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Updated: 23 अगस्त, 2022 11:23 PM
निधिकान्त पाण्डेय
निधिकान्त पाण्डेय
  @1nidhikant
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आपसे एक सवाल पूछूं कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कौनसी है तो आप आसानी से जवाब दे देंगे – कांग्रेस.

लेकिन, 137 साल पुरानी देश की इस पार्टी के सामने संकट पैदा हो गया है और वो है पार्टी को संभालने का संकट. इसके अध्यक्ष पद का संकट. सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ही अब कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं बनना चाहते.अभी कुछ साल पहले तक देश की सबसे बड़ी पार्टी थी कांग्रेस. लेकिन, 2014 के आम चुनाव में उसे केवल 44 सीटें मिल पाईं और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने कुछ नंबर तो बढ़ाए. लेकिन, आंकड़ा ताश के 52 पत्तों तक ही सिमटकर रह गया. कांग्रेस का ऐसा हाल होने पर सोचता हूं कि पूर्व प्रधानमंत्री रहे बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी के एक गीत की कुछ पंक्तियों और उनके एक पुराने बयान का किस्सा भी आपको बताता चलूं.

Gandhi Family Congress President Electionसोनिया गांधी समेत तमाम कांग्रेस नेताओं का यही मानना है कि राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल लेना चाहिए.

पहली बात 1984 की है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को सहानुभूति वोटों का खूब फायदा मिला था और उसने लोकसभा में 400 से भी ज्यादा सीटें हासिल की थीं. और, बीजेपी को मात्र 2 सीटें मिली थीं. और, उनके नेता अटल बिहारी वाजपेयी खुद भी ग्वालियर की सीट हार गए थे. उस समय परिवार नियोजन का एक नारा बहुत प्रसिद्ध था 'हम दो हमारे दो'. और, यही कहकर उस समय प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने वाजपेयी और उनकी पार्टी का मजाक उड़ाया था. महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले जो स्थिति अर्जुन की हुई थी, कुछ वैसा ही हाल अटल बिहारी वाजपेयी का हो गया था. उन्होंने भी 'गांडीव' रखने की सोच ली थी यानी राजनीति से दूर होने का विचार आने लगा था. उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी. हालांकि, उनका इस्तीफा अस्वीकार कर दिया गया था. लेकिन, नाम को सार्थक करते अटल इरादों वाले वाजपेयी ने जवाब दिया- 'अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा.'

उनकी दृढ़ता एक कविता में भी बखूबी झलकती है जो उनमें भी स्फूर्ति का संचार करती रही और पार्टी में भी. अटल बिहारी वाजपेयी ने लिखा-

टूटे हुए तारों से फूटे वासंती स्वर, पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर, झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात, प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं. गीत नया गाता हूं. 

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी, अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं. गीत नया गाता हूं.

अब दूसरी बात जो 1999 में हुई, बीजेपी की सीटें भी बढ़ती गईं और एनडीए की सरकार भी बनी. लेकिन, सदन में अविश्वास प्रस्ताव न जीत पाने के कारण जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई तो लोकसभा में विपक्षी दलों ने उनका बहुत उपहास उड़ाया था. तब अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में कांग्रेस को संबोधित करते हुए विपक्ष के लिए कहा था-

'आज आप मेरा उपहास उड़ा लें, लेकिन एक वक्तक आएगा, जब लोग आपका उपहास उड़ाएंगे.' अटल बिहारी वाजपेयी की तब कही हुई बात 2014 और 2019 में काफी हद तक सही साबित हुई और उसके साथ ही विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार और कई जगह तो बुरी हार ने वाजपेयी की बातों को सही साबित किया. कांग्रेस कई राज्यों में खाता तक नहीं खोल पाई थी.

