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Updated: 14 अक्टूबर, 2020 10:40 PM
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हाथरस केस (Hathras Case) पर मचे बवाल के बीच चिन्मयानंद केस (Chinmayanand Case) में अचानक ही नयी बात सामने आ रही है. कानून की जिस छात्रा (Law Student) ने पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और बीजेपी नेता चिन्मयानंद पर यौन शोषण का आरोप लगाया था वो होस्टाइल हो गयी है - केस की सुनवाई के दौरान छात्रा ने बयान दिया है कि उसने ऐसा कोई आरोप कभी लगाया ही नहीं.

जैसे हाथरस का मामला महज कानून व्यवस्था या महिलाओं के खिलाफ अपराध का मामला नहीं - बल्कि पूरा सिस्टम शामिल लगता है. चिन्मयानंद केस में आरोप लगाने वाली कानून की छात्रा के मुकर जाने से ये केस जिस मोड़ पर पहुंचा है - पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहा है और छात्रा ने अपने नये स्टैंड से खुद भी सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया है.

न संदेह का लाभ मिला है, न ये बाइज्जत बरी होना है!

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार चिन्मयानंद केस को लेकर भी वैसे ही निशाने पर रही जैसे कुलदीप सेंगर वाले उन्नाव गैंगरेप केस में - और ठीक वही हाल फिलहाल हाथरस गैंगरेप केस में हो रहा है, जिसकी सीबीआई जांच की सिफारिश के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट में यूपी सरकार के अफसरों को जवाब देते नहीं बन रहा है.

आम चुनावों के बाद अगस्त, 2019 में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसे लेकर बीजेपी नेता स्वामी चिन्मयानंद विवादों में आ गये. दरअसल, चिन्मयानंद के कॉलेज की ही कानून की एक छात्रा ने उन पर यौन शोषण का आरोप लगाया था.

चूंकि मामला यूपी में सत्ताधारी बीजेपी के सीनियर नेता से जुड़ा था, इसलिए ये भी आरोप लगे की पुलिस एक्शन नहीं ले रही है. अगस्त, 2019 में जब छात्रा के पिता ने शाहजहांपुर कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करायी कि उनकी बेटी कॉलेज के हॉस्टल में पढ़ती थी और उसका पता नहीं चल रहा है और चार दिन से उसका मोबाइल भी बंद है. पिता का आरोप रहा कि उसकी बेटी को गायब कर दिया गया है.

फिर दिल्ली के कुछ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर इस केस में दखल देने को कहा. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद एसआईटी बनायी गयी और 23 साल की छात्रा की तरफ से 5 सितंबर, 2019 को दिल्ली के लोधी कालोनी पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज करायी गयी - और उसके बाद शाहजहांपुर में दर्ज केस भी एक साथ जोड़ दिये गये. एसआईटी ने पहले तो छात्रा से ही घंटों पूछताछ की, फिर चिन्मयानंद से भी पूछताछ हुई और आखिरकार वो गिरफ्तार हो गये. पांच महीने जेल में रहने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खराब सेहत का हवाला देने पर चिन्मयानंद की जमानत मंजूर कर ली और वो छूट भी गये.

chinmayananadचिन्मयानंद की गिरफ्तारी के कुछ ही दिन बाद आरोप लगाने वाली छात्रा को भी जेल जाना पड़ा था

चिन्मयानंद की गिरफ्तारी के साथ ही आरोप लगाने वाली छात्रा के दो चचेरे भाइयों और उसके दोस्त को ब्लैकमेल कर जबरन धन उगाही के आरोप में गिरफ्तार किया गया - मामले की जांच कर रही एसआईटी ने पीड़ित छात्रा के दो चचेरे भाइयों और उसके एक दोस्त को भी गिरफ्तार किया है. तीनों पर चिन्मयानंद को वीडियो वायरल करने की धमकी देकर पांच करोड़ रुपये मांगने का आरोप है. एसआईटी के मुताबिक, पूछताछ के दौरान आरोपियों ने अपना अपराध कबूल कर लिया था. बाद में छात्रा को भी गिरफ्तार कर लिया गया - और उसकी गिरफ्तारी पर भी सवाल उठाये गये थे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर ही लखनऊ के विशेष MP-MLA कोर्ट में इस केस की सुनवाई हो रही है. एक सुनवाई के दौरान छात्रा अदालत में अपने पहले के सभी आरोपों से पलट गई.

