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Updated: 12 मई, 2018 06:31 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कौन जीतेगा, इसका फैसला 15 मई को तो हो ही जाएगा. चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ने ही काफी आक्रामक तरीके से प्रचार किया. बयानबाजी भी खूब हुई, दावे भी खूब किए गए और लुभावने वादों से भी वोट अपनी झोली में खींचने की कोशिश की गई. गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को तगड़ी टक्कर देने के बाद अब माना जा रहा है कि कांग्रेस एक बार फिर से कर्नाटक में भाजपा को टक्कर दे सकती है. ऐसा यूं ही नहीं कहा जा रहा, इसके पीछे कई तथ्य हैं, जो इस ओर इशारा कर रहे हैं. तो चलिए देखते हैं कि अगर कर्नाटक में कांग्रेस जीतती है तो उसकी जीत के क्या कारण होंगे. इसकी तस्दीक कर्नाटक चुनाव एग्जिट पोल (karnataka election exit poll) से भी की जा सकती है.

1- मुस्लिम वोटबैंक

कर्नाटक की कुल आबादी का करीब 13 फीसदी मुस्लिम हैं. कांग्रेस पार्टी इन मुस्लिम वोट को अपने पक्ष में आता हुआ देख रही है. मुस्लिम समुदाय के वोट भारतीय जनता पार्टी को ना के बराबर मिलने की उम्मीद है. यानी ये वोटबैंक या तो कांग्रेस को अपना समर्थन देगा या फिर जनता दल (सेक्युलर) को. यहां तक कि जेडीएस के अध्यक्ष एचडी कुमारस्वामी मुस्लिम समुदाय के लोगों से यह भी वादा कर चुके हैं कि अगर उनकी पार्टी जीत जाती है तो वह उपमुख्यमंत्री मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति को ही बनाएंगे. इतने बड़े लुभावने वादे के बावजूद उम्मीद जताई जा रही है कि मुस्लिम वोट कांग्रेस की झोली में जा सकता है. दरअसल, मुस्लिम समुदाय के लोगों को डर है कि अगर प्रदेश में गठबंधन की सरकार बनाने की नौबत आती है तो जेडीएस पार्टी भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला सकती है. ऐसे में अगर कांग्रेस कर्नाटक चुनाव में जीतती है तो उसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों की बड़ी हिस्सेदारी होगी.

कर्नाटक चुनाव, कांग्रेस, भाजपा, जेडीएसएक के बाद एक कई ऐसी चीजें हुई हैं, जो कांग्रेस को जीत की ओर ले जा सकती है.

2- कांग्रेस की दलित हितैषी छवि

भले ही गुजरात के ऊना में दलितों को पीटने की घटना हो या फिर रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला, दलितों से जुड़े हर मुद्दे पर कांग्रेस ने आगे बढ़कर खुद को दलित हितैषी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी एसटी एक्ट में बदलाव किए जाने के बाद मोदी सरकार की खूब आलोचना हो रही थी. इतना ही नहीं, इसके विरोध में दलितों ने हिंसक प्रदर्शन भी किए थे. जिसके बाद मोदी सरकार ने दलितों को साधने के लिए आश्वासन दिया कि जरूरी हुआ तो वह जल्द है एक ऐसा अध्यादेश लाएंगे जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट देगा. यहां आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया था कि एससी एसटी एक्ट के तहत सिर्फ शिकायत के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, पहले जांच करना जरूरी होगा. इस मौके को भी कांग्रेस ने खूब भुनाया था और मोदी सरकार को दलित विरोधी तक कह डाला था. कर्नाटक में करीब 18-20 फीसदी आबादी दलितों की है. ऐसे में जिस ओर दलित वोट मुड़ जाएंगे, उस पार्टी को जीत दिलाने में काफी मददगार साबित होंगे.

3- लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा

कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत निर्णायक वोट बैंक माने जाते हैं. और ऐसा मानने की वजह भी बड़ी है. पूरे कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोगों की आबादी करीब 17 फीसदी है. इसी के चलते इस बार कर्नाटक चुनाव में लिंगायत एक बड़ा मुद्दा बन गया. बड़े-बड़े नेता लिंगायत सतों के दर पर माथा टेकते नजर आए, जिनमें राहुल गांधी से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तक शामिल हैं. लिंगायत समुदाय के लोगों की मांग थी कि उन्हें अलग धर्म का दर्जा दिया जाए. मौके का पूरा फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उनकी ये मांग पूरी भी कर दी. और मुहर लगाने के लिए गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी. मोदी सरकार ने इस प्रस्‍ताव को मंजूरी देने के बजाए इसे हिंदू समाज को तोड़ने की कांग्रेसी साजिश बताया. लेकिन, लिंगायत समुदाय सिद्दारमैया सरकार की तरफ से अलग धर्म का दर्जा मिलने से खुश है. और उनकी इस खुशी में सिद्दारमैया खुश हैं. जो मान कर चल रहे हैं कि जिस लिंगायत वोट पर अ‍ब तक बीजेपी का कब्‍जा था, वह अब कांग्रेस को जीत के दरवाजे तक ले जा सकता है.

कर्नाटक चुनाव, कांग्रेस, भाजपा, जेडीएसकर्नाटक की राजनीति में लिंगायत निर्णायक वोट बैंक माने जाते हैं.

4- कर्नाटक अस्मिता

जिस तरह सिद्धारमैया ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दे दिया है, ठीक उसी तरह उन्होंने राज्य का अपना अलग झंडा होने की बात का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि कोई भी राज्य अपना अलग झंडा नहीं अपना सकता है. शुरुआत में तो कांग्रेस की इस बात का भाजपा के लोग जमकर विरोध कर रहे थे, लेकिन जब उन्हें लगा कि चुनावी मौसम के दौरान ये विरोध कर्नाटक की सत्ता से पार्टी को दूर कर सकता है, तो उन्होंने विरोध रोक दिया और शांत हो गए हैं. ऐसे में कर्नाटक अस्मिता का मुद्दा सिद्दारमैया ने पूरी तरह भुना लिया है. वह कर्नाटक के झंडे ही नहीं, कर्नाटक की भाषा को लेकर भी आक्रामक रहे हैं. यही वजह है कि मोदी को भी रक्षात्‍मक हाेते हुए अपने भाषणों का मंच से ही कन्‍नड़ अनुवाद करवाना पड़ा है. सिद्दारमैया का ये क्षेत्रवाद यदि जरा भी काम कर जाता है, तो उनकी जीत इस चुनाव में पक्‍की है.

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