'कांग्रेस ही बीजेपी को हरा सकती है,' बशर्ते राहुल गांधी...
कांग्रेस तो अब तभी कुछ कर सकती है जब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को नेतृत्व की जिम्मेदारी से सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) मुक्त कर दें. भले ही प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को उनकी जगह न मिले - लेकिन किसी को तो बीजेपी के गले में घंटी बांधने के लिए खड़ा किया जाये!
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कांग्रेस का चिंतन शिविर खत्म होते ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) विदेश यात्रा पर निकल चुके हैं. राहुल गांधी को कैंब्रिज विश्वविद्यालय में 23 मई को आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेना है - और लंदन में प्रवासी भारतीयों से भी बातचीक करनी है.
पांच साल पहले भी राहुल गांधी के लिए ऐसे ही इवेंट प्लान किये गये थे. ये 2017 के गुजरात चुनाव से पहले की बात है. तब राहुल गांधी के इवेंट प्लानर सैम पित्रोदा रहे और आयोजन अमेरिका में हुआ था. इस बार ये जिम्मेदारी कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद और प्रियांक खड़गे निभा रहे हैं - और कार्यक्रम के लिए पहले से ही लंदन में मौजूद बताये जाते हैं.
कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला के मुताबिक, राहुल गांधी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में आयोजित 'आइडियाज फॉर इंडिया' सम्मेलन में भाषण देंगे - और फिर प्रवासी भारतीयों के साथ देश के वर्तमान और भविष्य के बारे में विचार विमर्श करेंगे.
Sh. Rahul Gandhi will address & interact at Cambridge University on “India at 75”, the challenges and way ahead for a resilient-modern India.Sh. Gandhi shall also speak on “Ideas for India” Conference at London & interact with Indian diaspora on what the present & future holds. pic.twitter.com/YEtu08dn3f
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) May 19, 2022
पहले की बात और थी. राहुल गांधी के विदेश में कार्यक्रम के समानांतर कांग्रेस गुजरात में 'विकास पागल हो गया है' कैंपेन शुरू कर चुकी थी जो काफी हिट रहा - और राहुल गांधी के लौट कर गुजरात चुनाव अभियान से जुड़ने तक बीजेपी को परेशान करने लगा था.
राहुल गांधी का ताजा विदेश दौरा ऐसे वक्त हो रहा है जब गुजरात में पिछले चुनाव में कांग्रेस के सबसे बड़े मददगार रहे हार्दिक पटेल पार्टी छोड़ चुके हैं. हार्दिक पटेल ने अभी किसी पार्टी में जाने की घोषणा तो नहीं की है, लेकिन नव संकल्प चिंतन शिविर के दौरान ही कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले पंजाब कांग्रेस के नेता सुनील जाखड़ बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं - और सुनील जाखड़ की ही तरह पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने मामले में एक साल के जेल की सजा सुनायी है. ये बात अलग है कि सिद्धू को मिली सजा को लेकर राहुल गांधी अब कैसा सोच रहे होंगे. पंजाब चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी को लेकर सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने बाकियों की तरह सिद्धू से भी इस्तीफा मांग लिया था.
जाहिर है विदेश दौरे से लौटने के बाद राहुल गांधी गुजरात चुनाव पर ही फोकस करेंगे. हार्दिक पटेल से ज्यादा अहमियत तो राहुल गांधी पहले से ही जिग्नेश मेवाणी को देने लगे थे, सुनने में आ रहा है कि हार्दिक पटेल की भरपाई के लिए पाटीदार समुदाय में खासा दबदबा रखने वाले नरेश पटेल को कांग्रेस में लाने की कोशिशें शुरू हो गयी हैं.
लेकिन चिंतन शिविर में 2024 के आम चुनाव को लेकर जो उदयपुर डिक्लेरेशन की बात हो रही है, उसे देखना है कि शक्ल में सामने आ रहा है - और राहुल गांधी कैसे बीजेपी को शिकस्त देने की रणनीति पर काम करते हैं?
चिंतन शिविर के दौरान ही क्षेत्रीय दलों की राजनीतिक विचारधारा पर टिप्पणी करते हुए राहुल गांधी ने दावा किया कि सिर्फ कांग्रेस ही बीजेपी को हरा सकती है - बात में तो दम है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या राहुल गांधी वाकई ऐसा होने भी देंगे? और क्या प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को भी कांग्रेस नेतृत्व कोई नयी जिम्मेदारी देने वाला है?
कैसे होंगे कामयाब?