सुनवाई के दौरान जब छात्रा अपना बयान दर्ज कराने लगी तो बोली कि ऐसा कोई इल्जाम लगाया ही नहीं जिसे अभियोजन पक्ष चिन्मयानंद के खिलाफ आरोप के तौर पर पेश कर रहा है. आरोपों से मुकरते ही अभियोजन पक्ष ने छात्रा को होस्टाइल करार दिया और कहा कि उसने आरोपी के साथ कोर्ट से बाहर समझौता कर लिया है.

सरकारी वकील ने याद दिलाया कि छात्रा ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज बयान में बलात्कार की बात कही थी. शाहजहांपुर में मजिस्ट्रेट को दिये बयान में छात्रा का साफ तौर पर कहना था कि आरोपी ने रेप किया है. अपने आरोपों से मुकर जाने के बाद अभियोजन पक्ष ने छात्रा के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत मुकदमा चलाने की अपील की है. कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की अर्जी को स्वीकार करते हुए छात्रा के वकील से जवाब दाखिल करने को कहा है. अब अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होनी है.

बलात्कार के ऐसे मामलों में जब आरोपी किसी भी तरीके से ताकतवर होता है या आरोपी को बचाने की कोशिश नजर आती है तो सवाल उठने लाजिमी हैं. चिन्मयानंद और कुलदीप सेंगर केस में तो ये हुआ ही, हाथरस गैंगरेप केस में तो फिलहाल यही हो रहा है. पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने सवाल उठाया है कि जेल से आरोपी कब से चिट्ठी लिखने लगे हैं. कोर्ट में पुलिस के आला अफसर से अदालत से पूछा गया - अगर आपकी बेटी के साथ ऐसा होता और ऐसे अंतिम संस्कार किया जाता तो कैसा महसूस करते?

केस की जांच करने वाली एसआईटी ने तभी दावा किया था कि चिन्मयानंद ने अपना अपराध कबूल करते हुये कहा - 'मैं शर्मिंदा हूं.' SIT प्रमुख नवीन अरोड़ा ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि चिन्मयानंद ने पीड़ित लड़की को मसाज के लिए बुलाने में अपनी गलती स्वीकार कर ली है. पूछताछ के दौरान चिन्मयानंद ने वायरल वीडियो में भी माना था कि वही हैं और कहा भी - 'जब आपको सब मालूम हो ही गया है तो मैं ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि मैं खुद शर्मिंदा हूं.'

बहरहाल ये तो मान कर चलना चाहिये कि भले ही आरोप लगाने वाली कानून की छात्रा को नये सिरे से मुकदमे को झेलना पड़े, लेकिन स्वामी चिन्मयानंद को बलात्कार के मामले से तकरीबन मुक्ति मिल गयी है - लेकिन ध्यान रहे न तो उनको संदेह का लाभ मिला है और न ही वो बाइज्जत बरी हुए हैं!

एक रेप विक्टिम का होस्टाइल होना!

जिस अंदेशे के चलते अदालतें ताकतवर आरोपियों की जमानत नामंजूर कर देती हैं - और शक होता है कि आरोपी छूट कर गवाहों को डरा-धमका और प्रभावित कर सकता है, चिन्मयानंद के मामले में भी अब शक की इतनी गुंजाइश तो बन ही गयी है.

20 सितंबर 2019 को चिन्मयानंद को अपने ही कॉलेज की कानून की छात्रा के आरोप पर गिरफ्तारी हुई थी. चिन्मयानंद के खिलाफ IPC की धारा 376C,354D,342 और 506 के तहत केस दर्ज कर मुकदमा चल रहा था. इस केस में 33 गवाहों के बयान दर्ज किये गये हैं और 29 दस्तावेज बतौर सबूत अदालत में दाखिल किये गये हैं.

न तो ये कोई अनोखा मामला है या ऐसा पहली बार हुआ है जब आरोप लगाने वाली लड़की ने बयान बदल लिया है. ऐसे भी मामले हुए हैं जब इसी मोड़ पर केस खत्म मान कर बंद कर दिये जाते हैं, लेकिन अभियोजन पक्ष ने जो स्टैंड लिया है वो बहुत अच्छा है. न तो किसी को कानून हाथ में लेने की छूट मिलनी चाहिये और न ही किसी को कानून के साथ खेलने की.

