'भारत जोड़ो यात्रा' का फायदा देश को मिले न मिले, राहुल गांधी और कांग्रेस को जरूर मिलेगा!
कांग्रेस का 'भारत जोड़ो यात्रा' से उद्देश्य यही है कि वो धर्मनिरपेक्ष भावना के लिए देश के लोगों को आपस में जोड़ सके. करोड़ों भारतीयों की आवाज बन सके और उसे बुलंद कर सके. इसके अलावा मौजूदा वक्त में देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है, इसके बारे में वो जनता से बात कर सके.
-
Total Shares
लाखों रंग समेटे हुए, ये इंद्रधनुष का वेश है.
कन्याकुमारी से कश्मीर तक, जुड़ रहा मेरा देश है.
ये शब्द मेरे नहीं हैं... इनको ट्वीट किया है कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने, साथ ही लिखा है- मैं आ रहा हूं, आपके शहर, आपके गांव, आपकी गली, आपसे मिलने. हम सब साथ मिलकर अपना भारत जोड़ेंगे.
लाखों रंग समेटे हुए, ये इंद्रधनुष का वेश है।कन्याकुमारी से कश्मीर तक, जुड़ रहा मेरा देश है। मैं आ रहा हूं, आपके शहर, आपके गांव, आपकी गली, आपसे मिलने। हम सब साथ मिलकर अपना भारत जोड़ेंगे।#MileKadamJudeVatan pic.twitter.com/ypNcU345fU
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 5, 2022
राहुल गांधी ने 7 सितंबर से भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत कर दी है. इसका मकसद कांग्रेस को एकजुट करना और पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं में नए जोश का संचार करना है. जानकारों का मानना है कि कांगेस ने डेढ़ साल बाद के लिए अभी से कोशिश शुरू कर दी है यानी 2024 के आम चुनाव के लिए राहुल गांधी लोगों के बीच जाकर कांग्रेस का आधार मजबूत करने की तैयारी कर रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा शुरू करने से पहले राहुल गांधी सुबह सात बजे तमिलनाडु के श्रीपेरुमबुदुर शहर पहुंचे. जहां वे अपने पिता राजीव गांधी के शहीद स्मारक पर गए और उनसे आशीर्वाद लिया. राहुल गांधी ने अपने पिता को नमन करते हुए तस्वीर शेयर करते हुए ट्वीट कर लिखा- ‘नफरत और बंटवारे की राजनीति में मैंने अपने पिता को खो दिया. मैं अपने प्यारे देश को इसमें नहीं खोऊंगा. प्यार नफरत को जीत लेगा. आशा डर को हरा देगी. हम सब मिलकर कामयाब होंगे.’
I lost my father to the politics of hate and division. I will not lose my beloved country to it too.Love will conquer hate. Hope will defeat fear. Together, we will overcome. pic.twitter.com/ODTmwirBHR
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) September 7, 2022
श्रीपेरुमबुदुर में यही वो जगह है जहां राजीव गांधी की हत्या हुई थी. राहुल उन लोगों के परिवार से भी मिले जिन्होंने राजीव गांधी के साथ उस बम ब्लास्ट में जान गंवाई थी. राजीव गांधी के शहीद स्मारक पर राहुल की तस्वीर साझा करते हुए कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा- पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी के विचार और सीख आज भी राहुल गांधी जी के लिए हौसले का काम करते हैं और भारत जोड़ो यात्रा इसी हौसले के साथ शुरू होने जा रही है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश की आज तक के साथ बातचीत को कांग्रेस ने ट्वीट किया. जयराम रमेश ने कहा कि राहुल गांधी जी के किए ये यात्रा तपस्या के समान है. ये 3570 कि.मी. की भारत जोड़ो यात्रा 12 राज्यों से होकर गुजरेगी और इसमें 118 कांग्रेसी कार्यकर्ता शामिल हैं. साथ ही जयराम रमेश ने इस यात्रा के उद्देश्य के बारे में भी बताया.
राहुल गांधी जी ने कहा है कि ये यात्रा मेरे लिए तपस्या के समान है। ये 3570 कि.मी. की भारत जोड़ो यात्रा 12 राज्यों से होकर गुजरेगी, इसमें 118 कांग्रेसी कार्यकर्ता शामिल हैं।- श्री @Jairam_Ramesh #BharatJodoYatra pic.twitter.com/TwhKfdJNOH
— Congress (@INCIndia) September 7, 2022
कांग्रेस का इस यात्रा से यही उद्देश्य है कि वो धर्मनिरपेक्ष भावना के लिए देश के लोगों को आपस में जोड़ सके. करोड़ों भारतीयों की आवाज बन सके और उसे बुलंद कर सके. इसके अलावा मौजूदा वक्त में देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है, इसके बारे में जनता से बात करना. यानी कुल मिलाकर कांग्रेस और राहुल गांधी की कोशिश ये है कि केंद्र सरकार, बीजेपी, एनडीए और पीएम मोदी के खिलाफ लामबंदी की जाए और कांग्रेस को देश की राजनीति में फिर पुराना मुकाम दिलाया जाए. इस यात्रा के बारे में वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र द्विवेदी ने भी अपने विचार प्रकट किए हैं.