सोनिया गांधी ने कांग्रेस के नव संकल्प चिंतन शिविर की समाप्ति बड़े ही आत्मविश्वास के साथ की - हम होंगे कामयाब! ऐसा ही आत्मविश्वास सोनिया गांधी ने 2019 के आम चुनाव से पहले भी दिखाया था. बीजेपी की सत्ता में वापसी के सवाल पर इंडिया टुडे कार्यक्रम में काफी जोर देकर कहा था - हम उनको आने ही नहीं देंगे. बाद में भी चुनावों के दौरान वैसे ही आत्मविश्वास के साथ सोनिया गांधी के मुंह से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को लेकर सुना गया था - उस वक्त वो भी अजेय माने जा रहे थे.
कांग्रेस की कामयाबी का रास्ता अब राहुल गांधी के अगल बगल से ही गुजरता लगता है!
सोनिया गांधी, दरअसल, 2004 की बात कर रही थीं. 2019 तक बहुत कुछ बदल चुका था. तब अपनी अमेठी सीट राहुल गांधी के हवाले कर सोनिया गांधी ने राय बरेली को अपना चुनाव क्षेत्र बनाया. सोनिया गांधी तो अपनी सीट जीत गयीं, लेकिन राहुल गांधी ने अमेठी गंवा दिया - और ये गांधी परिवार के लिए बहुत बड़ा सदमा रहा.
2014 में बीजेपी के हाथों सत्ता गंवा देने के बावजूद राहुल गांधी की अमेठी सीट बची रही, लेकिन पांच साल में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने सब कुछ उलट पलट कर रख दिया. मोदी लहर तो 2014 में भी रही, और 2019 में भी - लेकिन राहुल गांधी के चुनाव हार जाने की वजह सिर्फ यही नहीं रही. अगर ऐसा ही होता तो सोनिया गांधी अपना सीट कैसे बचा पातीं?
ये ठीक है कि रायबरेली में सोनिया गांधी के खिलाफ स्मृति ईरानी जैसा नेता बीजेपी का उम्मीदवार नहीं था, लेकिन जो भी रहा वो कभी उनकी ही टीम का हिस्सा हुआ करता था. असल बात तो ये रही कि सोनिया गांधी अपनी वजह से चुनावी जीत पायीं - और राहुल गांधी भी अपनी ही वजह से चुनाव हार गये.
राहुल गांधी तब तक चुनाव जीतते रहे जब तक अमेठी भी कांग्रेस के लिए वायनाड की तरह अति सुरक्षित सीट बना हुआ था, लेकिन जैसे ही लोगों ने राहुल गांधी की सक्रियता पर ध्यान देना शुरू किया वो सीन से बाहर नजर आये - और खेल हो गया.
राहुल गांधी ने भले ही 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन सारी जिम्मेदारी उनकी ही नहीं थी. हां, अमेठी की हार की पूरी जिम्मेदारी राहुल गांधी की ही रही. अमेठी के लोग राहुल गांधी से इतने निराश हो चुके थे कि प्रियंका गांधी वाड्रा की बतौर कांग्रेस महासचिव ओपनिंग पारी पर भी हार का दाग लग गया - और वो दाग इतना गहरा रहा कि दो साल बाद हुए यूपी विधानसभा चुनाव में भी नहीं धुल सका.
चिंतन शिविर में भी सोनिया गांधी की चिंता बरकरार रही और जल्दी खत्म भी नहीं होने वाली है. फिर भी वो नेताओं और कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई के लिए वो आगे खड़ी नजर आ रही हैं. लेकिन ऐन उसी वक्त राहुल गांधी क्षेत्रीय दलों की विचारधारा पर टिप्पणी कर सारे किये धरे पर पानी फेर दे रहे हैं.
उदयपुर से काफी पहले सोनिया गांधी ने जयपुर में महंगाई पर रैली करायी थी. सार्वजनिक समारोहों से पूरी तरह दूरी बना चुकीं सोनिया गांधी खुद भी जयपुर पहुंचीं और मंच पर डटी रहीं. खुद भाषण भी नहीं दिया, बस मौजूदगी दर्ज कराया था ताकि बचे खुचे कांग्रेस समर्थकों में पार्टी को लेकर भरोसा बना रहे.
राहुल गांधी ने माइक पड़ा तो महंगाई का जिक्र जरूर किया, लेकिन कहने लगे उस पर वो बाद में बोलेंगे. पहले वो बोले जो उनके मन में था - महंगाई की जगह सारा ज्ञान हिंदुत्व पर उड़ेल दिया. सलमान खुर्शीद की किताब आने के बाद लगा था कि यूपी चुनाव में कांग्रेस बीजेपी को काउंटर करने के लिए हिंदुत्व पर फोकस करेगी, लेकिन प्रियंका गांधी ने तो अलग ही रास्ता अख्तियार कर लिया.
