कोविड 19 से होने वाली मौतों का आंकड़ा छुपाना भी मरने वालों का अपमान है
तो ऐसा कभी नहीं हुआ कि जगह जगह लोगों की लाशें (Covid 19 Deaths) इस कदर नजर आयी हों - यूपी का भी एक मामला हैरान करता है जिसमें चुनाव ड्यूटी पर मौत (UP Teachers Poll Duty) के लिए सिर्फ 3 शिक्षकों को मुआवजे (Compensation) के लायक समझा गया है.
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मौत को शाश्वत सत्य माना जाता है. सत्य को छुपाया नहीं जा सकता, हमेशा के लिए. मौत को भी छुपाया नहीं जा सकता. मौत को छुपाना भी अपराध है. मौत के बदले देश का कानून सजा-ए-मौत देता है, बशर्ते अदालत में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाये.
अगर मौत को छुपाना अपराध है और कानूनन सजा तय है तो फिर मौत के आंकड़ों को छुपाना क्या अपराध नहीं है?
हो सकता है कोविड 19 से जो मौतें (Covid 19 Deaths) हो रही हैं, उनमें से कुछ अपराधी भी हों और उनकी मौतों को एनकाउंटर की फेहरिस्त में दर्ज कर लिया जाता हो - क्योंकि उन पर इनाम भी तो हुआ करता होगा और मौत के बाद तो वैसे भी सरकारी फाइलें बंद हो ही जाती हैं.
सरकारी फाइलों का क्या - जिन्दा लोगों के नाम भी तो मृतक के तौर पर दर्ज कर ही लिये जाते हैं और ताउम्र वे लोग खुद को जिंदा साबित करने के लिए जूझते रहते हैं - कई बार तो चुनाव भी लड़ने की कोशिश करते हैं, ताकि सबको मालूम हो सके कि वे जिन्दा हैं. पुलिस एनकाउंटर कोई सीमा पर डटे जवान की दुश्मन पर फायरिंग की तरह नहीं होता. आत्मरक्षा के नाम पर बताये जाने वाले एनकाउंटर के लिए भी पुलिसवालों पर मुकदमा चलाया जाता है - और ऐसे कई वाकये देखने को मिले हैं जिनमें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट होने के दावे करने वाले हत्यारे साबित हुए हैं. अदालत ऐसे सरकारी मुलाजिमों को भी किसी भी आम अपराधी की तरह ही सजा भी सुनाती है. ऐसी घटनाएं हुई हैं जब रिटायर हो चुके पुलिसवालों को दोषी साबित होते ही हथकड़ी पहना दी जाती है.
फिर मौत के आंकड़े छुपाने जैसे अपराध की भी तो सजा होनी चाहिये - ऐसे अपराध का दोषी कोई भी सरकारी कर्मचारी, अफसर या कोई और ही क्यों न हो?
नदी में बहती लाशें. बालू में दबी लाशें. धरती के किसी भी टुकड़े को श्मशान और कब्रिस्तान बनाती लाशें - क्या ऐसी लाशें भी किसी टूल-किट का हिस्सा हैं?
अव्वल तो सुनने में आता है कि जीवन और मृत्यु का फैसला और लेखा-जोखा धरती से कहीं ऊपर आसमान में तैयार होता है - लेकिन अभी तो हाल ऐसा हो चला है जैसे इंसान की जान का भी धरती पर ही टूल किट तैयार हो रखा हो!
कोविड 19 से होने वाली मौतों का आंकड़ा छुपाना भी मरने वालों का अपमान है - और अपराध भी!
उत्तर प्रदेश से चुनाव ड्यूटी करने गये सैकड़ों शिक्षकों की कोविड से मौत (UP Teachers Poll Duty) का मामला सामने आया है, लेकिन बलिहारी है बीजेपी की सरकार की जिसने महज तीन को ही मुआवजे (Compensation) का हकदार पाया है.
अफसोस तो बस ये है कि ऐसे खुली आंखों के सामने होते अपराध का भी न तो कोई चश्मदीद है, न कहीं ट्रायल की गुंजाइश है - और न ही कोई जज किसी अदालत में बैठा नजर आ रहा है जो स्वतः संज्ञान के साथ मुकदमा चलाये और दोषी पाये जाने पर सजा सुना सके.
शवों के साथ ऐसा अपमानजनक व्यवहार क्यों?
एक बात बिलकुल भी नहीं समझ में आ रही है - भला ऐसा कैसे हो सकता है कि जिस इलाके में सैकड़ों शव जल रहे हों, वहां कोविड 19 से होने वाली मौतों की संख्या दहाई का आंकड़ा भी न छू पाता हो?
और अगर ऐसा है तो ये तो सबसे बड़ा सवाल है कि मौतों की ऐसी तादाद देखने को क्यों मिल रही है?
निश्चित रूप से श्मशान घाट या कब्रिस्तानों में पहुंचने वाली सभी लाशें कोविड 19 से जिंदगी हार बैठे लोगों की नहीं हो सकतीं, लेकिन अगर आम तौर पर होने वाली मौतों से अचानक अंतिम संस्कार के लिए लाशों की भारी तादाद देखने को मिले तो हर किसी को ये संदेह तो होना ही चाहिये कि ऐसा क्यों हो रहा है?
