कोविड 19 को लेकर लापरवाही भरा रवैया बन गया सबसे घातक
कोरोना वायरस (Coronavirus Spread) के आंकड़े फिर से डराने लगे हैं, लेकिन लोग ज्यादा ही लापरवाह होते जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का मानना है कि लोग कैजुअल हो गये हैं - क्या इसमें चुनावों (Elections 2021) की भी कोई भूमिका है?
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जब डर सबको लगता है तो कोरोना वायरस (Coronavirus Spread) के मामले में ऐसा क्यों नहीं है? कोरोना वायरस के ताजा आंकड़े चाहे कितने भी डरावने लग रहे हों, लेकिन किसी को परवाह क्यों नहीं है - क्या ऐसा चुनावी राजनीति (Elections 2021) की वजह से है या हमारी फितरत ही ऐसी है?
सवाल कई हैं - मसलन, क्या भारत कोरोना वायरस के डबल 'पॉलिटिकल' म्यूटेंट के दौर से गुजर रहा है? और ऊपर से मुश्किल ये है कि किसी को भी स्थिति की गंभीरता की परवाह तक नहीं है. समझना मुश्किल हो रहा है कि हालात ऐसे क्यों हो गये हैं?
देश के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भी इसे लेकर खासी चिंता जतायी थी - 'देश पहली लहर के चरम को पार कर चुका है... इस बार ग्रोथ रेट पहले से ज्यादा तेज है...'
प्रधानमंत्री ने कोविड 19 को लेकर आम लोगों के रवैया का भी जिक्र किया, 'महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब समेत कई राज्य पहली लहर की पीक को पार कर चुके हैं... कई राज्य इस ओर तेजी से बढ़ रहे हैं. ये हमारे लिए चिंता का विषय है - लोग पहले की अपेक्षा बहुत कैजुअल हो गये हैं.'
जब टेस्ट कराये जाने पर रिपोर्ट पॉजिटिव बता रही है. लोग बीमार हो रहे हैं. इतने बीमार कि होम-क्वारंटीन से काम नहीं चल रहा और अस्पताल में भर्ती होना पड़ रहा है. मौतें हो रही हैं - फिर भी ये लापरवाही भरा रवैया क्यों है. क्या कोरोना वायरस ने इतना डरा दिया है कि डर ही खत्म हो गया है - अगर ऐसा है तो स्थिति नाजुक और गंभीर ही नहीं, बेहद खतरनाक भी है.
चुनावों की भूमिका कितनी है
अगर ऐसा मौजूदा विधानसभा चुनावों के चलते कोरोना वायरस फैल रहा है तो बिहार चुनाव के दौरान वहां ऐसी स्थिति क्यों नहीं पैदा हुई?
जहां तक चुनावी रैलियों की बात है, तो भीड़-भाड़ और कोविड प्रोटोकॉल के अनुपालन की जैसी हालत बिहार में देखी गयी थी, तकरीबन वैसा ही हाल पश्चिम बंगाल और दूसरे राज्यों के चुनावों में होना चाहिये - मगर महाराष्ट्र को लेकर क्या कहेंगे क्योंकि वहां तो कोई चुनाव नहीं हो रहा है, लेकिन हालात बद से बदतर और बेकाबू होते जा रहे हैं.
पश्चिम बंगाल को छोड़ कर बाकी राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है. पश्चिम बंगाल में भी आधा मतदान हो चुका है. ध्यान देने वाली बात ये है कि चुनाव आयोग को भी अब जाकर कोरोना गाइडलाइंस का ख्याल आया है. लिहाजा चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को पत्र लिख कर कोविड प्रोटोकॉल की याद दिलाते हुए चेतावनी दी है.
राजनीतिक दलों के नेताओं को लिखे पत्र में चुनाव आयोग ने कहा है कि हाल के हफ्तों में कोरोना संक्रमण के मामले बड़ी तादाद में सामने आ रहे हैं, लेकिन आयोग के संज्ञान में ऐसी घटनाएं आई हैं जहां चुनावी सभाओं या चुनाव प्रचार के दौरान आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार सोशल डिस्टैंसिंग और मास्क पहनने की की हिदायतों की अनदेखी हो रही है.
