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Updated: 16 नवम्बर, 2021 07:09 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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बिहार के दिवंगत नेता और एलजेपी के संस्थापक रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) को मरणोपरांत पद्मभूषण सम्मान दिया गया था. रामविलास पासवान के सांसद बेटे चिराग पासवान ने यह सम्मान ग्रहण किया था. इसी समारोह की एक तस्वीर को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान ने ट्वीट किया है. जिसमें वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से व्यक्तिगत मुलाकात करते देखे गए. चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने इस तस्वीर को ट्वीट करते हुए लिखा कि आत्मीयता और आजीवन संबंधों में बढ़चढ़ कर निवेश करने के प्रयासों की वजह से पिताजी के सभी संबंध व्यक्तिगत थे. लोगों और उनके हितों से जुड़े रहने और अपनत्व का वही जज्बा आदरणीय नरेंद्र मोदी में भी देखा है. हाल की संक्षिप्त मुलाकात में उन्होंने कुशलक्षेम पूछा. 

एलजेपी (LJP) में हुई टूट के बाद नई पार्टी बनाने वाले चिराग पासवान लंबे समय से भाजपा (BJP) का दामन थामने की कोशिश में लगे हुए हैं. लेकिन, इस तस्वीर के सामने आने के बाद चिराग पासवान के फिर से एनडीए के खेमे में आने की अटकलें लगने लगी हैं. क्योंकि, उपचुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए चिराग पासवान ने गठबंधन में रहकर ही चुनाव लड़ने का फैसला लिया है. हालांकि, एलजेपी (रामविलास) (LJPRV) की ओर से गठबंधन को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले गए हैं. लेकिन, अब तक हुए तमाम घटनाक्रमों को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि चिराग पासवान की मोदी से 'करीबी' केवल पार्टी विलय का संकेत नजर आती है. क्योंकि, एनडीए में शामिल होने से पहले चिराग पासवान के सामने जेडीयू नेता नीतीश कुमार से लेकर उनके चाचा पशुपति कुमार पारस भी चुनौती खड़ी करते नजर आते हैं.

बिहार उपचुनाव में उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब हुए चिराग

एलजेपी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के साथ ही आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की ओर से पहले ही महागठबंधन में शामिल होने का निमंत्रण मिल चुका है. तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि महागठबंधन के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले हुए हैं. लेकिन, आरजेडी की ओर से मिले इस ऑफर पर चिराग पासवान की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी गई थी. वहीं, हालिया हुए बिहार उपचुनाव में दो विधानसभा सीटों के नतीजे भले ही जेडीयू के पक्ष में आए हों, लेकिन करीब 4 फीसदी वोटों के साथ चिराग पासवान ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है. बीते साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने 6 फीसदी वोट हासिल किए थे. इनमें से करीब 4 फीसदी वोटों को उपचुनाव में अपने पाले में बनाए रखना चिराग के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो एलजेपी को तोड़कर एनडीए में शामिल होने वाले राष्ट्रीय लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति पारस को पार्टी तोड़ने का लाभ मिलता नहीं दिख रहा है. और, भाजपा भी अगले चुनाव से पहले बिहार में ऐसे ही किसी फायदे का सौदा करना चाहेगी.

रामविलास पासवान के बाद एलजेपी संभालने वाले चिराग पासवान ने पार्टी में टूट के बाद जिस तेजी के साथ खुद को स्थापित करने के कदम उठाए हैं. वो उन्हें चाचा पशुपति पारस पर बढ़त दिलाने में कामयाब होते दिख रहे हैं. क्योंकि, पशुपति पारस और प्रिंस राज को छोड़ दिया जाए, तो पार्टी का कोई भी सांसद पासवान जाति का नहीं है. वहीं, ये बात भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि पशुपति पारस और प्रिंस राज को पासवान जाति के नेता के तौर पर पहचान नहीं मिली हुई है. पारस और प्रिंस अभी तक रामविलास पासवान की राजनीतिक फसल पर ही अधिकार जमाए हैं. पशुपति पारस के साथ अलग होकर एनडीए में शामिल होने वाले अन्य तीन सांसदों में से एक भूमिहार समाज से आते हैं, एक सांसद राजपूत समुदाय से हैं और एक मुस्लिम समुदाय से आते हैं. इन तीनों सांसदों को पासवान जाति के वोटों का समर्थन केवल रामविलास की वजह से मिला था. नाकि, पशुपति पारस की वजह से. पार्टी में टूट के बाद पशुपति पारस को मोदी मंत्रिमंडल में जगह तो मिल गई है. लेकिन, बिहार में चिराग पासवान लगातार मजबूत होते दिखाई पड़ रहे हैं.