उनका मानना है कि ये भारत जोड़ो यात्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ही नहीं राहुल गांधी और कांग्रेस के सामने भी एक बहुत बड़ी चुनौती है. कन्याकुमारी से कश्मीर तक 150 दिन चलने वाली 3570 किलोमीटर की यात्रा राहुल गांधी के लिए भी फुल टाइमर राजनीतिज्ञ बनने की अग्निपरीक्षा साबित होगी. राहुल गांधी जब से सियासत में आये हैं, उनका रिकॉर्ड रहा है कि गंभीर मुद्दों पर भाषण करते हैं, बयान देते हैं और फिर किसी न किसी यात्रा पर निकल जाते हैं.
राहुल को लेकर ऐसा परसेप्शन बन गया है कि वो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से तथ्यों के आधार पर सीधी लड़ाई लड़ते हैं लेकिन मोदी की तरह 24 घंटे मेहनत न करने के कारण लगातार असफल हो रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सफलता की सबसे बड़ी योग्यता ईमानदारी और निरंतर 24 घंटे मेहनत करना माना जा रहा है. वैसे देखा जाए तो राहुल गांधी ईमानदारी में किसी भी तरह से मोदी से कम नहीं हैं. हम ऐसा भी कह सकते हैं कि सत्ता का लालच भी राहुल गांधी को छू नहीं पाया है.
राजेंद्र द्विवेदी मानते हैं कि देश में जो हालात हैं उसके हिसाब से निश्चित ही भारत जोड़ो यात्रा एक बहुत बड़ी जरूरत है. समय, काल और परिस्थिति के अनुसार जो राजनितिक हालात देश में बने हैं उसमें राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा भाजपा सरकार के सामने एक गंभीर चुनौती खड़ी कर सकती है. आजादी के 75 वर्ष बाद देश में जिस तरह से सामाजिक और धार्मिक आधार पर बंटवारा होने की बातें चल रही हैं या जातियों के बीच की खाई गहराने की खबरें आ रही हैं, उसमें बीजेपी हो या गैर-बीजेपी शासित राज्य, पूरे देश में सामाजिक समरसता टूटती सी लग रही है.
साथ ही लगता है जैसे लोगों के बीच भाईचारा कम हुआ है. अमीर- गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा रही है. ऐसे में राहुल गांधी के नेतृत्व में 100 से ज्यादा सामाजिक संगठनों की भारत जोड़ो यात्रा देश में नया राजनीतिक जन जागरण बना सकती है जो 2024 में बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. वैसे ये कोई पहली यात्रा नहीं है. आज़ादी के पहले और बाद भी देश में बहुत यात्रायें हुई हैं. गांधी का दांडी मार्च आजादी दिलाने में एक मील का पत्थर साबित हुआ था.
लेकिन अफसोस, अब न कोई महात्मा गांधी है और न किसी को वैसा जन-समर्थन मिल सकता है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक 4200 किलोमीटर की यात्रा भारत जोड़ो के नाम पर की थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के सामने भारत जोड़ो यात्रा ने एक जन जागरण कांग्रेस के खिलाफ देश में बना दिया था. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि जैसा जन-जागरण चंद्रशेखर की भारत यात्रा, मेनका गांधी द्वारा गठित संजय विचार मंच और इन्दिरा गांधी विरोधी बड़े बड़े नेताओं ने मिलकर बनाया था, अगर 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन पीएम इन्दिरा गांधी की हत्या नहीं हो गयी होती तो देश की सियासत का रूख शायद अलग होता.
इन्दिरा विरोधी जनजागरण उनकी हत्या के बाद सहानभूति लहर में बदल गया और कांग्रेस ने ऐतिहासिक 415 सीटें जीतकर राजीव गांधी के नेतृत्व में एक रिकॉर्ड बनाया था. आजकल हालात बीजेपी सरकार के खिलाफ बने हुए हैं लेकिन उस माहौल को बीजेपी के खिलाफ नेतृत्व देने वाला कोई बड़ा और अनुभवी नेता विपक्ष के पास नहीं है. नीतीश कुमार अनुभवी हैं, ईमानदार हैं लेकिन वो क्षेत्रीय दल के नेता हैं, उन्होंने बीजेपी से अलग होकर लालू के साथ मिलकर गठबंधन किया है.
