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Updated: 09 जून, 2020 07:30 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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25 मार्च से देश भर में लॅाकडाउन (Lockdown) लगाया गया था और फिर उसकी मियाद बढ़ते बढते जून तक आ पहुंची. अब देश भर में लॅाकडाउन-5 लगा हुआ है जो 30 जून तक रहने वाला है लेकिन इस लॅाकडाउन-5 को अनलॅाक-1 (Unlock 1) का नाम दिया गया है यानी अब देश धीरे धीरे खुलने जा रहा है और 8 जून से इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने जब पहली बार देश में लॅाकडाउन का ऐलान किया तो यह सभी के लिए बिल्कुल नया अनुभव था. परेशानियां हज़ार थी लेकिन हर किसी का मानना था कि कोरोना वायरस के खात्मे के लिए लॅाकडाउन का होना बहुत ज़रूरी था. लॅाकडाउन ने देश भर को ताले में डाले दिया था अर्थव्यवस्था (Economy) का पहिया जाम हो गया था लेकिन कोरोना वायरस (Coronavirus) के खौफ ने इस फैसले को उचित कदम माना. देश में पहली बार लॅाकडाउन का जब ऐलान किया गया तो कोरोना के महज 600 केस थे और अब जब देश में अनलाक-1 (Unlock 1.0) शुरू हुआ है तब कोरोना के 2.7 लाख से अधिक केस हैं तो सवाल खड़े होते हैं कि क्या लॅाकडाउन फेल हो गया है?

अगर लॅाकडाउन फेल नहीं हुआ है तो कोरोना वायरस इतना कैसे फैल गया. कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या हर दिन नया रिकार्ड क्यों बना रही है. आखिर सरकार से कहां चूक हो गई जो कोरोना इतनी बड़ी संख्या में फैल गया और जब कोरोना इतना बेकाबू हो गया है तो फिर देश को क्यों खोला जा रहा है. क्या सरकार कोरोना से हार मान चुकी है या फिर सरकार को देश की पस्त पड़ी अर्थव्यवस्था को धक्का देना ज़रूरी हो गया है?

कई सवाल पैदा हुए हैं जिनका जवाब आसानी से नहीं दिया जा सकता है लेकिन कुछ हद तक सरकार की रणनीतियों को ज़रूर समझा जा सकता है कि आखिर अब देश को क्यों खोला जा रहा है या फिर लॅाकडाउन कामयाब रहा या फिर फेल हो गया. इन सभी सवालों का जवाब तलाशने से पहले हमें मार्च महीने पर नज़र डालनी होगी जब भारत में कोरोना वायरस उभरना शुरू हुआ था.

Lockdown, Coronavirus, Unlock, PM, Narendra Modi  कोरोना के मद्देनजर सरकार ने उस वक़्त सब कुछ खोला है जब देश में कोरोना के मरीजों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है

उस वक्त सरकार की सबसे पहली जिम्मेदारी थी कि इसको किसी भी तरह से फैलने से रोका जाए और उसके लिए सरकार के पास एकमात्र तरीका लॅाकडाउन का था. जिसको लगाने में प्रधानमंत्री ने जरा सा भी देरी नहीं की. सरकार को भी खूब अंदाजा था कि स्थिति बेकार होने वाली है लोग अपने घरों की ओर भागेंगें इसीलिए ट्रेन और हवाई जहाजों को भी बंद कर दिया गया था लेकिन स्थिति इतनी भयानक हो जाएगी और लोग इतनी बड़ी संख्या में पलायन के लिए सड़कों पर उतर जाएंगें.

इसका अंदाजा सरकार को कतई नहीं था. खैर ये अलग मुददा है हम बात लॅाकडाउन की कर रहे हैं कि लॅाकडाउन लगाया क्यों गया. लाकडाउन लगाने का सरकार के पास दो ही मकसद था. पहला कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकना और दूसरा अपनी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूती देना. जब भारत में कोरोना वायरस ने अपना कहर दिखलाना शुरू किया था तब हमारे पास टेस्टिंग किट, मास्क, पीपीई किट, अस्पतालों में बेड समेत कई जरूरी चीजों की बहुत भारी मात्रा में कमी थी. भारत ने तेजी के साथ इन तमाम चीज़ों की व्यवस्था करनी शुरु की.

