गुजरात में कांग्रेस ने अभी से अपने लिए गड्ढा खोदना शुरू कर दिया है!
गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Elections) होने में अब कुछ ही महीनों का समय बचा है. भाजपा (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) चुनावों को लेकर एक्शन मोड में नजर आ रही हैं. लेकिन, कांग्रेस (Congress) अभी तक अपने संगठन को ही ठीक करने में लगी हुई है. और, पार्टी का ये दांव सोशल इंजीनियरिंग से ज्यादा संगठन के अंदर की गुटबाजी को मजबूत करने वाला नजर आ रहा है.
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इस साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं. गुजरात में 27 साल से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस अपने सियासी समीकरणों को दुरुस्त कर वापसी की राह देख रही है. वहीं, पंजाब में कांग्रेस को पटखनी देकर सत्ता पाने वाली आम आदमी पार्टी भी अरविंद केजरीवाल के नाम को भुनाने की कोशिश में जुटी हुई है. भाजपा के सामने सत्ताविरोधी लहर का माहौल बना हुआ है. हालांकि, कुछ महीने पहले ही गुजरात के सीएम से लेकर मंत्रिमंडल में बदलाव कर भाजपा ने सत्ताविरोधी लहर को थामने की कोशिश की थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सियासी मैदान में उतरने से पहले हर महारथी अपने तरकश में तीरों को बढ़ाने की कोशिश में जुटा हुआ है. लेकिन, ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने गुजरात में अभी से अपने लिए गड्ढा खोदना शुरू कर दिया है. क्योंकि, कांग्रेस फिर से कुछ ऐसे फैसले ले रही है, जो उसकी मुश्किलों में इजाफा कर सकते हैं. आइए जानते हैं कि वो क्या हैं...
कांग्रेस फिर से पुरानी गलतियों को दोहरा कर भाजपा को सियासी फायदा पहुंचाने की ओर बढ़ चली है.
पंजाब और उत्तराखंड की 'कार्यकारी अध्यक्ष' वाली गलती फिर दोहराई
ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपनी गलतियों से सीखने के बजाय हमेशा उससे फेर कर खड़ी हो जाती है. गुजरात में जगदीश ठाकोर कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर हैं. लेकिन, इसके बावजूद गुजरात में कांग्रेस ने 7 कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त कर दिए हैं. कांग्रेस समर्थक विधायक जिग्नेश मेवानी विधायक ललित कागाथरा, विधायक रित्विक मकवाना, विधायक अंबरीश डेर, विधायक हिम्मत सिंह पटेल, कादिर पीरजादा और इंद्रविजय सिंह गोहिल को प्रदेश इकाई का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. माना जा रहा है कि कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को मजबूती देने के लिए ये दांव खेला है. क्योंकि, दलित, ओबीसी, पटेल, क्षत्रिय और मुस्लिम समुदाय से आने वाले इन नेताओं से कांग्रेस को अपना सियासी वोट बैंक साधने में मदद मिलेगी. कागजी तौर पर देखा जाए, तो यह फैसला सही भी लगता है.
लेकिन, कुछ महीने पहले हुए पंजाब और उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की बात करें. तो, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ ही पार्टी आलाकमान ने वहां भी कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करने का दांव खेला था. जिसे विधानसभा चुनाव से पहले गुटबाजी को खत्म करने की कोशिश के तौर पर देखा गया. खैर, पंजाब और उत्तराखंड में तो कांग्रेस ने चार ही कार्यकारी अध्यक्ष बनाए थे. लेकिन, गुजरात के 7 कार्यकारी अध्यक्षों की लिस्ट देख कर कोई भी आसानी से कह सकता है कि गुजरात में भी कांग्रेस के संगठन के अंदर गुटबाजी भयानक तौर पर हावी है. वरना पटेलों, राजपूतों, क्षत्रियों, दलितों, ओबीसी और मुस्लिम समुदाय के नेताओं को अलग-अलग कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी देनी की जरूरत ही क्या थी? जबकि, पंजाब और उत्तराखंड में यही गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी थी.