नीतीश को राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी विरोधी लहर बनाने में सफलता मिलेगी, इसमें संदेह है. जिस तेवर के साथ 2013 में मोदी के खिलाफ नीतीश ने विरोध जताया था, अगर वो फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए बीजेपी से न मिले होते तो शायद पीएम मोदी के विकल्प के रूप में नीतीश कुमार विपक्ष का चेहरा हो सकते थे. मगर ये हो न सका.. और अब ये आलम है कि हालात बदले हुए हैं और राहुल गांधी जिस तरह से मोदी सरकार पर लगातार आक्रामक हैं उससे तो देश में एक परसेप्शन बन गया है कि मोदी के खिलाफ अकेला नेता राहुल गांधी ईमानदारी से लड़ाई लड़ रहा है. लेकिन इसका फायदा राहुल गांधी नहीं उठा पा रहे हैं.
कारण सीधा है कि वो जिम्मेदारी से भाग जाते हैं जैसे कांग्रेस का अध्यक्ष पद छोड़ देना और उसे फिर न अपनाने की बात करना. न ही राहुल गांधी लगातार मेहनत कर पा रहे हैं. वो हमेशा भाजपा के एजेंडे में ही फंस जाते हैं. सियासत में माना जाता है कि जो आरोपों की परवाह नहीं करते, जनभावनाओं के हिसाब से लगातार ईमानदारी से मेहनत करते हैं, अवसर आने पर नेतृत्व उन्हीं के हाथों में होता है. बड़े राजनीतिक घराने में पैदा होना राहुल गांधी की गलती नहीं है और न ही उनको परिवारवाद के भाजपा के आरोपों से डरना चाहिए.
2019 में चुनाव हारने के बाद भी राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कमान संभाले रखकर राहुल गांधी को ईमानदारी से जन समस्याओं को सुनकर और उनका समाधान करने की कोशिश करनी चाहिए थी. सरकार विरोधी जन भावनाओं और मोदी सरकार के द्वारा लगातार एजेंसियों के दुरूपयोग जैसे मुद्दों पर राहुल को फुल टाइम सियासत करनी चाहिए. गांधी-नेहरू परिवार में पैदा होना परिवारवाद है या नहीं, इसका फैसला जनता करे.
राहुल गांधी को भाजपा के आरोपों से न तो विचलित होना चाहिए था और न ही अध्यक्ष पद छोड़ना चाहिए था. पिछले कुछ साल से नियमित अध्यक्ष न होने से भी कांग्रेस से असंतोष पनपा है. कांग्रेस के बड़े नेताओं के जो चेहरे आज देश में दिखाई दे रहे हैं, निश्चित रूप से वो सभी नेहरू-गांधी परिवार के आशीर्वाद से ही पले बढे हैं. ये कड़वी सच्चाई है कि माइनस गांधी परिवार, कांग्रेस की एकजुटता टेढ़ी खीर साबित होगी. इसीलिए ये कहा कि जो हालात आज देश में हैं उनके हिसाब से भारत जोड़ो यात्रा समय-काल-परिस्थिति की जरूरत है.
इसे समय की पुकार तो कहा ही जा सकता है, साथ ही मोदी सरकार के खिलाफ उपजी जनभावना को जोड़ने का बेहतर प्रयास भी कहा जा सकता है. भारत जोड़ो यात्रा के पहले राहुल गांधी ने दिल्ली के राम लीला मैदान में मोदी सरकार के खिलाफ जिन मुद्दों को उठाया वो सभी जनता से जुड़े हैं. महगाई, बेरोजगारी के साथ समाज में हो रहा बिखराव देश के सामने गंभीर समस्या है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद कह चुके हैं कि सरकार बनाना आसान है लेकिन देश बनाना बहुत मुश्किल है. राहुल गांधी भी कहते हैं कि चुनाव जीता जा सकता है लेकिन देश चलाना चुनौतीपूर्ण होता है.
दोनों के बयान चुनाव जीतने और देश को चलाने को लेकर हैं लेकिन मोदी और राहुल को लेकर जनता में परसेप्शन अलग अलग है. मोदी ईमानदार, लोकप्रिय, 24 घंटा मिशन की तरह मेहनत करने वाले, भाजपा में एकछत्र नेता और भारी बहुमत से दूसरी बार जीतने वाले प्रधानमंत्री हैं. चाहे कुछ लोगों के हिसाब से उनमें लाख खामियां हों लेकिन फिर भी वो मीडिया और एजेंसियों के माध्यम से विपक्ष को दबाने में सफल हैं, ये मोदी के लिए बना हुआ परसेप्शन है.
