Congress को सेक्युलरिज्म ज्यादा सूट करता है, सॉफ्ट हिंदुत्व तो खुदकुशी जैसा ही है!
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सहित पूरी कांग्रेस पार्टी सॉफ्ट हिंदुत्व (Secular VS Soft Hindutva Politics) के चक्कर में बीजेपी की राष्ट्रवाद की राजनीति में फंस कर रह जाती है - क्या सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को भी कांग्रेस की सेक्युलर छवि में अब भरोसा नहीं रह गया है?
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लगता नहीं कांग्रेस के नजदीकी भविष्य में कुछ भी बदलने वाला है - न नेतृत्व, न देश के ज्वलंत मुद्दों पर स्टैंड - और न ही चुनावों के प्रति रवैया. राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन को लेकर कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रिया से लेकर राहुल गांधी की डिजिटल रैली तक - ऐसी तेज रफ्तार गाड़ी पर सवार नजर आयी है जिसका ब्रेक फेल हो चुका है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि नेतृत्व तो इससे पूरी तरह बेखबर है.
मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी अभी अंतरिम तौर पर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को ही संभालनी पड़ेगी - क्योंकि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को जिन माकूल परिस्थितियों की जरूरत है, माहौल वैसा तैयार नहीं हो पा रहा है. इसलिए मान कर चलना चाहिये कि सोनिया गांधी के अलावा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का पहले की तरह आगे भी दखल बना रहेगा - अब ये किसी कांग्रेसी को पसंद हो या न हो.
बिहार चुनाव की तैयारी कर रही कांग्रेस राम मंदिर निर्माण को लेकर अयोध्या में भूमि पूजन से बने माहौल में अपनी सेक्युलर छवि पर सॉफ्ट हिंदुत्व (Secular VS Soft Hindutva Politics) को तरजीह देने लगी है - क्या कांग्रेस नेतृत्व पार्टी की विचारधारा को लेकर असमंजस में है?
हिंदुत्व की राजनीति से बड़ी मुश्किल कांग्रेस के लिए राष्ट्रवाद है
अयोध्या में भूमि पूजन से पहले कांग्रेस की तरफ से मुख्य तौर पर तीन तरह की बातें सामने आयीं. एक कमलनाथ का भगवाधारी होकर राम मंदिर निर्माण के श्रेय में राजीव गांधी के नाम पर हिस्सेदारी बताना. दो, प्रियंका गांधी का 'सबमें राम, सबके राम' बोल कर अयोध्या से कनेक्ट होने की कोशिश करना और तीन, राहुल गांधी का राम का नाम लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'प्रेम, करुणा और न्याय' पर नसीहत देना.
आखिर कांग्रेस को ये सब करने की जरूरत क्यों पड़ती है? आखिर कांग्रेस को ये क्यों नहीं समझ आता कि ये सब करने के बाद भी पार्टी से निराश और नाराज लोगों पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. आखिर कांग्रेस क्यों कभी कभार खुद को बीजेपी जैसी पेश करने की कोशिश करती है?
अगर सोनिया गांधी ये समझ चुकी हैं कि कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी साबित कर दिया गया है, तो पार्टी को कट्टर हिंदुत्व की रेस में झोंकने की जरूरत ही क्यों लगती है?
जब लोगों के मन में ये धारणा मजबूती से बस चुकी हो कि कट्टर हिंदुत्व समर्थक बीजेपी ही अकेली पार्टी है, तो कांग्रेस को उसकी बगल में खड़ा होकर खुद भी उसके जैसा दिखाने की जरूरत क्यों पड़ती है?
असल बात तो ये है कि कांग्रेस के सामने बड़ी समस्या हिंदुत्व की राजनीति नहीं, बल्कि राष्ट्रवादी की राजनीति से मुकाबला है - और कांग्रेस नेतृत्व इस मामले में बार बार चूक जाता है. 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस नेतृत्व से जो गलतियां हुईं, वे आज भी रुक नहीं रही हैं. पुलवामा हमले के चलते नयी नयी कांग्रेस अध्यक्ष बनी प्रियंका गांधी बीच में ही कार्यक्रम छोड़ कर लखनऊ से दिल्ली लौट गयी थीं और राहुल गांधी भी कुछ दिनों तक मोदी सरकार पर सवाल उठाने से परहेज करते रहे. तभी विपक्षी नेताओं की एक मीटिंग हुई और ममता बनर्जी के दबाव में राहुल गांधी को मीडिया के सामने आकर संयुक्त विपक्ष का बयान पढ़ना पड़ा. जरा भी देर नहीं लगी और बीजेपी की तरफ से बताया जाने लगा कि कांग्रेस की अगवाई में विपक्ष देश विरोधी हरकतें करने लगा है जिस पर पाकिस्तान में बहस हो रही है.