और, अब 2022 में कांग्रेस के सामने नेतृत्व का सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आखिर कौन संभाले उसके अध्यक्ष पद को. अटल बिहारी वाजपेयी के कहे वचनों और उनकी पार्टी की मेहनत के बाद मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस तरह से बीजेपी और एनडीए आगे बढ़ रहे हैं उसपर मुझे इतिहास के पन्नों से एक कथा याद आ रही है—

350 ईसा पूर्व में जन्मे थे कौटिल्य जिनके पिता थे महान शिक्षक चणक मुनि. यही कौटिल्य बाद में चाणक्य नाम से प्रसिद्ध हुए. चणक मुनि अपने राज्य मगध की रक्षा के लिए चिंतित रहते थे और मगध के क्रूर राजा धनानंद की नीतियों को गलत मानते थे और उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार के सहयोग से रणनीति बनाकर राजा धनानंद को सत्ता से उखाड़ फेंकने की कोशिश की लेकिन धनानंद ने इस बात का पता चलने पर चणक मुनि को कैद कर लिया गया और उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें मार डाला गया, जिसका चाणक्य को बड़ा सदमा लगा.

पिता का दाह संस्कार करते वक्त चाणक्य ने पवित्र गंगा जल अपने हाथों में लेकर धनानंद के वंश का नाश करने तक पका हुआ भोजन नहीं ग्रहण करने की कड़ी प्रतिज्ञा ली थी. बाद में, धनानंद के दरबार में भी अपना अपमान होने पर चाणक्य ने बदला पूरा नहीं होने तक अपनी शिखा नहीं बांधने की भी प्रतिज्ञा कर ली थी. इसके बाद तो चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को राजनीति और कूटनीति सिखाकर धनानंद से तो बदला लिया ही, आगे चलकर इसी वंश के सम्राट अशोक ने अखंड भारत का सपना देखा और पूरा किया.

यहां मैं आपको चाणक्य का एक किस्सा भी सुना दूं. एक बार मगध के महामंत्री चाणक्य राज काज के काम से मिलने के लिए सम्राट चंद्रगुप्त से मिलने जा रहे थे. तभी अचानक रास्ते में उनके पांव में कांटा चुभ गया.. उन्होंने जल्दी ही उस कांटे को अपने पैर से निकाला और उसके बाद अपने शिष्यों से एक कुल्हाड़ी मंगवाकर उस कंटीले पौधे को काटकर जड़ से अलग कर दिया. इतना ही नहीं, उस पौधे की जड़ को भी जमीन खोदकर बाहर निकाला और कटे हुए पौधे के साथ जड़ को भी जला दिया. चाणक्य यहीं नहीं रुके. इससे पहले की वे अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते उन्होंने अपने शिष्यों से छाछ मंगवाई और उस पौधे के जड़ वाले स्थान पर डाल दी.

ये सब देख उनके शिष्य हैरत में पड़ गए और पूछा - गुरूजी! इतने तुच्छ कटीले पौधे को निकालने के लिए इतनी मेहनत और समय क्यों बर्बाद किया आपने? हमें आदेश देते तो हम तुरंत कर देते. शिष्य की बात सुनकर चाणक्य मुस्कुराते हुए बोले- 'इससे मैंने तुम सबको दो सीख देने की कोशिश की, एक तो ये कि अपना काम स्वयं किया जाए और दूसरी बात ये जब तक बुराई को जड़ से खत्म नहीं किया जाए तब तक वह पूरी तरह से खत्म नहीं होती है और भविष्य में आये दिन हमेशा किसी न किसी को अपने चपेट में लेती रहती है.'

शिष्यों को अब भी छाछ वाली बात समझ नहीं आई थी तो उसके जवाब में चाणक्य ने कहा – 'जहां इस पौधे की जड़ थी, वहां अगर कुछ भी अवशेष रह गया होगा तो ये कंटीला पौधा फिर पनप सकता है लेकिन छाछ डालने से चींटियां, कीड़े-मकौड़े यहां इकठ्ठा होंगे और छाछ के साथ जड़ का नाम-ओ-निशान मिटा देंगे और वह कंटीला पौधा फिर से कभी पनप नहीं सकेगा.'

अब इस बात का आज की बीजेपी की कूटनीति और कांग्रेस की राजनीति से संबंध आप स्थापित करते रहिये, वैसे आपको ये बता दूं कि 1984 में जिस बीजेपी के खाते में मात्र 2 सीटें थीं, उसी भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में 303 सीट हासिल की थी और NDA ने 353. कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और तब से सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष का पद भार संभाल रखा है.