चुनाव आयोग का कहना है कि ऐसा करके राजनीतिक दल और उम्मीदवार न सिर्फ खुद को बल्कि चुनावी सभा में आने वाले लोगों को भी संक्रमण के गंभीर खतरे में डाल रहे हैं. आयोग ने हैरानी जतायी है कि स्टार प्रचारक तक कोविड प्रोटोकॉल को नजरअंदाज कर रहे हैं.
आयोग ने साफ तौर पर कहा है कि वो लापरवाही को लेकर बेहद गंभीर है और अगर हालात नहीं सुधरे तो चुनाव के बाकी चरणों में ऐसे स्टार प्रचारकों, नेताओं और उम्मीगवरों की सभी रैलियों, जनसभाओं और बैठकों पर पाबंदी लगा दी जाएगी.
कोरोना वायरस के प्रति कैजुअल रवैया बड़े खतरे को दावत देने जैसा ही है
जब बीबीसी ने पश्चिम बंगाल में एक सीनियर नेता से कोविड प्रोटोकॉल को लेकर सवाल किया तो सीधा सपाट जवाब मिला, 'अभी हमारे सामने दूसरी लड़ाई है. कोरोना के साथ दो मई के बाद लड़ लेंगे.'
हालांकि, ये बात वो नाम नहीं बताने की शर्त पर ही बोले. गुमनाम ही सही, लेकिन हालात को समझने के लिए ये टिप्पणी भी बहुत कुछ कहती है. ये तो अंदाजा ही लगाया जा सकता है पश्चिम बंगाल में 2 मई के बाद कैसे हालात होने वाले हैं.
चुनावी राजनीति को लेकर नेताओं की जो भी सोच हो और लोगों का जैसा भी लापरवाही भरा रवैया हो, लेकिन पश्चिम बंगाल के डॉक्टर बेहद चितिंत नजर आ रहे हैं. 'द ज्वॉइंट फोरम ऑफ डॉक्टर्स ऑफ वेस्ट बंगाल' की तरफ से डॉक्टरों ने एक सामूहिक पत्र चुनाव आयोग को भेजा है और कहा है कि कैसे चुनाव मुहिम के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का सरेआम माखौल उड़ाया जा रहा है.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अपने पत्र के जरिये डॉक्टरों ने सवाल किया है - 'क्या आपने कभी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मास्क पहनते देखा है? अगर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्यमंत्री ही कोविड प्रोटोकॉल का उल्लंघन करें तो हम क्या कर सकते हैं?'
लोग लापरवाही क्यों बरत रहे हैं
आंकड़े भले डरावने हों, लेकिन लोगों के चेहरे पर शिकन तक नहीं है - आखिर आम लोग कोरोना वायरस को हल्के में क्यों लेने लगे हैं?
पिछले साल के आखिर में मेरी एक परिचित पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक गांव में अपने ननिहाल गयी हुई थीं. दिल्ली लौटकर बताया कि जब वो स्टेशन से नानी के घर के लिए निकलीं तो उनके कजिन ने मास्क उतार कर पॉकेट में रख लेने की सलाह दी. पहले तो उनको अजीब लगा, लेकिन कुछ देर बाद ही वैसा ही किया जैसा कजिन ने कहा था. कजिन का कहना रहा कि मास्क लगाने वाले को लोग बीमार समझते हैं.
अभी पिछले महीने ही मेरा निजी अनुभव भी बिलकुल वैसा ही रहा. फ्लाइट में तो मास्क, फेसशील्ड और गाउन तक पहने हुए थे, लेकिन बनारस एयरपोर्ट से जब टैक्सी ली तो ड्राइवर ने मास्क भी नहीं पहन रखा था. पूछने पर बोला, 'यहां वैसा कुछ नहीं है... कोई कोरोना नहीं है. कुछ देर बाद आप भी मास्क निकाल देंगे.' वो सही बोल रहा था. गांव पहुंचने के बाद दिन भर तो मास्क लगाये रखा, लेकिन शाम होते होते लोगों ने इतना बोला कि उतरवा कर ही दम लिये.
अभी पिछले हफ्ते टाटा स्काई की तरफ से एक टेक्नीशियन घर आया हुआ था. वो मास्क तो लगाया था, लेकिन कोरोना वायरस का प्रकोप बढ़ने को अफवाह बता रहा था. उसकी दलील भी बिलकुल वैसी ही थी जैसी ज्यादातर लोगों की है, 'हम तो दिन रात धूप में घूमते हैं - कहां कोरोना है?'
