हेराल्ड केस संसद में उठा कर कांग्रेस ने तो मुसीबत ही मोल ली
मानहानि के केस में राहुल का कहना था, "जो कमिटमेंट करते हैं उसे पूरा करते हैं. न्याय प्रणाली का सम्मान करते हैं." हेराल्ड केस में राहुल ने अलग स्टैंड लिया.
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संसद में सरकार की सबसे बड़ी चुनौती जीएसटी बिल पास कराना थी. इस पर सरकार और विपक्ष में बैकडोर से बातचीत चल रही थी ताकि कोई बीच का रास्ता निकाला जा सके.
संसद में राहुल गांधी ने मोर्चा संभाला और एक एक करके कई मामले उठाए. सबसे दमदार दलितों पर वीके सिंह का बयान साबित और कांग्रेस के साथ विपक्ष ने भी हंगामा - और फिर वॉकऑउट किया.
इसी बीच कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरता हुआ हेराल्ड केस ऐसे मोड़ पर पहुंचा कि सारी बातें पीछे छूट गईं.
तारीख पर तारीख
दो अदालतें. दो मामले. तारीख एक. दोनों मामलों में 7 महीने का फासला है - और एक ही व्यक्ति का अलग अलग स्टैंड सामने आया है.
एक मई महीने की 8 तारीख थी. एक दिसंबर महीने की 8 तारीख थी. दोनों ही तारीखें राहुल गांधी की पेशी के लिए कोर्ट ने मुकर्रर की थी.
8 मई, 2015 को मानहानि के एक केस में राहुल गांधी भिवंडी की अदालत में पेश हुए, जबकि तकनीकी तौर पर पेशी की जरूरत नहीं थी. लेकिन राहुल का कहना था, "जो कमिटमेंट करते हैं उसे पूरा करते हैं. न्याय प्रणाली का सम्मान करते हैं."
8 दिसंबर, 2015 को हेराल्ड केस में राहुल गांधी और सोनिया गांधी को दिल्ली की अदालत में पेश होना था. इस बार पेश होने की बजाए राहुल ने मामला कोर्ट से बाहर उठाया.
हेराल्ड केस में राहुल ने मानहानिवाले मामले से अलग स्टैंड लिया, बोले, "यह सौ पर्सेंट राजनीतिक बदले की कार्रवाई है, जिसे पीएमओ अंजाम दे रहा है."
इस पर सरकार की ओर से आरोप लगा कि कांग्रेस न्यायपालिका को टारगेट करने के लिए संसद का इस्तेमाल कर रही है.
संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने साफ किया, "सरकार का इस मामले में कोई लेना-देना नहीं है. यह कोर्ट का आदेश था. यहां ये लोग संसद के जरिये न्यायपालिका को धमका रहे हैं. यह तानाशाही है. कांग्रेस चुनाव में जनता द्वारा दिए गए फैसले को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है."
राहुल के पास सरकार की इस बात का भी जवाब तैयार था, "बात दरअसल दूसरी है. ज्युडिशियरी को कौन धमका रहा है, ये हम सभी जानते हैं. ज्युडिशियरी पर मुझे पूरा भरोसा है, सच सामने आएगा."
दागी नेताओं पर स्टैंड
यूपीए शासन में एक ऑर्डिनेंस लाने की तैयारी थी जिससे दागी नेताओं को सजा के बावजूद कुछ राहत मिल सकती थी. ये उसी समय की बात है जब लालू प्रसाद को चारा घोटाले में अदालत ने दोषी करार दिया था. इस ऑर्डिनेंस को लालू प्रसाद को मदद पहुंचाने के मकसद से भी जोड़ा गया.
राहुल गांधी ने आगे बढ़ कर न सिर्फ इसका विरोध किया, बल्कि ऑर्डिनेंस की कॉपी मीडिया और टीवी पर लाइव देख रहे लोगों के सामने फाड़ कर फेंक दी.
