महाराष्ट्र में कांग्रेस को 'कमजोर' करने की पटकथा लिखी जाने लगी है!
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई मुलाकात के बाद से ही राज्य की राजनीति में हलचल मचनी शुरू हो गई है. गठबंधन में शामिल कांग्रेस ने शिवसेना को आंखें दिखाना शुरू कर दिया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले अगला विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के साथ ही बता चुके हैं कि शिवसेना के साथ गठबंधन की एक्सपायरी डेट भी है.
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महाराष्ट्र (Maharashtra) की महाविकास आघाड़ी सरकार (MVA government) के सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा का दावा रहा है कि ये सरकार ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है. हालांकि, उद्धव ठाकरे नेतृत्व वाली सरकार को लेकर गठबंधन के नेता कहते नजर आते हैं कि ये पांच साल पूरे करेगी. हालिया घटनाक्रमों को देखकर कहा जा सकता है कि पक्ष और विपक्ष, दोनों के दावे अपनी जगह मजबूत नजर आ रहे हैं. महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra politics) में एक समय अंतराल के बाद उठापटक की खबरें आती रहती हैं. एंटीलिया केस से लेकर अनिल देशमुख के इस्तीफे तक महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मची ही रहती है. फिलहाल महाविकास आघाड़ी सरकार में शायद सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई मुलाकात के बाद से ही राज्य की राजनीति में हलचल मचनी शुरू हो गई है. गठबंधन में शामिल कांग्रेस (Congress) ने शिवसेना (Shiv Sena) को आंखें दिखाना शुरू कर दिया है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले अगला विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के साथ ही बता चुके हैं कि शिवसेना के साथ गठबंधन की एक्सपायरी डेट भी है. जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के स्थापना दिवस के मौके पर कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा कि राजनीति में अकेले जाने की बात करेंगे तो, लोग जूतों से पीटेंगे. हालांकि, इस पूरे मामले पर एनसीपी (NCP) की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या महाराष्ट्र में कांग्रेस को कमजोर करने की पटकथा लिखी जाने लगी है?
कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की बात पर शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में एक संपादकीय के जरिये निशाना साधा गया था.
महाराष्ट्र के हित के लिए एनसीपी का साथ जरूरी
कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने की बात पर शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में एक संपादकीय के जरिये निशाना साधा गया था. इस संपादकीय में ही शिवसेना ने एनसीपी के साथ अपने समीकरण को ठीक करने के भी संकेत दिए थे. संपादकीय में कहा गया कि सभी राजनीतिक दल अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, तो महाराष्ट्र के हित में शिवसेना और एनसीपी को एक साथ आना होगा. इस संपादकीय में कांग्रेस को गठबंधन का महत्वपूर्ण घटक दल बताने के साथ ये भी साफ कर दिया गया था कि कांग्रेस गठबंधन में तीसरे स्थान पर है. उद्धव-मोदी की मुलाकात के बाद एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने शिवसेना को बाल ठाकरे का इंदिरा गांधी को दिया वादा याद दिलाया था. इशारों-इशारों में शरद पवार ने अपने बयान में शिवसेना का साथ निभाने की बात कह दी थी, जिसमें कांग्रेस को किनारे रखा गया था.
शिवसेना को भाजपा से नहीं मिलना है 'इच्छित' फल
महाराष्ट्र में चुनाव दर चुनाव भाजपा के साथ गठबंधन में शिवसेना बड़े भाई से छोटे भाई की भूमिका में आ चुकी है. शिवसेना की महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री होने की मांग शायद ही भाजपा की ओर से कभी पूरी की जाएगी. हालिया उद्धव-मोदी की वन टू वन मीटिंग में भी निश्चित तौर पर इस बात की चर्चा उठी होगी. लेकिन, मोदी से मुलाकात भी शिवसेना को वो नहीं दिला सकी, जिसके लिए पार्टी 'बाल हठ' पाले बैठी है. जिसके बाद शिवसेना का पूरा जोर एनसीपी के साथ संबंधों को सुधारने पर लगा हुआ है. शरद पवार की चाहत 2024 में तीसरा मोर्चा के सहारे केंद्र की राजनीति करने की है. पवार को खुद में पीएम मैटेरियल नजर आ रहा है और यही चीज शिवसेना के पक्ष में जाती दिख रही है. शिवसेना का सारा फोकस महाराष्ट्र की राजनीति पर ही है. शरद पवार को आगे बढ़ाने पर सीधा फायदा शिवसेना को होता नजर आता है.
'महाराष्ट्र में तो उद्धव ठाकरे'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा से मुकाबला करने के लिए नारा दिया था 'दिल्ली में तो केजरीवाल'. इस नारे का सीधा सा मतलब था कि वह केंद्र में सरकार नहीं बनाना चाहते हैं, लेकिन दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ही सीएम बनेंगे. लोगों ने केजरीवाल के चुनावी नारे पर भरोसा जताया था. शिवसेना की राजनीति पूरी तरह से महाराष्ट्र केंद्रित है. बीएमसी और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों पर अपनी मजबूत पकड़ के अलावा शिवसेना का कोई राजनीतिक लक्ष्य नजर नहीं आता है. इस स्थिति में कहा जा सकता है कि आने वाले समय में एनसीपी के साथ समीकरण को सुधारते हुए कांग्रेस को साइडलाइन किया जा सकता है. शिवसेना और एनसीपी मिलकर दिल्ली की ही तर्ज पर 'महाराष्ट्र में तो उद्धव ठाकरे' का चुनावी नारा अपना सकते हैं. मराठा समुदाय और हिंदुत्व की राजनीति करने वाली शिवसेना के लिए शायद ही यह खराब निर्णय होगा.
शिवसेना और एनसीपी करेंगे कांग्रेस को कमजोर
शिवसेना और एनसीपी अगले विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को हाशिये पर ढकेलने की भरपूर कोशिश करेंगे. हालांकि, शिवसेना के सामने एनसीपी नेता और उपमुख्यमंत्री अजित पवार के रूप में एक बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है. लेकिन, 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद इस चुनौती का असली रूप सामने आएगा. दरअसल, अजित पवार भी कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री और सरकार बनाने का फैसला वही करेगा, जिसके पास 145 विधायकों का समर्थन होगा. अजित पवार पहले भी बागी होकर भाजपा की सरकार बनवा चुके हैं. हालांकि, उन्होंने शरद पवार के दबाव में बहुत जल्द ही वापसी कर ली थी. अगर भविष्य में अजित पवार विद्रोह करते भी हैं, तो 145 का जादुई आंकड़ा शायद ही छू पाएंगे. इस स्थिति में उनका गठबंधन में ही बने रहना उचित होगा. एनसीपी और शिवसेना ने धीरे से ही सही कांग्रेस को कमजोर करने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. जिसमें शरद पवार की मौन सहमति शामिल है.
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