अब मामला ये है कि सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं के मुताबिक 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए राहुल गांधी को अध्यक्ष पद संभाल लेना चाहिए लेकिन राहुल गांधी हैं कि अपनी पार्टी को ना बोलकर निराश करते जा रहे हैं. दूसरी तरफ, सोनिया गांधी ने भी अपने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर फिर से पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी संभालने से फिलहाल इनकार किया है. सूत्रों के मुताबिक इस फैसले ने कांग्रेस के कई नेताओं का ध्यान अब प्रियंका गांधी वाड्रा पर केंद्रित कर दिया है क्योंकि संगठन के ज्यादातर सदस्य अब भी यही चाहते हैं कि पार्टी की अगुवाई गांधी परिवार से ही कोई सदस्य करे. हालांकि, इस साल के उत्तर प्रदेश चुनावों में प्रियंका के बेहद खराब प्रदर्शन की बात भी कई लोगों के दिमाग में है. खबरें तो ये भी हैं कि प्रियंका ने भी अध्यक्ष बनने से मना कर दिया था. गैर-गांधी अध्यैक्ष के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत कुछ और नामों पर विचार हो रहा है लेकिन कौन कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा ये कहना अभी मुश्किल है क्योंकि अंदरूनी खींचतान भी कांग्रेस को गिराने के लिए जिम्मेदार रही है.

देश में 2014 से केंद्र में बीजेपी की सरकार है. भारत के दो राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार है. कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. कांग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व बचाने के लिए लड़ रही है. एक वक्त था जब देश में सिर्फ कांग्रेस ही थी. देश को आजाद कराने के लिए कांग्रेस पार्टी की स्थापना हुई थी. देश को आजादी मिली और कांग्रेस ने देश को बनाया भी. अब बात करेंगे कि एक वक्त में देश की बड़ी पार्टी कैसे और क्यों आज संघर्ष करती हुई दिख रही है.

कांग्रेस पार्टी की स्थापना

एलेन ओक्टेवियन ह्यूम 1857 की क्रांति के वक्त इटावा के कलेक्टर थे. ह्यूम ने खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया. 28 दिसंबर 1885 को कांग्रेस का गठन हुआ. संगठन का पहला अध्यक्ष व्योमेशचंद्र बनर्जी को बनाया गया था. कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य देश की आजादी था. लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात ये भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि आजादी के बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि कांग्रेस के गठन का उद्देश्य पूरा हो चुका है अत: इसे खत्म कर देना चाहिए.

पार्टी का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है. इससे पहले बैल जोड़ी और गाय-बछड़ा भी कांग्रेस का चुनाव चिह्न रहे.

1905 तक कांग्रेस पार्टी के लिए कोई खास मुद्दा नहीं था. जैसे आज के रोटरी क्लब होते हैं, वैसा ही तब कांग्रेस का हाल था. दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता इसके साथ आ गए थे. मगर जनता के बीच इसका कोई असर नहीं था. तब कांग्रेस याचिकाएं देने में व्यस्त रहती थी. लेकिन बंगाल विभाजन के बाद कांग्रेस ने पहली बार अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत दिखाई.

1967 में कांग्रेस को पहली बार मिली चुनौती

1967 तक कांग्रेस के सामने कोई नहीं था. 1967 में लोकसभा की कुल सीटें 494 से बढ़ाकर 520 कर दी गई थीं. इस चुनाव में 15 करोड़ 27 लाख लोगों ने मतदान किया था, मतदान का प्रतिशत करीब 61 रहा था. चुनाव नतीजे चौंकाने वाले रहे. कांग्रेस को करारा झटका लगा. उसे स्पष्ट बहुमत तो मिल गया लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले लोकसभा में उसका संख्या काफी कम हो गई. इससे पहले पिछले तीनों आम चुनावों में कांग्रेस को करीब तीन चौथाई सीटें मिलती रहीं लेकिन इस बार उसके खाते में मात्र 283 सीटें ही आईं यानी बहुमत से मात्र 22 सीटें ज्यादा. कांग्रेस के वोट प्रतिशत में पांच फीसदी की गिरावट आई. कांग्रेस को 1952 में 45%, 1957 में 47.78% और 1962 में 44.72% वोट मिले थे पर 1967 में उसका वोट प्रतिशत घटकर 40.78% रह गया. इस चुनाव में कांग्रेस के 7 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. गुजरात, राजस्थान और ओडिशा में स्वतंत्र पार्टी ने कांग्रेस को तगड़ा झटका दिया तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली में जनसंघ ने कांग्रेस को चौंकाया. कांग्रेस को बंगाल और केरल में कम्युनिस्टों से भी कड़ी चुनौती मिली.

