2019 के चुनाव के पहले नीरव मोदी को भारत लाना मुश्किल है नामुमकिन नहीं
नीरव मोदी का मामला आम चुनाव के खत्म होने तक सुर्खियों में रहेगा और विपक्ष के लिए हॉट केक साबित होगा.
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"हम अपने अपराधियों को ज्यादा सजा नहीं देते हैं, लेकिन हम निश्चित रूप से उनका बहुत प्रचार करते हैं." - विल रोजर्स
"अपराधी कानून के हाथों नहीं मारे जाते हैं. वे दूसरे मनुष्य के हाथों मारे जाते हैं."- जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
ऊपर के ये दो उद्धरण नीरव मोदी द्वारा किए गए घोटाले को अच्छी तरह से बयान करते हैं. हीरों का व्यापारी नीरव मोदी जिसने भारत के सबसे बड़े बैंक धोखाधड़ी ($ 2 बिलियन से अधिक) को अंजाम दिया था.
नरेंद्र मोदी सरकार के बनने के साथ ही एक नया ट्रेंड सामने आया है. सफेद पोश अपराधी और बैंकों से फ्रॉड करने वाले करदाताओं के पैसों को हड़पने के बाद देश छोड़कर ही भाग जा रहे हैं. पहले ललित मोदी, फिर विजय माल्या और उसके बाद नीरव मोदी, उसके चाचा मेहुल चोकसी. ये सभी लोग अपने पूरे परिवार के साथ फरार हो गए.
भारत से विदेश भागने वाले इन लोगों पर सोशल मीडिया पर तरह तरह के चुटकुलों की बाढ़ आई हुई है. इसी तरह के एक जोक में कहा गया है- भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा सभी बैंकों को एक नया निर्देश जारी किया है. इसमें बैंकों को कहा गया है कि जिनके पास भी पासपोर्ट हो उन्हें अब लोन न दिए जाएं. नीरव मोदी के मामले में ताजा डेवलेपमेंट के ये बताने के लिए काफी है कि आज के जमाने में कैसे सफेद कॉलर अपराधी कानून लागू करने वालों से दो कदम आगे ही रहते हैं. और मोदी सरकार द्वारा उन्हें वापस लाने की तमाम कोशिशों के बावजूद भी सरकार द्वारा उनको वापस लाना लगभग नामुमकिन है. नीरव मोदी का भाई निशल मोदी बेल्जियम का नागरिक है. ताजा खबरों के अनुसार नीरव मोदी और उनका भाई निशाल ब्रसेल्स भाग गए हैं. ये खबर ऐसे समय में आई है जब मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि नीरव मोदी ने ब्रिटिश सरकार से राजनीतिक आश्रय के लिए गुहार लगाई है.
अगर 2019 के चुनावों के पहले सरकार इन्हें वापस नहीं ला पाई तो मुश्किल में पड़ जाएगी
इसके अलावा ये भी बात सामने आ रही है कि नीरव मोदी ने अपने सिंगापुर पासपोर्ट का इस्तेमाल किया है. अगर ऐसा है तो भारत सरकार कुछ कर भी नहीं सकती क्योंकि गैर-जमानती वारंट उसके भारतीय पासपोर्ट के खिलाफ है. भारतीय जांचकर्ताओं ने पाया है कि 31 मार्च, 2018 के बाद से नीरव मोदी के भारतीय पासपोर्ट पर किसी भी प्रकार का कोई काम नहीं हुआ है, मतलब ये कि वह इसका उपयोग नहीं कर रहा है. इससे भारत सरकार के हाथ और बंध जाते हैं.
