Coronavirus politics: राहुल गांधी बेशक राजनीति करें लेकिन लोगों के बीच जाकर
कोरोना वायरस से आयी वैश्विक महामारी (Coronavirus Pandemic) के बीच भी राहुल गांधी (Rahul Gandhi) राजनीति का मौका खोज ले रहे हैं. अच्छी बात है. और भी अच्छी बात तब होती जब राहुल गांधी जूम ऐप के जरिये ही सही, लोगों के बीच (People) जाते.
-
Total Shares
कोई भी काम करना चाहे तो मौके की कमी नहीं होती. कांग्रेस नेतृत्व को भी ये बात मालूम होगी ही. ये सही है कि लॉकडाउन की वजह से कहीं आने जाने या धरना-प्रदर्शन जैसी राजनीतिक गतिविधियों पर पाबंदी लगी हुई है, लेकिन लोगों (People) की सेवा का अवसर किसी से नहीं छीना गया है.
कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी (Coronavirus Pandemic) में भी राहुल गांधी वैसे ही सवाल उठा रहे हैं जैसे सीएए या धारा 370 को लेकर करते रहे - जरूरी नहीं कि राजनीति दृष्टि से ये सब गलती ही माना जाये. वैसे भी मोहब्बत और जंग की तरह सियासत में भी ज्यादातर चीजें जायज ही ठहरायी जाती रही हैं. कांग्रेस के सामने तो वैसे भी राजनीति अस्तित्व को बचाने रखने की चुनौती बनी हुई है.
लेकिन कांग्रेस नेतृत्व खासकर राहुल गांधी जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दे रहे हैं - जब देश के ज्यादातर लोग मान कर चल रहे हैं कि सरकार ठीक से काम कर रही है - तो वे राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सुझाव या सोनिया-प्रियंका की चिट्ठियों पर क्यों ध्यान दें?
कांग्रेस के पास मिसाल कायम करने का पूरा मौका है
जो सलाह राहुल गांधी और सोनिया गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे रहे हैं या जो सुझाव प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दे रही हैं - वे चाहें तो उसे जमीन पर उतार का दिखाने का भी पूरा मौका उनके पास है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी और प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी के लिए योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर सुझाव देते रहे हैं.
देश के पांच राज्यों की सरकारों में कांग्रेस का पूरा या फिर आंशिक दखल तो है ही. राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं तो महाराष्ट्र और झारखंड सरकार में कांग्रेस सत्ता में मजबूत हिस्सेदार है. वायनाड से सांसद राहुल गांधी तो अब कोरोना के खिलाफ लड़ाई में केरल का भी जिक्र करने लगे हैं.
देखा जाये तो पांच राज्यों में कांग्रेस वो सभी उपाय लागू करके आजमा सकती है जो देश के सामने कोरोना से जंग में मिसाल बन जाये. आखिर भीलवाड़ा मॉडल भी कांग्रेस शासित राज्य में ही तैयार हुआ है - अगर सोनिया गांधी ने राहुल गांधी को क्रेडिट न दिया होता तो बीजेपी को काउंटर के लिए आगरा मॉडल पेश करने की जरूरत शायद ही पड़ती.
कांग्रेस नेतृत्व राजनीति के चक्कर में मौके चूक रहा है
राहुल गांधी केंद्र सरकार पर गैर बीजेपी शासित राज्यों के साथ भेदभाव के भी आरोप लगा रहे हैं, लेकिन वो ये कैसे भूल जा रहे हैं कि असम ने अपने बूते चीन से पीपीई किट मंगा लिया है. राहुल, सोनिया और प्रियंका सभी केंद्र सरकार को पीपीई किट स्वास्थ्यकर्मियों को मुहैया कराने की बार बार सलाह दे रहे हैं.
असम के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने विमान की तस्वीर के साथ ट्विटर के जरिये जानकारी दी - 'खुश होने की एक और बड़ी वजह है! चीन से 50 हजार पीपीई किट आयात कर हम खुश हैं... ये हमारे डॉक्टरों और नर्सों के लिए बड़े भरोसे का कारण है.'
Another BIG reason to cheer!
