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Updated: 29 मार्च, 2019 08:23 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. हाई कोर्ट से उनकी अर्जी खारिज होने के बाद फिलहाल उनके चुनाव लड़ने की संभावना समाप्त हो चुकी है.

12 मार्च को राहुल गांधी की मौजूदगी में हार्दिक पटेल ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था. कांग्रेस में शामिल होने के बाद हार्दिक पटेल के जामनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही थी, लेकिन कांग्रेस की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया था. जामनगर लोकसभा सीट फिलहाल बीजेपी के पास है जहां से 2014 में पूनम बेन सांसद चुनी गयी थीं.

ये हार्दिक पटेल ही हैं जिनकी बदौलत कांग्रेस को मोदी-शाह के गुजरात में न सिर्फ पांव जमाने का मौका मिला बल्कि राहुल गांधी भी नेता के तौर पर उभर कर निकले और कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी भी उसके बाद ही संभाली.

हार्दिक पटेल नहीं लड़ सकते चुनाव

सिर्फ मौजूदा चुनाव ही नहीं, हार्दिक पटेल न तो गुजरात विधानसभा का अगला चुनाव और न ही 2024 का लोक सभा चुनाव लड़ने के योग्य रह गये हैं. अगर उनके जेल में बिताये वक्त को सजा से एडजस्ट कर दिया जाये तो बात और है, या फिर सुप्रीम कोर्ट से भविष्य में उन्हें किसी तरह की राहत मिल सके.

गुजरात हाईकोर्ट ने 2015 में दंगा फैलाने के मामले में हुई सजा को निरस्त करने वाली हार्दिक पटेल याचिका खारिज कर दी है. जुलाई 2018 में हार्दिक पटेल को मेहसाणा के विसनगर में दंगा भड़काने के एक मामले में 2 साल की सजा सुनाई गई थी और फिलहाल वो जमानत पर हैं. जनप्रतिनिधित्व कानून - 1951 के तहत दो साल या उससे ज्यादा की सजा मिलने पर व्यक्ति चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाता है. इसी कानून के चलते चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद की संसद की सदस्यता खत्म हो गयी थी और आगे से चुनाव लड़ने पर रोक लग गयी. लालू प्रसाद फिलहाल जेल में हैं.

गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट में हार्दिक की अर्जी का ये कहते हुए विरोध किया था कि उनके खिलाफ 17 केस हैं जो बता रहा है कि उनका चरित्र ठीक नहीं है.

हार्दिक पटेल के वकील की दलील थी कि अगर अदालत से स्टे ऑर्डर नहीं मिला तो उनके मुवक्किल को ‘अपूरणीय क्षति' होगी - क्योंकि वो चुनाव लड़ना चाहते हैं. वैसे हार्दिक पटेल के पास सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने का विकल्प तो है, लेकिन मुश्किल ये है कि गुजरात में नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख 4 अप्रैल ही है.

चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन कांग्रेस का प्रचार करेंगे

हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदोलन ने गुजरात के सारे राजनीतिक समीकरण बदल डाले. हार्दिक पटेल की लोकप्रियता से गुजरात की तत्कालीन बीजेपी सरकार हिल उठी और आनंदी बेन पटेल को मुख्यमंत्री पद तक छोड़ना पड़ा. आनंदी के राजनीतिक विरोधियों ने पाटीदार आंदोलन को हैंडल न कर पाने की पूरी जिम्मेदारी आनंदी बेन पर ही डाल दी.

लगभग उसी दौर में हार्दिक के अलावा दो और युवा कार्यकर्ता उभरे - अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी. अल्पेश ठाकोर को तो राहुल गांधी ने मना लिया, लेकिन हार्दिक और जिग्नेश अपनी जिद पर अड़े रहे. फिर जिग्नेश निर्दलीय चुनाव लड़े और कांग्रेस ने उनका समर्थन किया.

rahul gandhi, hardik patelजब एक बार हाथ थाम लिया, फिर निभाना भी तो पड़ेगा!

2017 के गुजरात चुनाव के पहले हार्दिक पटेल और कांग्रेस के बीच कई दौर की बात चली लेकिन समझौता नहीं हो सका. कांग्रेस ने पाटीदारों के आरक्षण का भी ड्राफ्ट तैयार किया, लेकिन सीटों की मांग पर पीछे हट गयी. हार्दिक की भी चुनौतियां चौतरफा बढ़ती जा रही थीं. धीरे धीरे पाटीदार आंदोलन के कई कार्यकर्ता हार्दिक का साथ छोड़ने लगे - और कई तो बीजेपी में ही चले गये. मुश्किलों के बावजूद हार्दिक पटेल अपनी बात पर अड़े रहे. जब कोई रास्ता नहीं बचा तो मजबूरन हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल हो गये.

जिस मेहसाणा के मामले को लेकर हार्दिक पटेल को सजा हुई है, वहां करीब 25 फीसदी वोटर कड़वा पटेल हैं. 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को अगर कड़ी टक्कर दी तो वो जमीन हार्दिक पटेल की ही तैयार की हुई थी. विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को 89,316 वोट मिले और कांग्रेस ने भी 81,674 वोट हासिल किये थे. 2012 दोनों दलों को मिले वोटों का फासला ज्यादा रहा - कांग्रेस को 65929 वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 90134 वोट मिले थे.

जेल से छूटने के बाद हार्दिक पटेल ने देश भर में नीतीश कुमार से लेकर अरविंद केजरीवाल तक तमाम नेताओं से संपर्क किया लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला - आखिरी विकल्प के तौर पर कांग्रेस ही बची रही सो अपनाना पड़ा. मगर, बदकिस्मती ऐसी कि सिर मुड़ाते ही ओले भी टपक पड़े.

हाल ही में बीबीसी गुजराती सेवा के कार्यक्रम 'गुजरात की बात' में सवर्ण आरक्षण के बहाने हार्दिक पटेल ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर सवाल उठाया था. हार्दिक पटेल का सवाल रहा, 'मैंने आरक्षण सिर्फ एक समाज के लिए मांगा था. अब हर समाज को आरक्षण मिला है. अगर आपको आरक्षण देना ही था तो फिर जब मैं आरक्षण की मांग कर रहा था तो मुझ पर राजद्रोह के दो मुकदमे लगाने की - और मुझे जेल भेजने या मेरे खिलाफ कोई और मामला दर्ज करने की क्या जरूरत थी?'

कांग्रेस अभी तक हार्दिक पटेल के प्रतिरोध की आवाज का मुफ्त फायदा उठाती आयी है - लगता तो यही है कि आगे भी ऐसे ही कांग्रेस को हार्दिक पटेल का लाभ मिलता रहेगा और बदले में कुछ देने की जरूरत भी नहीं होगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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