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Updated: 20 मई, 2021 07:28 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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किसान आंदोलन के समय सुर्खियां बटोरने वाली 'टूलकिट' कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान फिर से चर्चाओं में आ गई है. इस टूलकिट वजह से एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है. विपक्ष के तमाम नेता (खासकर कांग्रेस के) कोरोना महामारी से उपजी अव्यवस्थाओं को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर लगातार सियासी हमले कर रहे हैं. भाजपा ने इसे देश और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को बदनाम करने के लिए 'कांग्रेस की टूलकिट' का नाम दे दिया है. वैसे, कोरोना महामारी अपने आप में ही एक बनी-बनाई टूलकिट है. देशभर से सामने आ रही तस्वीरें तो फिलहाल यही इशारा कर रही हैं. देश-विदेश के कई बड़े मीडिया संस्थान कोरोना से निपटने के लिए केंद्र सरकार की तैयारियों को पहले ही कठघरे में खड़ा कर चुके हैं.

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने देश में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की स्थिति से लेकर सरकारों (केंद्र और राज्य) की पोल खोलकर रख दी. देशभर में कोरोना पीड़ित और उनके परिजन ऑक्सीजन, दवाईयों व अस्पतालों में बेड के लिए छटपटाते नजर आ रहे हैं. कोरोना संक्रमण में बढ़ोत्तरी से पहले विधानसभा चुनावों से लेकर कुंभ तक का आयोजन पुरजोर तरीके से किया गया. 'वैक्सीन मैत्री' की वजह से देश में वैक्सीन की कमी हुई, जिससे टीकाकरण अभियान को बड़ा झटका लगा है. इस स्थिति में ये कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना महामारी खुद ही 'टूलकिट' है, कांग्रेस ने महज इसका 'सियासी' इस्तेमाल किया है.

टूलकिट में क्या है?

कांग्रेस की कथित टूलकिट में कुंभ, पीएम केयर्स फंड, गुजरात को विशेष सहयोग, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट, कांग्रेस संगठनों के कार्यों को बढ़ावा देना, पीएम मोदी की छवि को नुकसान पहुंचाना और अन्य नेताओं की गैर-मौजूदगी पर सवाल उठाने को कहा गया है. सोशल मीडिया पर साझा की गई इस टूलकिट में पीएम मोदी की छवि को खराब करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया का सहयोग लेकर भारत में मौजूद कोरोना वायरस के स्ट्रेन को 'मोदी स्ट्रेन' और 'भारतीय स्ट्रेन' कहने पर जोर दिया गया है. इस पूरी टूलकिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले करने की बात कही गई है.

कांग्रेस के लिए 'आपदा में अवसर'

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी रोजाना कोरोना महामारी के बारे में किसी न किसी मुद्दे को लेकर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते आ रहे हैं. कांग्रेस और विपक्ष के तमाम नेता लगातार वही करते चले आ रहे हैं, जो आमतौर पर एक राजनीतिक दल करता है. विपक्ष के लिए कोरोना महामारी 'आपदा में अवसर' की तरह आई है. इसके सहारे वह जितना राजनीतिक लाभ ले सकते हैं, लेने के प्रयास में जुटे हैं. यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ही संभव हो सकता है. कांग्रेस लगातार अपना जनाधार खोती हुई नजर आ रही है. इस स्थिति में पार्टी के सामने लोगों के बीच खुद की स्वीकार्यता बढ़ाने का इससे अच्छा समय और क्या हो सकता है? कांग्रेस पार्टी लोगों की सहायता के जरिये अपनी छवि बनाने और जनाधार को मजबूत करने की कोशिश में लगी हुई है. कोरोना महामारी से निपटने के लिए जहां सरकार और विपक्ष को एक साथ मिलकर सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है. विपक्ष अभी भी महामारी फैलने से पहले के दौर में है. विपक्ष से सहयोग के नाम पर कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा हर चीज पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

विपक्ष से सहयोग के नाम पर कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा हर चीज पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.विपक्ष से सहयोग के नाम पर कांग्रेस शासित राज्यों द्वारा हर चीज पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