Keeping life first as the motive, we're glad to have imported 50,000 PPE kits from Guangzhou,China. I am happy to receive this special flight along with @Pijush_hazarika at #Guwahati airport just now. A big reassurance for our doctors & nurses. pic.twitter.com/nFkFkwfPQZ
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) April 15, 2020
आखिर कैसे चीन से सीधे पीपीई किट आयात करने वाला पहला राज्य असम बन गया है? ये काम तो कांग्रेस शासन वाली भी कोई सरकार अपने दम भी कर सकती थी. अगर कांग्रेस की अकेली नहीं तो महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी सरकार भी कर सकती थी - वैसे भी पहले होने का मौका भले कांग्रेस ने गंवा दिया हो, लेकिन कोशिश करने का एक रास्ता तो नजर आ ही रहा है. कांग्रेस की सरकारें चाहें तो अब भी ऐसी कोशिश कर सकती हैं.
जनसेवा के लिए सत्ता में होने की शर्त नहीं होती
सलाह देना दुनिया में सबसे आसान काम है और हमारे देश के लोग बाकी किसी मामले में भले ही कभी कभार चूक जायें, लेकिन सलाहियत की बात हो तो हमेशा की तरह आने वाले बरसों बरस भी विश्व गुरु बने रहेंगे. राहुल गांधी हों, सोनिया गांधी हों या फिर प्रियंका गांधी या बीच बीच में पी. चिदंबरम - सभी के पास सलाहों की भरमार है और वे लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास भेज भी रहे हैं. समस्या तो ये भी होगी कि ढेर सारे सलाहकारों की राय आखिर कहां जमा करके रखें, भेजते रहने से भार हल्का ही होगा.
सलाह लेना और उस पर अमल करना कहीं ज्यादा मुश्किल है. कांग्रेस नेतृत्व की समस्या ये है कि वे सलाह देते तो हैं, लेकिन लेते बिलकुल नहीं. अभी बीजेपी के स्थापना दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को सलाह पांच टास्क दिये थे और उनमें से एक था सभी कार्यकर्ता अपने साथ साथ कम से कम पांच परिवारों के लिए घर में खाना बनायें, ताकि कोरोना संकट में किसी भी गरीब को भूखा रहने से बचाया जा सके.
राहुल गांधी या सोनिया या प्रियंका की तरफ से कभी ऐसी कोई अपील तो अब तक नहीं सुनने को मिली है. सोनिया गांधी रामलीला मैदान से ये अपील तो करती हैं कि देश को बचाने के लिए घरों से निकलने कर आर पार की लड़ाई लड़ने का वक्त आ चुका है, लेकिन कोरोना संकट के वक्त तो एक भी ऐसा वीडियो मैसेज नजर नहीं आया.
कांग्रेस के पास सेवा दल, युवा कांग्रेस और न जाने कितने ऐसे संगठन हैं और किसी इलाके विशेष में नहीं बल्कि पूरे देश में. सोनिया गांधी या राहुल गांधी बोलते तो एक आवाज पर वे लोगों की सेवा में जुट जाते - और दिखा देते कि कांग्रेस सत्ता की ही नहीं लोगों की सेवा की राजनीति भी करती है.
बीबीसी से बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई ने भी कुछ ऐसा ही सुझाव दिया है - 'ज्यादातर आबादी सरकार पर या प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री पर भरोसा करती है. ये समय ऐसा है कि राहुल गांधी अच्छी बात कहें या बेतुकी बात कहें - फायदा सिर्फ मोदी सरकार को ही होगा. जनता के बीच जाकर काम करेंगे तो जरूर आगे चलकर फायदा मिल सकता है. अगर कांग्रेस समाज में एकता बनाए रखने की कोशिश करे तो जरूर कुछ फायदा होगा.'
दिल्ली दंगों के 72 घंटे होने पर सोनिया गांधी मीडिया के जरिये लोगों के सामने आयीं और मोदी सरकार के साथ साथ दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की, लेकिन ये नहीं बताया कि उतनी देर तक कांग्रेस के नेता क्या कर रहे थे - राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कहां थे?
