धारा 370 के मुद्दे पर कांग्रेस में बंटवारा ही कांग्रेस के पतन की निशानी है
सड़क पर जश्न मना रहे बहुत सारे लोगों का ऐसा मानना है कि समस्या खत्म हो गई है. अगर इसलिए कि वहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है और धारा 370 को हटाए जाने को हिंदूओं की मुसलमानों पर जीत के रूप में गली-चौराहे पर जश्न मन रहा है तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है.
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लगातार प्रतिक्रियाएं आ रही हैं कि कांग्रेस धारा 370 हटाने का विरोध कर क्यों आत्महत्या कर रही है. इस तरह की बातें करने वाले आम लोग ही नहीं कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता भी हैं. टीवी पर चर्चा देखने के बाद हमसे बातचीत के दौरान इन नेताओं की प्रतिक्रिया यह थी कि इस तरह से तो कांग्रेस खत्म हो जाएगी. कांग्रेस के कई नेता और राज्यों के मंत्री तो मोदी सरकार को बधाई तक दे रहे हैं. जिस नेहरू की वजह से कश्मीरी भारत का हिस्सा बने उसी नेहरू को कश्मीर का खलनायक बताया जा रहा है.
देश में इस तरह का वातावरण है कि आप इन सवालों के जवाब में बहुत कुछ नहीं बोल सकते हैं लेकिन मैंने उन कांग्रेस के नेताओं, कार्यकर्ताओं और अपने कुछ दोस्तों को कहा कि अगर कांग्रेस धारा 370 के हटाए जाने का विरोध नहीं करती है तो मर रही कांग्रेस को आज दफन ही कर देना चाहिए. बड़ा सवाल है कि जिस कांग्रेस का गठन साम्राज्यवाद की विस्तारवादी नीति और साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ हुआ था वह कांग्रेस धारा 370 के खत्म किए जाने का समर्थन कैसे कर सकती है. जिस कांग्रेस की बुनियाद गांधी और नेहरू जैसे शांति और मोहब्बत का पैगाम देने वाले महान नेताओं ने रखी हो वो कांग्रेस संगीनों के साए में किसी पर शासन करने का समर्थन कैसे कर सकती है. टीवी चैनलों की उन्मादी-राष्ट्रवादी खबरों के बीच अपने को निरीह पा रही कांग्रेस देश को समझाने में नाकाम हो रही हैं कि अगर कश्मीर आज हमारा है तो सिर्फ और सिर्फ नेहरू की वजह से. अगर नेहरू ना होते तो कश्मीर भी हमारा नहीं होता. आज कांग्रेस को हिम्मत कर गांधी जी के उन सिद्धांतो पर चलना चाहिए जिसमें बापू कहा करते थे कि रोज-प्रतिरोज दुश्मनों के व्यवहार से तंग आकर अपना व्यवहार बदलने वाला कायर होता है.
धारा 370 खत्म किए जाने पर देश भर में जश्न
हमने धारा 370 खत्म करने के जश्न में डूबी उन्मादी भीड़ में शामिल लोगों से पूछा कि किस बात का जश्न मना रहे हो तो उनका जवाब यह था कि अब कश्मीर हमारा हो गया है. जिस कश्मीर को नेहरू ने भारत से अलग कर दिया था उसे मोदी ने वापस भारत में मिला दिया है. यह सच है कि जनता की सोच यही है और इसका विरोध कर रही कांग्रेस पार्टी के नेता जमीन पर कांग्रेस की नीतियों को जानता तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं. इसकी वजह यह है कि वह यह जानते ही नहीं है कि वह कांग्रेस में क्यों हैं. कई वर्षों तक कांग्रेस के संगठन प्रभारी रहे जनार्दन पुजारी जब धारा 370 को हटाए जाने का समर्थन करते हैं तो समझना चाहिए कांग्रेस पार्टी गर्त में गई है. जनता ने तो जाना ही नहीं कि कांग्रेस क्या है. जनता ने केवल भ्रष्ट, शराबी और औरतखोर लोगों को कांग्रेस में शामिल देखा है. आज की पीढ़ी को कांग्रेस से कितनी नफरत है शायद कांग्रेसियों को अंदाजा नहीं है.
