चुनौतियां जो देश के सामने हैं जिनपर पीएम मोदी को हर हाल में ध्यान देना चाहिए...
एक देश के रूप में भारत भले ही विकास के पथ पर चल रहा हो लेकिन तमाम चुनौतियां भी हैं. तो आइये नजर डालें उन चुनौतियों पर, जिनका सामना एक देश के रूप में भारत को करना पड़ रहा है. साथ ही ये भी जानें कि क्यों पीएम मोदी को इन चुनौतियों पर ध्यान देने की जरूरत है.
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देश के सामने चुनौती क्या-क्या है? देश किसके प्रति संवेदनशील है? जनता या नेता? जनता को जागरूक करना छोड़िए माल महाराज का होली खेले सब. आइये बात कर ली जाए उन चुनौतियों पर अभी देश कर रहा है.
1- श्रीलंका, इराक तो जल ही रहा था कि बांग्लादेश में लाखों लोग प्रधानमंत्री के आवास पर धरना दे रहे हैं . वह भी शांति के साथ... लोग पूछ रहे है कि गरीबी क्यों?पेट्रोल और डीजल महंगा क्यों? नेता ऐश करें और जनता भुखमरी से संवाद करे. शेख मुजीबुर रहमान के घर में कोई चिराग को रोशन करने वाला बच गया था, जो आंखों के सामने गांधी को नंगा देख रहा है.
2- गांधी और नेहरू को गाली देने वालों सुन लो,जब देश की आबादी 40 करोड़ पहुंच गयी तो नेहरू ने कंडोम बनाने की फैक्टरी को लगाया. वह नेहरू ही थे जो विधायक और सांसदों को परिवार नियोजन पर अमल करने को कहे थे.
पीएम मोदी के नेतृत्व में भले विकास हो रहा हो लेकिन मौजूदा वक़्त में देश के सामने चुनौतियां काफी हैं
3- आज भारत 130 करोड़ के ऊपर है. सत्ता पक्ष हो विपक्ष की लोग परिवार नियोजन पर बोलने से डरते हैं.जबकि परिवार नियोजन पर हम सभी ने आजमगढ़, वाराणसी और दिल्ली मे धरना दिया.तिरंगे के साथ दिल्ली में परिवार नियोजन के कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए हम लोग गिरफ्तार हुए. आज तिरंगा में सरकार गौरव दिखा रही है, तो हमलोग के साथ तिरंगा का अपमान क्यों हुआ ?
4- देश मे वंशवाद है. लोकतंत्र उसी की औलाद है. कहीं कम तो कही ज्यादा है. हम सब क्या करें?यह सबसे बड़ी चुनौती है. राशन बाटो और पेट्रोल डीजल की कीमत उन्हीं से वसूल करो. यह बुद्धिमान सरकार का पहला लक्षण है.
5- साथियों सवाल करो, भले उत्तर न मिले. गांधी और अम्बेडकर भारत के परम्परा है. उस पर अड़िग रहिये. अटल जी ने 1980 में गांधी के समाजवाद को स्वीकार किया. वहीं केजरीवाल ने गांधी की तस्वीर लगाई और सरकार बनाते ही सब भूल गए. शीला दीक्षित और मुकेश अंबानी पर जुबानी केस किये और जनता तमाशबीन बनी रही.
तमाम बड़े नेता थे जिन्होंने जैन हवाले के तहत लोकसभा से इस्तीफा दिया और कोर्ट से लड़े और विजयी बनकर आये. उसमे से प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी और शरद यादव थे. मेरा तो कहना है कि स्वस्थ राजनीति के लिए राहुल गांधी और सोनिया गांधी को इस्तीफा देकर, एक मानक तय करना चाहिए. बहुत अच्छे लोग हैं जो लोकतंत्र में धक्का खा रहे है और भारत उन्हीं का है, अन्यथा कामराज भी तमिलनाडु में हर जिले में पार्टी का कार्यलय बनाये और चुनाव स्वयं के साथ कांग्रेस भी हार गई. पीएम मोदी ने हर जिले में भाजपा का कार्यलय बनाया है, उनका देखना बाकी है.
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