कांग्रेस समर्थित किसान आंदोलन अब कैप्टन अमरिंदर सिंह को 'सिरदर्द' लगने लगा है
किसान आंदोलन को सबसे पहले खाद-पानी देने का काम तो कांग्रेस ने पंजाब से शुरू हुआ था. दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर मौजूद किसान संगठनों की ताकत बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने ही उन्हें राजनीति के बूस्टर डोज दिए थे. किसान संगठन की आड़ में जुड़े वामपंथियों और खालिस्तान समर्थक सोच वालों का बचाव कांग्रेस प्रवक्ता ही हर जगह करते दिखाई पड़ते थे.
-
Total Shares
मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली, हरियाणा और पंजाब की सीमाओं पर 10 महीनों से किसान आंदोलन बदस्तूर जारी है. केंद्र की मोदी सरकार इन कानूनों को करीब डेढ़ साल के लिए टाल चुकी है. लेकिन, कानून वापस लेने के पक्ष में नहीं है. वहीं, किसान आंदोलन चला रहा संयुक्त किसान मोर्चा इन कृषि कानूनों को पूरी तरह से समाप्त किए जाने की जिद पकड़े बैठा हुआ है. किसान आंदोलन को तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों का समर्थन भी मिला हुआ है, तो यह अब पूरी तरह से सियासी रंग में रंग चुका है. इन तमाम बातों से इतर किसान आंदोलन के गढ़ पंजाब में अब यह विरोध-प्रदर्शन 'सिरदर्द' बनता नजर आ रहा है. ऐसा कहने की वजह हैं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह. दरअसल, सीएम अमरिंदर सिंह ने किसानों से अपील की है कि अगर उन्हें आंदोलन करना ही है, तो वो दिल्ली और हरियाणा चले जाएं. अमरिंदर सिंह का कहना है कि किसानों के आंदोलन से विकास प्रभावित हो रहा है और राज्य को आर्थिक नुकसान भुगतना पड़ा रहा है.
किसान आंदोलन सबसे पहले पंजाब से शुरू हुआ था. उसे खाद-पानी देने का काम तो कांग्रेस ने ही किया था.
वैसे, अमरिंदर सिंह का ये बयान काफी चौंकाने वाला है. जो किसान आंदोलन सबसे पहले पंजाब से शुरू हुआ था. उसे खाद-पानी देने का काम तो कांग्रेस ने ही किया था. दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर मौजूद किसान संगठनों की ताकत बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने ही उन्हें राजनीति के बूस्टर डोज दिए थे. वहीं, किसान आंदोलन में किसान संगठन की आड़ में जुड़े वामपंथियों और खालिस्तान समर्थक सोच वालों का बचाव कांग्रेस प्रवक्ता ही हर जगह करते दिखाई पड़ते थे. वो पंजाब ही था, जहां कथित किसानों ने भाजपा के विधायक को 'नग्न' कर मारपीट की गई थी. किसान आंदोलन को शाहीन बाग में हुए सीएए प्रदर्शन की तरह बनाने की भरपूर कोशिशें की गईं. गणतंत्र दिवस पर ये कोशिशें कामयाब भी हो जातीं. लेकिन, दिल्ली पुलिस के संयम भरे व्यवहार से मामला केवल लाल किले की प्राचीर पर एक धार्मिक झंडा लगाने और अराजकता पर ही रुक गया.
करीब 10 महीनों से किसान आंदोलन के नाम पर राष्ट्रीय राजमार्गों का घेराव किए बैठे ये कथित किसान संगठन शाहीन बाग की तरह ही किसानों को गुमराह कर चक्काजाम की स्थिति बनाए हुए हैं. नौकरी और व्यापार के लिए आवाजाही करने वाले लाखों लोग इससे प्रभावित हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट तक इस विषय में समाधान निकालने के लिए मोदी सरकार से जवाब तलब कर चुका है. लेकिन, समस्या जस की तस है. बीती 5 सितंबर को उत्तर प्रदेश मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत में जुटी भारी भीड़ को देखने के बाद से ही संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं का उत्साह सातवें आसमान पर है. देशभर के किसान संगठनों के सहारे की गई इस किसान महापंचायत में हर कथित किसान नेता ने मंच से एक ही बात समवेत सुर में कहा कि योगी आदित्यनाथ को सत्ता से हटाना है.
खैर, किसान आंदोलन के मंच का राजनीतिक इस्तेमाल इसकी शुरूआत होने के साथ ही हो गया था. तो, किसान महापंचायत में मिशन यूपी और उत्तराखंड की घोषणा होना बिल्कुल भी चौंकाता नहीं है. भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे राकेश टिकैत की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं तभी सामने आ गई थीं, जब वो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सीएम बनने के बाद उनसे मिलने पहुंचे थे. किसान आंदोलन की शुरूआत से ही अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे राकेश टिकैत ने ही गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने का आइडिया दिया था. ये वही राकेश टिकैत हैं जो गणतंत्र दिवस पर फैली अराजकता के बाद कहते नजर आए थे कि सरकार ने उपद्रवियों को गोली क्यों नहीं मारी?
किसान आंदोलन में अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे राकेश टिकैत ने ही गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने का आइडिया दिया था.
दरअसल, इन कथित किसानों और किसान नेताओं की ओर से मोदी सरकार से बातचीत के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. राकेश टिकैत के हालिया बयानों को देखेंगे, तो उनका उद्देश्य पूरी तरह से राजनीतिक नजर आता है. वैसे, आसान शब्दों में कहा जाए, तो किसी गली के गुंडे जैसे भाषा का इस्तेमाल करने वाले राकेश टिकैत कभी कृषि कानूनों पर बात करते नजर नहीं आते हैं. इन कानूनों में क्या बदलाव हो सकते हैं या इन कानूनों में किसानों की भलाई के लिए क्या चीजें जोड़ी जा सकती है, राकेश टिकैत ऐसे सवालों से हमेशा ही दूर रहते हैं. उनका कहना है कि मोदी सरकार कृषि कानूनों को बस रद्द करे. ये सारी मांगें शाहीन बाग के पूर्व स्थापित मॉडल की तर्ज पर ही की जा रही हैं.
इन सबसे इतर किसान आंदोलन के दौरान हिंसा, बलात्कार, हत्या जैसी घटनाएं भी सामने आई हैं. वैसे, पूरी तरह से राजनीतिक हो चुका किसान आंदोलन पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में सिमट चुका है. अगर पंजाब में अमरिंदर सिंह की सरकार वापस बनती है, तो वो किसान आंदोलन को पंजाब में चलने देंगे, इस बात की संभावना लगभग खत्म हो चुकी है. क्योंकि, अमरिंदर सिंह अपना सिरदर्द हरियाणा और दिल्ली भेजने की बात कह चुके हैं. कहना गलत नहीं होगा कि पहले इन कथित किसान नेताओं और किसान संगठनों ने आग लगाई और अब अपना घर जलता देख उस आग को फूंक मारकर बुझाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही ये भी कोशिश है कि ये आग किसी दूसरे राज्य में लगे. क्योंकि, किसान आंदोलन से पंजाब का नुकसान हो रहा है. लेकिन, अगर ये दिल्ली और हरियाणा में होगा, तो वहां सब कुछ ठीक रहेगा.
आपकी राय