ऐसे ही जब सुषमा स्वराज पर ललित मोदी को मदद पहुंचाने के साथ उसी मामले में वसुंधरा राजे का नाम उछला और व्यापम में शिवराज सिंह चौहान पर उंगली उठी तो कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष ने इतना बवाल किया कि पूरा का पूरा मॉनसून सेशन बगैर कोई काम हुए ही खत्म हो गया.
अब हेराल्ड केस में कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर बदले की राजनीति का आरोप लगाया है.
क्या राजनीति हुई?
पिछले ईडी चीफ राजन एस कटोच इस पद पर मनमोहन सरकार द्वारा मार्च 2012 में नियुक्त हुए थे, लेकिन सुब्रह्मण्यम स्वामी की चिट्ठी के बाद मोदी ने कार्यकाल ख़त्म होने से दो महीने पहले ही अगस्त 2015 में उन्हें हटाकर करनाल सिंह को इस पद पर बिठा दिया।
1979 बैच के आईएएस अफसर राजन कटोच को 2012 में प्रवर्तन निदेशालय का प्रमुख बनाया गया था. तब मनमोहन सिंह की सरकार थी. जुलाई में उन्हें तीन महीने का सेवा विस्तार भी दिया गया था. कटोच के सामने भी हेराल्ड केस आया तो उन्हें कांग्रेस की दलीलों में दम नजर आया. कटोच ने बात मान ली, मामला शांत हो गया.
फिर कटोच का कार्यकाल खत्म होने से दो महीने पहले ही सरकार ने उनकी जगह 1984 बैच के आईपीएस अधिकार करनैल सिंह को ईडी का प्रमुख बना दिया.
नए प्रमुख को हेराल्ड मामले में सुब्रहमण्यन स्वामी की दलील में कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा दम दिखाई दिया. बात आगे बढ़ी. कोर्ट ने राहुल और सोनिया को तलब कर लिया.
कांग्रेस इसी बात को राजनीतिक बदले के तौर पर पेश कर रही है. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का सवाल है, "सरकार ने किस वजह से इस फैसले के कुछ दिनों बाद ही उन्हें हटाया और एक नए निदेशक को नियुक्त किया जिन्होंने मामले को फिर से खोला? क्या यह कदम राजनीतिक प्रतिशोध का संकेत नहीं देता और मुझे आश्चर्य है कि किस प्रकार सरकार दावा करती है कि उसकी कोई भूमिका नहीं है जबकि वे परदे के पीछे से इस प्रकार के गंदे खेल खेल रहे हैं."
ईडी के सामने कांग्रेस की जो भी दलील हो, लेकिन आजाद की बात में तो बेदम बिलकुल नहीं है. मनमोहन सरकार में एक अफसर कांग्रेस की दलील मान लेता है - और मोदी सरकार में एक अफसर स्वामी की दलील सुन लेता है.
अब ये राजनीति है, सत्ता का खेल है, या कानूनी प्रक्रिया? फैसला कोर्ट को करना है. राहुल गांधी भी मानते हैं कि कोर्ट से सच सामने आएगा.
फिलहाल इस मुद्दे पर टीएमसी और जेडीयू कांग्रेस के साथ खड़े हैं, लेकिन वे जीएसटी में रोड़ा नहीं बनना चाहते. समाजवादी पार्टी पूरी तरह सरकार के साथ खड़ी है. समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव कांग्रेस पर इल्जाम भी लगाते हैं और कठघरे में भी खड़ा करते हैं, "विपक्ष बदले की राजनीति का शिकार सबसे ज्यादा कांग्रेस के राज में हुआ है. संसद चलाने की जिम्मेदारी प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस की भी सरकार जितनी ही है."
फिलहाल सबसे बड़ा संकट कांग्रेस के संकटमोचकों के सामने है. जो खबरें आ रही हैं उससे पता चलता है कि कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि हेरल्ड केस को संसद में नहीं ले जाना चाहिए था.
ऐसा नेताओं का मानना है कि व्यक्तिगत मामलों में विपक्ष को एकजुट रख कर लड़ाई को आगे बढ़ाना और लंबा खींचना सबसे मुश्किल होता है. इससे भी बड़ी मुश्किल ये है कि अपनी बात उन्हें राहुल गांधी को समझानी है.
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