वैक्सीन को लेकर भी अलग ही राजनीति चल रही है. महाराष्ट्र और राजस्थान जैसी गैर बीजेपी सरकारों का कहना है कि उनके पास जरूरत के हिसाब से स्टॉक ही नहीं है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन का आरोप है कि ये राज्य सरकारें अपनी नाकामियां छिपाने के लिए ऐसी बातें कर रही हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैक्सीन का वेस्टेज रोकने की बात कर रहे हैं. मुख्यमंत्रियों से मुलाकात में प्रधानमंत्री मोदी ने 11 अप्रैल को ज्योतिबा फूले और 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती की याद दिलाते हुए पूछा - 'क्या हम इस दौरान टीका उत्सव मना सकते हैं?'
देश में संपूर्ण लॉकडाउन बगैर सोचे समझे लागू करने को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर रहे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने न सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के उत्सव के आइडिया की आलोचना की है, बल्कि दूसरे देशों को वैक्सीन भेजने को लेकर भी सवाल खड़ा किया है.
बढ़ते कोरोना संकट में वैक्सीन की कमी एक अतिगंभीर समस्या है, ‘उत्सव’ नहीं-अपने देशवासियों को ख़तरे में डालकर वैक्सीन एक्सपोर्ट क्या सही है?
केंद्र सरकार सभी राज्यों को बिना पक्षपात के मदद करे।
हम सबको मिलकर इस महामारी को हराना होगा।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) April 9, 2021
सिर्फ राजनीति की कौन कहे, व्यवस्था का भी अजीब हाल हो रखा है. यूपी के ही एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से खबर आयी है कि कोरोना वायरस के लिए वैक्सीन लेने गयीं तीन महिलाओं को एंटी-रेबीज वैक्सीन लगा दी गयी. एंटी रेबीज वैक्सीन कुत्ते के काटने को लेकर दी जाती है. लापरवाही के लिए अस्पताल के फार्मासिस्ट को सस्पेंड कर दिया गया है.
सोचिये जब स्वास्थ्यकर्मियों को कोरोना वॉरियर के तौर पर देखा जा रहा है तब ये हाल है. वैसे कोरोना वैक्सीन को लेकर भी क्या कहा जाये - पहले खबर आयी कि दिल्ली के गंगाराम अस्पताल के 37 डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव पाये गये हैं और उनमें से पांच की हालत ऐसी है कि अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है. ये हाल तब है जब फ्रंट वर्कर्स को सबसे पहले वैक्सीन दी गयी थी. ऐसा ही मामला दिल्ली के एम्स से सामने आया है जहां 35 डॉक्टर कोरोना की चपेट में आ गये हैं और 53 भोपाल एम्स के डॉक्टरों के साथ भी ऐसा ही हुआ है.
2020 में लॉकडाउन के दौरान जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों को ताली और थाली बजाने के साथ साथ घरों में रह कर कैंडल जलाने की अपील की तो लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था, लेकिन उनके राजनीतिक विरोधी आलोचना करते रहे कि ऐसा करने से कोरोना पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. मानते हैं, कोरोना पर ऐसे उपायों का कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है, लेकिन तब लोग इतने जागरुक तो दिखे ही कि मास्क और सैनेटाइजर के साथ काफी दिनों तक सोशल डिस्टैंसिंग का भी पालन करते रहे - जब प्रधानमंत्री मोदी भी मान रहे हैं के लोक कैजुअल हो गये हैं तो ये भी समझ आ ही रहा होगा कि ऐसी स्थिति में पुराने नुस्खे फिर से आजमाये जा सकते हैं - क्योंकि अब तो हाल ये हो रखा है कि आरपीआई नेता रामदास आठवले की तरह कोई 'गो कोरोना.. गो' कहने को भी नहीं तैयार है.
खुद प्रधानमंत्री मोदी भी कह रहे हैं कि पहले तो ये भी नहीं मालूम था कि वैक्सीन कब आएगी, आएगी भी या नहीं. लेकिन अब तो कोरोना वैक्सीन भी उपलब्ध है और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की मौजूदगी में पतंजलि वाले बाबा रामदेव कोरोनिल भी रीलांच कर चुके हैं - ताज्जुब की बात है, फिर भी हालात नहीं सुधर रहे हैं!
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