I would like to thank congress president smt.Sonia Gandhi ji, @RahulGandhi ji, @kcvenugopalmp ji and @jagdishthakormp ji for entrusting me the responsibility as working president of INC Gujarat. I will leave no stone unturned to promote and protect the interest of Congress party. pic.twitter.com/K0YUkFQFAP
— Jignesh Mevani (@jigneshmevani80) July 8, 2022
इसके बावजूद गुटबाजी को खत्म करने की जगह कांग्रेस ने इसे और हवा दे दी है. मुस्लिम समुदाय के वोटों को साधने के लिए कादिर पीरजादा और दलितों के वोट बैंक के लिए जिग्नेश मेवानी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला समझ में आता है. लेकिन, इनके इतर सभी कार्यकारी अध्यक्ष शक्ति सिंह खेमे, भरत सोलंकी खेमे और जगदीश ठाकोर खेमे जैसे किसी न किसी गुट से जुड़े हुए ही हैं. वैसे, हार्दिक पटेल के इस्तीफे के बाद से ही माना जा रहा था कि कांग्रेस के लिए इस साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव का रास्ता आसान नहीं होने वाला है. और, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को कांग्रेस में लाने की कोशिशें भी फेल ही हो गई थीं. तो, माना जा रहा था कि कांग्रेस कम से कम गुजरात में पंजाब और उत्तराखंड की गलती नहीं दोहराएगी. लेकिन, ऐसा हुआ नहीं.
इस बात में शायद ही कोई दो राय होगी कि ये सभी नेता अपने-अपने गुट को मजबूत करने के लिए खेमेबाजी करेंगे. और, इस अंर्तकलह का सियासी फायदा भाजपा के खाते में ही जाएगा. क्योंकि, इस अंदरुनी कलह के चलते गुजरात विधानसभा चुनाव जीतने से ज्यादा एक-दूसरे के खेमे को कमजोर करने की रणनीतियां बनाई जाएंगी. इतना ही नहीं, चुनावों से पहले पंजाब और उत्तराखंड की तरह ही गुजरात में भी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के लिए खींचतान भी शुरू हो सकती है. जो पार्टी के लिए ही नुकसानदायक होगी.
मुद्दों से खाली है कांग्रेस का 'हाथ'
2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदार आंदोलन और ऊना में दलितों के साथ हुए दुर्व्यवहार जैसे मुद्दों के सहारे कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी. जिसके चलते गुजरात में भले ही भाजपा सरकार बनाने लायक सीटें ले आई थी. लेकिन, भाजपा की सीटों की संख्या 99 पहुंच गई थी. जो पिछले विधानसभा चुनाव में 115 थी. इतना ही नहीं, कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी करीब ढाई फीसदी तक बढ़ा था. लेकिन, इस बार के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास कोई मुद्दा नजर नहीं आ रहा है. तिस पर पाटीदार आंदोलन के नेता रहे हार्दिक पटेल भी कांग्रेस का 'हाथ' झटक कर भाजपा में शामिल हो गए हैं. पाटीदार समुदाय के एक अन्य नेता नरेश पटेल को कांग्रेस में लाने की कोशिशें भी अभी तक रंग नहीं ला पाई हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो कांग्रेस के हाथ में फिलहाल कोई मुद्दा नजर नहीं आ रहा है.
आम आदमी पार्टी बनेगी सिरदर्द
पंजाब में जीतने के बाद आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल का जोश सातवें आसमान पर है. और, गुजरात में उनकी लगातार चुनावी यात्राएं हो रही हैं. लेकिन, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बात की जाए, तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी फिलहाल नेशनल हेराल्ड केस में ही उलझे हुए नजर आ रहे हैं. जबकि, अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी को मजबूत करने के लिए आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले सियासी दल बीटीपी से गठबंधन कर लिया है. मुफ्त की योजनाएं भी अरविंद केजरीवाल के चुनावी तरकश के अहम तीर साबित हो सकते हैं.
वहीं, भाजपा से नाराज मतदाताओं की पसंद के तौर पर कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी को वोट मिलने की संभावना कहीं ज्यादा है. क्योंकि, पंजाब में भी यही हुआ था. तो, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि त्रिकोणीय चुनाव होने पर आम आदमी पार्टी सीधे तौर पर कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाएगी. जबकि, इसका सियासी फायदा बिना मांगे ही भाजपा को मिल जाएगा. लेकिन, इसके बावजूद कांग्रेस की ओर से आम आदमी पार्टी को रोकने के लिए कोई खास प्रयास होते नहीं दिख रहे हैं.
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