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Updated: 02 मार्च, 2021 05:55 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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'कांग्रेस की मुश्किलें' और 'महाजन का कर्ज' ये दोनों ही अब एक दूसरे के पर्यायवाची बनते जा रहे हैं. न महाजन का दिया कर्ज कभी खत्म होता है और न कांग्रेस की मुश्किलें खत्म हो रही हैं. कांग्रेस में गांधी परिवार के खिलाफ बगावत करने वाले G-23 नेताओं का समूह पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले एक बार फिर से पार्टी पर जुबानी हमले करने में जुट गया है. वहीं, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और असम में कांग्रेस के आंतरिक समस्याओं से भी गिरा हुआ है. कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा जैसे नेता सार्वजनिक रूप से असंतोष जताने में नहीं हिचक रहे हैं. इस स्थिति में कांग्रेस के सामने खुद को संभालने का संकट भी खड़ा हो गया है. हालांकि, चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व इन नेताओं को लेकर नरम रुख अपना रहा है. कांग्रेस नेतृत्व लगातार कोशिश कर रहा है कि इन असंतुष्ट नेताओं की नाराजगी को दूर किया जा सके. कई कांग्रेस नेता इन जी-23 नेताओं के समूह को समझाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें बड़ी कामयाबी नहीं मिली है. 

असंतुष्ट नेताओं में शामिल रहे वीरप्पा मोइली ने फिर से शीर्ष नेतृत्व पर भरोसा जताया है.असंतुष्ट नेताओं में शामिल रहे वीरप्पा मोइली ने फिर से शीर्ष नेतृत्व पर भरोसा जताया है.

इस बीच असंतुष्ट नेताओं के समूह में शामिल रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली ने फिर से शीर्ष नेतृत्व पर भरोसा जताते हुए राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने का समर्थन कर दिया है. इस स्थिति में कयास लगाए जा रहे हैं कि कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व केवल चुनावों के खत्म होने का इंतजार कर रहा है. चुनावों के बाद असंतुष्ट नेताओं पर बड़ी कार्रवाई होने के संकेत अभी से मिलने शुरू भी हो गए हैं. चौतरफा मुश्किलों में घिरी कांग्रेस को बचाने के लिए पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा भी भरपूर कोशिशें कर रही हैं. उनका उत्तर प्रदेश को छोड़कर असम का दौरा करना इसी ओर इशारा कर रहा है. चुनावी राज्यों में कांग्रेस किसी भी हाल में खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती है और इसके लिए प्रयास शुरू हो गए हैं. असम में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट का एनडीए को छोड़ कांग्रेस के साथ गठबंधन में आना इसका एक उदाहरण माना जा सकता है. असम में भाजपा के सामने कांग्रेस बड़ी चुनौती पेश कर रही है.  

चुनावी राज्यों में कांग्रेस पर सवाल उठा रहे हैं जी-23 नेता

पश्चिम बंगाल में भी अब कांग्रेस नेता इन असंतुष्टों पर हमलावर नजर आ रहे हैं. जी-23 नेता में से एक आनंद शर्मा ने हाल ही में फुरफुरा शरीफ के अब्बास सिद्दीकी के साथ कांग्रेस करे गठबंधन पर सवाल खड़े किए थे. शर्मा ने इस गठबंधन को पार्टी की गांधीवादी और नेहरूवादी मूल विचारधारा और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ बताया था. आनंद शर्मा ने इस गठबंधन को लेकर कांग्रेस कार्य समिति में चर्चा करने की बात के साथ प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी की भी आलोचना की थी. इसके जवाब में अधीर रंजन चौधरी ने सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) के साथ गठबंधन के फैसले का बचाव किया और शीर्ष नेतृत्व को इसकी जानकारी होने की बात भी कही.