इन चुनावों के दो साल बाद ही 1969 में कांग्रेस में पहली बार एक बड़ा विभाजन हुआ. मोरारजी देसाई, के. कामराज, एस. निजलिंगप्पा, अतुल्य घोष, सदोबा पाटिल, नीलम संजीव रेड्डी जैसे कांग्रेसी दिग्गजों ने बगावत का झंडा बुलंद किया और महज दो साल में ही इंदिरा सरकार अल्पमत मे आ गई. यूं तो आजादी के पहले भी कांग्रेस कई बार टूटी लेकिन आजादी के बाद कांग्रेस से निकल कर करीब 70 नई पार्टियां बनी हैं. कुछ अब भी हैं और कुछ का अस्तित्व मिट चुका है.

कांग्रेस ने देश को आजाद कराने में एक बड़ी भूमिका निभाई. आजादी के बाद 1952 में देश के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई. 1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था. 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस की कुर्सी छीन ली. हालांकि तीन साल के अंदर ही 1980 में कांग्रेस ने वापसी कर सत्ता अपने नाम की. 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1991, 2004, 2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता हासिल की. आजादी के बाद से लेकर 2019 तक 17 आम चुनावों में से कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत हासिल किया, जबकि 4 बार सत्तारुढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया. कांग्रेस, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक समय तक सत्ता में रही है. पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 364 सीटें मिली थीं. देश की आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे. गांधी-नेहरू से लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद जैसे नेता कांग्रेस के ही सदस्य थे.

इसमें कोई शक नहीं है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में कांग्रेस सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी. जवाहरलाल नेहरु के करिश्माई नेतृत्व में पार्टी ने पहले संसदीय चुनावों में शानदार सफलता पाई और ये सिलसिला 1967 तक चलता रहा. बतौर प्रधानमंत्री के तौर पर नेहरू ने धर्मनिरपेक्षता, आर्थिक समाजवाद और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति को सरकार का मुख्य आधार बनाया जो कांग्रेस पार्टी की पहचान बनी.

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश को आधुनिक बनाने के लिए जो काम किए उन्हें भुलाया नहीं जा सकता है. पंडित नेहरु ने आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों की स्थापना के साथ-साथ भाखड़ा नांगल बांध, रिहंद बांध और बोकारो इस्पात कारखाना की स्थापना की थी. वो अक्सर इन उद्योगों को देश का आधुनिक मंदिर कहा करते थे. सत्ता में रहते हुए भी नेहरु ने हमेशा विपक्ष को मान-सम्नान दिया,विपक्षी नेताओं की वो बात सुनते थे. 1963 में अपनी पार्टी के सदस्यों के विरोध के बावजूद उन्होंने अपनी सरकार के खिलाफ विपक्ष की ओर से लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराना मंजूर किया. अटल जी ने पंडित नेहरू से एक बार कहा था कि उनके अंदर चर्चिल भी है और चैंबरलिन भी है. लेकिन नेहरू उनकी बात का बुरा नहीं माने. उसी दिन शाम को दोनों की मुलाकात हुई तो नेहरू ने अटल की तारीफ की और कहा कि आज का भाषण बड़ा जबरदस्त रहा.

लेकिन अब हालात बदल गए हैं. ऐसा लगता है कि कांग्रेस आम लोगों से दूर हो गई है. इतने सालों में देश की राजनीति भी बदली है. शासन का तरीका बदला है, इस दौर में कांग्रेस खुद को बदलने से फिलहाल चूकती हुई नजर आ रही है. लेकिन राजनीति में कांग्रेस वापसी नहीं कर सकती ये कहना अभी जल्दबाजी होगा. कांग्रेस के विरोधी कहते हैं कि कांग्रेस की जड़ें खत्म हो रही हैं. कांग्रेस पार्टी को चाहिए कि वो अपनी जड़ों में ही झांके.. कांग्रेस पार्टी की जड़ों पर नेहरु ने आधुनिक भारत का निर्माण किया है.. भला इतनी जल्दी ये जड़ें खोखली कैसे हो सकती हैं!

