. फिलहाल जो बड़े क्षत्रप हैं, वो छोटे क्षत्रपों में तब्दील हो जाएंगे. जाति जनगणना से राष्ट्रीय राजनीति कर रही भाजपा निश्चित तौर पर कमजोर पड़ेंगी. लेकिन, क्षत्रपों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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