अधीर ने सुनाई आनंद शर्मा को खरी-खोटी

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने आलोचनाओं पर मुखर होकर आनंद शर्मा को ही नसीहत दे डाली. चौधरी ने ट्वीट कर कहा कि आनंद शर्मा पार्टी में रहते हुए भी भाजपा की भाषा बोल रहे हैं. इन नेताओं को प्रधानमंत्री की प्रशंसा में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. इन नेताओं का कर्तव्य है कि वे पार्टी को मजबूत करें. नाकि उस पेड़ को कमजोर करें, जिसने इन नेताओं को मजबूत किया. अधीर रंजन चौधरी सिलसिलेवार किए गए ट्वीट्स में आनंद शर्मा के साथ गुलाम नबी आजाद पर भी हमलावर रहे और पार्टी के हित में न बोलने के लिए खरी-खोटी भी सुनाते नजर आए. हाल ही में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने भी पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी. चौधरी ने गठबंधन को लेकर स्पष्ट भी किया कि कांग्रेस का गठबंधन वाम दलों के साथ है. आईएसएफ वाम दलों से जुड़ी है... उसे सीटें देने की जिम्मेदारी वाम दलों की है. वहीं, आईएसएफ सीटों की संख्या से संतुष्ट नहीं लग रही है और कांग्रेस को चेतावनी दे चुकी है.

असंतुष्टों के लिए 'माई वे ऑर हाईवे' की रणनीति अपनाएगी कांग्रेस

अधीर रंजन चौधरी की आनंद शर्मा को दी गई नसीहत आने वाले समय में असंतुष्ट नेताओें को लेकर कांग्रेस की रणनीति की एक झलक दिखा रही है. चुनावों की वजह से कांग्रेस जी-23 नेताओं को लेकर शांत नजर आ रही है. माना जा रहा है कि चुनावों के बाद कांग्रेस 'माई वे ऑर हाईवे' की रणनीति अपना सकती है. हालांकि, ऐसा करने पर पार्टी में खुलकर असंतोष के स्वर फूट सकते हैं. कांग्रेस आलाकमान ऐसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार दिख रहा है. ये भी कहा जा सकता है कि जी-23 नेताओं का भविष्य आगामी विधानसभा चुनावों पर टिका हुआ है. चुनावी राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा रहा, तो इन असंतुष्टों को एक मौका और मिल सकता है. अगर स्थितियां कांग्रेस के खिलाफ होती हैं, तो इन नेताओं पर शीर्ष नेतृत्व की तलवार गिर सकती है.

तमिलनाडु में आपसी खेमेबाजी में फंसी कांग्रेस

तमिलनाडु में प्रदेश कांग्रेस में आपसी गुटबाजी के चलते असंतोष भरा पड़ा है. कांग्रेस और डीएमके के बीच सीट शेयरिंग को लेकर गठबंधन पर असमंजस बरकरार है. राहुल गांधी के तमिलनाडु पहुंचने पर चुनाव प्रचार अभियान ने जोर पकड़ा था. लेकिन, उनके जाते ही फिर से गुटबाजी हावी होने लगी है. तमिलनाडु में प्रदेश अध्यक्ष के एस अलागिरी को लेकर कार्यकर्ताओं समेत कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में नाराजगी की बात सामने आई है. कांग्रेस आलाकमान द्वारा प्रदेश टीम की घोषणा करते समय भी कार्ति चिदंबरम ने इसका विरोध किया था. कहा जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व ने फैसले करने से पहले प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं से बात नहीं की थी.

केरल में वाम दलों के निशाने पर कांग्रेस

पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ गलबहियां कर चुनाव लड़ने जा रही कांग्रेस केरल में उन्हीं के खिलाफ खड़ी है. केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने हाल ही में राहुल गांधी और कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था. विजयन ट्वीट कर राहुल गांधी के बंगाल चुनाव से दूर रहने और केरल में ही ध्यान लगाने पर सवाल उठाए थे. पुडुचेरी में कांग्रेस की स्थिति जगजाहिर है. राहुल गांधी का दौरा खत्म होने के दूसरे ही दिन राज्य में कांग्रेस की सरकार गिर गई थी. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि कांग्रेस की मुश्किलें अभी खत्म होती नहीं दिख रही हैं.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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