भारतीय राजनीति से अप्रासंगिक होती कांग्रेस !
कांग्रेस की मुश्किल यही है कि वो बगैर किसी रणनीति के राजनीति करना चाहती है. जिसके कारण वह चारों तरफ से चुनौतियों से घिरी हुई है.
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इतिहास के पन्नों को पलटें और इसके सहारे भारतीय राजनीति को समझने को प्रयास करें तो हैरानी इस बात की होती है कि जो कांग्रेस पंचायत से पार्लियामेंट तक अपनी दमदार उपस्थिति रखती थी, आज वही कांग्रेस भारतीय राजनीति में अप्रासंगिक हो गई है? ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि आज बिहार के बाद कई राज्यों की सियासत गर्म है और इन सबमें कांग्रेस कहीं गुम सी हो गई है.
बिहार में महागठबंधन ध्वस्त हो गया और नीतीश ने सबको चौंकाते हुए बीजेपी के साथ मिलकर नई सरकार का गठन कर लिया. इस प्रकरण पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि उन्हें पहले से यह जानकारी हो गई थी कि नीतीश बीजेपी के साथ जाने वाले हैं. यह बयान हास्यास्पद ही नहीं है बल्कि ये राहुल गांधी के राजनीतिक समझ पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े करता है.
क्या से क्या हो गया!
यह बात समझ से परे है कि जब राहुल को इस बात की जानकारी थी कि नीतीश पाला बदलने वाले हैं तो फिर उन्होंने गठबंधन को बचाए रखने में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई? बिहार में महागठबंधन का हिस्सा कांग्रेस भी थी. फिर कांग्रेस ने राजद और नीतीश के बीच बढ़ती कड़वाहट को खत्म करने के लिए कोई प्रयास क्यों नही किया?
कांग्रेस की मुश्किल यही है कि वो बगैर किसी रणनीति के राजनीति करना चाहती है. जिसके कारण वह चारों तरफ से चुनौतियों से घिरी हुई है. कांग्रेस के लिए गुजरात से भी बुरी खबर ही आ रही है. केन्द्रीय नेतृत्व से असंतोष जाहिर करते हुए गुजरात के छह विधायकों ने विधानसभा तथा कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है. खबर यह भी आ रही है कि इस्तीफे का यह सिलसिला थमने वाला नहीं है. पार्टी के कई और विधायक भी कांग्रेस को दामन छोड़ने का मन बना चुके हैं.
लगातार हो रहे इस्तीफे से बौखलाई और तिलमिलाई कांग्रेस ने इस आपसी फूट का ठिकरा बीजेपी के सिर फोड़ा है. साथ ही आरोप लगाया है कि बीजेपी धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल करके उनके विधायकों को तोड़ रही है. इसके साथ-साथ कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कांग्रेसी विधायकों को दल-बदल कानून का हवाला देते हुए चेतावनी भी दी है कि उनके ऊपर संवैधानिक कार्यवाही भी हो सकती है. ऐसे माहौल को देखते हुए भयभीत कांग्रेस ने अपने चालीस विधायकों को राज्यसभा चुनाव से पहले तक के लिए बैंगलोर रवाना कर दिया है.
कांग्रेस के आरोपों पर गौर करें तो ऐसा कोई भी तथ्य अभी तक सामने निकलकर नहीं आया है जिससे इस बात की पुष्टि हो सके कि यह इस्तीफा बीजेपी के इशारे पर दिए जा रहे हैं. कांग्रेस की यह दलील बेहद कमजोर नज़र आ रही है. क्योंकि यह केवल गुजरात की बात नहीं है बल्कि देश के हर हिस्से में आज कांग्रेस की हालत बेहद खराब है. इसका सबसे बड़ा कारण पार्टी आलाकमान द्वारा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा है. जो विधायक अथवा नेता पार्टी से त्यागपत्र दे रहें है उन सभी नेताओं ने पार्टी शीर्ष नेतृत्व के प्रति गहरा असंतोष व्यक्त किया है.
विधायकों को बेंगलुरु भेज दिया
इससे पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला ने भी पार्टी से त्यागपत्र दे दिया था. गौरतलब है कि गुजरात में आठ अगस्त को तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होने है. बीजेपी की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी प्रमुख चेहरा है. संख्या के आधार पर इनका राज्यसभा जाना लगभग तय माना जा रहा है. एक सीट को लेकर जद्दोजहद जारी है जिसके लिए भाजपा से बलवंत सिंह राजपूत तो कांग्रेस से सोनिया गाँधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल उम्मीदवार हैं.