अभियोजन पक्ष ने मुकदमा चलाने की मांग कर बलात्कार के झूठे मुकदमे दर्ज कराये जाने को लेकर मैसेज तो दिया ही है, ये भी कह सकते हैं कि अभियोजन पक्ष ने कानून की छात्रा को एक और मौका दिया है. अगर छात्रा ने किसी तरीके के दबाव या किसी अन्य वजह से ऐसा फैसला लिया है तो उसे फिर से सोचने का मौका मिला है. वो चाहे तो अपने स्टैंड पर नये सिरे से सोच सकती है - और मुमकिन ये भी है कि खुद पर मुकदमा चलाये जाने की सूरत में किसी न किसी मोड़ पर उसे गलती का एहसास हो और वो ये सच दुनिया के सामने लाने के बारे में भी सोचे.

ये नहीं मालूम कि छात्रा ने किन परिस्थितियों में ये कदम उठाया है, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि उसे बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं थी. वो उन्नाव गैंगरेप पीड़ित से प्रेरणा लेनी चाहिये थी - उन्नाव रेप पीड़ित ने संघर्ष की जो मिसाल बेश की है वो अपने आप में बेमिसाल है.

छात्रा को समझना चाहिये था कि कैसे उन्नाव रेप पीड़ित ने बीजेपी के ही तत्कालीन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के खिलाफ अपने इंसाफ की जंग की शुरुआत की थी. छात्रा को तो एक वायरल वीडियो से ही मदद मिल गयी, लेकिन उन्नाव केस की पीड़ित को तो व्यवस्था और मीडिया का ध्यान खींचने के लिए आत्मदाह की कोशिश करनी पड़ी थी. वो इंसाफ की लड़ाई लड़ रही थी और उसी दौरान उसके पिता की पीट पीट कर हत्या कर दी गयी. उसका जो करीबी रिश्तेदार मदद कर रहा था उसे मिलने जाते वक्त रास्ते में ही उसकी गाड़ी को ट्रक से टक्कर देकर उसे मार डालने की कोशिश की गयी - लेकिन आरोपियों की कोई भी घटिया करतूत उसे इसके मजबूत इरादे से डिगा नहीं सकी - और आखिरकार कुलदीप सिंह सेंगर को कोर्ट से सजा दिलाकर उसने अपने इंसाफ की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया.

कानून की छात्रा होकर उसने ये ठीक नहीं किया है. अगर उसने खुद और अपने भाइयों और उनके दोस्त के खिलाफ चल रहे केस को लेकर ये कदम उठाया है तो बेहतर तो ये होता कि सभी अपने अपने हिस्से की सजा भुगत लिये होते - कम से कम आगे से किसी के ऊपर बलात्कार जैसे संगीन जुर्म का इल्माम लगाने वाली किसी लड़की और महिला पर सवाल खड़ा करने के लिए कोई उसकी मिसाल तो नहीं ही देता. अगर किसी भी केस में छात्रा के इस स्टैंड का जिक्र भी आता है तो उसके हिस्से में इससे खराब बात कोई और नहीं होगी.

अगर बलात्कार के मामलों में भी ऐसा होने लगे तो सवाल खड़े हो जाते हैं - चिन्मयानंद केस में तो जो हुआ है उससे सिस्टम के साथ साथ लॉ स्टू़डेंट भी सवालों के दायरे में उलझ रही है और अगर उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही होती है तो सही भी है. किसी के ऊपर बलात्कार का आरोप लगाकर मुकर जाने के मामले में तकनीकी तौर पर सजा भले कम हो, लेकिन अपराध कम नहीं माना जा सकता है.

न्याय का नैसर्गिक सिद्धांत भी यही कहता है कि कोई गुनहगार भले ही छूट जाये लेकिन किसी बेगुनाह को सजा किसी भी सूरत में नहीं मिलनी चाहिये - और सजा ही क्यों उसे सजा से पहले बगैर किसी वजह के बदनामी और यातना भी क्यों सहने को मजबूर किया जाना चाहिये - इस बात से कतई फर्क नहीं पड़ता कि उसका नाम चिन्मयानंद, कुलदीप सेंगर या कोई और ही क्यों न हो. बेकसूर बेकसूर होता है. अपराधी तो अपराधी ही होता है.

हाथरस पर मचे बवाल के बीच चिन्मयानंद केस में कानून की छात्रा के आरोपों से मुकर जाने का मामला काफी गंभीर लगता है. कल तक जिसे बलात्कार का मामला समझा जा रहा था, अचानक ये ब्लैकमेलिंग का केस लगने लगा है - और दोनों पक्षों को साथ साथ पूरे मामले ने पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है.

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