राजनीति का स्याह चेहरा: पद्म सम्मान ठुकराना और ट्विटर पर Red Fort Fateh Diwas ट्रेंड
गणतंत्र दिवस पर वामपंथी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य (Buddhadeb Bhattacharjee) ने पद्म सम्मान (Padma Awards) को ठुकरा दिया. वहीं, ट्विटर पर बीते साल किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में फैली अराजकता को RedFortFatehDivas के रूप में ट्रेंड कराया जा रहा है. सियासी स्वार्थ को साधने के लिए देश के सम्मान के प्रतीकों का अपमान नया ट्रेंड बन गया है.
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कोरोना वायरस की तीसरी लहर के बावजूद भारत में 73वें गणतंत्र दिवस (Republic Day) की आभा देखते ही बन रही है. राजपथ पर होने वाली परेड में सांस्कृतिक विरासत से लेकर भारतीय सेना के अदम्य शौर्य की झलकियां दिखाई गईं. लेकिन, इन सबके बीच वामपंथी नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्म पुरस्कार के सम्मान को ठुकरा दिया. वहीं, ट्विटर पर एक साल पहले किसान आंदोलन के दौरान लाल किले पर फैली अराजकता को लेकर 'लाल किला फतेह दिवस' के रूप में ट्रेंड चलाया जा रहा है. यह दोनों ही मामले राजनीति के उस स्याह चेहरे को दर्शाते हैं, जो केवल लोगों का भड़काकर अपना हित साधना चाहती है. इससे इतर उसकी कोई ख्वाहिश नही है. और, इस सियासी स्वार्थ को साधने के लिए देश के सम्मानित के प्रतीकों का अपमान करने से नहीं चूक रहे हैं.
राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म भूषण सम्मान दिया गया था.
पहले ही क्यों नहीं कर दिया इनकार?
दरअसल, 73वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर केंद्र सरकार की ओर से पद्म पुरस्कार पाने वालों के नाम जारी किए गए थे. कई नामों के बीच केंद्र सरकार की ओर से सार्वजनिक मामलों के क्षेत्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और पश्चिम बंगाल के पूर्व सीएम रहे बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म पुरस्कार का ऐलान किया गया था. लेकिन, इस घोषणा के कुछ ही समय बाद बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पद्म पुरस्कार को 'ऐन मौके' पर ठुकरा दिया. इस बारे में बुद्धदेव भट्टाचार्य ने एक बयान जारी कर कहा है कि 'मुझे पद्म भूषण के बारे में कोई जानकारी नहीं है. किसी ने मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी. अगर वो सचमुच में मुझे ये पुरस्कार दे रहे हैं, तो मैं इसे ठुकराता हूं.' भट्टाचार्य का इस तरह पद्म भूषण सम्मान को ठुकराना राजनीति के स्याह चेहरे को दर्शाता है.
केंद्र की मोदी सरकार ने राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर गुलाम नबी आजाद और बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म पुरस्कार देने का फैसला किया था. जिसे कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने स्वीकार कर लिया. लेकिन, बुद्धदेव भट्टाचार्य को अपनी वामपंथी विचारधारा और पार्टी के दबाव में पद्म पुरस्कार लेने से मना करना पड़ा. पद्म पुरस्कार को मना कर देना कोई बड़ी बात नहीं है. लोगों की राजनीतिक विचारधारा इस मामले में आड़े आ ही जाती है. और, जैसा भट्टाचार्य के मामले में भी साफ है. लेकिन, अगर किसी नेता पर उसकी पार्टी का इतना ही दबाव है, तो उसे पहले ही इसे अस्वीकार कर देना चाहिए. क्योंकि, यह पुरस्कार और सम्मान पाने वालों को पहले ही इस बारे में आधिकारिक और अनिवार्य रूप से सूचना दी जाती है. अगर वह सम्मान स्वीकार नहीं करते हैं, तो इसकी घोषणा नहीं की जाती है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो बुद्धदेव भट्टाचार्य की ओर से पहले पद्म भूषण सम्मान को स्वीकार कर लिया गया. और, फिर पार्टी और विचारधारा के दबाव उन्होंने इसे ठुकरा दिया. यह किसी भी हाल में उचित नहीं कहा जा सकता है.
