कांग्रेस के बारे में प्रशांत किशोर ने भविष्यवाणी नहीं की, भड़ास निकाली है!
गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Gujarat-HP Assembly Election) से बहुत पहले ही प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने नतीजों को लेकर भविष्यवाणी की है कि कांग्रेस (Congress) को तो हारना ही है - क्या ये कांग्रेस नेतृत्व पर नये सिरे से दबाव बनाने का नया तरीका है?
-
Total Shares
कांग्रेस (Congress) नेतृत्व चिंतन शिविर के बाद के चिंतित करने वाले कारणों से अभी उबरने की कोशिश कर रहा होगा - और तभी प्रशांत किशोर ने एक ट्वीट कर नयी टेंशन दे डाली है. अपने ट्वीट में प्रशांत किशोर ने करीब छह महीने बाद होने जा रहे गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों (Gujarat-HP Assembly Election) में कांग्रेस के प्रदर्शन पर खास टिप्पणी की है.
कांग्रेस नेतृत्व से आशय यहां सिर्फ सोनिया गांधी से ही है. राहुल गांधी या फिलहाल, प्रियंका गांधी वाड्रा से तो कतई नहीं. प्रियंका गांधी वाड्रा तो यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के साथ ही चिंतामुक्त हो चुकी हैं. चिंता तो पहले भी नहीं रही क्योंकि तब भी उनको अप्रत्याशित नतीजों की कोई उम्मीद नहीं रही. भले ही मेहनत पूरी शिद्दत से की हों.
राहुल गांधी तो चिंतन शिविर खत्म होते ही विदेश दौरे पर निकल लिये. वैसे भी सुनील जाखड़ की घोषणा वो सुन ही चुके थे. गुजरात दौरे में हार्दिक पटेल के हाव भाव भी बेहद करीब से देख चुके थे - और नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ केस को लेकर आशंका तो उनके मन में भी रही ही होगी.
जैसे 2017 में राहुल गांधी गुजरात चुनाव से पहले विदेश दौरे पर थे, एक बार फिर वैसे ही कार्यक्रमों में हिस्सा लेने इस बार लंदन गये हैं - और ठीक इसी बीच प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों को लेकर भविष्यवाणी कर दी है.
प्रशांत किशोर ने उदयपुर में कांग्रेस के हाल के नव संकल्प चिंतन शिविर पर भी टिप्पणी की है, लेकिन गुजरात और हिमाचल प्रदेश में तो कांग्रेस की हार की ही भविष्यवाणी कर डाली है. हालांकि, ये टिप्पणी काफी हद तक पूर्वाग्रहग्रस्त भी लगती है.
सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस से बातचीत टूटते ही प्रशांत किशोर खिसियानी बिल्ली क्यों बन जाते हैं?
और सवाल ये भी है कि गुजरात-हिमाचल में कांग्रेस की हार की घोषणा प्रशांत किशोर ने पहले ही क्यों कर दी है?
क्या ऐसा करने के पीछे प्रशांत किशोर किशोर की कोई खास रणनीति या मकसद भी हो सकता है?
जैसे कोई कहे - 'अंगूर खट्टे...'
प्रशांत किशोर के पास चुनाव रणनीति पर काम करने का 10 साल का अनुभव हो चुका है. 2012 में सबसे पहले प्रशांत किशोर ने बीजेपी के लिए चुनाव कैंपेन का कॉन्ट्रैक्ट लिया था - तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. अब तक प्रशांत किशोर जितने भी इलेक्शन कैंपेन किये हैं, ज्यादातर में सफल रहे हैं - सिवा 2022 के गोवा विधानसभा चुनाव और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के.
कांग्रेस को लेकर प्रशांत किशोर के ट्वीट का मकसद नये सिरे से बातचीत का संकेत है क्या?