इन तमाम व्यवस्थाओं के लिए जरूरी था कोरोना संक्रमण को काबू में किए रहना. सरकार ने लॅाकडाउन लगाने में तो सख्ती के साथ फैसला ले लिया लेकिन इसको लागू करवाने में नाकाम रही जिसकी तस्वीर समय समय पर अलग अलग राज्यों से आती रही. लेकिन इसमें सिर्फ सरकार का दोष नहीं है बल्कि इसमें आम नागरिक के साथ साथ प्रशासन की भी लापरवाही भी शामिल थी.

सरकार को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जिन व्यवस्थाओं का इंतजाम करना था उसको तेज़ी के साथ किया. देश में हर सप्ताह टेस्टिंग की रफ्तार बढ़ी और कोरोना योद्धाओं की सुरक्षा के लिए जो उपकरण ज़रूरी थे उनको उपलब्ध कराया. अब जब देश अनलाक की स्थिति में जा रहा है तो हम कोरोना वायरस से लड़ने कि लिए पहले से काफी अच्छी तरह से तैयार हैं. अब देश में तेजी के साथ कोरोना संदिग्धों का टेस्ट किया जा रहा है और उनको अलग थलग कर के उनका इलाज किया जा रहा है.

देश में कोरोना की बढ़ती रफ्तार धड़कने ज़रूर बढ़ाती हैं लेकिन इसको लेकर लोगों के मन में जो डर था वह भी कम हुआ है और इसकी सबसे बड़ी वजह कोरोना से स्वस्थ होने वालों का आंकड़ा है. अब लोगों को स्वास्थ महकमे पर इतना तो भरोसा हुआ है कि वह कोरोना से संक्रमित लोगों को ठीक भी कर सकते हैं.

देश को अनलाक करने का फैसला सरकार का कितना सही है और कितना गलत ये तो अगला कुछ हफ्ता तय करेगा लेकिन सरकार पर राज्य सरकार और देश के अलग अलग तबकों का इतना दबाव बढ़ गया कि मजबूरी में भी सरकार को अनलाक-1 का फैसला लेना पड़ा. इसमें सबसे बड़ा दबाव सरकार पर धार्मिक स्थल एवं मध्यम वर्ग के लोगों के कारोबार को लेकर पड़ा है. सरकार ने गाइडलाइन ज़रूर जारी की है लेकिन इस पर प्रशासन का फेल होना बहुत बड़ा नुकसान खड़ा कर सकता है. केंद्र सरकार ने सबकुछ राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है तो राज्य सरकारों ने जिला प्रशासन के हाथों में सबकुछ थमा दिया है.

यानी जिले को कितना खोलना या बंद रखना है इसका फैसला सिर्फ जिला प्रशासन ही लेने वाला है. अब इसमें जिस जिले का मुखिया जितनी मुस्तैदी दिखाएगा उतना ही उसका जिला इस संक्रमण से बचा रहेगा वरना तो सभी को अपनी सुरक्षा स्वयं ही करनी होती है इसलिए सभी को अपनी सुरक्षा खुद ही करनी चाहिए. जिला प्रशासन या स्वास्थ महकमा तो सिर्फ आपको खतरे से आगाह और उसके बचाव के तरीके सुझा और समझा सकती है.

बचाव तो आपको खुद ही करना होगा. इसको इस तरह समझ सकते हैं जैसे बाइकसवारों के लिए हेलमेट के नियम बनाए गए हैं- दुर्घटना के खतरे को बतला दिया गया है और उससे बचने का सुझाव भी हेलमेट के रूप में सुझा दिया गया है. अब ये नागरिक पर निर्भर करता है कि वह इस खतरे से बचने के लिए इसे कितना अमल में लाता है. इसलिए आपका संक्रमित हो जाना आपकी भी लापरवाही होगी वरना स्वास्थ महकमा तो आपको खतरे से भी आगाह कर चुका है और उससे बचने का सुझाव भी लगातार बतला ही रहा है.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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