कांग्रेस ने निकाला 300 सीटों का फॉर्मूला - प्रधानमंत्री तो राहुल ही बनेंगे, बशर्ते...
न तो कांग्रेस का 300 सीटों का फॉर्मूला हवाई है और न ही राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी गलत है. कांग्रेस से चूक सिर्फ ये हो रही है कि वो हकीकत को नजरअंदाज कर रही है. हड़बड़ी में ऐसा न हो 2024 अविश्वास प्रस्ताव फिर से लाना पड़े.
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कांग्रेस यूपीए फॉर्मैट से टस से मस होने को तैयार नहीं है. 2019 के लिए कांग्रेस दूसरे दलों के साथ गठबंधन करना तो चाहती है, लेकिन उसके केंद्र में खुद को ही रखने पर अड़ी हुई है.
CWC यानी कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में तमाम कांग्रेस नेताओं के 'मन की बात' सुनायी - 'सरकार गठबंधन की होगी लेकिन प्रधानमंत्री राहुल गांधी ही बनेंगे.' राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने और नये सिरे से CWC के गठन के बाद दिल्ली में पहली बैठक हुई है.
कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने इस बैठक में एक प्रजेंटेशन भी दिया और बताया कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मैदान में होते हुए भी कांग्रेस गठबंधन 2019 में 300 सीटें जीत सकता है.
महत्वाकांक्षी जब सभी हैं तो छोड़े कौन
जिस अंदाज में सोनिया गांधी ने एक बार कहा था कि बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 2019 में सत्ता में लौटने नहीं देंगे, एक बार फिर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष ने उसी तेवर के साथ अपनी बात दोहरायी है. अविश्वास प्रस्ताव के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने बार बार कांग्रेस के अहंकार की बात की और कहा कि मेरी कुर्सी तक पहुंचने की हड़बड़ी मची हुई है. मोदी ने राहुल गांधी की उस बात का भी मजाक उड़ाया था जब कर्नाटक चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस जीत कर आयी तो वो प्रधानमंत्री जरूर बनेंगे.
राहुल के नेतृत्व में सोनिया ने दिखाये तेवर...
CWC की बैठक में यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषण-शैली से उनकी मायूसी जाहिर हो रही है - ये इस बात का संकेत है कि मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी मोदी सरकार के प्रति हमलावर रुख अपनाया.
सचिन पायलट, शक्ति सिंह गोहिल और रमेश चेन्निथला जैसे नेताओं का 2019 के लिए गठबंधन बनाने पर जोर रहा - 'हम सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरें और हमारे नेता राहुल गांधी गठबंधन का चेहरा हों.'
एक ऐसी बात सोनिया की ओर से कही गयी जो विपक्षी गठबंधन में सबसे बड़ा रोड़ा है. सोनिया गांधी ने निजी महत्वाकांक्षाएं छोड़ कर समान विचारधारा वाले दलों को साथ आने की अपील की.
देखा जाय तो कुछ ही दिन पहले ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस को यही सलाह दी थी. पलक झपकते ही कांग्रेस नेताओं ने मीडिया के बीच आकर ममता की सलाह खारिज कर दी.
कांग्रेस ने 300 सीटों का लक्ष्य नहीं फॉर्मूला खोजा है
सवाल ये है कि आखिर गठबंधन दल अपनी महत्वाकांक्षा क्यों छोड़ें? आखिर कांग्रेस ममता बनर्जी को ये कैसे समझा सकती है कि वो प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा छोड़ दें. यही बात अरविंद केजरीवाल और अगर पाला बदलते हैं तो नीतीश कुमार पर भी लागू होगी. ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस से इतर अगर कोई गठबंधन खड़ा होता है तो ये पेंच नहीं फंसेगा.
2019 के लिए 300 सीटों का फॉर्मूला
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीनियर कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने CWC मीटिंग में एक विस्तृत प्रजेंटेशन दिया है. इसमें चिदंबरम ने वो उपाय बताया है जिन पर अमल करे तो कांग्रेस निश्चित तौर पर 2019 में 300 सीटें जीत सकती है.
1. कांग्रेस जीते 150: कांग्रेस देश के 12 राज्यों में मजबूत स्थिति में है. अगर ऐसे राज्यों में कांग्रेस अपनी क्षमता तीन गुणा बढ़ा ले तो 150 सीटें जीतना असंभव नहीं होगा.
2. गठबंधन दल जीतें 150: कांग्रेस उन दलों के साथ गठबंधन करे जो अपने अपने राज्यों में मजबूत हैं. ऐसा करके आम चुनाव में 150 सीटें जीती जा सकती हैं.
पी. चिदंबरम के फॉर्मूले से देखा जाये तो इस तरीके से कांग्रेस गठबंधन 300 सीटें जीतने में कामयाब हो सकता है. चिदंबरम का ये फॉर्मूला कहीं से भी हवा हवाई नहीं है, लेकिन मुश्किल ये है कि दूसरे दल कांग्रेस के इस फॉर्मूले पर क्यों राजी होंगे.
कांग्रेस को ऐसा क्यों लगता है कि वक्त 2009 से आगे बढ़ा ही नहीं है. 2009 की बात और थी. तब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने पांच साल का शासन पूरा किया था. तब कांग्रेस की इतनी हैसियत थी कि सहयोगी दल अपनी हद में रहें या फिर ममता बनर्जी की तरह चाहें तो अलग हो जायें. 2014 के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी भले हो लेकिन तकनीकी रूप से फिलहाल वो विपक्ष की नेता भी नहीं है. 2014 के बाद से पंजाब को छोड़ कर कोई भी चुनाव अपने बूते जीतने में नाकाम रही है. गुजरात में जरूर उसने विरोधी नेताओं को साथ लेकर बीजेपी को टक्कर दी, लेकिन ठीक उसके बाद मेघालय और कर्नाटक में उसे सत्ता गंवानी पड़ी.
अगर कांग्रेस की ये हालत न हुई होती तो न नीतीश कुमार और न ही ममता बनर्जी इस तरीके से चैलेंज करते. ये नीतीश कुमार ही तो हैं जिन्हें महागठबंधन का नेता बनने के लिए राहुल गांधी से दबाव डलवाना पड़ा था - ये बात अलग है कि चुनाव जीतने के बाद वो राहुल गांधी को ही आंख दिखाने लगे. कांग्रेस के लिए बेहतर होगा कि जल्द से जल्द वो हकीकत को समझे और बीच का रास्ता निकाले. जैसे 10 साल चुनाव जीतने के बाद राहुल गांधी एक्सपेरिमेंट करते रहे, पांच साल और कर लेंगे तो क्या बुरा हो जाएगा. वैसे भी काफी दिनों तक राहुल गांधी तैयारी तो 2024 के हिसाब से ही करते रहे. वरना, प्रधानमंत्री मोदी ने तो कह ही दिया है, भगवान शिव इतनी शक्ति दें कि पांच साल बाद वे उनके खिलाफ दोबारा अविश्वास प्रस्ताव लेकर आयें.
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