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Updated: 16 फरवरी, 2023 07:08 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत चीन अब भारत से लगती एलएसी (LAC) के करीब तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में रेलवे लाईन बिछाने की योजना पर काम कर रहा है. यह रेलवे लाइन भारत के लिए काफी चिन्ता की बात है, और इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि अक्साई चिन से होकर गुजरने वाला शिजियांग तिब्बत राजमार्ग ही भारत और चीन के बीच तनाव भड़कने का कारण बना था और इसके बाद 1962 में इसको लेकर युद्ध हो गया था. हाल ही में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के विकास और सुधार आयोग ने अपनी रेलवे नेटवर्क विस्तार की योजना का खुलासा कर दिया है. जिसके तहत 2025 तक मौजूदा 1400 किलोमीटर से 4 हजार किलोमीटर तक और 2035 तक 5 हजार किलोमीटर तक रेलवे नेटवर्क का विस्तार मार्गों को बिछाने की योजना भी शामिल है जो चीन से लगती भारत और नेपाल की सीमा के करीब से गुजरेंगे.

चीन की प्रस्तावित रेलवे लाइन तिब्बत से शिगात्से से शुरू होकर उत्तर पश्चिम में नेपाल सीमा तक जाएगी. दूसरी तरफ यह अक्साई चिन से होकर गुजरते हुए शिंंजयांग प्रांत के होटान में खत्म होगी. यह रेलवे लाइन अक्साई चिन के रोटोग और चीन के इलाके में पैगोंग झील के पास से होकर गुजरेगी. चीन रेलवे लाईन नेटवर्क के विस्तार से दो उद्देश्य पूरे करना चाहता है. एक तो चीन सीमावर्ती क्षेत्रों को एकीकृत करने के साथ-साथ जरूरत पड़ने पर सीमा पर तेजी से सेना जुटाने की क्षमता विकसित करके सीमा सुरक्षा को बढ़ावा देना चाहता है. दूसरी तरफ वह तिब्बत के आर्थिक एकीकरण में तेजी लाना चाहता है.

Aksai Chin railway project by Chinaअक्साई चिन में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए चीन ने अपनी रेलवे परियोजना का विस्तार शुरू कर दिया है.

गौरतलब है कि चीन अपना ये जो रेलवे नेटवर्क बढ़ाना चाहते हैं तो चीन के पश्चिमी भाग में दो राज्य हैं शिनजियांग और तिब्बत. अब ये दो राज्यों को कनेक्ट करने वाली एक रेलवे लाइन बना रहा हैं. ये रेलवे लाइन इसलिए महत्वपूर्ण है कि ये जाएगी नेपाल की सरहद तक का हिस्सा वो कवर करेगी. ये जो लाइन ऑफ कंट्रोल बोलते हैं, जो हिंदुस्तान और चीन की सरहद है, यहां पर भी जाएगी. एक खास बात है कि ये जो अक्साई चीन एरिया है, जो हिंदुस्तान का हिस्सा है, जो चीन भी क्लेम करता है ये इसके थ्रू भी जाएगी. 1950 में जब ये जो शिनजियांग, तिब्बत राज्य है, तो वहां पर जो जी-219 नैश्नल रेलवे जो कन्स्ट्रक्ट की थी तभी, तो वो अक्साई चीन के थ्रू चली गयी थी. मतलब जो कंस्ट्रक्शन हुआ था, वो अक्साई चिन के थ्रू हुआ था. इसकी वजह से दोनों देशों में काफी गहमागहमी हो गई और 1962 में जंग भी हुई. ये एक कारण था जंग के लिए. दो साल पहले चीन ने एक और प्लान ऐसा पब्लिक किया था, जहां पर उन्होंने दिखाया था कि वो एक रेलवे लाइन या ब्रिज चाइना से ताइवान तक कंस्ट्रक्ट करेंगे. अब ताइवान तो अलग देश है. इससे चीन की जो मंशा है, वो स्पष्ट होती है. अपने जो टेरिटोरिअल क्लेम्स हैं, जो चीन को लगता है वो उनके देश का भाग है, तो वो क्लेम करने के लिए जो पेपर वर्क है या जो ऐसा एक इंटेंशन है, वो पब्लिक करते हैं.