यह सीधे तौर पर देश के एक बड़े सम्मान को तुच्छ साबित करने की कुत्सित राजनीति का प्रदर्शन मात्र ही कहा जाएगा. क्योंकि, ऐन मौके पर सम्मान को ठुकराने वाले 'पब्लिसिटी स्टंट' के जरिये पार्टी का राजनीतिक एजेंडा पूरा होता है. जबकि, इसी सम्मान को लेकर कांग्रेस नेता शशि थरूर ने गुलाम नबी आजाद को बधाई देते हुए ट्वीट किया है कि 'किसी की भी सार्वजनिक सेवा के योगदान को मान्यता मिला अच्छा है, फिर चाहे वो दूसरे पक्ष की सरकार द्वारा ही क्यों न हो.' गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि 'बुद्धदेव भट्टाचार्य को पद्म भूषण दिए जाने के बारे उनकी पत्नी को जानकारी दी गई थी. और, उन्होंने इसके लिए गृह मंत्रालय का आभार भी जताया था.' लेकिन, बुद्धदेव भट्टाचार्य ने ऐन मौके पर राजनीतिवश पद्म पुरस्कार को ठुकराकर देश को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
Warm congratulations to Shri @ghulamnazad on his Padma Bhushan. It is good to be recognized for one's public service even by a government of the other side. https://t.co/OIT0iVNPjo
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) January 25, 2022
दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड
खैर, इन सबके बीच ट्विटर पर एक हैशटैग ट्रेंड ने लोगों का ध्यान खींचा है. दरअसल, गणतंत्र दिवस के दिन ट्विटर पर #RedFortFatehDivas ट्रेंडिग टॉपिक्स में शुमार रहा है. इस हैशटैग के साथ शेयर की जा रही तस्वीरों ने बीते साल 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में फैली अराजकता के भयावह मंजर की याद को ताजा कर दिया है. बीते साल गणतंत्र दिवस पर किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने की बात कही थी. इसके लिए दिल्ली पुलिस ने बाकायदा रूट भी तैयार कर दिया था. लेकिन, हजारों की संख्या में जुटे कथित किसानों ने ट्रैक्टर परेड के नाम पर दिल्ली की सड़कों पर आतंक फैला दिया था. इस दौरान अराजकता फैला रहे कथित किसानों को रोकने वाली दिल्ली पुलिस पर ट्रैक्टर चढ़ाने की भी कोशिशें की गई थीं. वहीं, किसानों की उग्र हो चुकी इस भीड़ ने लाल किले पर भी कब्जा कर लिया था. लाल किले की प्राचीर पर इन किसानों ने 'निशान साहिब' फहराया और पुलिस वालों के साथ जमकर मारपीट की थी.
26 January, this day is written in history…We will remember this with “Delhi Fateh”! #RedFortFatehDivas pic.twitter.com/hmSNGM7xgb
— ਸਿਮਰ ਕੌਰ?⚔️ (@deep98354427) January 26, 2022
लाल किले पर फैली इस अराजकता के दर्जनों वीडियों और तस्वीरें सामने आई थीं, जिसमें पुलिस वाले अपनी जान बचाने के लिए भागते नजर आए थे. हाथों में नंगी तलवारें लेकर हवा में लहरा रहे इन किसानों ने अराजकता की सारी हदें पार कर दी थी. उस दौरान एक किसान ने पुलिस की बैरिकेडिंग को तोड़ने के लिए उस पर ट्रैक्टर से टक्कर मार दी थी. जिसके बाद ट्रैक्टर के नीचे दबने से उसकी मौत हो गई थी. लेकिन, कुछ स्वघोषित पत्रकारों ने उस दौरान ये अफवाह फैला दी कि किसान की मौत पुलिस की गोली लगने की वजह से हुई है. इस अफवाह ने आग में घी का काम करते हुए किसानों को बुरी तरह से भड़का दिया था. जिसके बाद लाल किले पर पहुंचे किसान उग्र हो गए थे. #RedFortFatehDivas के हैशटैग के साथ उसी मृतक किसान की तस्वीरें साझा कर लोगों को एक बार फिर से भड़काने की कोशिशें की जा रही हैं. सवाल ये है कि गणतंत्र दिवस को 'लाल किला फतेह दिवस' बताने वाले ये लोग कौन है और आखिर इन तस्वीरों के जरिये लोगों में घृणा और द्वेष को बढ़ावा क्यों दे रहे हैं?
Highlight of last year ⚔#RedFortFatehDivas pic.twitter.com/jpO93JFMAG
— Sukhman dil saaf Garcha (@mad__justice__) January 26, 2022
ऐन मौके पर पद्म पुरस्कार को ठुकराना और ट्विटर पर 'लाल किला फतेह दिवस' का ट्रेंड होना बताता है कि देश में राजनीति के स्याह चेहरे ने लोगों के बीच की दरार को एक खाई में बदल दिया है. भारत में अब सियासी दल अपना राजनीतिक हित साधने के लिए किसी भी स्तर तक जाने को तैयार रहते हैं. चाहे इसकी वजह से देश की सुरक्षा और सम्मान ही खतरे में क्यों न आ जाए. इन्ही विपक्षी दलों ने किसान आंदोलन को अपने सियासी स्वार्थ के लिए बढ़ावा दिया. किसान आंदोलन में शामिल अराजक तत्वों को रोकने पर विपक्ष इस बात का हल्ला मचाने लगा कि लोगों की आवाज को दबाया जा रहा है. बीते साल गणतंत्र दिवस पर फैली अराजकता से पहले ट्विटर पर भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ बाकायदा एक हेट कैंपेन चलाया गया था. लेकिन, जब सरकार ने इस पर ट्विटर से कार्रवाई करने को कहा, तो विपक्ष ने अभिव्यक्ति की आजादी को खतरे में बताकर लोगों को भड़काने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के चलते अब देश के सम्मानित प्रतीकों को भी आसानी से निशाना बनाया जा रहा है.
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