1885 में बनी कांग्रेस पार्टी के अब तक 88 अध्यक्ष रह चुके हैं. इनमें से 18 अध्यक्ष आजादी के बाद बने हैं. आजादी के बाद 75 में से 40 साल नेहरू-गांधी परिवार से ही पार्टी अध्यक्ष रहे जबकि 35 साल गैर नेहरू-गांधी परिवार ने कमान संभाली है. कांग्रेस पर अक्सर परिवारवाद का आरोप लगता है. ये अलग बात है कि भारत की तमाम राजनीतिक पार्टियों में परिवारवाद फल-फूल रहा है.

देश की सबसे पुरानी पार्टी में अध्यक्ष पद का चुनाव होना है. बीते साल ही पार्टी ने ऐलान किया था कि वो 21 अगस्त से 20 सितंबर के बीच कांग्रेस के नए अध्यक्ष को चुन लेगी. राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं हैं. 2023 में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और 2024 में लोकसभा का चुनाव. राहुल गांधी देशभर में पदयात्रा की शुरुआत करने वाले हैं. अटकलें ये भी लगाई जा रही हैं कि वो नहीं चाहते कि गांधी परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस का अध्यक्ष बने.

मौजूदा दौर में कांग्रेस खुद से लड़ रही है. कांग्रेस के कई नेताओं ने और बड़े नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा है. जी-23 समूह भी कांग्रेस पार्टी के लिए एक नया सिरदर्द है. मौजूदा दौर में कांग्रेस के लिए विश्वास और नेतृत्व का संकट है. देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां कांग्रेस का कोई सांसद नहीं है. यूपी जैसे राज्य में कांग्रेस का वजूद खत्म होने के कगार पर है. पंजाब से सत्ता चली गई. दक्षिण के राज्यों और पूर्वोत्तर के राज्यों में भी कांग्रेस संघर्ष कर रही है. कांग्रेस जितना कमजोर हो रही है बीजेपी उतनी ही मजबूत.

हाल में देखा गया है कि कांग्रेस दूसरी पार्टियों से ज्यादा खुद से लड़ रही है. कांग्रेस के वे क्षेत्रीय नेता, जो अब तक पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के सामने झुके दिख रहे थे, वे अब आवाज उठा रहे हैं. कांग्रेस को यहां बीजेपी से सीखना चाहिए. कांग्रेस की लड़ाई सिर्फ बीजेपी से ही नहीं है. बल्कि अब तो आम आदमी पार्टी भी कांग्रेस को सीधे टक्कर दे रही है. पंजाब में कांग्रेस के लिए मौका था लेकिन आम आदमी पार्टी ने उसे चित्त कर दिया.कांग्रेस पार्टी ने को देश को 7 प्रधानमंत्री दिए हैं. इनमें पंडित नेहरू, गुलजारीलाल नंदा (कार्यवाहक प्रधानमंत्री), लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिंहराव और मनमोहन सिंह का नाम शामिल है. हालाकि कांग्रेस पार्टी के दामन पर आपातकाल लगाने का दाग भी है. तब इंदिरा गाधी प्रधानमंत्री थीं.

पीएम मोदी अक्सर अपने भाषणों में कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं, वो अक्सर कहते हैं कि भारत को असली आजादी 2014 में मिली लेकिन फिर भी कितना धूमधाम से आजादी का 75वां दिवस मनाते हैं. कांग्रेस का इतिहास कहता है कि ये पार्टी अपनी स्थापना के बाद कई बार टूटी है लेकिन हर बार उतनी ही मजबूती से खड़ी भी हुई है. हां, ये जरूर है कि इस बार कांग्रेस के लिए चुनौती बड़ी है. सामने नरेंद्र मोदी जैसा करिश्माई नेतृत्व और बीजेपी जैसी विशाल संसाधनों वाली राजनीतिक पार्टी है, ये नई बीजेपी है जो नए भारत का निर्माण कर रही है. इसे हराने और खुद का वजूद बचाने के लिए कांग्रेस को इस बार कुछ नया करना होगा. ये हमारे लोकतंत्र के लिए भी अच्छा है. क्योंकि सत्ता-पक्ष और विपक्ष दोनों ही मजबूत होने जरूरी हैं. एक पार्टी, एक नेता और एक संविधान चीन में ही अच्छा लगता है. भारत में नहीं.

लेखक

निधिकान्त पाण्डेय निधिकान्त पाण्डेय @1nidhikant

लेखक आजतक डिजिटल में पत्रकार हैं.

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