सुन्नी मुसलमानों से भाजपा के इश्क़ की शुरुआत हैं दानिश आजाद अंसारी!
पच्चीस-तीस बरस बाद एक बार फिर भाजपा अब पसमांदा (मुसलमानों) की दूरियां कम करने की रणनीति पर काम कर रही है. इस बार के योगी मंत्रीमंडल में इकलौता मुस्लिम चेहरा पसमांदा मुस्लिम यानी अंसारी है.
-
Total Shares
नवजीवन अखबार में एक गणेश जी हुआ करते थे पत्रकारिता, साहित्य उनकी रूह थी, धोती-कुर्ता, चंदन का तिलक और मुंह मे पान की गिलौरी उनका हुस्न था. उनको लेख देने जाता तो इंतेज़ार करता था कि वो पान की पीक थूकें तो उनसे बात करने का रास्ता खुले. एक दफा तो उन्होंने पीक थूक दी, फिर भी मुझे उनसे बात करने का मौका आधे घंटे तक नहीं मिला. मरहूम गणेश जी अपने हम उम्र साथी से रूठे हुए थे और साथी उन्हें मनाने में लगे थे. साथी से नाराज़ होकर वो उससे दूर हो जाने के लाए तेजी से भाग रहे थे तो एकाएकी साथी ने हंसते हुए प्यार से उनकी धोती पकड़ ली. अब वो भाग नहीं सकते थे, मोहब्बत की गिरफ्त में आकर वो मुस्कुराए, और जिस साथी से बेहद नाराज़ थे उसको गले लगाकर सारे गिले शिकवे भुला दिए. राजनीतिक दलों की सोशल इंजीनियरिंग भी ऐसी ही होती है. जो पहले से अपने हैं और अपने क़रीब हैं उनको नजर अंदाज भी करोगे तो वो कहीं नहीं जाएंगे. जो आपसे दूर हैं, नाखुश हैं और आपसे दूर भाग रहे हैं उन्हें अपने क़रीब लाने के हुनर को ही सोशल इंजीनियरिंग कहा जाता है.
माना जा रहा है कि दानिश आजाद अंसारी को मंत्री बनाए जाने का फायदा भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में मिलेगा
भाजपा से मुसलमानों की दूरी रही है लेकिन यूपी में एजाज रिजवी, शीमा रिज़वी जैसे तमाम सुन्नी मुसलमान भाजपा का मुस्लिम चेहरा बने थे. इसके बाद नई भाजपा में शिया मुसलमानों की सहभागिता बढ़ी. लेकिन पच्चीस-तीस बरस बाद एक बार फिर भाजपा अब पसमांदा (मुसलमानों) की दूरियां कम करने की रणनीति पर काम कर रही है. इस बार के योगी मंत्रीमंडल में इकलौता मुस्लिम चेहरा पसमांदा मुस्लिम यानी अंसारी है.
नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन में पिछड़ी जातियों के नेताओं (कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार.. इत्यादि) को आगे लाकर हिन्दू समाज को एकजुट करके भाजपा ने जनविश्वास का विस्तार किया था. सामाजिक लड़ाई के नाम पर यूपी के क्षेत्रीय दलों ने भाजपा के इस दांव पर पानी फेर दिया और जाति की राजनीति हिन्दुत्व की सियासत पर भारी पड़ने लगी थी.
फिर बीस-पच्चीस बरस बाद मोदी युग में भाजपा ने खुद को ताकतवर बनाने के लिए एक बार फिर हिन्दुत्व की एकता कायम करने की कोशिशें शुरू कीं. जिसमें नरेंद्र मोदी जैसी करिश्माई शख्सियत इसलिए भी रामबाण साबित हुई क्योंकि वो भी ओबीसी वर्ग से हैं. मोदी युग में भी ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य, कायस्थ इत्यादि बुरे वक्त से अच्छे दिनों तक मुसल्लस साथ थे ही, भाजपा ने पिछड़ी जातियों को एहमियत देकर सफलता हासिल करने का सिलसिला शुरू किया.
मोदी लहर में दलित और पिछड़ी जातियों की आवाम साथ आती गई और भाजपा का कारवां बनता गया. उधर मुसलमानों का शिया वर्ग अटल से मोदी तक पहले ही कुछ नर्म था. और अब जब यूपी में योगी सरकार रिपीट होकर पौने चार दशक का रिकार्ड बनाकर इतिहास रचने में कामयाब हो गई है तो अभी भी जनाधार बढ़ाने के प्रयास थमे नहीं हैं.
अब पार्टी ने 2024 में मोदी सरकार रिपीट करने का लक्ष्य पूरा करने के लिए जाटव समाज की रही-सही दूरियों को नजदीकियों में बदलने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं. योगी मंत्रीमंडल टू में खूब सारे पिछड़ों के साथ दलितों-जाटवों और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बिरादरी को दिल खोल कर शामिल किया गया है.
मुसलमानों के सुन्नी समाज ख़ासकर पिछड़े (पसमांदा) सुन्नियों से फासला कम करने के लिए इस बार योगी मंत्रीमंडल में शिया मोहसिन रज़ा को हटा कर मुस्लिम समाज की पिछड़ी जाति (पसमांदा) से ताल्लुक रखने वाले नौजवान दानिश अंसारी को मंत्री बनाया है. जबकि यूपी के विधानसभा चुनाव से पहले शिया समाज के सबसे बड़े धर्म गुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने एक वीडियो संदेश के जरिए भाजपा और योगी आदित्यनाथ सरकार पर विश्राम जताया था.
शिया मौलाना जव्वाद के परिवार के सदस्य भाजपा के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ से जुड़े हैं, बावजूद इसके पार्टी की कुशल रणनीति ने पार्टी अल्पसंख्यक विभाग से ही जुड़े सुन्नी समुदाय के दानिश अंसारी को मंत्री बनाना मुनासिब समझा.
ये भी पढ़ें -
कौन हैं योगी सरकार 2.0 में मंत्री बने दानिश आज़ाद अंसारी, जानिए...
योगी आदित्यनाथ ने आखिरकार अरविंद शर्मा को मंत्री बना ही लिया!
शस्त्र लाइसेंस रद्द होना टीजर है, आजम खान के लिए अगले 5 साल एक्शन से भरपूर हैं
आपकी राय