कहीं ऐसा तो नहीं कि कोविड 19 की आड़ में कोई अपराधी गिरोह अपराध को अंजाम दे रहा है और आम जन मानस ये समझ रहा है कि सरकार ही मौत के आंकड़ों को छुपा रही है?
लेकिन ये पता लगाना भी तो पुलिस, प्रशासन और जांच एजेंसियों का ही काम है - और अगर सरकार की तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं आता तो यही समझा जाएगा कि सरकार ही मौतों की संख्या छुपा रही है.
क्या मौत से भी भयावह उसके आंकड़े हो सकते हैं?
न्यूज वेबसाइट द प्रिंट के एक रिपोर्टर ने 17 मई को आंध्र प्रदेश में विजयवाड़ा के दो बड़े शवदाह घरों (Crematorium) और तीन कब्रिस्तानों का हाल देखने के लिए दिन भर का वक्त लगाया - और वहां के कर्मचारियों और लोगों से बात करने पर मालूम हुआ कि कोविड 19 से हुई मौत के बाद 36 शवों का अंतिम संस्कार किया गया. सरकारी आंकड़ों में, रिपोर्ट के अनुसार, कृष्णा जिले में 8 मौतों की जानकारी दी गयी थी, जबकि वहां मालूम हुआ कि 22 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया है.
ठीक एक महीना पहले 16 अप्रैल को पीटीआई के फोटोग्राफर अरुण शर्मा ग्राउंट रिपोर्ट के लिए दिल्ली से कानपुर पहुंचे - और अस्पतालों से लेकर श्मशान घाटों तक तस्वीरें खींच रहे थे. वो शहर में अलग-अलग स्थानों पर जाकर कोरोना महामारी की व्यापकता का अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहे थे.
23 अप्रैल को अरुण शर्मा ने जलती चिताओं की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की तो वे वायरल हो गयीं. अरुण शर्मा ने कानपुर के भैरव घाट से कुछ तस्वीरें शेयर की और लिखा - एक दिन में 476 शवों का अंतिम संस्कार.
476 #Funerals In One Day In #Kanpur#COVID-19 #victims being #cremated at #Bhairav Ghat Hindu Crematory, as coronavirus cases surge in record numbers across the country, in Kanpur. #SecondCOVIDWave #up78 #CoronaUpdate #CoronavirusIndia #CoronaCurfew #photojournalistarun pic.twitter.com/LBtzsKwcte
— Arun Sharma (@ARUNSHARMAJI) April 23, 2021
सवाल ये नहीं है कि कानपुर में एक दिन में 476 मौतें कैसे हो गयीं - बड़ा सवाल ये है कि कानपुर प्रशासन ने मौतों का जो आधिकारिक आंकड़ा पेश किया वो सिर्फ छह लोगों की मौत बता रहा था.
15 साल से फोटो पत्रकारिता कर रहे अरुण शर्मा बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, 'मैंने बड़ी से बड़ी त्रासदियां कवर की हैं, लेकिन ऐसा कभी महसूस नहीं किया. ये दृश्य दिलो-दिमाग में बैठ जाने वाला था.'
कानपुर की इन तस्वीरों के वायरल होने के बाद सरकारी आंकड़ों पर भी सवाल उठे हैं. स्थानीय अख़बारों के मुताबिक़ जिस दिन कानपुर के श्मशान घाटों पर 476 चिताएं जलीं, उस दिन प्रशासन ने अधिकारिक आंकड़ा सिर्फ़ छह लोगों की मौत का ही दिया था.
ये सब जानने के बाद अगर आपके मन में भी ये सवाल उठता है - क्या सही आंकड़े आम जनता से छुपाये जा रहे हैं?
बीबीसी ने यही सवाल एक सीनियर अफसर से किया - और न नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर जो बात उस अफसर ने बतायी, सुन कर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी, 'असल तस्वीर इतनी भयावह है कि लोग डर जाएंगे.'
मतलब, ये समझा जाये कि पूरा सरकारी अमला लोगों को मौत के डर से बचाने में जुटा हुआ है - क्या ये मरने वालों का अपमान नहीं है? क्या मौत का आंकड़ा छुपाने का ये कोई केस नहीं बनता?
क्या इसी डर से बचाने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान मौत का नंबर महज 3 बता रही है?
कितने आदमी थे - तीन सरकार!
लगता है यूपी सरकार के मंत्री और अफसर आपदा की इस मुश्किल घड़ी में फिल्म शोले के डायलॉग लिख रहे हैं - और उसी तरीके से पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले शिक्षकों और दूसरे कर्मचारियों की मौत का मुआवजा तय कर रहे हैं.
सवाल भी बिलकुल वही है - कितने आदमी थे? जवाब भी बिलकुल वही है - तीन सरकार! (वैसे गब्बर के आदमियों ने फिल्म सरकार नहीं बल्कि सरदार बोला था.)
रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षकों के संगठन ने पंचायत चुनाव की ड्यूटी के दौरान 1621 शिक्षकों और शिक्षा मित्रों की मौत का दावा किया है. ध्यान रहे शिक्षकों ने चुनाव ड्यूटी के दौरान कोविड 19 से होने वाली मौतों के चलते चुनाव आयोग से पंचायत चुनाव को स्थगित करने की मांग की थी - बाद में मतगणना टालने की भी मांग की गयी थी. 28 अप्रैल को एक सूची जारी करते हुए कोविड 19 से 706 शिक्षक-कर्मचारियों की मौत की जानकारी दी गयी थी.
मौत बनाम मुआवजा : कोविड 19 से मरने वाले 1621 में से महज 3 मुआवजे के हकदार!
प्राथमिक शिक्षक संघ ने 16 मई को जो सूची जारी की है, उसमें यूपी के 75 जिलों में 1621 शिक्षकों, अनुदेशकों, शिक्षा मित्रों और अन्य कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण से मौत बतायी गयी है - और ये सभी लोग पंचायत चुनाव में ड्यूटी पर गये थे.
ध्यान देने वाली बात ये है कि संघ की सूची में कोविड 19 के शिकार शिक्षकों के नाम, स्कूल का नाम, पद, ब्लॉक, जिला, मौत की तारीख और परिवार के सदस्यों के मोबाइल नंबर तक दिये गये हैं. सूची के मुताबिक, यूपी के 23 जिलों में 25 से ज्यादा कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई है. ये संख्या सबसे ज्यादा आजमगढ़ में है - 68. ऐसे ही रायबरेली में 53, गोरखपुर में 50, लखीमपुर में 47, इलाहाबाद में 46, जौनपुर में 43, गाजीपुर में 36 और लखनऊ में 35 मौतें हुई हैं.
शिक्षक संघ जो भी दावे करे, शिक्षा विभाग के सचिव सत्य प्रकाश एक प्रेस नोट जारी करके बताते हैं कि तय मानकों के अनुसार कोविड 19 की वजह से सिर्फ 3 मौतें हुई हैं.
संघ के अध्यक्ष डाक्टर दिनेश चंद्र शर्मा ने इस सिलसिले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कई पत्र लिखे हैं. शिक्षकों की मौत को लेकर उनकी दलील है, ये सभी जानते हैं कि कोविड-19 के लक्षण 24 घंटे में ही नजर नहीं आते बल्कि सामने आने में कुछ दिनों का वक्त लगता है - लेकिन सरकार ने अपने शासनादेश में कहा है कि पंचायत चुनाव ड्यूटी करने के 24 घंटे के अंदर जिन कर्मचारियों की मृत्यु होगी, उनके परिजनों को ही मुआवजा दिया जाएगा.
उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉक्टर सतीश चंद्र द्विवेदी भी शिक्षक संगठनों के दावे को गलत ठहराते हुए बता रहे हैं कि स्थापित मानकों के हिसाब से देखें तो चुनाव ड्यूटी के दौरान सिर्फ तीन शिक्षकों की मौत हुई है - ऊपर से ये भी कहते हैं कि भ्रामक सूचना के आधार पर विपक्ष के नेता भी ओछी राजनीति कर रहे हैं.
ऐसा भी नहीं कि योगी सरकार के ये मंत्री अगस्त के महीने में 'बच्चों की मौत' की कहानी जैसा मामला करार दे रहे हैं. डॉक्टर सतीश चंद्र द्विवेदी बड़े ही सहज भाव से कहते लगते हैं, 'हो सकता है और भी मौतें हुई हों, कोविड-19 से हजारों लोग मारे गये हैं जिनमें शिक्षक भी शामिल हैं - हमें उनकी मृत्यु पर दुख है.'
ये शिक्षक और बाकी कर्मचारी तो सरकारी आदेश पर ही चुनाव ड्यूटी पर गये होंगे - और ये सब कोई मौखिक आदेश तो होगा नहीं. जब सरकार अंग्रेजों के जमाने जैसे नियमों का हवाल देकर महरूम मुलाजिमों को उनके परिवार वालों को मिलने वाले मुआवजे के हक से मरहूम कर सकती है - तो शवों के आंकड़े में हेर फेर होना कौन सा नामुमकिन चीज है?
हाल ही में यूपी के ही बलिया जिले से एक शव के अंतिम संस्कार की तस्वीर वायरल हुई थी. तस्वीर में पुलिसकर्मी टायर और पेट्रोल से शव को जलाते हुए देखे गये - हालांकि, सीनियर अफसरों के जरिये जब ये बात पुलिस कप्तान तक पहुंची तो पांच पुलिसकर्मियों को सस्पेंड भी कर दिया गया.
यूपी के बलिया में टायर और पेट्रोल से शव जलाते पुलिसकर्मी
ऐसे में जबकि कोरोनावायरस से तबाही की गवाही लाशें खुद दे रही हैं - कोई दो राय नहीं होनी चाहिये कि कोविड 19 से होने वाली मौतों के आंकड़े छुपाना हत्या जैसा ही अपराध है और शवों का अपमान भी.
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