गुजरात कांग्रेस में जिस तरह से कांग्रेस विधायकों में पार्टी नेतृत्व को लेकर नाराजगी उभर कर सामने आई है, वह न केवल राज्यसभा के लिए अहमद पटेल को मुश्किल में डाल रही है, बल्कि इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के लिए एक बड़े खतरे की घंटी है. कांग्रेस की खिसकती जमीन और नेतृत्व के उदासीन रवैया का ही परिणाम है कि आज भारतीय राजनीति में कांग्रेस अप्रांसगिक होकर रह गई है. अगर कांग्रेस का राजनीतिक वजूद आज दांव पर है तो उसका सबसे बड़ा कारण कांग्रेस नेतृत्व द्वारा कार्यकर्ताओं से दूरी बनाना है.
कांग्रेस आलाकमान को लेकर जो असंतोष नेताओं ने जाहिर किया है, यदि समय रहते कांग्रेस नेतृत्व ने इसपर ध्यान नहीं दिया तो स्थिति और कठिन होने वाली है. यह स्याह सच कांग्रेस नेताओं को समझना होगा कि उनके शीर्ष नेतृत्व में निर्णयहीनता और राजनीतिक गंभीरता की कमी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है. कांग्रेस इस वक्त विश्वसनीयता के संकट से गुज़र रही है, जिसको लेकर कांग्रेस ईमानदारी व गंभीरता से विचार करने की बजाय आरोप–प्रत्यारोप करने में अपना समय बर्बाद कर रही है.
जनता के बीच से कांग्रेस ने जो भरोसा गंवाया है उसको हासिल करने के विपरीत अब अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं से उसका भरोसा उठता नज़र आ रहा है. अगर स्थिति में सुधार की ईमानदार पहल कांग्रेस आलाकमान द्वारा नहीं की गई तो वो दिन दूर नहीं जब मंझधार में फंसी यह नाव डूब जाएगी. वर्तमान की राजनीति में अगर खुद को प्रासंगिक रखना है तो किसी भी राजनीतिक दल को रचनात्मक होना पड़ेगा. कार्यकर्ताओं से संवाद कायम करना पड़ेगा. लेकिन आज कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व इन सबको लेकर गंभीर नज़र नहीं आ रही है.
दरअसल यह हकीकत है एक समय में कांग्रेस एक कुशल राजनीतिक दांव-पैंतरों और राजनीतिक सक्रियता में पारंगत मानी जाती थी. लेकिन अब कांग्रेस एक विचित्र तरह की कांग्रेस हो गई है, जिसमें सुस्ती है, निराशा है और राजनीतिक फैसले लेने की क्षमता का घोर आभाव. इन सबके साथ–साथ भरोसे का संकट भी. उससे भी बड़ी बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व उससे निपटने का कोई ठोस प्रयास भी नहीं कर रही है.
कांग्रेस की लुटिया डूबी लग रही है
उसी का परिणाम है कि जनाधार खोती कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा भी चरमरा गया है. कांग्रेस के बरक्स अगर हम बीजेपी का तुलनात्मक अध्ययन करें तो बीजेपी कांग्रेस की तुलना में बहुत आगे खड़ी नज़र आएगी. एक तरफ जहां कांग्रेस हर चुनाव में हार का सामना करने के साथ–साथ संगठन के स्तर पर बिखरती जा रही है.
वहीं बीजेपी हर राज्यों में अपने जनाधार को मजबूत करने के साथ–साथ संगठन का ढांचा भी मज़बूत करने में लगी हुई है. उसी का परिणाम है की आज भाजपा तथा एनडीए देश के अठारह राज्यों में सत्ता पर काबिज़ हैं. उसके बाद भी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह संगठन को मजबूत करने के लिए देश के सभी राज्यों में हर स्तर के कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित कर रहे हैं. देश से आधे से अधिक भू-भाग पर सत्ता पर काबिज़ होने के बावजूद संगठन को मजबूत करने के लिए अमित शाह हर संभव कोशिश कर रहें है.
वहीं दूसरी तरफ थकी–हारी कांग्रेस लगातार मिल रहे पराजय के बाद भी परिश्रम और कुशल रणनीति के तहत जनता के बीच जाने और कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने की कोशिश करने के बजाय राजनीतिक आरोप–प्रत्यारोप लगाकर प्रसांगिक बने रहने की बेवजह कोशिशों में लगी हुई है. बिहार में इतना बड़ा राजनीतिक उलटफेर हुआ. गठबंधन में शामिल होने के बाद भी कांग्रेस इतने बड़े राजनीतिक भूचाल में कहीं नज़र नहीं आई. इन सब राजनीतिक घटनाक्रमों को देखने के बाद यह प्रतीत होने लगा है कि कांग्रेस एक डूबते हुए जहाज के सामान हो गई है, जिसकी सवारी से हर कोई बचना चाहता है.
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