तब सोनिया गांधी अरविंद केजरीवाल को तो नसीहत दे रही थीं, लेकिन जब इलाके में जाने की बारी आयी तो राहुल गांधी सिर्फ एक बार गये और कैमरा देखते ही राष्ट्र के नाम संदेश देकर लोट गये. खुद को दिल्ली की लड़की होने का दावा करने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा तो झांकने तक नहीं गयीं - अगर चुनावों में दोनों साथ साथ प्रचार कर रहे थे, तो दिल्ली दंगों के पीड़ितों से मिलने भी साथ जा ही सकते थे. पीड़ित तो पीड़ित होता है उससे क्या राजनीतिक भेदभाव - अगर सीएए विरोधियों से मिला जा सकता है तो दिल्ली के दंगा पीड़ितों से क्यों नहीं? सीएए के पीड़ितों की तरह दंगे के शिकार लोग भी तो पीड़ित ही हैं.
जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी के लॉकडाउन की घोषणा या मियाद बढ़ाये जाने को लेकर कांग्रेस मुख्यमंत्री रेस लगाये रहे, राहुल गांधी भी ट्वीट करते रहे और सोनिया गांधी वीडियो मैसेज के जरिये लोगों देशवासियों से संवाद कर रही थीं - अच्छी बात है. ट्विटर पर कांग्रेस की तरफ से जहां तहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं की तस्वीरें और वीडियो भी डाले गये हैं जो खाने के सामान जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं - लेकिन अगर नेतृत्व की तरफ से जोर रहता तो लोग भी महसूस करते कि किस तरह संकट की घड़ी में कांग्रेस उनके साथ खड़ी है. आगे चल कर कांग्रेस को इसका फायदा भी मिलता ही.
लॉकडाउन को पॉज बटन के तौर पर समझाते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि भारत में कोरोना को लेकर टेस्टिंग कम हो रही है. राहुल गांधी की राय में लॉकडाउन छोड़ कर टेस्टिंग पर जोर देना चाहिये क्योंकि तभी कोरोना वायरस को शिकस्त दी जा सकती है.
राहुल गांधी के सवाल उठाने पर ICMR के वरिष्ठ वैज्ञानिक रमन आर. गंगाखेड़कर ने कुछ आंकड़ों के साथ स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश की है. रमन गंगाखेड़कर का कहना है कि आबादी के आधार पर टेस्टिंग की पैमाइश ठीक नहीं है. रमन गंगाखेड़कर बताते हैं - देश में 24 नमूनों की जांच में एक व्यक्ति में संक्रमण की पुष्टि हो रही है, जबकि जापान में 11.7, इटली में 6.7, अमेरिका में 5.3, ब्रिटेन में 3.4 सैंपल टेस्ट करने पर पर एक व्यक्ति पॉजीटिव निकल रहा है.
रमन गंगाखेड़कर कहते हैं जो लोग ज्यादा जांच की बात कह रहे हैं, उनको समझना चाहिए कि भारत में प्रति संक्रमित व्यक्ति पर ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं. गंगाखेड़कर कह रहे हैं कि अमेरिका, इटली, ब्रिटेन और जापान जैसे देशों की तुलना में भारत में कोरोना मरीजों की पहचान के लिये न सिर्फ टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं, बल्कि वे तार्किक और विवेकपूर्ण तरीके से किये जा रहे हैं. राहुल गांधी सहित कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को वस्तुस्थिति से अच्छी तरह वाकिफ होना जरूरी है - क्योंकि सिर्फ दलितों की तरक्की ही नहीं दुनिया में कोई भी व्यावहारिक काम एस्केप वेलोसिटी से नहीं होता. हर बात में रॉकेट साइंस को आजमाना खतरनाक हो सकता है - और राजनीति में तो कुछ ज्यादा ही
इन्हें भी पढ़ें :
Rahul Gandhi तो Lockdown पर सवाल उठा कर अपने ही बुने जाल में उलझ गये!
Rahul Gandhi तो लॉकडाउन और CAA में फर्क करना ही भूल गए !
Lockdown 2 की गाइडलाइंस से मोदी-शाह ने किया विपक्ष पर प्रहार
आपकी राय