अब पहले नई दिल्ली को सिंगापुर सरकार को अपने सिंगापुर पासपोर्ट को रद्द करने और फिर बेल्जियम सरकार के साथ मामला उठाने के लिए दबाव डालना होगा. यह अनिवार्य रूप से लंबा समय लेगा और जब तक ये काम होगा तब तक वो किसी और देश में अपना ठिकाना खोज चुका होगा. इस साल जनवरी में भारत से भागने के बाद से उसकी अंतरराष्ट्रीय यात्राएं बढ़ गई हैं और वो लगातार अंतरराष्ट्रीय यात्राएं कर भी रहा है. पंजाब नेशनल बैंक में अपनी धोखाधड़ी की गतिविधियों का पता चलने के लगभग एक पखवाड़े पहले उन्हें हांगकांग, न्यूयॉर्क, बेल्जियम, दुबई और लंदन जैसे स्थानों में "देखा" गया था.
समस्या और अधिक जटिल तब हो जाती है क्योंकि इसके पास कई पासपोर्ट हैं. किसी को भी पक्के तौर ये नहीं पता कि आखिर उसके पास कितने देशों का पासपोर्ट है. लेकिन विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि उनके पास सिंगापुर, बेल्जियम (उनके भाई निशाल बेल्जियम के नागरिक हैं) और संयुक्त राज्य अमेरिका (उनकी पत्नी एक अमेरिकी नागरिक हैं) के पासपोर्ट हैं.
भारत सरकार के लिए एक और समस्या यह है कि नीरव मोदी निरस्त भारतीय पासपोर्ट का उपयोग उन देशों में कर रहा है जिनके पास यह जानकारी नहीं है कि उसके भारतीय पासपोर्ट को रद्द कर दिया गया है. और इस कारण से वो देश उसे अपने यहां आने से रोकते नहीं होंगे. इस तरह कानून को लागू करने और पालन के बीच की दिक्कत साफ दिख रही है.
इनके पास कितने देशों का पासपोर्ट है ये भी नहीं पता
जैसा कि नीरव मोदी का एक देश से दूसरे देश में लुकाछिपी का खेल जारी है. वहीं हमारे यहां के विभिन्न नियामक एक दूसरे को गेंद पास करने का खेल खेल रहे हैं. 12 जून को आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने एक संसदीय पैनल को बताया कि केंद्रीय बैंक के लिए देश में एक लाख से ज्यादा बैंक शाखाओं का ऑडिट करना संभव नहीं है. पटेल ने नीरव मोदी की धोखाधड़ी का पूरा आरोप पंजाब नेशनल बैंक के माथे गढ़ दिया, जिसमें इसके बोर्ड को भी शामिल किया. साथ ही बैंक पर "तथ्यात्मक रूप से गलत" अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आरोप लगाया.
पटेल ने आरबीआई के पर्यवेक्षण का इस आधार पर बचाव किया कि ऋणदाता ही उधारदाताओं के लिए जिम्मेदार है. उनके जवाब का नमूना देखें: "पीएनबी शाखा (मुंबई में) द्वारा बिना जांच के जारी किए गए एलओयू (लेटर ऑफ अंडरस्टैंडिंग) के संबंध में ध्यान नहीं दिया गया है. यह मानना उचित है कि बैंक द्वारा किए गए जोखिमों को समझने और यह सुनिश्चित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से संबंधित बैंक के बोर्ड निदेशकों के पास ही रहता है."
इसमें कोई दो राय नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार नीरव मोदी जैसे भगोड़ों को वापस लाने के मामले में बहुत गंभीर है. अगर अगले साल के आम चुनावों के पहले मोदी सरकार नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे हाई प्रोफ़ाइल भगोड़ों को वापस ले आती है तो ये बहुत ही बड़ा गेम चेंजर होगा. इसके ठीक उलट अगर सरकार इन सफेद कॉलर अपराधियों को वापस लाने में नाकाम रही तो ये विफलता उन्हें बहुत महंगी पड़ेगी.
उच्च राजनीतिक दांवों को ध्यान में रखते हुए, नीरव मोदी का मामला आम चुनाव के खत्म होने तक सुर्खियों में रहेगा और विपक्ष के लिए हॉट केक साबित होगा. लेकिन नीरव मोदी जैसे और भी हाई प्रोफाइल भगोड़ों को देश वापस लाना नामुमकिन नहीं तो बहुत मुश्किल जरुर है.
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