Chirag Modiएनडीए में चिराग की एंट्री पर नीतीश कुमार और पशुपति पारस ही सवाल उठाएंगे.

एनडीए में शामिल होने में चुनौतियां

एनडीए में शामिल होने से पहले चिराग पासवान के सामने जेडीयू नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार से लेकर उनके चाचा पशुपति कुमार पारस के तौर पर कई चुनौतियां हैं. एनडीए में शामिल होने पर चिराग पासवान को सीधे तौर पर नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार करना होगा. लेकिन, नीतीश कुमार की ओर से शायद ही चिराग पासवान को एनडीए में शामिल करने को लेकर भाजपा के साथ सहमति बनेगी. वहीं, चिराग पासवान भी नीतीश कुमार को अपने नेता के तौर पर शायद ही स्वीकार कर पाएंगे. क्योंकि, चिराग ने बीते साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव के समय से ही नीतीश कुमार पर सियासी हमला करना शुरू कर दिया था. जिसकी वजह से नीतीश कुमार की जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी. यही वजह रही थी कि नीतीश कुमार ने पर्दे के पीछे से एलजेपी में टूट का खेल रचा था.

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में केवल एक सीट एलजेपी के खाते में आने के बाद चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाते हुए खुद को अध्यक्ष घोषित कर लिया था. पार्टी के पांच सांसदों के साथ पशुपति कुमार पारस ने खुद को एनडीए का घटक दल घोषित किया था. चिराग पासवान ने स्थिति संभालने के लिए चाचा पशुपति कुमार पारस से मुलाकात करने के प्रयास किए थे. लेकिन, विफल रहे. एनडीए का हिस्सा होने की वजह से ही पशुपति पारस को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह भी मिली है. कहा जा सकता है कि पशुपति पारस के रहते भी चिराग का एनडीए में शामिल होने का सपना पूरा नहीं होगा. वहीं, भाजपा ने भी राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान को कोई खास तवज्जो नहीं दी थी.

महागठबंधन क्यों विकल्प नजर नहीं आता?

आरजेडी नीत महागठबंधन में शामिल होने पर उनकी राजनीति पर वैसे ही फुलस्टॉप लग जाएगा. क्योंकि, महागठबंधन में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के अलावा और कोई चेहरा नहीं है. तेजस्वी यादव भी अपनी राह में खुद ही कांटा खड़ा नहीं करना चाहेंगे. हालांकि, तेजस्वी ने चिराग पासवान को महागठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया है. लेकिन, चिराग भी जानते हैं कि ये ऑफर केवल बिहार उपचुनाव में सियासी लाभ पाने के लिए ही था. क्योंकि, महागठबंधन में तेजस्वी यादव के सामने कन्हैया कुमार को नेता बनाने पर कांग्रेस का महागठबंधन से पत्ता कट चुका है. उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं को भी इसी वजह से महागठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है. वहीं, बिहार उपचुनाव में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के पूरी ताकत झोंकने के बाद भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. जो महागठबंधन के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनाने के लिए काफी है. इन सबसे इतर बिहार की राजनीति में मुस्लिम, यादव और पासवान गठजोड़ का भी कोई सियासी भविष्य नजर नहीं आता है. क्योंकि, 2010 में लालू यादव और रामविलास पासवान के बीच पहले भी इस गठजोड़ को बनाने की कोशिश की जा चुकी है, जो फेल ही रही थी.

पार्टी विलय ही आखिरी विकल्प

एनडीए में शामिल होना चिराग पासवान के लिए टेढ़ी खीर है. लेकिन, जिस तरह से भाजपा लगातार खुद को बिहार में मजबूत करने की कोशिशों में जुटी हुई है. उसे देखकर कहा जा सकता है कि 2024 के आम चुनाव से पहले एलजेपी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान के सामने भाजपा में पार्टी विलय का विकल्प ही बचा हुआ नजर आता है. क्योंकि, एनडीए में घटक दल के तौर पर शामिल होने के लिए चिराग पासवान के सामने चुनौतियों का अंबार है. वहीं, चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) का भाजपा में विलय होने का विरोध नीतीश कुमार से लेकर पशुपति कुमार पारस भी नहीं कर पाएंगे. क्योंकि, बिहार की राजनीति में भाजपा नीत एनडीए में भले ही नीतीश कुमार की सहमति जरूरी हो. लेकिन, चिराग पासवान के भाजपा में शामिल होने पर नीतीश कुमार के पास विरोध जताने के लिए ज्यादा जगह नजर नहीं आती है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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