इस बारे में भारत का जो रुख होना चाहिए वो भारत का विदेश मंत्रालय स्पष्ट कर रहा हैं . मगर चीन की जो मंशा है वो सरहद की सुरक्षा भी है और चीन की एक डेवलपमेंट फिलॉसफी भी है. चीन को लगता है काफी सारे जो पिछड़े राज्य हैं, अगर इनको कनेक्ट कर देगा तो वहां की अर्थव्यवस्था बढ़ने लगेगी. दूसरी बात ये है कि लश्कर का जो मोबिलाइजेशन होता है वो भी कर पाएगा. एक महत्वपूर्ण बात है कि सरहदों पर दोनों राष्ट्रों की सेना तैनात है. अब तो बहुत सारा मोबिलाइजेशन हुआ है. तीन सालों से बहुत टेंशन भी चल रही है. अब अगर चीन पब्लिक करता है कि हम ये रेलवे बनाना चाहते तो इससे क्या हो सकता है कि चीन की जो सेना है उनका मनोबल बढ़ेगा. एक साइकोलॉजिकल वॉरफेयर के तहत भी हम इसे देख सकते हैं.

जल्द ही चीन जो कर रहा है, उस पर भारत सरकार प्रतिक्रिया देगी. मगर ऐसा नहीं समझिए कि भारत कुछ नहीं कर रहा हैं. भारत सरकार जो है, जो सरहदी इलाका है, वहां पर जो इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने का काम चल रहा है, वो भी काफी तेजी से चल रहा है. ये एक वन साइडेड मैच नहीं है. दोनों तरफ से जो इन्फ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग का काम चालू है, वो 2014 के बाद जो सरहदी इलाके हैं, जो हिंदुस्तान के सरहदी इलाके हैं वहां पर भी इनफ्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग का काम बहुत बढ़ा है. ऐंड दिस इस द मेज़र डाइवर्जन फ्रॉम द पॉलिसीज फ्रॉम द प्रीवियस गवर्नमेंट्स, जो बोलते थे कि देखिए हम बॉर्डर्स पर इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप नहीं होने देंगे या नहीं करेंगे, क्योंकि उससे क्या होगा कि चीन ज़्यादा तेज़ी से हमारे टेरिटरी में घुस सकता है.

दरअसल चीनी की बढ़ती दादागिरी पर लगाम लगाने के लिए क्वाड देशों के शीर्ष नेता जापान की राजधानी टोक्यो में बैठक हुई थी . क्वाड की यह बैठक ऐसे समय पर हुई थी जब चीनी ड्रैगन सुरसा राक्षसी की तरह से अपना मुंह फैलाए बैठा था और लद्दाख से लेकर दक्षिण चीन सागर तक को 'निगलने' की फिराक में था . भारत और चीन के बीच मई 2020 में शुरू हुआ सीमा विवाद अभी तक जारी है और कई दौर की बातचीत के बाद भी इसका कोई हल निकलता नहीं दिख रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि लद्दाख में चीन की नापाक चाल सफल हो गई है. चीन ने ताजा घुसपैठ से भारत के अक्साई चीन इलाके पर अपनी पकड़ को और ज्यादा मजबूत कर लिया है और बड़े पैमाने पर सेना और भारी हथियारों की तैनाती करके उसे एक 'किले' में बदल दिया है.

अमेरिका की चर्चित रक्षा वेबसाइट द ड्राइव की रिपोर्ट के मुताबिक लद्दाख की गलवान घाटी में खूनी झड़प के बाद दोनों देशों की सेनाओं ने कई मोर्चों पर सीमित वापसी की. हालांकि अगर दो साल बाद की तस्वीर देखें तो चीनी सेना ने भारतीय जमीन पर न केवल कब्जा कर रखा है, बल्कि उल्लेखनीय सैन्य तैनाती भी कर दी है. विशेषज्ञों ने कहा कि अक्साई चिन का यह 38,000 किमी का यह ठंड और बंजर इलाका भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय बना हुआ है. चीन ने साल 1962 की लड़ाई में सबसे पहले इस इलाके पर कब्जा करने की कोशिश की. इस जंग के 4 दशक बीत जाने के बाद भी भारत और चीन के बीच आंशिक झड़प जारी रही जो साल 2020 में खूनी संघर्ष में बदल गई थी . इससे दोनों ही परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्रों के बीच जंग जैसे हालात बन गए थे .