जब तक कांग्रेस को अपने ऊपर भरोसा नहीं होता, लोग कैसे यकीन कर सकते हैं?
यही हाल उस वक्त भी हुआ जब राहुल गांधी बिहार कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ डिजिटल रैली कर रहे थे. बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई कर रहे थे - और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी याद दिला रहे थे कि पाकिस्तान पर विपक्ष खामोश क्यों है?
विडम्बना यह कि कांग्रेस, राजद और वामदल सहित किसी विरोधी दल ने पाकिस्तानी नक्शे के विरोध में ट्वीट तक नहीं किया, जबकि पाकिस्तान का पूरा विपक्ष इमरान सरकार के साथ खड़ा हुआ। क्या भारत के विपक्षी दलों के ऐसे रवैये पर उनकी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठने चाहिए?
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) August 6, 2020
बात भी सही है, राहुल गांधी चीन को लेकर तो मोदी सरकार पर आक्रामक हैं, लेकिन पाकिस्तान के नये नक्शे पर कोई बयान नहीं आया है. बीजेपी उसी बात को मुद्दा बना रही है - और राजनीति एक बार फिर उसी लाइन पर बढ़ रही है जिस तरह का हाल आम चुनाव में देखने को मिला था.
कट्टर हिंदुत्व के मुकाबले में सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ कांग्रेस नेता मैदान में खड़े होने की कोशिश करते ही क्यों हैं - क्या कांग्रेस को सेक्युलरिज्म पर से भरोसा उठ गया है?
कांग्रेस को अपनी सेक्युलर छवि से परहेज क्यों
हिन्दुत्व की राजनीति में कांग्रेस नेताओं के कूद पड़ने के बाद केरल से दो टिप्पणियां आयी हैं. एक तो केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन की है और दूसरी कांग्रेस के भीतर से ही. केरल से कांग्रेस के लोक सभा सांसद टीएन प्रतापन ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर कांग्रेस के ताजा रूख पर सवाल उठाया है.
जिस केरल के वायनाड से राहुल गांधी सांसद हैं वहीं के मुख्यमंत्री पी. विजयन का कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा के बयान से उनको कोई हैरानी नहीं हुई है. लेफ्ट नेता पी. विजयन ने ये भी कहा कि अगर धर्मनिरपेक्षता को लेकर कांग्रेस एक निश्चित स्टैंड पर कायम रहती तो देश के सामने आज ऐसी परिस्थितियां नहीं होतीं. केरल के ही त्रिशूर से कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन पत्र में लिखते हैं - मुझे लगता है कि ये संघ परिवार द्वारा प्रायोजित धार्मिक राजनैतिक कार्यक्रम था - अगर ऐसे कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता है तो हमारे नेता इसके लिए रिक्वेस्ट क्यों करते फिर रहे हैं?
टीएन प्रतापन की सलाह है कि कांग्रेस को अति धार्मिक राष्ट्रवाद के पीछे भागने की जरूरत नहीं होनी चाहिये क्योंकि कांग्रेस ने हमेशा भारत को महान देश बनाने में बहुलतावादी विरासत को संजोकर रखने का काम किया है.
कांग्रेस सांसद ने कहा कि मुझे लगता है कि ये संघ परिवार द्वारा प्रायोजित धार्मिक राजनैतिक कार्यक्रम था. यदि हमें इस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं किया गया तो हमारे नेता इसके लिए निवेदन क्यों कर रहे हैं. प्रतापन ने लिखा कि कांग्रेस ने हमेशा भारत को महान राष्ट्र बनाने और बहुसंख्यकवाद की विरासत को संभालकर रखने का काम किया है. टीएन प्रतापन ने लिखा हमें इसमें किसी भी हिस्सेदारी का दावा नहीं करना चाहिए. हम जैसे नेताओं को भूमि पूजन जैसे आयोजन में क्यों आमंत्रित किया जाना चाहिए. कांग्रेस अध्यक्ष को लिखे अपने पत्र में सांसद ने लिखा कि कहा कि हम अति धार्मिक राष्ट्रवाद के पीछे इसके नरम स्वरूप के साथ भाग नहीं सकते. हमें तत्काल विकल्प को स्वीकार करना चाहिए.
साफ है कांग्रेस के भीतर भी और बाहर भी उसकी सेक्युलर छवि को लेकर द्वंद्व और संदेह की स्थिति पैदा होने लगी है. कांग्रेस नेतृत्व को अगर लगता है कि लोग उसे मुस्लिम पार्टी जैसा समझते हैं, तो उसे हिंदू पार्टी बनने का शौक क्यों पैदा हो जाता है? अरविंद केजरीवाल जैसे नयी पार्टी वाले नेताओं के लिए राजनीतिक लाइन बदलना मुश्किल नहीं है, लेकिन कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी के लिए तो विचारधारा से समझौता करना खुदकुशी करने जैसा ही लगता है.
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