चिंतन शिविर से आये उदयपुर डिक्लेरेशन के जरिये कुछ नयी चीजें निकल कर सामने जरूर आयी हैं, लेकिन उनकी उपयोगिता तो उनके व्यावहारिक पक्ष पर निर्भर करती है - सोनिया गांधी की नयी मुश्किल ये है कि अब तो उनके सामने ही राहुल गांधी की दिलचस्पी न होने की स्थिति में प्रियंका गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की मांग शुरू हो गयी है. मल्लिकार्जुन खड़्गे ने एक बार तो आचार्य प्रमोद कृष्णम को चुप करा दिया, लेकिन आने वाले दिनों में वो या कोई और भी ऐसे कितने नेताओं को चुप करा सकेगा?
कांग्रेस का नेता कौन?
राहुल गांधी के जो किस्से एक दौर में हिमंत बिस्वा सरमा सुना रहे थे, हार्दिक पटेल की कहानी भी उसी की रीमेक लगती है. बस कुछ चीजें बदल गयी हैं. मसलन, पिडी की जगह मोबाइल का जिक्र हो रहा है - और एक नया आइटम चिकन सैंडविच जुड़ गया है, जिसे राहुल गांधी की एक और कमजोरी समझा जा सकता है.
राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु शरद यादव भले मानते हों कि वो कांग्रेस को 24x7 चला रहे हैं, लेकिन कांग्रेस नेता ऐसा बिलकुल नहीं मानते. सोनिया गांधी भले ही कांग्रेस कार्यकारिणी को बता देती हों कि कांग्रेस अध्यक्ष वही हैं और सारे फैसले भी उनके ही होते हैं - और सुन कर कांग्रेस नेता भले ही चुप रह जाते हों लेकिन उनको ये बात हजम नहीं होती है.
अगर ऐसा नहीं होता तो चिंतन शिविर में आचार्य प्रमोद कृष्णम भी शायद चुप ही रह जाते, नेतृत्व का सवाल कतई नहीं उठाते. ऐसे में जबकि पहले से ही कांग्रेस नेताओं को ये समझाने की कोशिश होती रही कि चिंतन शिविर में नेतृत्व के मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं होनी है - और शायद यही वजह रही कि G-23 नेताओं में से भी किसी ने चिंतन शिविर में नेतृत्व का मुद्दा नहीं उठाया.
देखा जाये तो आचार्य प्रमोद कृष्णम की डिमांड भी G-23 नेताओं की पुरानी मांग का एक्सटेंशन ही लगती है. गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर यही मांग की थी कि कांग्रेस के लिए एक अदद पूर्णकालिक अध्यक्ष का जल्द से जल्द इंतजाम किया जाये.
जो बाद गुलाम नबी आजाद और उनके साथियों की तरफ से उठायी गयी थी, दरअसल, आचार्य प्रमोद कृष्णम ने बस उसे गुमनाम नहीं रहने दिया है. G-23 नेताओं की भी मांग रही कि एक ऐसा अध्यक्ष हो जो काम करता हुआ नजर भी आये - और आचार्य प्रमोद कृष्णम ने भी यही कहा है कि अगर राहुल गांधी नेतृत्व के लिए तैयार न हो रहे हों तो प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जाये.
जैसे उदयपुर डिक्लेरेशन में प्रशांत किशोर की कुछ कुछ छाप नजर आती है, प्रियंका गांधी का नाम लेकर नेतृत्व पर नयी बहस भी उसी का साइड इफेक्ट है. प्रशांत किशोर के प्रजेंटेशन से लीक होकर जो बातें मीडिया के जरिये सामने आयी थीं - प्रियंका गांधी को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने की सलाह तो थी ही.
चाहे वो 'जन जागरण यात्रा' हो या 'भारत जोड़ो पदयात्रा' या फिर टास्क फोर्स का गठन, प्रशांत किशोर ने भी तो ऐसे ही काम के सुझाव दिये थे. अब इसे संयोग समझा जाये या प्रयोग, लेकिन कांग्रेस की भारत जोड़ो पदयात्रा भी गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्टूबर से ही शुरू होने जा रही है और प्रशांत किशोर भी बिहार के पश्चिम चंपारण से उसी दिन अपनी यात्रा पर निकल रहे हैं - और इसीलिए सवाल खड़ा हो जाता है कि प्रशांत किशोर अपने लिए ही पदयात्रा करने जा रहे हैं या किसी और के समर्थन में?
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