कोरोनाकाल में सामने आए विलुप्त हो रहे 'गिद्ध'

कोरोना की दूसरी लहर में चारों ओर भारत में विलुप्त हो चुके 'गिद्ध' नजर आ रहे हैं. इलाज के लिए जरूरी दवाओं, मेडिकल उपकरणों, एंबुलेंस, श्मशान तक में ऐसे गिद्ध लोगों पर टकटकी लगाए बैठे हैं. प्राइवेट अस्पतालों को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम मैसेज तैर रहे हैं, जिनमें कहा गया है कि सरकारी अस्पताल में तो केवल जान जाएगी. प्राइवेट अस्पताल गए, तो जान के साथ जमीन-जायदाद भी चली जाएगी. ऑक्सीजन सिलेंडर और जीवनरक्षक दवाओं के लिए ये गिद्ध हजारों से लेकर लाखों तक लोगों से लूट रहे हैं. कुछ किलोमीटर की दूरी के लिए 15 हजार तक वसूलने वाले एंबुलेंस ड्राइवर और श्मशान में अंतिम संस्कार के नाम पर भी चौतरफा लूट मची है.

मदद के तौर पर जीवनरक्षक दवाएं बांटते नेता

गुजरात हो या दिल्ली, भाजपा हो या कांग्रेस. इन सभी लोगों के एक ट्वीट पर लोगों के लिए जीवनरक्षक दवाईयां, ऑक्सीजन और बेड की व्यवस्था बहुत आसानी से हो जाती है. जबकि, देश का कोई आम शख्स इन सभी चीजों के लिए दर-दर भटकने के बाद भी इनका इंतजाम नहीं कर पाता है. आप इसे मदद का नाम दे सकते हैं, क्योंकि मरते आदमी की जो मदद कर दे, वो भगवान ही कहा जाता है. लैकिन, कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिनमें कोरोना पीड़ित मरीज ने नेताओं से गुहार लगाई, लेकिन अनदेखी की वजह मौत के मुंह में समा गए. जीवनरक्षक दवाएं बांटने वाले इन नेताओं के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए इन्हें फटकार तक लगाई थी. हाईकोर्ट को कहना पड़ा था कि दवाओं को जमा करना नेताओं का काम नहीं है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन सभी नेताओं ने राजनीतिक फायदे के लिए ही ये सब कुछ किया होगा. अगर इन्हें मदद ही करनी थी, तो अस्पतालों के बाहर अपने तमाम कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कर देते, जो लोगों की मदद करते रहते. क्या यहां ये सवाल नहीं उठना चाहिए कि धक्के खा रहे है लोगों की मदद के लिए इन सुविधासंपन्न नेताओं ने एक हेल्पलाइन नंबर जैसी व्यवस्था क्यों नहीं की?

मोदी सरकार पर भी उठने चाहिए सवाल

इस बात में कोई दो राय नही है कि कांग्रेस की इस कथित टूलकिट में लोगों को सांप्रदायिक रूप से भड़काने का प्रयास किया गया है. लेकिन, क्या ये सवाल नहीं उठना चाहिए कि लाखों लोगों के एकसाथ इकट्ठा हो सकने की संभावना वाले कुंभ और विधानसभा चुनाव जैसे आयोजन को मोदी सरकार ने रोकने के प्रयास क्यों नहीं किए? आलोचना लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है. लांसेट से लेकर कई मीडिया संस्थानों में कोरोना की दूसरी लहर से निपटने में मोदी सरकार की तैयारियों के खिलाफ लेख छपे थे. जिसके बाद सरकार अपनी छवि को बचाने में जुटी नजर आई. केंद्रीय मंत्रियों से लेकर कई भाजपा नेताओं ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर मोदी सरकार की तारीफ वाले लेखों को शेयर किया. लेकिन, क्या कोरोना वायरस की वजह से देशभर में हो रही मौतों का आंकड़ा छुपाना संभव होगा? स्वास्थ्य व्यवस्था राज्यों का विषय है, ये कहकर मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकती.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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