इसके विपरीत राहुल गांधी के प्रति परसेप्शन है कि वो ईमानदार हैं, सत्ता लोलुप नहीं हैं, मोदी सरकार के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन नेतृत्व में मामले में पलायनवादी रवैया है और फुल टाइम सियासत नहीं करते. विपक्ष कमजोर है देश में समस्याओं का अंबार है. ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा जनता को जोड़ने में कितना सफल होती है ये राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. अगर राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से जनता से सीधा संवाद करने में सफल रहे तो कांग्रेस के अंदर गांधी परिवार के खिलाफ उठने वाली आवाज दब जाएगी और राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में गांधी परिवार का वर्चस्व बने रहने पर भाजपा का कोई विरोध काम नहीं करेगा.
राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा में फुल टाइमर की सियासत का परसेप्शन नहीं बनाया तो निश्चित रूप से इसका खामियाजा 2024 में कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा. भारत जोड़ो यात्रा मोदी और राहुल दोनों के सामने चुनौती है. वक्त तय करेगा कि भारत जोड़ो यात्रा से 2024 में किसे फायदा होगा और किसे नुकसान..
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े इंटरेस्टिंग फैक्ट्स-
राहुल गांधी के साथ 118 कांग्रेस नेताओं सहित सिविल सोसायटी से जुड़े करीब 300 लोग पदयात्रा में शामिल होंगे. कांग्रेस ने ये बात पहले ही बता दी थी कि राहुल गांधी यात्रा के दौरान किसी होटल में नहीं रुकेंगे. ये यात्रा फाइव स्टार होटल के जरिए नहीं होगी. राहुल गांधी साधारण तरीके से इस यात्रा को पूरा करेंगे. ऐसे में कुछ लोगों के मन में सवाल उठ सकता है कि राहुल गांधी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान पांच महीने कहां और कैसे रहेंगे? उनके साथ चलने वाले सभी यात्रियों का खाना, रहना, सोना कैसे होगा?
3570 किलोमीटर की 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान राहुल गांधी 150 दिनों तक चलते-फिरते कंटेनर में रहेंगे. सोने के लिए बेड, टॉयलेट और एसी भी लगाया गया है. यात्रा के दौरान हर रोज कंटेनर के जरिए एक नया गांव बसेगा, जहां राहुल गांधी और उनके साथ चलने वाले यात्री ठहरेंगे. इसके लिए करीब 60 कंटेनर को आशियाने के रूप में तैयार किया गया है, जिन्हें ट्रकों पर रखा गया है. ये सभी कंटेनर राहुल यात्रा के दौरान साथ नहीं चलेंगे बल्कि दिन के अंत में निर्धारित जगह पर यात्रा में शामिल लोगों के पास इन्हें पहुंचा दिया जाएगा.
रात्रि विश्राम के लिए इन सारे कंटेनर को गांव की शक्ल में हर रोज एक नई जगह पर खड़ा किया जायेगा. राहुल गांधी सुरक्षा कारणों से एक अलग कंटेनर में सोएंगे जबकि बाकी लोग अन्य कंटेनरों में आराम करेंगे. इसी कंटेनर के गांव में सभी यात्री एक टेंट में राहुल गांधी के साथ खाना भी खाएंगे. कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा के लिए बड़े पैमाने पर तैयारियां की हैं. इस यात्रा में 28 महिलाएं भी हैं. महिलाओं के ठहरने और सोने के लिए अलग से कंटेनर बने हैं.
कांग्रेस नेताओं के अलावा सिविल सोसायटी से जुड़े हुए लोग, सुरक्षाकर्मी, पार्टी की कम्युनिकेशन टीम के सदस्य जिनमें फोटोग्राफर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म संभालने वाले लोग और साथ ही मेडिकल टीम के लोग भी यात्रा में शामिल होंगे. कांग्रेस की इस यात्रा में अधिकतर लोग कन्याकुमारी से ही शामिल हो जाएंगे. यात्रा 5 महीने तक चलनी है इसलिए यात्रा में जाने वाले सभी नेताओं को बताया गया है कि कपड़े धोने की सुविधा 3 दिन में एक बार ही मिल पाएगी.
ये यात्रा एक दिन में 22-23 किलोमीटर तक चलेगी. हर रोज सुबह 7 बजे यात्रा शुरू होगी और सुबह 10 बजे तक चलेगी. फिर कुछ घंटे के आराम के बाद यात्रा दूसरे पहर में 3:30 बजे शुरू होगी और शाम को 7 बजे तक चलेगी. राहुल गांधी और कांग्रेस 5 महीने के लिए पूरी मशक्कत से जुटने वाले हैं और हम उम्मीद करते हैं कि उन्हें उनकी मेहनत का फल भी मिले. क्योंकि देश में मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है.
आपकी राय