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीन दोनों के सैनिक तैनात हैं. दोनों देशों के बीच अभी भी बॉर्डर पर कई मसलों को लेकर टेंशन है. इस सबके बीच बीजिंग ने 2025 तक अपने रेलवे नेटवर्क को 4,000 किलोमीटर तक बढ़ाने का फैसला किया है. हैरानी की बात तो यह कि इस रेलवे नेटवर्क में चीन ने 'अक्साई चिन' एरिया को भी शामिल किया है, जो सीमा के बेहद करीब है. बता दें कि 1950 के बाद से ही भारत और चीन दोनों ही अक्साई चिन पर अपना दावा करते आए हैं. ये मुद्दा दोनों देशों के बीच हुए 1962 के युद्ध में भी गरमाया हुआ था. हालांकि, अभी के ताजा घटनाक्रम पर भारत नजर बनाए हुए है. भारतीय सेना, चीन के बुनियादी ढांचे पर कड़ी नजर रख रही है, क्योंकि रेलवे नेटवर्क की मदद से चीन को सेना शिफ्ट करने में काफी सहायता मिलेगी.

बताया जाता है कि चीन के 1359 किलोमीटर के रेलवे नेटवर्क को अपग्रेड करने की योजना का अनावरण तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र विकास और सुधार आयोग ने किया है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो प्रस्तावित झिंजियांग-तिब्बत रेलवे का शिगात्से-पखुक्त्सो खंड (जो अक्साई चिन के अंदर से गुजरेग) 2025 तक तैयार हो जाएगा. चीनी स्टेट मीडिया ने बताया कि 14वीं पंचवर्षीय योजना (2021-2025) के तहत 55 काउंटियों और जिलों को रेलवे नेटवर्क से जोड़ा जाएगा. यही नहीं चीन लगातार सीमा के अपने हिस्से में अपनी रसद क्षमता का विस्तार कर रहा है. किन्हाई-तिब्बत रेलवे लाइन जुलाई 2006 में शुरू हुई थी, ल्हासा-शिगात्से लाइन 2014 में शुरू हुई थी और ल्हासा-न्यिंगची लाइन जून 2021 में शुरू हुई थी, जिससे वर्तमान रेलवे नेटवर्क की कुल लंबाई 1,359 किलोमीटर हो गई है. 435 किमी लंबी ल्हासा-न्यिंगची लाइन 160 किमी प्रति घंटे की ट्रेनें चलाने में सक्षम है.

इसके जवाब में भारत ने भी चीन सीमा के पास रणनीतिक रेलवे लाइन बनाने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है. सीमा क्षेत्र में भारत के रेलवे रूटमैप में चार प्रस्तावित लाइन होंगी. तीन पूर्वोत्तर में और एक उत्तर में. इनकी दूरी लगभग 1,352 किमी तक होगी. पंजाब, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में 498 किलोमीटर लंबी भानुपली-बिलासपुर-मनाली-लेह लाइन के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई है. 83,360 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना को चरणों में खोला जाएगा. यह रणनीतिक लाइन, जब पूरी हो जाएगी तो चीन की किंघाई-तिब्बत लाइन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सबसे ऊंची रेलवे लाइन होगी. इसके आलावा अन्य तीन ओर प्रस्तावित रेलवे लाइनें- मिसामारी-तेंगा-तवांग (378 किमी, 54,473 करोड़ रुपये) ,पासीघाट-तेजू-रुपई (227 किमी, 9,222 करोड़ रुपये) .उत्तरी लखीमपुर-बाम-सिलपत्थर (249 किमी, 23,339 करोड़ रुपये). ये रेलमार्ग पूरा होने के बाद चीन के किंगहाई-तिब्बत मार्ग को पछाड़कर दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे मार्ग बन जाएगा. अधिकारियों ने कहा कि इन सभी को आधिकारिक तौर पर "रणनीतिक रेखा" के रूप में नामित किया गया है, जिसका निर्माण सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं के अनुसार किया जा रहा है.

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लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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