नेहरू ने उस वक्त धारा 370 का समर्थन क्यों किया था यह हम आज की परिस्थितियों में बैठकर नहीं सोच सकते हैं और ना ही समझ सकते हैं. अगर टाइम मशीन होती तो लोगों को उस देश कालखंड में ले जाकर समझाया जा सकता था कि आखिर क्यों कश्मीर को धारा 370 देनी पड़ी थी. हम उस वक्त के हालात और परिस्थितियों के आज के हालात और परिस्थितियों से नहीं समझ सकते हैं. भारत में उस समय नैतिक बल सबसे मजबूत बल हुआ करता था जिसकी वजह से परिवार और समाज चलता था.
और समाज की बात तो छोड़ दीजिए परिवार में हालत यह थी कि बड़ा भाई हो तो अपने बेटे को गोद उठाने के बजाय अपने भाई के बेटे को गोद में उठाता था. यह उसकी नैतिक जिम्मेदारी थी कि अपने पत्नी और अपने बच्चों से ज्यादा अपने परिवार को प्यार देता दिखे. वह दौर आज नहीं है लिहाजा हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. हम उन परिस्थितियों में जीते हुए उस वक्त के अपने पिता को यह कहकर दोष दे सकते हैं कि आपने बचपन में तो हमारा ख्याल ही नहीं रखा बल्कि दूसरे के बच्चों को प्यार देने में लगे रहे. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह गलत था या सही था लेकिन उस वक्त हालात ऐसे ही हुआ करते थे.
वापस हम कश्मीर के मुद्दे पर लौटते हैं. दरअसल जब देश आजाद हुआ तो अंग्रेजों ने देश की रियासतों को तीन तरह के विकल्प दिए थे. एक यह था कि भारत के साथ आ जाएं. दूसरा कि पाकिस्तान के साथ चले जाएं और तीसरा कि आजाद रहें. जब जूनागढ़ और हैदराबाद के मुस्लिम शासकों ने तय किया कि वह आजाद रहेंगे या पाकिस्तान के साथ जाएंगे तो पंडित नेहरू की सरकार ने उन्हें बलपूर्वक ऐसा करने से रोका क्योंकि वहां पर हिंदू आबादी ज्यादा थी और तब सभी के सभी लोग भारत के साथ मिलकर रहना चाहते थे. जब इसी तर्क के आधार पर पाकिस्तान ने बलपूर्वक कश्मीर को लेना चाहा तो कश्मीर के तत्कालीन राजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी. उस वक्त कहा जाता है कि 2 दिन भारत ने यह तय करने में लगा दिए कि हमें मदद देनी चाहिए या नहीं. इसकी वजह से काबिलाई श्रीनगर के आसपास पहुंच गए जिसकी वजह से कश्मीर का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के पास चला गया. हम उस वक्त हमला कर इसे वापस नहीं छीन पाए.
श्रीनगर में कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस(1949) में जवाहरलाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला
दरअसल कश्मीर को काबिलाई हमले से बचाने के लिए सेना भेजने पर फैसला इसलिए नहीं हो पा रहा था कि क्योंकि उस वक्त नेताओं में एक नैतिकता थी. उऩका सोचना था कि जिस आधार पर हमने जूनागढ़ और हैदराबाद को बलपूर्वक मिलाया है उसी आधार पर पाकिस्तान कश्मीर को लेना चाहता है. मगर उस वक्त पाकिस्तान धार्मिक आधार पर लोगों के साथ जुल्म करने लगा तब महाराजा हरि सिंह ने अपनी कुछ शर्तों पर भारत के साथ रहना स्वीकार किया. जिसमें विदेश रक्षा और वित्त जैसे मामले शामिल थे. उस वक्त वहां पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पद हुआ करते थे. तब वहां के राजा से ज्यादा लोकप्रिय चेहरा शेख अब्दुल्ला थे जो पंडित नेहरू की वजह से कश्मीर को भारत में रहने के लिए राजी हुए. कांग्रेस कैसे भूल सकती है कि उसने क्या वादा कर मुस्लिम बहुल कश्मीर को भारत में मिलाया था.