ऐसे अनुभवी व्यक्ति का ज्यादातर आकलन सही हो सकता है, लेकिन सही होगा ही गारंटी नहीं हो सकती. ऐसे बेहद कम चुनाव सर्वे, ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल रहे हैं जो सही कौन कहे, नतीजों के इर्द गिर्द पाये गये हैं. बल्कि ये कहें कि जो संकेत मिले नतीजे भी उसी दिशा में देखने को मिले - लेकिन चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से बहुत पहले ही कोई ये दावा करे कि नतीजे ऐसे ही होंगे, ऐसा कोई एक्सपर्ट खुलेआम तो नहीं ही करता है.
राजनीतिक दलों की बात और होती है. राजनीतिक विरोधियों को लेकर कमतर आकलन पेशेवर पॉलिटिक्स का हिस्सा समझा जाता है. कोई राजनीतिक पार्टी आने वाले चुनाव में कैसा प्रदर्शन करेगी, ये दावे के साथ कोई नहीं कह सकता है.
कांग्रेस को लेकर प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर लिखा है, 'बार-बार मुझसे उदयपुर चिंतन शिविर के नतीजों पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया है... मेरे विचार से ये कांग्रेस नेतृत्व को कुछ समय देने और यथास्थिति बनाये रखने के अलावा कुछ भी सार्थक हासिल करने में असलफल रहा है' - और इसके साथ ही प्रशांत किशोर ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनावों में कांग्रेस के हार की भविष्यवाणी कर दी है.
I’ve been repeatedly asked to comment on the outcome of #UdaipurChintanShivirIn my view, it failed to achieve anything meaningful other than prolonging the status-quo and giving some time to the #Congress leadership, at least till the impending electoral rout in Gujarat and HP!
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) May 20, 2022
प्रशांत किशोर का कांग्रेस के चुनावी प्रदर्शन को लेकर ये आकलन बिलकुल वैसा ही है जैसा किसी कट्टर राजनीतिक विरोधी का होना चाहिये. अगर बीजेपी या आम आदमी पार्टी का कोई नेता ये कहे कि कांग्रेस तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश चुनाव पक्के तौर पर हार जाएगी तो शायद ही किसी को हैरानी हो, लेकिन प्रशांत किशोर के मुंह से ऐसी बात सुन कर काफी ताज्जुब होता है.
अगर प्रशांत किशोर अभी से खुद को फुलटाइम पॉलिटिशियन जैसा मानने लगे हैं तो वो खुद भी हड़बड़ी में लगते हैं. अभी तो उनके सामने लंबे संघर्ष का दौर चलने वाला है. कहने को तो हाल ही में बिहार में अपनी नयी मुहिम की घोषणा के मौके पर प्रशांत किशोर ने कहा था कि वो चाहें तो छह महीने में पार्टी बना कर चुनाव लड़ लें - प्रशांत किशोर की ये बात सुन कर 2020 के बिहार चुनाव में बड़े बड़े दावे करने वाली पुष्पम प्रिया की याद आ गयी थी.
मुख्यधारा की राजनीति में कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, जनता दल यूनाइटेड के अपने छोटे से कार्यकाल में प्रशांत किशोर खुद देख चुके हैं. वो भी तब जब उनके सिर पर नीतीश कुमार का वरद हस्त हुआ करता था. प्रशांत किशोर जितने दिन भी जेडीयू में रहे बतौर उपाध्यक्ष नीतीश कुमार के बाद उनकी नंबर दो की हैसियत रही.
बेशक प्रशांत किशोर शुरू से ही आरसीपी सिंह और ललन सिंह जैसे दोनों सीनियर नेताओं को खटकने लगे थे, लेकिन ये तो राजनीति में बड़ी ही बुनियादी चीजें होती हैं. ऊपर से तो उनको कोई दिक्कत थी नहीं, बस नीचे कहें या अगल बगल कहें, थोड़ा सा मैनेज करना था - लेकिन पूरी तरह फेल रहे. मैनेज करने के नाम पर बस पटना यूनिवर्सिटी के छात्र संघ चुनाव में जेडीयू की जीत सुनिश्चित कर दिये - और उसमें भी वाइस चांसलर के पास उनका काफी देर तक बैठे रहना सवालों के घेरे में रहा.
