भाई और बेटे में से किसे चुनेंगे मुलायम सिंह यादव?
शिवपाल यादव ने घोषणा की है कि मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे वहीं अखिलेश यादव ने बीते जून में ही एलान किया था कि नेता जी मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे. नेता जी के सामने धर्मसंकट खड़ा हो गया है.
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मुलायम सिंह यादव उर्फ नेता जी के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ने हाल ही में एक नई पार्टी का गठन किया है जिसका नाम उन्होंने 'समाजवादी सेक्युलर मोर्चा' रखा है. तमाम मीडिया इंटरव्यू में उन्होंने ये दावा किया कि उन्होंने ये पार्टी नेता जी के आशीर्वाद से ही बनाई है. अगर उनका दावा सही है तो इसका मतलब नेता जी का आशीर्वाद इस बार बेटे को न मिलकर भाई को मिलने वाला है.
समाजवादी पार्टी से बगावती रुख अपनाने वाले शिवपाल ने हाल ही में एक और दावा किया है जिसमें उन्होंने मुलायम सिंह यादव को समाजवादी सेक्युलर मोर्चा की तरफ से चुनाव लड़ाने की बात कही है. शिवपाल के मुताबिक उन्होंने मैनपुरी लोकसभा सीट से नेता जी को चुनाव लड़ाने की पूरी तैयारी कर ली है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि शिवपाल इतना बड़ा दावा बिना मुलायम सिंह यादव की सहमति के कैसे कर सकते हैं. अखिलेश यादव को लेकर मुलायम सिंह यादव की नाराजगी जगजाहिर है.
नेता जी धर्मसंकट में फंस गए हैं.
नेता जी का दर्द
हाल ही में समाजवादी पार्टी के एक कार्यक्रम में मुलायम सिंह यादव का दर्द खुलकर लोगों के सामने आया था. दबी हुई आवाज में पार्टी के तमाम नेताओं के सामने ही नेता जी भावुक हो गए थे. उन्होंने कहा कि पार्टी में अब कोई उनका सम्मान नहीं करता शायद मरने के बाद करेंगे. नेता जी का इतना कहना था कि कार्यक्रम में कुछ देर के लिए सन्नाटा पसर गया. जबसे पार्टी का नेतृत्व अखिलेश यादव ने अपने हांथ में लिया है मुलायम समर्थक नेताओं को हाशिये पर धकेल दिया गया है. शिवपाल यादव ने यहां तक दावा किया है कि आने वाले दिनों में पार्टी के बड़े नेता उनके समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का दामन थामेंगे. इसका मतलब राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में जो आग लगी थी वो अभी तक धधक रही है.
समाजवादी पार्टी के आडवाणी बन गए हैं नेता जी
समाजवादी पार्टी ने पिछले कुछ दशकों में जो भी राजनीतिक मुकाम हासिल किया है उसके पीछे मुलायम सिंह यादव का करिश्माई नेतृत्व और कठिन मेहनत रहा है. नेता जी ने जिस पार्टी को खून और पसीने से सींचा आज उसी पार्टी में सम्मान के लिए भीख माँगना पड़ रहा है. मुलायम सिंह यादव की हालत लाल कृष्ण आडवाणी जैसी हो गयी है जिन्हें हाल के वर्षों में नेतृत्वविहीन कर दिया गया है. ऐसे कुछ लोग नेतृत्व परिवर्तन को राजनीतिक घटना का एक सहज हिस्सा मानते हैं जो बदलते राजनीतिक परिवेश के लिए जरूरी होता है. अखिलेश यादव बीते जून में ही घोषणा कर चुके हैं कि मुलायम सिंह यादव सपा के टिकट पर अगला लोकसभा चुनाव मैनपुरी से लड़ेंगे. नेता जी अपने भाई और बेटे के राजनीतिक रस्साकसी के बीच धर्मसंकट में फंस गए हैं.
2017 में उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले यादव परिवार में जो राजनीतिक कोहराम मचा था उसका असर आज तक दिख रहा है. शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई कि शिवपाल ने नई पार्टी बना ली. शिवपाल यादव ने एलान किया है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी राज्य की सभी 80 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. जाहिर सी बात है कि शिवपाल यादव की पार्टी अखिलेश के समाजवादी पार्टी की ही वोट काटेगी जिसका असर पार्टी के चुनावी नतीजों पर दिख सकता है. लेकिन इस पूरे प्रकरण के दौरान मुलायम सिंह यादव का मूकदर्शक बने रहना अखिलेश यादव के लिए खतरे की घंटी है. इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलेगा जो पहले ही बुआ और बबुआ के गठबंधन को लेकर सशंकित है.
पटना से लेकर लखनऊ तक समाजवादी कुनबे में ठीक-ठाक हलचल मची हुई है. पटना में भाई बनाम भाई का मामला है तो लखनऊ में चाचा बनाम भतीजे का. राजनीतिक महत्वाकांक्षा के सामने पारिवारिक रिश्ते धुंआ हो गए हैं. मुलायम सिंह यादव का समर्थन भाई को मिलेगा या बेटे को ये तो भविष्य के गर्भ में हैं लेकिन इतना तय है कि नुकसान समाजवादी पार्टी का ही होने वाला है क्योंकि शिवपाल सिंह यादव के पास खोने को कुछ नहीं है.
कंटेंट - विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)
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