तब कश्मीर को धारा 370 की सुविधा भी दी गई और जब यह सुविधा दी गई तब पंडित नेहरू अमेरिका में थे और गृह मंत्री पटेल ने अयंगर के प्रस्ताव पर संसद से यह पास करवाया. आज की पीढ़ि को पता हीं नही है कि किन परिस्थितियों में कश्मीर हमारे पास आकर हमसे मिला था और बदले में हमने उनसे क्या वादा किया था.
लोग कहते हैं कि नेहरू ने सुरक्षा परिषद में इस मसले को ले जाकर गलत काम किया. ऐसा कहने वाले लोगों को पता नहीं है कि तब कश्मीर की जनता भारत के साथ रहना चाहती थी और नेहरू को भरोसा था संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में जीत जाएंगे. मगर हमने उसके बाद हालात खराब होने दिए. और नेहरू के अंत के साथ ही कश्मीर और भारत का रिश्ता कमजोर होता चला गया. नेहरू के बाद इंदिरा गांधी का शासन आया. तब कश्मीर को मिली विशेष सुविधा, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का पद खत्म कर दिया गया. कश्मीर के झंडे के साथ भारत का झंडा भी लगाना शुरू हो गया. उसके बाद भी परिस्थितियां वहां खराब नहीं हुई थीं मगर कांग्रेस ने राजनीतिक दखलअंदाजी और चुनावी धांधली कर वहां के लोगों में भारत के खिलाफ नफरत भर दी. हमें समझना होगा कि कश्मीर की मुस्लिम बहुल आबादी ने नेहरू पर भरोसा कर हमारे साथ रहना स्वीकार किया था.
कश्मीर की समस्या कभी भी धारा 370 नहीं थी
कश्मीर अकेला ऐसा राज्य नहीं था जहां धारा 370 जैसी सुविधा थी. उत्तर पूर्व के बहुत सारे ऐसे राज्य हैं जहां धारा 371 और 71 की कई धाराओं के तहत इस तरह की सुविधाएं आज भी प्राप्त हैं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि कश्मीर का 370 ही क्यों आंखों की किरकिरी बना हुआ था. ये इसलिए कि, जनसंघ और बीजेपी का शुरू से ऐसा मानना रहा है कि कश्मीर की समस्या धारा 370 है. तो क्या अब माना जाए कि धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर की समस्या खत्म हो गई है. सड़क पर जश्न मना रहे बहुत सारे लोगों का ऐसा मानना है कि समस्या खत्म हो गई है. अगर इसलिए कि वहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है और धारा 370 को हटाए जाने को हिंदूओं की मुसलमानों पर जीत के रूप में गली-चौराहे पर जश्न मन रहा है तो ये दुर्भाग्यपूर्ण है.
हमारे इलाके में छुटकन नाम का रंगबाज रहता था जिसका शरीर देखकर कोई नहीं कह सकता था कि इलाके में उसका खौफ हो सकता है. कहने का मतलब है कि इंसान कभी भी शारीरिक ताकत या बंदूकों की ताकत से शक्तिशाली नहीं होता, बल्कि दिलो-दिमाग की ताकत उसे मजबूत बनाती है. शरीर के डील-डौल डराने-दिखाने के काम ज्यादा आते हैं. आगर हथियार काम आते तो दुनिया में यूएसएसआर से ज्यादा बड़ी सेना और हथियार किसके पास थे जिसके 15 टुकड़े हुए. एक चेचन्या ने रूस के नाक में दम कर रखा है. हांगकांग को जीतने के लिए चीन तमाम लोकतांत्रिक तरीकों का सहारा ले रहा है. यहां तक बता रहा है कि हमने विशेष दर्जे को खत्म नही किया है.
क्या आपने ऐसी कोई तस्वीर देखी है जिसमें इस फैसले के बाद कश्मीरियों को दिखाया गया है कि वो क्या सोच रहे हैं, वो क्या कर रहे हैं. सच्चाई तो यह है कि कश्मीर की समस्या कभी भी धारा 370 नहीं थी. जो लोग कह रहे हैं कि सरकार ने इतना फोर्स लगा दिया है कि कश्मीरी चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते हैं. वह यह भूल जाते हैं कि अगर यह बात सच होती तो अंग्रेजों की बंदूकों के आगे हिंदुस्तान कभी आजाद नहीं हो पाता. बंदूकें कभी भी इंसान पर राज नहीं कर सकती हैं.
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