कांग्रेस को लेकर प्रशांत किशोर का ताजा ट्वीट तो दुष्प्रचार जैसा ही लगता है - जैसे राजनीतिक विरोधी किया करते हैं, जैसे राजनीतिक विरोधी एक दूसरे के खिलाफ व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजते और फॉर्वर्ड करते रहते हैं, जैसे कोई आईटी सेल किसी विरोधी पार्टी के खिलाफ कैंपेन चलाया करता है.
प्रशांत किशोर ने अंग्रेजी में ट्वीट किया है. हिंदी में ट्वीट का ट्रांसलेशन भी वैसा ही मतलब बता रहा है, लेकिन अगर भावों को पढ़ें तो लगता है जैसे लिखा हो - '...अंगूर खट्टे हैं.'
बंगाल में भविष्यवाणी ऐसी नहीं थी
जैसा दावा प्रशांत किशोर ने अभी कांग्रेस को लेकर किया है, 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान बीजेपी की सीटों को लेकर भी भविष्यवाणी की थी. तब प्रशांत किशोर ने कहा था कि बीजेपी 100 सीटों तक भी नहीं पाने वाली - और अगर ऐसा हुआ तो वो चुनाव कैंपेन का काम छोड़ देंगे.
प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी सही साबित हुई. बीजेपी महज 77 सीटों पर सिमट कर रह गयी. चुनाव में ममता बनर्जी अपनी नंदीग्राम सीट तो हार गयीं, लेकिन प्रशांत किशोर की मदद से बहुमत हासिल करने में कामयाब रहीं.
बंगाल चुनाव की बात अलग थी. प्रशांत किशोर के पास उनकी टीम का जुटाया हुआ डाटा था. उन आंकड़ों के विश्लेषण के बाद ही प्रशांत किशोर ने दावा किया था और सही साबित हुए. गुजरात और हिमाचल प्रदेश में अभी तक प्रशांत किशोर ने कोई कैंपेन नहीं किया है. मानते हैं कि लंबा कार्यानुभव भी मजबूत आकलन का आधार होता है - और उसी आधार पर ऐसी बातें कही जा सकती हैं, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि अक्सर ऐसे अति आत्मविश्वास गच्चा भी खा जाते हैं.
ऐसा लगता है जैसे प्रशांत किशोर ने पहले की ही तरह कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हों. यूपी सहित पांच राज्यों के चुनावों से पहले प्रशांत किशोर ऐसी बातें करने लगे थे - क्योंकि तब कांग्रेस के साथ उनकी बातचीत होल्ड हो गयी थी.
अक्टूबर, 2021 की लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने उसे मुद्दा बनाने की कोशिश की तो प्रशांत किशोर का तीखा रिएक्शन आया था. प्रशांत किशोर ने तब ट्विटर पर लिखा, ‘लखीमपुर खीरी की घटना के आधार पर देश की सबसे पुरानी पार्टी की अगुवाई में विपक्ष के तेजी से और स्वाभाविक तौर से उठ खड़े होने की उम्मीद लगा रहे लोग निराश हो सकते हैं... ’
People looking for a quick, spontaneous revival of GOP led opposition based on #LakhimpurKheri incident are setting themselves up for a big disappoinment. Unfortunately there are no quick fix solutions to the deep-rooted problems and structural weakness of GOP.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) October 8, 2021
कुछ दिनों तक चुप रहने के बाद एक बार फिर प्रशांत किशोर ने उसी अंदाज में कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की थी. तब भी ट्विटर के जरिये ही हमला बोला था, 'बीते 10 साल के चुनाव नतीजों पर ध्यान दें तो तो कांग्रेस को 90 फीसदी चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा है... कांग्रेस का विपक्ष के नेतृत्व पर कोई दैवीय अधिकार नहीं है, न ही हो सकता है.'
The IDEA and SPACE that #Congress represents is vital for a strong opposition. But Congress’ leadership is not the DIVINE RIGHT of an individual especially, when the party has lost more than 90% elections in last 10 years. Let opposition leadership be decided Democratically.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) December 2, 2021
इन्हें भी पढ़ें :
Prashant Kishor के पास 2024 का ब्लूप्रिंट तो तैयार है, इस्तेमाल भी हो पाएगा क्या?
आपकी राय